सेकुलर अपनत्व की कसौटी-भारत से अमैत्री
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सेकुलर अपनत्व की कसौटी-भारत से अमैत्री

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Sep 25, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Sep 2017 10:56:22

मोदी सरकार का रोहिंग्याओं को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताना विवेकपूर्ण कथन
तरुण विजय

रोहिंग्या का प्रश्न शरणार्थी प्रश्न है ही नहीं। यह सिद्ध कर दिया भारत के वांछित अपराधी और पाकिस्तानी आतंकवादी मसूद अजहर के उस बयान ने जिसमें उसने रोहिंग्या के समर्थन में मुसलमानों को एकजुट होने का फरमान दिया है। क्या यह युद्ध है कि सबको एक खूंखार आतंकवादी लामबंद होने का निर्देश दे रहा है? और युद्ध है तो किसके खिलाफ? भारत के ऊपर अब्दुल्ला, ओवैसी और सेकुलर किस्म के हिंदू पत्रकार बड़ा उतावलापन दिखाते हुए रोहिंग्या आक्रमणकारियों के लिए घड़े-घड़े आंसू बहाते हुए विलाप कर रहे थे। मसूद अजहर ने उन सबका काम आसान कर दिया। स्पष्ट है, या तो आप मसूद अजहर के साथ हैं- या भारत के साथ। चुन लीजिए।
जहां भी मुसलमान बहुसंख्यक होते हैं, वहां वे अल्पसंख्यकों का जीना दुश्वार कर देते हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश तो छोटे उदाहरण हैं जहां हिंदू, बौद्ध और ईसाई अल्पसंख्यकों का जीवन हमेशा बर्बरता की तलवार तले रहता है। उनके बारे में ये भारतीय मुसलमान तथा उनसे भी ज्यादा इस्लामी वफादारी दिखाने वाले ढोंगी सेकुलर कभी कुछ बोलते नहीं। क्या आपने कभी इन मोमबत्ती वालों को पाकिस्तान में इस्लामी दरिंदों का शिकार होने वाले हिंदुओं की चीत्कारों के बारे में रोष दिखाते देखा है? क्या कभी ये लोग पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूचिस्तान में ढाए जाने वाले अत्याचारों पर कुछ बोलते हैं? बिल्कुल नहीं! क्योंकि वे वफादार इस्लामी होने के नाते कहते हैं कि पाकिस्तान अपने मुल्क की सरहदों के भीतर जो कर रहा है, वह उसका व्यक्तिगत मामला है और हमें किसी दूसरी मुल्क के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। लेकिन यदि हमारा घनिष्ठ मित्र म्यांमार, जो भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई में हमारी भरपूर सहायता करता है, यदि अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा तथा सामाजिक सद्भाव के लिए हिंसक तथा कृतघ्न लोगों के खिलाफ कार्रवाई करता है तो उसे    म्यांमार का अंदरूनी मामला नहीं मानना चाहिए, बल्कि उसके खिलाफ सारी दुनिया को एकजुट हो जाना चाहिए।
अजीब बात है। जब मुसलमान बहुसंख्यक हों तो वे हिंदुओं को उनके सदियों पुराने गांवों, घरों, बागीचों से उजाड़ कर पलायन करने पर मजबूर कर देते हैं-उन्हें अचानक स्वतंत्र भारत में ही शरणार्थी बना देते हैं। पर जब उनके हम-मजहब मुसलमान अपनी ही हिंसा के कारण परेशान हों, शरण मांगें तो समस्त हिंदुओं को उनकी मदद करनी चाहिए। यानी जब जम गए तो दूसरों को शरणार्थी बना दो, जब फंस गए तो अपने शरणार्थीपन का हक जमाओ।
वे हमें, तनिक मक्कारी के साथ, याद दिलाते हैं कि भारत ने यहूदी, फारसी, तिब्बती लोगों को भी तो शरण दी। ठीक बात है। पर वे यह क्यों भूल जाते हैं कि ये तमाम शरणार्थी भारतीय समाज के साथ दूध-शक्कर की तरह घुल-मिल गए और अपनी मिठास तथा मित्रता की सुगंध से भारत को मधुर और सुवासित किया। ये वे लोग हैं जिन्हें सारी दुनिया ने तिरस्कृत और अस्वीकृत किया था। केवल भारत ने उन्हें बिना शर्त, समान अधिकार देते हुए अंगीकार किया। इन्होंने अल्पसंख्यक होते हुए भी कभी अल्पसंख्यक होने का दर्जा नहीं मांगा। कभी कोई विशेषाधिकार नहीं चाहा। कभी अपने लिए मजहबी आधार पर आरक्षण नहीं मांगा। इनके साथ उन रोहिंग्या की तुलना कैसे हो सकती है जो चोरी छुपे बंगाल से जम्मू-कश्मीर तक फैल गए, अपराधों में अपना नाम ‘रोशन’ करने लगे और भारत के शत्रुओं के साथ मिलकर हमें ही, हमारे ही घर में धमकियां देने लगे?
ये सेकुलर और भारत के रोहिंग्या प्रिय मुसलमान इस बात का उत्तर नहीं देते कि इस्लाम के नाम पर बड़े-बड़े झंडे उठाने वाले इस्लामी देश इन रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां क्यों नहीं बुलाते? इस्लामी आलमी भाईचारे का तकाजा है कि वे विशेष विमान भेजकर म्यांमार से इन लोगों को इस्लामाबाद, लाहौर, ढाका, जद्दाह, रियाद वगैरह-वगैरह सुन्नी मुसलमानों से भरे हुए शहरों में बसाएं। वहां रोहिंग्या लोगों का मन भी लगेगा और इस्लामी भाईचारा जिंदाबाद होगा। लेकिन ऐसा करने के बजाए वे एक हिंदू बहुल भारत में रोहिंग्याओं को बसाना चाहते हैं, क्योंकि उनका मकसद है कि भारत में हिंदू बहुसंख्यक आबादी को जितना जल्द हो सके, मुस्लिम बहुल देश में तब्दील करना। इसके लिए रोहिंग्या को बड़ी तादाद में भारत में बसाने से ज्यादा और क्या कारगर तरीका हो सकता है? उस पर मसूद अजहर जैसा आतंकवादी उनका आका बनकर भारत में इस्लामी आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए एक नयी रोहिंग्या फौज तैयार कर ही रहा है। कल्पना करिए, यदि देश में संप्रग सरकार होती तो क्या होता? वे तो तुरंत इन लाखों रोहिंग्याओं  में अपने मतदाता ढूंढते, उन्हें बसाते, उनके राशन कार्ड बनवाते और उन्हें हिंदुओं पर हमले करने के लिए वैसे ही छोड़ देते, जैसे उन्होंने बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ किया और ही जनसंख्या का ढांचा ही बदल दिया। यह मोदी सरकार का ही साहस एवं देशभक्तिपूर्ण कर्तृत्व है कि उसने रोहिंग्या को साफ-साफ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया। यह वक्त है म्यांमार की नोबल शांति पुरस्कार विजेता आंगसान सू की का डटकर साथ देने का। आंगसान अपने देश की रक्षा के लिए उचित कदम उठा रही हैं। उनका अभिनंदन करना चाहिए।    (लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद हैं)

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