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दिनेश मिश्र
ऐसा मुझे आभास होता है, बहुत-से लोग मानने लगे हैं कि तटबंधों के टूटने के पीछे ‘चूहों की कृपा’ की दलील इस साल नई-नई दी जा रही है। 1956 में बूढ़ी गंडक का तटबंध खानपुर प्रखंड और समस्तीपुर में मसीना कोठी के पास टूटा था जिसे लेकर खूब अखबारबाजी हुई थी। विभाग इसे चूहों के कारण तथा बाद के समय में बदमाशों की हरकत की शक्ल देता रहा, जिसका प्रतिवाद कर्पूरी ठाकुर ने इसी माध्यम से किया था। यह दलील और सरकार के अपने बचाव का बहुत पुराना तरीका है। जिम्मेदारी से बच निकालने का एक उदाहरण यहां है-
6 अक्तूबर, 1968 को जमालपुर के पास कोसी का पश्चिमी तटबंध पांच स्थानों पर टूटा था। उस साल जितना पानी कोसी में आया था (9,13,000 क्यूसेक) उतना अब तक नहीं आया। पांच जगह टूटने के बाद भी कोसी परियोजना के तत्कालीन प्रशासक एस.ए.एफ. अब्बास इस बात से खुश थे कि कोसी के तटबंधों ने अपनी उपयोगिता स्थापित कर दी है। सूत्रों का कहना था कि इन दरारों से निकला पानी बिरौल के 25 गांव, घनश्यामपुर प्रखंड के 26, कुशेश्वर स्थान के 30 तथा सिंघिया प्रखंड के 15 (कुल 96) गांवों में भर गया था। इसमें अगर खगड़िया के गांवों को भी जोड़ दिया जाए तो प्रभावित गांवों की संख्या 150 के आसपास थी और कुल 70,000 हजार हेक्टेयर जमीन बाढ़ में डूबी हुई थी।
तटबंध टूटने की घटना की जांच केंद्रीय जल आयोग के एक मुख्य अभियंता पी.एन. कुमरा ने की थी। उनका कहना था, ‘‘वहां लोमड़ियों की बहुत-सी बड़ी मांदें और चूहों के बिल थे। तटबंध पर ढेले-पत्थर भी थे जिनसे पता चलता है कि निर्माण के समय मिट्टी ठीक से बैठी नहीं थी। तटबंध अंदर से होने वाले रिसाव के कारण टूटा है। स्थानीय लोगों का भी कहना है कि पानी का स्तर बहुत बढ़ गया तब पानी तटबंध में लोमड़ियों की मांदों से होकर बहने लगा और यह टूट गया।’’ कुमरा की रिपोर्ट से लगता है कि उन्होंने कारण पहले ही खोज लिया था और वे बाद में निरीक्षण के लिए जमालपुर बाद में पहुंचे थे। जहां भी तटबंध टूटता है, वहां बड़ा गड्ढ़ा बनने के कारण नींव का पता नहीं लगता। नामुमकिन है कि 9,13,000 क्यूसेक का प्रवाह वहां बड़ी शांति से गुजरा हो। नामुमकिन यह भी कि कुमरा 12 अक्तूबर को जमालपुर पहुंचे तब नदी पूरी तरह से सूख गई हो। जो डिजाइन करेगा, वही निर्माण भी करेगा और टूट जाने पर वही उसकी जांच भी करेगा तो बाढ़ पीड़ित लोग किस भले की उम्मीद करें? उस समय बिहार में राष्ट्रपति शासन था इसलिए लोकसभा में बाढ़ पर बहस 19 दिसंबर को हुई। सांसद कामेश्वर सिंह का अभियोग था, ‘‘कोसी में जो बाढ़ आई, उसमें एक नई थ्योरी बताई गई कि चूहों ने सूराख कर दिए थे। मेरा कहना है कि सूराख चूहों के नहीं थे, बल्कि सरकार की लापरवाही थी। छोटे-मोटे चूहों यानी ओवरसीयर वगैरह को तो सरकार ने निलंबित कर दिया, पर मोटे चूहे (बड़े अधिकारी) जो वाकई पैसा खाते हैं, उनके खिलाफ एक्शन नहीं लिया गया।’’ तटबंध पहली बार कब टूटा यह कह पाना मुश्किल है, पर जहां तक मेरी जानकारी है, चीन के उप-प्रधान मंत्री तेंग त्से ह्वे ने 1955 में एक बयान में ह्वांग हो नदी के तटबंधों के टूटने का इतिहास बताया था। कहते हैं कि बीजिंग विश्वविद्यालय में रखे रिकॉर्ड के मुताबिक 1047 ई. से 1954 तक नदी का तटबंध 1,500 बार टूटा, जिससे जलप्रलय जैसी घटनाएं हुर्इं। 26 बार नदी की धारा बदल गई और 9 अवसरों पर नदी को वापस तटबंधों के बीच नहीं लाया जा सका और नई धारा पर तटबंध बना दिए गए। 1933 की बाढ़ में यह तटबंध 50 से अधिक जगहों पर टूटा और 11,000 वर्ग किमी क्षेत्र बाढ़ में डूबा। 36.40 लाख लोग प्रभावित हुए और 18,000 लोग मारे गए। 1938 में जापानियों ने चीन पर हमला किया तो च्यांग काई शेक की सरकार ने ह्वांग हो के तटबंध पर बम गिरा दिया जिससे पूरी जापानी सेना बह गई। जापान के हमले विफल कर दिया गया, पर बदले में चीन की 8.90 लाख आबादी भी साफ हो गई। नदी की धारा में भीषण परिवर्तन हुआ और 54 हजार वर्ग किमी. क्षेत्र पर बाढ़ का असर पड़ा। इस बयान में कितने तटबंध चूहों के कारण टूटे उसका कोई जिक्र नहीं है।
चूहों का जिक्र पहली बार मैंने 1927 की मिसीसिपी नदी की बाढ़ की समीक्षा करने वाले अमेरिकी सेना के अधिकारी कर्नल कर्नल टाउनसेंड के बयान में पढ़ा था। उन्होंने कहा था कि डिजाइन कितनी भी अच्छी और तटबंध कितना भी मजबूत हो, उसकी सुरक्षा हमेशा अंधेरी रात, लापरवाह सुपरवाइजर व चूहों-छछूंदरों पर निर्भर करती है। जाहिर है, मिसिसिपी नदी की बाढ़ में चूहों ने अच्छी-खासी तबाही मचाई होगी। बिहार में चूहों को लानत भेजने की घटना का जिक्र 1956 में हुआ। उस समय कर्पूरी ठाकुर ने दैनिक समाचारपत्र आर्यावर्त को एक लंबा पत्र लिख तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर अब्दुल समद पर इस दरार की जिम्मेदारी डाली थी। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि इसके लिए चूहे जिम्मेदार नहीं हैं। आजाद भारत की संभवत: यह पहली घटना रही होगी। मुमकिन है कि 1934 से 1937 के बीच उत्तर बिहार में सारण और बेगुसराय की बाढ़ के समय चूहों ने तबाही मचाई हो, पर इसका जिक्र उस समय की वार्षिक रपटों में नहीं मिलता। चंपारण की त्रिवेणी नहर के टूटने में चूहों का हाथ हो सकता है, पर ये दरारें नहर द्वारा पानी के प्रवाह को रोकने के कारण थीं। 1968 में संभवत: जब कोसी तटबंध दरभंगा के जमालपुर में टूटा था, तब पहली बार ‘असामाजिक तत्वों’ पर इसकी जिम्मेवारी डाली गई थी। 2002 में तटबंध टूटने और बाढ़ से क्षति की जिम्मेवारी पहली बार जलवायु परिवर्तन पर डाली गई थी। (फेसबुक वॉल से)
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