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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर लोगों में सहानुभूति का भाव उपजता है। राहुल गांधी के साथ मुश्किल यह है कि राजनीतिक नेतृत्व के लिए सिर्फ भला आदमी होना पर्याप्त योग्यता नहीं है। बस, यही बात फिर से साबित हो गई, जब राहुल गांधी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में भारत के लगभग हर मुद्दे पर बोले। उनके बोलने के बाद लोगों की राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी से सहानुभूति और बढ़ गई। क्योंकि, राहुल गांधी के इस तरह से बोलने से वे सारे आरोप साबित होते दिख रहे हैं, जिसे लेकर कांग्रेस की आलोचना की जाती रही है। कांग्रेस खुद को राज करने वाली देश की अकेली पार्टी के रूप में देखती है। हालांकि, मई 2014 के बाद कांग्रेस के बारे में यह धारणा पूरी तरह से बदलती दिखाई दी। बर्कले जाकर राहुल गांधी ने माना कि 2012 के बाद से पार्टी में अहंकार आ गया। लेकिन, फिर वह यह भी कह देते हैं कि 'वे प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं।' लोकतंत्र में चुनाव में जनता तय करती है कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा। लेकिन, राहुल का अभी यह कहना कि 'वे प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं', उसी वंशवादी धारणा को स्थापित करने की कोशिश है कि सत्ता का स्वाभाविक हकदार तो सिर्फ गांधी परिवार है।
उन्होंने विश्वविद्यालय के मंच से वंशवाद को स्वाभाविक साबित करने की भी कोशिश की। यह और ज्यादा खतरनाक है। राहुल गांधी कह रहे हैं कि ऋषि कपूर से लेकर अभिषेक बच्चन तक और देश की दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी वंशवाद के ही आधार पर चल रही हैं। अब यह समझने की बात है कि दूसरों का वंशवाद बताकर क्या राहुल गांधी खुद के कांग्रेस उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने की बात को ठीक ठहराना चाहते हैं? हालांकि, इसका जवाब ऋषि कपूर ने ट्वीट करके दे दिया। उन्होंने लिखा कि कपूर खानदान की चार पीढि़यां अपने काम की वजह से फिल्म उद्योग में टिकी हुई हैं।
राहुल गांधी ने एक और स्वीकारोक्ति की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे बहुत अच्छे 'कम्युनिकेटर' हैं, अपनी बात लोगों तक अच्छे से पहुंचाना जानते हैं। यह कहते हुए भी राहुल गांधी भूल गए कि नरेंद्र मोदी 12 सालों से कुछ ज्यादा वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद प्रधानमंत्री बने तीन साल से ज्यादा हो गए। फिर भी देश की जनता को अगर मोदी की बात समझ में आ रही है, तो उसकी वजह पर बात करते, तो ज्यादा बेहतर होता। राहुल गांधी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आ रही है, इससे देश में गुस्सा फैल रहा है। इसमें आधी पंक्ति तथ्यात्मक तौर पर सही हो सकती है कि नोटबन्दी और जीएसटी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार में शायद कमी आई है। लेकिन, इसका दूसरा हिस्सा राजनीतिक जुमले से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि, देश में गुस्सा है, तो लोकतंत्र में गुस्सा दिखाने का बड़ा सीधा सा तरीका है और जनता गुस्सा दिखाती है, तो सरकारें बदलती हैं। लेकिन, अभी तक ऐसा होता नहीं दिखा है। इसलिए यह राहुल गांधी का अपना विश्लेषण हो सकता है। उन्होंने बर्कले में जाकर कहा कि नोटबन्दी के फैसले में किसी से सलाह नहीं ली गई। न मुख्य आर्थिक सलाहकार से और न ही संसद से। इससे भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ा। अब सवाल यही है कि नोटबन्दी जैसा फैसला क्या सामूहिक चर्चा के बाद लिया जा सकता था? राहुल गांधी यह सवाल भी खड़ा कर गए कि जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी से भी बहुत नुकसान हुआ। बरसों से लटका जीएसटी अगर जल्दबाजी में लागू किया गया, तो राहुल को यह भी बताना चाहिए कि आखिर कितना समय लगना चाहिए एक फैसला लागू करने में।
यहां यह सवाल भी खड़ा होता है कि जिन फैसलों के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था को काला धन से मुक्त करने के लिए दुनिया में सरकारी तारीफ हो रही है, उन फैसलों को वे विदेश की धरती पर जाकर बुरा कैसे बता रहे हैं? साफ है कि कांग्रेस में छटपटाहट है, सत्ता हासिल करने के लिए। भारत की छवि खराब करके भी सत्ता हासिल हो, तो इसमें राहुल गांधी के लिए शायद कुछ गलत नहीं होगा। राहुल गांधी का भाषण तैयार करने वालों ने एक सधा भाषण तैयार करके दिया, राहुल गांधी ने अच्छे से बोला भी। लेकिन, राहुल ने वे सारी सचाई अपने मुंह से उगल दी, जो आमतौर पर आरोप के तौर पर कांग्रेस पार्टी पर लगते रहते हैं। -हर्षवर्धन त्रिपाठी
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