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आज के दौर में जहां लोग स्वयं और अपने परिवार तक ही सीमित हो गए हैं, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो नि:स्वार्थ भाव से समाज सेवा कर रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं उत्तराखंड की समाजसेवी मंगला रावत, जो शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही हैं। यही नहीं, वे बेसहारा लोगों के जीवन को भी नई दिशा प्रदान कर रही हैं। इन परहित कार्यों के लिए उन्हें कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने सम्मानित किया है
जगमोहन आजाद
टिहरी गढ़वाल के पांगर गांव में 16 अक्तूबर, 1956 को जन्मी मंगला रावत भौतिक शिक्षा के साथ आध्यात्मिक शिक्षा को मानव जीवन के लिए जरूरी मानती हैं, क्योंकि इसी के माध्यम से भावी पीढ़ी आदर्श नागरिक बनकर समाज एवं राष्टÑ निर्माण में अपना योगदान दे सकती है। मंगला के पिता मातवर सिंह सजवाण एक वीर सैनिक के अलावा समाजसेवी भी थे। पिता के सेवाभाव का असर बेटी पर भी पड़ा। जब वे छोटी थीं तो गांव में खेती-बाड़ी में मां का हाथ बंटाने के साथ पढ़ाई करतीं और दूसरे बच्चों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करतीं। बचपन में पढ़ाई के दौरान जब स्कूल में जिन बच्चों के पास किताबें, चप्पल नहीं होती थीं तो वे उन्हें अपनी किताबें और चप्पलें दे देती थीं। इसके लिए उन्हें कई बार माता-पिता की डांट खानी पड़ती थी। कई बार तो पिटाई भी हो जाती थी। लेकिन उनका सेवाभाव निरंतर मजबूत ही होता गया। बाद में उन्होंने अपने गांव ही नहीं, बल्कि जिले के कई गांवों में गरीब बच्चों को स्कूल जाने और पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने खासतौर से लड़कियों और गांव की महिलाओं को पढ़ना-लिखना सिखाया ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें। इसका नतीजा यह हुआ कि गांव में लड़कियों और महिलाओं का शिक्षा प्रतिशत निरंतर बढ़ता गया। गांव वाले इसका श्रेय मंगला रावत को देते हैं। शायद यही वजह है कि उन्हें पहाड़ में गरीबों की मां के रूप में भी जाना जाता है।
मंगला रावत पढ़ाई के साथ गांव के गरीब बच्चों को भी प्रोत्साहित करती रहीं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से भी जोड़ा। हालांकि शुरुआत में उनकी भूमिका एक दायरे तक सीमित रही, जिससे वे खुश नहीं थीं। उन्हें उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के विकास में अहम भूमिका निभानी थी। विशेष तौर पर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में। इसके लिए उन्होंने पति श्री भोलेजी महाराज के साथ मिलकर ‘द हंस फाउंडेशन’,‘श्री हंसलोक जनकल्याण समिति’ तथा ‘हंस कल्चरल सेंटर’ जैसी धर्मार्थ, सामाजिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं की नींव रखी। इनके माध्यम से राज्य सहित पूरे देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अलख जगाई। उनकी इस पहल का फायदा आज हजारों लोग उठा रहे हैं।
‘हंस फाउंडेशन’ द्वारा पौड़ी गढ़वाल के सतपुली में संचालित आधुनिक सुविधाओं से युक्त श्री हंस करुणा अस्पताल में रोजाना गरीब और जरूरतमंद लोगों का निशुल्क इलाज किया जाता है। इसी तरह हरिद्वार के बहादराबाद में 80 बिस्तरों वाले ‘हंस आई केयर’ में आंखों का निशुल्क इलाज और आॅपरेशन किए जाते हैं। इसके अलावा, दिल्ली के साकेत स्थित ‘सिटी अस्पताल’ से अनुबंध कर मंदबुद्धि बच्चों का इलाज करवा रही हैं। गरीबों के इलाज के लिए दिल्ली के सर गंगाराम सिटी अस्पताल, करोल बाग स्थित बी.एल. कपूर अस्पताल, फरीदाबाद स्थित एशियन अस्पताल, देहरादून के हिमालयन इंस्टीट्यूट अस्पताल और मंहत इंद्रेश अस्पताल के साथ भी अनुबंध किया है। इलाज पर होने वाला खर्च उनकी संस्था उठाती है।
महिलाओं और लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी संस्थाएं देशभर में सामाजिक उत्थान एवं जनकल्याण के लिए कई परियोजनाएं चला रही हैं। इनमें हंस करुणा स्वास्थ्य परियोजना, राजेश्वरी करुणा शिक्षा परियोजना, गरीब वृद्ध, दिव्यांग एवं विधवा मासिक पेंशन, राजेश्वरी करुणा स्वरोजगार, हंस गोशाला योजना और चिकित्सा शिविर आदि प्रमुख हैं। इसमेंग्रामीण महिलाओं को धुआंरहित गैस चूल्हों का वितरण और गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए आर्थिक मदद देने जैसे कार्य शामिल हैं। इसी तरह विधवा, दिव्यांग, परित्यक्ता तथा वरिष्ठ नागरिकों को प्रतिमाह पेंशन भी दी जाती है। उनकी संस्था आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की लड़कियों की शादी में भी आर्थिक मदद देती है। इसके अलावा, उनकी संस्था और इससे जुड़े कार्यकर्ताओं को देश के किसी भी कोने से आर्थिक तंगी के कारण इलाज नहीं करा पाने या बच्चों को पढ़ा नहीं पाने वाले व्यक्ति के बारे में पता चलता है तो उनकी संस्था मदद के लिए हाथ बढ़ाती है।
मंगला जी बताती हैं, ‘‘मेरा सपना था कि समाज के लिए कुछ करूं। किसी दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने पर या बीमार होने पर जो लोग अपना इलाज नहीं करा पाते, ऐसे लोगों के साथ हम हमेशा खड़े हैं। हमारे बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ें, इसके लिए भी हम काम कर रहे हैं। मेरा मानना है कि हमारा देश स्वस्थ और शिक्षित होगा, तभी विकास होगा। हमने देश के कई स्कूलों और गांवों को गोद लिया है। पहाड़ के दूर-दराज के क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में बच्चे नियमित रूप से आवाजाही कर सकें, इसके लिए स्कूल बसें भेंट की हैं। उत्तराखंड में आपदा के कारण तबाह हुए गांवों को गोद लिया है। हम इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के अलावा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के साथ लोगों के जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए प्रयासरत हैं।’’
आपदा में जिन बच्चों ने अपना सबकुछ गंवा दिया, उन्हें गोद लेकर उनका भविष्य संवारने में भी मंगला रावत मदद कर रही हैं। उन्होंने उत्तराखंड-2020 परियोजना के माध्यम से उत्तराखंड ग्रामीण विकास के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है। साथ ही, उन्होंने गुजरात सरकार के साथ मिलकर अमदाबाद के निकट भाणज गांव में देश के सबसे बड़े स्वचालित मध्याह्न भोजन का शुभारंभ किया है। अक्षयपात्र फाउंडेशन द्वारा संचालित इस रसोईघर
के निर्माण में हंस फाउंडेशन ने 12 करोड़ रुपये की मदद दी है।
इतना ही नहीं, वे उत्तराखंड की कला, साहित्य, लोक संस्कृति, तथा खेलों को भी बढ़ावा दे रही हैं। इसके लिए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पहलवान महाबली खली से अनुबंध किया है। साथ ही, दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहराने वाली देहरादून की पर्वतारोही जुड़वां बहनों ताशी-तुंग्शी को उनकी संस्था ने 25 लाख रुपये की मदद दी जिससे वे अपना मिशन पूरा कर सकीं। उत्तराखंड के पत्रकारों, अधिवक्ताओं की मदद के लिए भी उन्होंने 50-50 लाख रुपये का कल्याण कोष बनाया है। इन कार्यों के लिए देश-विदेश में फैले उनके शिष्य सहयोग राशि भेजते हैं। अमेरिका में रूरल इंडिया संस्था भी बहुत सहयोग कर रही है।
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