वाल्मीकि जयंती पर विशेषL:नर से नारायण की यात्रावाल्मीकि
July 16, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

वाल्मीकि जयंती पर विशेषL:नर से नारायण की यात्रावाल्मीकि

by
Oct 2, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 02 Oct 2017 11:56:11

कर्मों की दीमक से जब हम पार हो जाते हैं तो भगवत्ता खिल उठती है। महर्षि वाल्मीकि समाज के लिए प्रकाश स्तंभ हैं। एक आस हैं कि पीड़ा, तनाव, जीवन में कर्मांे में हुई भूलचूक के तमस को सत्संग और तप से काटा जा सकता है और ज्ञान का सवेरा ज्यादा दूर नहीं। हम परमात्मा के निकट ही नहीं, परमात्मा भी हो सकते हैं। संसार के प्राणी अपने कर्मांे के कारण नहीं, ज्ञान के अभाव में दुखी हैं

अजय विद्युत
हमने किस परिवार या समाज में जन्म लिया, इससे जीवन के कर्मफल का निर्धारण नहीं होता। भारतीय वेदों की यह घोषणा संपूर्ण पृथ्वी के लिए सार्वकालिक है कि ‘जन्मत: शूद्र जायते।’ जन्म से हम सभी शूद्र हैं। जीवन में कर्म का सिद्धांत ही हम सबको विभिन्न जिम्मेदारियां दिलाता है और हमारा कर्म और स्थान निर्धारित करता है। एक सामान्य नर, जो हम जैसी ही गलतियां भी करता है, फिर कैसे साधना और सत्संग से नारायणत्व को उपलब्ध हो नारायण  तुल्य बन सकता है, इसकी अद्भुत मिसाल हैं वाल्मीकि। यह प्रसंग बताता है कि वंचित होना किसी का दुर्भाग्य नहीं है। कर्म और सत्संग की राह पर न चलना दुर्भाग्य और दुर्गति का कारण बनता है। नारायण यानी श्रीराम स्वयं उनके आश्रम आते हैं और उन्हें दण्डवत प्रणाम करते हैं। श्रीराम वनवास काल के दौरान वाल्मीकि ऋषि के आश्रम भी गए थे। रामचरितमानस में संत तुलसीदास जी लिखते हैं :
‘देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीक आश्रम प्रभु आए।।’
फिर श्रीराम ने ऋषि को दण्डवत प्रणाम किया और उनके मुख से निकला,
‘तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विश्व बिद्र जिमि तुमरे हाथा।’
यानी आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं। ये संसार आपके हाथ में एक बेर के समान प्रतीत होता है।

नाम     :    महर्षि वाल्मीकि
वास्तविक नाम : रत्नाकर
पिता     :     प्रचेता (कहीं कहीं वरुण या आदित्य भी कहा गया है)
मां     :    चर्षिणी
भाई     :    भृगु
जन्म    :    आश्विन पूर्णिमा
रचना     :     रामायण

जीवन में भरण-पोेषण के लिए हम कुछ भी कर्म कर लेते हैं लेकिन केवल यही हमारी नियति नहीं है। हम चाहें तो उनसे उबरकर सर्वश्रेष्ठ आसन पर विराज सकते हैं, इसे वाल्मीकि जी के जीवन से सीखना चाहिए। आज के समय में जैसी जीवन की आपाधापी है और बुनियादी जरूरतों के लिए कोई भी कर्म या समझौता हम सबसे जाने-अजाने हो जाता है, ऐसे में महर्षि वाल्मीकि संपूर्ण संसार के सामान्य से भी सामान्य जन के लिए एक आश्वासन बनकर उभरते हैं। यहीं कर्म और स्वभाव का अंतर भी सामने आता है। बिना विचारे जीवन जीने और भौतिक जरूरतें पूरी करने के लिए कोई भी कर्म करने में न हिचकने वाले का मूल स्वभाव भी उसी परम चेतना से प्रकाशित है। बस कर्मांे ने उस पर धूल डाल रखी है। वरना केवल एक ऋषि की बात पर रूपांतरण न हो पाता। ऋषि की बात भीतर के अहंकार पर चोट करती है कि यह मैं कर क्या रहा हूं। क्या जीवन इसी के लिए है कि रोटी, कपड़ा और मकान। चले जाते हैं तपस्या करने। तप हमारे कर्मांे को काटता है। भगवत्ता से परिचित कराता है। रत्नाकर घनघोर तप करते हैं। भगवान का नाम जपते हैं। शरीर को दीमकों ने अपना ढूह (बांबी) बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी कर दीमक ढूह (जिसे वल्मीक कहते हैं) बाहर निकले तो लोग उन्हें वाल्मीकि कहने लगे। अपने पूर्व कर्मांे के ग्रहण से उबरकर रत्नाकर अब ऋषि वाल्मीकि हो गए। सूर्य की तरह ज्ञान और भगवत्ता के प्रकाश से संसार को आलोकित करने वाले।
साधना से मिले ज्ञान और शक्ति ने ही उन्हें ‘रामायण’ रचने की सामर्थ्य दी। उन्हें रामायण का पूर्व ज्ञान था। वाल्मीकि जी आदिकवि हैं। संस्कृत का पहला श्लोक उन्होंने ही रचा था। प्रथम संस्कृत महाकाव्य रामायण की रचना के कारण भी उन्हें आदिकवि कहा जाता है। पूर्व कर्मांे की क्रूरता जब सत्संग, साधना और तप से पिघलती है तो प्राणीमात्र के प्रति दया में बदल जाती है। तमसा नदी के किनारे क्रौंच पक्षी यानी सारस का एक जोड़ा प्रेम में लीन था। एक बहेलिए ने उनमें से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। इस विलाप को सुनकर ऋषि वाल्मीकि के भीतर की करुणा फूट पड़ी और व्याध को श्राप देते हुए उनके मुख से स्वत: ही यह श्लोक निकला। यह संस्कृत भाषा में लौकिक छंदों में प्रथम अनुष्टुप छंद का श्लोक था जिसके कारण वाल्मीकि जी आदिकवि हुए—
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती समा:। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधी: काममोहितम्।।
(निषाद) अरे बहेलिए, (यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधी: काममोहितम्) तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं (मा प्रतिष्ठां त्वमगम:) हो पाएगी।
बाद में उन्होंने श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य और कर्त्तव्य से परिचित कराने वाले 23,000  श्लोक वाले पवित्र संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। यह बताता है कि हम पहले क्या थे यह भूलकर अच्छे लोगों के सान्निध्य में रहकर अपने कर्म करें तो ईश्वर स्वयं हमसे कालजयी रचनाएं करवाते हैं।
महर्षि कश्यप और अदिति के नवें पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। वरुण का एक नाम प्रचेता भी है। वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि कहते हैं कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। इनकी माता चर्षिणी और भाई भृगु थे। उपनिषद् के अनुसार वाल्मीकि भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। रामायण में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्रों की स्थितियों का वर्णन किया गया है। इससे पता चलता है कि वे ज्योतिषशास्त्र और खगोलशास्त्र के भी प्रकांड पंडित थे।
भगवान् क्यों कहते हैं महर्षि वाल्मीकि को? क्योंकि हम इतिहास में खोजें तो तीन युगों में वाल्मीकि जी का उल्लेख मिलता है सतयुग, त्रेता और द्वापर। वह भी वाल्मीकि नाम से ही। ऐसे में उन्हें प्रभु-तुल्य ही माना जा सकता है। महाभारत काल में भी वाल्मीकि हैं। महाभारत का भीषण युद्ध समाप्त होता है। पांडव कौरवों से जीत जाते हैं। इस पर द्रौपदी एक यज्ञ का आयोजन करती हैं जो सफल नहीं होता। एक अजीब-सी घबराहट फैल जाती है पांडवों में। तब श्रीकृष्ण उन्हें शांत करते हुए इसका कारण बताते हैं कि यज्ञ में सभी मुनियों के मुनि अर्थात् वाल्मीकि जी को नहीं बुलाया गया इसलिए यज्ञ संपूर्ण नहीं हो पा रहा है। यह सुनकर द्रौपदी स्वयं वाल्मीकि आश्रम जाती हैं और उनसे यज्ञ में आने की विनती करती हैं। वाल्मीकि जी यज्ञ में आते हैं। उनके आते ही शंख खुद ही बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ संपूर्ण हो जाता है। इस घटना को कबीर जी ने भी स्पष्ट किया है- ‘सुपच रूप धार सतगुरु जी आए।
पांडो के यज्ञ में शंख बजाए।’
किसी भी महापुरुष के बारे में मनन के दौरान जब हम समग्रता से विचार करते हैं तो विभिन्न ग्रंथों में हमें अलग-अलग कथाएं मिलती हैं। अलग-अलग भाष्यकार घटना को अपनी तरह से व्यक्त करते हैं। लेकिन हमें उनके दृश्यों, घटनाओं की व्याख्या में न उलझते हुए उस मूल तत्व को धारण करना चाहिए जो कि उनका वास्तविक उद्देश्य है और वह एक ही है। महर्षि वाल्मीकि का जीवन चरित हमें बताता है कि हम किसी भी धर्म, जाति में जन्मे हों लेकिन लीक ठीक करें तो विश्व के लिए वंदनीय हो सकते हैं। कठोर तप के विवरण में भी कई कथाएं देखने को मिलती हैं लेकिन उन कथाओं का सार यही है कि कैसी भी विषम परिस्थितियां आएं,
हमेशा अपनी बुद्धि और विवेक से सामना करना चाहिए। नाम जप और सत्संग का यह भी प्रभाव हो सकता है कि एक व्यक्ति जिससे कभी कुछ अशुभ कर्म भी हो चुके हों, उसके सामने प्रभु श्रीराम दंडवत होते हैं। माता सीता अपने वनवास का अंतिम काल उनके आश्रम पर व्यतीत करती हैं। लव और कुश वहीं पर जन्म लेते हैं और वाल्मीकि जी उन्हें रामायण का गान सिखाते हैं।
ईश्वर किसी रूप में एक ही काल में अवतार लेते हैं लेकिन वह अतिसाधारण व्यक्ति साधना के माध्यम से नर से नारायण तक की यात्रा पूरी करता है। तीनों काल में लोककल्याण की महायात्रा करता है। साधारण नर ऋषि से महर्षि होता हुआ ईश्वर सरीखा हो जाता है। इसीलिए भगवान् वाल्मीकि जी की जयंती पर कई प्रकार के आयोजन किए जाते हैं, शोभायात्रा निकाली जाती है। हर वर्ग का भगवान् वाल्मीकि के प्रति विश्वास और उत्साह देखते ही बनता है। लेकिन सूर्य के प्रकाश की तरह वाल्मीकि जी के जीवन का ज्ञान पूरे समाज के लिए है। वाल्मीकि जयंती के आयोजनों में समाज के बाकी वर्गांे को भी अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। तब यह आयोजन भारत में एक दिव्य समाज के निर्माण का ऐसा उद्घोष बन जाएगा जिसकी ध्वनि तरंगें पूरे संसार को मानवता के प्रति सजगता के भाव से स्पंदित कर देंगी।     ल्ल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

छत्रपति शिवाजी महाराज

रायगढ़ का किला, छत्रपति शिवाजी महाराज और हिंदवी स्वराज्य

शुभांशु की ऐतिहासिक यात्रा और भारत की अंतरिक्ष रणनीति का नया युग : ‘स्पेस लीडर’ बनने की दिशा में अग्रसर भारत

सीएम धामी का पर्यटन से रोजगार पर फोकस, कहा- ‘मुझे पर्यटन में रोजगार की बढ़ती संख्या चाहिए’

बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies