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6 अगस्त, 2017
आवरण कथा ‘प्रकृति का प्रकाश’ से जाहिर हो रहा है कि देश वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। केन्द्र में मोदी सरकार आने के बाद गैर परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से काम हुआ है। इसका सीधा फायदा आम जनता को हुआ। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं अन्य ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को खंगालना समय की मांग है। क्योंकि कुछ समय से लगातार परंपरागत ऊर्जा के स्रोत खत्म होते जा रहे हैं।
—अशाीष अग्रवाल, मालवीय नगर (नई दिल्ली)
हरियाणा सरकार के प्रयास से राज्य में भी वैकल्पिक ऊर्जा से जुड़ीं कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। सरकार वैकल्पिक ऊर्जा के प्रयोग के लिए न केवल लोगों को प्रोत्साहित कर रही है बल्कि सौर ऊर्जा से जुड़ी सामग्री पर छूट भी दे रही है। वहीं राज्य में अनेक स्थानों पर गोबर गैस प्लांट से सफलतापूर्वक बिजली का उत्पादन हो रहा है और लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
कब रुकेगा यह दमन
‘शरिया की गिरफ्त में बंगाल’ रपट बंगाल की सचाई को उजागर करती है। बशीरहाट में छोटी सी बात पर हुआ दंगा दिखाता है कि कैसे राज्य में कट्टरपंथियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है। दरअसल, यह सब तुष्टीकरण का नतीजा है। ममता सरकार एवं टीएमसी ऐसे तत्वों को खुलेआम संरक्षण देती है, जिससे मुसलमानों का हौसला बढ़ता जा रहा है। राज्य की स्थिति सुधरे इसके लिए हिन्दुओं को संगठित होकर कट्टरपंथियों का मुकाबला करना होगा।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
तुष्टीकरण की घातक नीति और मजहबी उन्माद ने पश्चिम बंगाल की जो दुर्दशा की है, उससे यह नहीं लगता कि राज्य में कानून और न्याय नाम की कोई चीज बची है। यह सुनकर हैरानी होती है जिस प्रशासन पर अपने राज्य के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है, वह सुरक्षा के नाम पर भेद कर रहा है। राज्य से आए दिन हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार की खबरें आ रही हैं। उन खबरों ने पूरे समाज को आक्रोशित करने का काम किया है। लेकिन इस सबके बाद भी देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों के मुंह से एक आवाज तक नहीं आ रही?
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
कश्मीर की तरह बंगाल में भी मुसलमानों का जोर बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण राज्य के हालात खराब हैं। तो दूसरी ओर राज्य के अधिकतर जिले धीरे-धीरे मुस्लिम-बहुल होते जा रहे हैं और हिन्दू कम होता जा रहा है। बस समस्या यहीं से शुरू हो जाती है। हद तो तब हो जाती है जब इन क्षेत्रों में कट्टरपंथी तत्व शरिया कानून चलाना शुरू कर देते हैं। लेकिन ममता सरकार उन पर कड़ी कार्रवाई करने के बजाय उनको संरक्षण देती रही।
—प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर, दिलसुखनगर (हैदराबाद)
कोई भी विचारधारा इतनी रक्तरंजित कैसे हो सकती है कि अपने ही राज्य के लोगों को हिन्दू-मुसलमान में बांट कर राजनीति करे। बंगाल और केरल में आज यही हो रहा है। केरल में जहां कम्युनिस्ट गुंडे संघ के कार्यकर्ताओं पर अत्याचार कर रहे हैं तो वहीं बंगाल में मुसलमान हिन्दुओं पर। हाल ही में बंगाल के दंगा प्रभावित क्षेत्र बशीरहाट और आस-पास के क्षेत्रों में ऐसा ही नजारा दिखा। यह सच है कि अगर बंगाल में बढ़ते इस्लामीकरण को न रोका गया तो आने वाले दिनों में यह देश के लिए एक समस्या बनेगा।
—हरिहर सिंह चौहान, इंदौर (म.प्र.)
जहां पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान से देश को गंभीर खतरा है तो दूसरी ओर देश के अंदर बैठे दुश्मनों से भी उतना ही खतरा है। यह अराष्ट्रीय तत्व आए दिन देश के अंदर कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं, जिससे माहौल खराब होता रहता है। लेकिन बुद्धिमान लोगों को चाहिए कि ऐसे समय वे आपसी मतभेद भुलाकर एक हों और राष्ट्र की एकता और अखंडता की सुरक्षा के लिए आगे आएं। क्योंकि समाज ही है जो ऐसे तत्वों को सबक सिखा सकता है।
—हरीश चन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)
साख पर उठते सवाल
एक लोकतांत्रिक देश के उत्थान एवं पतन में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसीलिए इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने का गौरव प्राप्त है। मीडिया का निर्भीक और निष्पक्ष होना बहुत आवश्यक है। यदि इन दो गुणों का मीडिया में अभाव है तो वह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के गौरव से वंचित हो जाता है। आज देश के मीडिया की कमोबेश कुछ ऐसी ही स्थिति है। वह न तो निष्पक्ष रह गया है और न ही निर्भीक। कई बार तो ऐसा लगता है कि मीडिया देश के बहुसंख्यक समाज का विरोधी है। क्योंकि केरल, बंगाल या फिर अन्य प्रदेशों में हिन्दुओं पर जब कोई अत्याचार होता है तो मीडिया उसे दिखाता ही नहीं है लेकिन एक समुदाय के किसी व्यक्ति की हत्या को इतना बढ़ा-चढ़ा देता है जैसे देश पर ही समस्या आ गई हो। मीडिया का यह पक्षपातपूर्ण रवैया चिंताजनक है।
—रामशंकर वर्मा, हल्द्वानी (उत्तराखंड)
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