अलगाववादियों के पेट में दर्द क्यों?
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अलगाववादियों के पेट में दर्द क्यों?

by
Oct 2, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Oct 2017 11:56:11

27 अगस्त, 2017 
आवरण कथा ‘35ए—कांटा कश्मीर का’ से जाहिर है कि अनुच्छेद 35ए कानूनी शक्तियों से परे है और इसे प्रक्रियाओं का उल्लंघन कर लागू किया गया है। इसे सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। इसका कांटा वही निकाल सकती है, तभी घाटी की शासन व्यवस्था में सुधार लाया जा सकेगा। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने 2002 में जब 35ए का मुद्दा सुलझा दिया था तो फिर क्यों याचिका दायर की गई? अब इसकी संवैधानिक समीक्षा की संभावना से ही अलगाववादियों के पेट में दर्द होने लगा है।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)

बड़े शर्म की बात है कि 10 वर्ष तक देश के उपराष्ट्रपति जैसे जिम्मेदार पद पर रहा व्यक्ति जाते-जाते आम मजहबी तत्वों की तरह बात कर गया कि ‘भारत में मुसलमानों का उत्पीड़न हो रहा है’। दरअसल पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मजहबी राजनीति की हिमायत करते हैं और मुस्लिम असुरक्षा की बात करते हैं। वहीं, महाराष्ट्र के समाज सुधारक हामिद दलवई इस्लाम और मजहबी राजनीति पर ही सवाल उठाते हैं। उन्होंने मुस्लिम समाज में स्त्री-पुरुष समानता पर जोर दिया था। इस हिसाब से हामिद अंसारी का रवैया अजीब ही रहा है।
—सुहासिनी किरानी, हैदराबाद (तेलंगाना)
 
ङकेरल की वामपंथी सरकार जिस तरह हिंसा को मौन समर्थन दे रही है, वह शर्मनाक है। भाजपा और रा.स्व.संघ से जुड़े लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। पर पुरस्कार लौटाने वाले सेकुलर और बुद्धिजीवी इन हत्याओं पर मौन हैं। असहिष्णुता को लेकर बहस करने वाले आएदिन केरल में होने वाली हत्याओं पर चुप्पी साधे हैं। इन्हें पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर होने वाला उत्पीड़न भी नहीं दिखाई देता। यह उनके दोहरे आचरण और पाखंड की पराकाष्ठा है। 
—मनोहर ‘मंजुल’, प. निमाड़ (म.प्र.)

भारत के जिन हिस्सों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहां हिंदुओं का जीवन नरक बन गया है। करीब 25 वर्ष पूर्व मेवात क्षेत्र के हिंदू अपने घर छोड़कर गुरुग्राम में बस गए थे। वे बताते थे कि मुस्लिम युवक उनकी दुकानों से सामान ले जाते और पैसा मांगने पर धमकाते थे। मुझे कभी-कभी मेवात क्षेत्र में जाना पड़ता था। इस इलाके में बस से यात्रा के दौरान मैंने भी महसूस किया जैसे मैं भारत नहीं, पाकिस्तान में सफर कर रही हूं। चालकों-परिचालकों द्वारा महिलाओं पर फब्तियां कसना आम बात थी। यदि आजादी के बाद उचित कदम उठाए जाते तो बहुसंख्यक हिंदुओं को पग-पग पर प्रताड़ित नहीं होना पड़ता।
—डॉ. लज्जा देवी मोहन, अम्बाला (हरियाणा)

70 साल की आजादी के बाद हिन्दू आज अपने ही देश में उपेक्षित हैं। आलम यह है कि कन्वर्जन के कारण 6 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं और 4 राज्यों में अल्पसंख्यक होने के कगार पर हैं। हिंदुओं की कमजोरियां भी हैं। गुलामी सहते-सहते हम धर्म भीरू हो चुके हैं। देश में बाबाओं के धंधे फलने-फूलने से भी हिंदुत्व को नुकसान पहुंचा। हमें गुरु गोविंद सिंह की तरह हिन्दू युवा शक्ति को संगठित
करना होगा। 
—आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ (उ.प्र.)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हिंदुओं की तारीफ की है, क्योंकि वे जानते हैं कि भारत की युवा मेधा शक्ति के बल पर अमेरिका विकसित देश बना है। हिंदू किसी भी देश में रहें, अहिंसा परमो धर्म: के सिद्धांत का पालन करते हैं। भारत में कुछ तो खास है जो लोगों को अपनी ओर खींचता है। स्वामी विवेकानंद के साथ भगिनी निवेदिता और महर्षि अरविंद के साथ श्री मां आर्इं और यहीं की होकर रह गर्इं। उन्होंने आजादी के संघर्षों में भी हिस्सा लिया।
—प्रदीप सिंह राठौर, झंडेवाला (न.दि.)

ङकेंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में मजबूती आई है। पड़ोसियों को भी महसूस हो रहा है कि भारत में एक मजबूत सरकार और मजबूत नेतृत्व है। यह 21वीं सदी का भारत है, पूरे विश्व में सूर्य की तरह चमकता हुआ। आज इस पर आंख उठाकर देखने वाला दस बार सोचेगा। इसलिए हमें अतीत की गलतियां नहीं दोहरानी चाहिए।  
—कजोड़ राम नागर, दक्षिण पुरी (न.दि.)

स्वतंत्रता दिवस विशेषांक ने आंखों पर बंधी असत्य की पट्टियों को खोलने का काम किया है। अभी भी देश में नौवीं से 12वीं के विद्यार्थियों को गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। ‘आर्य बाहर से आए, वे इस देश के मूल वासी नहीं थे। यहां रहने वाले सभी अन्य देशों से आए हैं, इसलिए इस पर सबका अधिकार है।’ क्या ये भ्रामक चीजें पढ़ने वाले विद्यार्थी देश के प्रति स्वाभिमान की भावना रख सकेंगे? कभी नहीं। इसलिए इतिहास की पाठ्यपुस्तकों से ऐसी सामग्री हटाना आवश्यक है।
—कृष्ण बोहरा, सिरसा (हरियाणा)

हिंदी बेहद शक्तिशाली, व्यापक और सर्वजन प्रिय भाषा है। यह देश को जोड़ने वाली भाषा है। आज विश्व के 130 महाविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। चीन और अमेरिका में तो खासतौर से इसके प्रति विशेष रुझान है। भाषा का प्रश्न किसी भी देश के सम्मान और अस्मिता से जुड़ा होता है। हमें अपने भाषायी स्वाभिमान और राष्ट्र की गरिमा का ध्यान रखते हुए हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के उन्नयन और विकास हेतु व्यावहारिक कदम  उठाने होंगे।
—डॉ. पं. लक्ष्मीनारायण सत्यार्थी, नागदा (म.प्र.)

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