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फौज की चाल में फंसे ‘शरीफ’

by
Sep 18, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Sep 2017 10:56:11

13 अगस्त, 2017  
आवरण कथा ‘कोई नहीं ‘शरीफ’ से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के आरोप में नवाज शरीफ को आरोपी पाया और उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। इसके पीछे कारण था कि पाकिस्तान की फौज के मुखिया नहीं चाहते थे कि नवाज प्रधानमंत्री रहें। यह बिल्कुल सत्य है कि पाकिस्तान में फौजी तानाशाहों के हाथ में सारी सत्ता है। और यहां की बर्बादी का भी यही प्रमुख कारण है। जब तक पाकिस्तान
में ऐसा चलता रहेगा, यह देश उतना ही
गर्त में जाएगा।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

इन हत्याओं पर चुप्पी क्यों?
‘केरल की रक्तरंजित राजनीति (13 अगस्त, 2017)’ रपट लाल आतंक को सामने रखती है। रपट ने उनकी आंखें खोलने का काम किया जो वामपंथियों को जल, जंगल, जमीन और शोषित-वंचितों के अगुआ मानते हैं, जबकि इनका वहशी रूप केरल में दिखता है। माकपा के कट्टरपंथी तत्वों द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओंको निशाना बनाया जाता है। अब तक करीब 400 कार्यकर्ताओं की हत्याएं की जा चुकी हैं। लेकिन इस पर वामपंथी कभी नहीं बोलते।
—अनुपम जायसवाल, मुरादाबाद (उ.प्र.)

  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक संघ कार्य को ईश्वरीय कार्य मानते हैं। और यही कारण है कि आज हर क्षेत्र में संघ अग्रणी रूप से काम कर रहा है। देश के सुदूर क्षेत्रों में चिकित्सा, सेवा आदि के माध्यम से स्वयंसेवक रात-दिन समाजसेवा में तल्लीन हैं। इस दौरान अनेक संकट आते हैं लेकिन ईश्वरीय शक्ति अदृश्य रूप से उनको संबल देते हुए बन प्रदान करती है और वे आगे बढ़ते चले जाते हैं। संघ विरोधियों को इन सभी बातों पर गहनता
से मंथन करते हुए निरर्थक विरोध बंद करना चाहिए।
—अश्वनी जागड़ा, महम (हरियाणा)

 इतना दुराग्रह क्यों?
जब-जब वंदे मातरम या राष्ट्रगान गाने की बात होती है, मुल्ला-मौलवी आक्रोश से भरकर इसे गाने वालों के खिलाफ फतवे का चाबुक लेकर खड़े हो जाते हैं। भारत में रहकर, यहीं पलकर राष्ट्रगान से दुराग्रह समझ से परे है। पता नहीं ऐसे लोगों को रहीम, रसखान, मलिक मोहम्मद जायसी याद भी हैं या नहीं? ऐसे दुराग्रही लोगों को कभी अपने पूर्वजों के बारे में भी सोचना चाहिए। जो धरती उन्हें सब कुछ देती है, उसके प्रति कम से कम कृतज्ञता ज्ञापित न करें आलोचना तो नहीं ही करनी चाहिए। पता नहीं यह कब भारत के कट्टर सोच के मुसलमानों को समझ आएगा!
—अरुण मित्र, रामनगर (दिल्ली)

 इतना दुराग्रह क्यों?
रपट ‘शिकंजे में राष्ट्रद्रोही (13 अगस्त, 2017)’ अलगाववादियों के कारनामों को उजागर करती है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के छापों से घाटी के अलगाववादियों में हड़कंप मचा हुआ है। अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं, उनसे साबित हुआ है कि घाटी के अलगाववादी एक षड्यंत्र के तहत देशद्रोह के काम में लगे हुए थे। ऐसा नहीं है पहली बार देश के लोग  इस चीज को जानकारी हुई हो। लेकिन आधिकारिक रूप से इस बार यह जरूर साबित हो गया।
                 —राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)

एक तरफ सेना ने कश्मीर में आतंकियों के हौसले पस्त कर रखे हैं तो दूसरी तरफ जांच एजेंसियों ने अलगाववादियों की कमर तोड़ रखी है। पत्थरबाजों के हमदर्द सहमे हुए हैं लेकिन फिर भी वे अलगाव की भावना को भड़काने में लगे हुए हैं पर अब उनकी चाल कामयाब होती नहीं दिख रही। कश्मीर के लोगों को भी लगने लगा है कि सभी अलगाववादी नेता कश्मीर की जनता को आग में झोंककर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं। उन्हें कश्मीर के हित से कोई भी मतलब नहीं है।
—निकुंज वर्मा, समस्तीपुर (बिहार)

 कांग्रेस के शासनकाल में घाटी के अलगाववादी भारत के साथ तोल-मोल की राजनीति करते थे और कांग्रेस वोट की राजनीति के लिए उनकी हर जायज-नाजायज मांग मानती थी। उसका परिणम यह होता था कि समूची घाटी में अलगाववाद और आतंक की लौ तेजी से धधकने लगती थी। यह सही है कि एक तरीके से देश के गद्दारों को कांग्रेस दशकों से पालती चली आ रही थी। लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद उनको करारा जवाब दिया गया है। घाटी में बैठकर वे देश के खिलाफ जितने भी षड्यंत्र रचते थे, उसकी पोल खोलने का काम एजेंसियां करने लगी हैं।
               —दयावर्धिनी, सिकंदराबाद (तेलंगाना)
 सैनिक चाहे घाटी में तैनात हों या फिर सीमा पर, आज उनका हौसला बेहद बढ़ा हुआ है।  इसके पीछे की कहानी भी किसी से छिपी नहीं है। कांग्रेस सरकार ने सेना के हाथ बांध रखे थे। गोली खाते हो, फिर भी  जवाब मत दो। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वर्तमान केन्द्र सरकार ने दुश्मनों से लड़ने के लिए भारतीय सैनिकों को पूरी छूट दे रखी है। घाटी में आएदिन मारे जाते आतंकी इसका सबूत हैं।
—रमादास गुप्ता, गुप्ता कॉलोनी (जम्मू)

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