|
चौथा स्तम्भ / नारद
मीडिया का एक धड़ा अगले चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस के भोंपू की भूमिका में आ गया लगता है
पिछले 3-4 साल में एक बड़ा फर्क आया है। मीडिया के कई दिग्गजों के चेहरों से निष्पक्षता का नकाब उतर गया। वैसे तो यह प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो चुकी थी, लेकिन अब कुछ भी ढका-छिपा नहीं है। जो पत्रकार बरसों तक निष्पक्ष और पेशेवर पत्रकारिता के नाम पर विचारधारा की घुट्टी पिलाते रहे, वे पहचान लिए गए हैं। समझना मुश्किल नहीं है कि उनका अगला कदम क्या होगा? कर्नाटक में आएदिन हो रही राजनीतिक हत्याओं पर आंखें मूंदे रहने वाले मीडिया ने एक महिला पत्रकार की हत्या को हाथों-हाथ लिया। शायद पहले से तय था कि आरोप हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों पर ही लगाना है। कुछ ही घंटों में न सिर्फ देसी, बल्कि विदेशी मीडिया में भी यह खबर आ गई। बिना सबूत के हत्यारे का फैसला हो चुका था। पूरी एहतियात इस बात की कि कहीं भी कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर सवाल न उठने पाए। कांग्रेसी-वामपंथी गठजोड़ की साजिशों की यह चिर-परिचित शैली है।
मीडिया का जाना-पहचाना वर्ग अगले चुनावों की तैयारियों में जुट चुका है। उन्हें कांग्रेस के लिए काम करना है, ताकि मुफ्त की शराब और विदेश यात्राओं का इंतजाम भी होता रहे। यह देश की जनता को ब्लैकमेल करने जैसा है। अगले कुछ महीनों में हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के विरुद्ध ऐसी कई नकली खबरें पैदा की जाएंगी। उन्हें बर्बर और हत्यारा साबित करने की कोशिश होगी। यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि ऐसी कोशिशों पर नजर रखें व उन्हें नाकाम करें। इस काम में करीब एक दर्जन फर्जी वेबसाइट सक्रिय हैं, जो अमूमन रोज झूठी खबरों का उत्पादन कर रही हैं। इन्हें मुख्यधारा मीडिया के कई संस्थानों का साथ भी मिल रहा है।
हिंदुस्तान टाइम्स के संपादकीय ढांचे में पिछले दिनों कुछ फेरबदल हुए थे, जिसका असर दिखने लगा है। अखबार अब पूरी तरह से भारतीयता और हिंदुत्व के विरुद्ध अभियान में उतर चुका है। चाहे भाजपा के सबसे ज्यादा सांसदों व विधायकों पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध दर्ज होने की झूठी खबर हो या देश का गौरव कहे जाने वाले सैनिकों और खिलाडि़यों पर अभद्र टीका-टिप्पणी। अखबार ने बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं। शायद इसलिए, क्योंकि उन्हें पता है कि वह भारतीय मूल्यों में विश्वास करने वाली आधुनिक लड़की है, जिसे लाखों-करोड़ों लड़कियां अपना आदर्श मानती हैं। इसके अलावा अचानक हिंदू त्योहारों, देवी-देवताओं और सिंदूर लगाने जैसी परंपराओं पर टीका-टिप्पणी भी शुरू हो गई है।
कैबिनेट विस्तार की खबर पर पूरा मीडिया तुक्के लगाता रहा। एक जमाना था जब कुछ खास सुविधाभोगी पत्रकार कॉरपोरेट दलालों और कांग्रेस हाईकमान के साथ बैठकर मंत्रियों के नाम तय करते थे। अब वो दिन नहीं रहे, पर उसकी चिढ़ गई नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने जाति के हिसाब से बताया कि प्रधानमंत्री ने किस-किस जाति के नेताओं को मंत्री बनाया है। खुद को प्रगतिशील और उदारवादी बताने वाले ये पत्रकार खुद किस कदर अभिजात्यवाद के कीचड़ में सने हुए हैं, ये खबर उसका एक उदाहरण भर है। ये वही पत्रकार हैं जो एक दलित के राष्ट्रपति या एक महिला के रक्षामंत्री बनने से तिलमिला उठते हैं व उनकी योग्यता पर प्रश्नचिह्न लगाने की कोशिश करते हैं।
रिजर्व बैंक ने नोटबंदी से जुड़े आंकड़े जारी किए। हो सकता है कि इसमें तमाम अच्छाइयों के अलावा कुछ बुरे पहलू भी हों, लेकिन मीडिया ने जिस तरह एकतरफा नकारात्मक कवरेज की, वह हैरानी में डालने वाली है। जिस मसले पर दुनिया के बड़े अर्थशास्त्री अभी तक एकमत नहीं हैं, उसे भारतीय मीडिया ने लगभग एक स्वर में नाकाम बता दिया। सच्चाई है कि मुख्यधारा के मीडिया समूहों में कॉरपोरेट पारदर्शिता की सर्वाधिक कमी है। कालेधन की अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े लाभार्थियों में मीडिया भी रहा है। ऐसे में इनसे नोटबंदी के निष्पक्ष विश्लेषण की उम्मीद करना बेकार है।
उधर, हिंदी चैनलों को डेरा सच्चा सौदा के नाम पर नया मसाला मिल गया है। कल्पना पर आधारित झूठी खबरों की भरमार है। इनमें चटखारे लेकर आश्रम की महिलाओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां की जा रही हैं। कहां तक उचित है कि एक अपराधी के जेल जाने के बाद आश्रम से जुड़ी हर महिला का चरित्रहनन किया जाए? ऐसी प्रवृत्ति का दूसरा पहलू भी बीते हफ्ते देखने को मिला। मुंबई में माहिम स्थित सेंट माइकल चर्च में महिलाओं के वॉशरूम में खुफिया कैमरा मिला। शक है कि चर्च के पादरी और दूसरे जिम्मेदार लोग अश्लील वीडियो बना रहे थे। कहीं और का मामला होता तो चैनलों ने अब तक हंगामा खड़ा कर दिया होता। निजता के अधिकार की बहस अभी जारी है, पर इक्का-दुक्का स्थानीय अखबारों को छोड़ किसी ने इस खबर को हाथ नहीं लगाया। यह अनजाने में नहीं होता। दरअसल यह एक तरह का कारोबारी सौदा है जिसके तहत कई चैनल, अखबार व पत्रकार चर्च में होने वाले बलात्कार, यौन शोषण, बच्चों के यौन शोषण की खबरों को दबा देते हैं। बदले में उन्हें क्या मिलता है ये वे ही बेहतर बता सकेंगे।
टिप्पणियाँ