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कश्मीर में सुरक्षाबलों द्वारा चलाए जा रहे ‘आॅपरेशन आॅल आउट’ ने आतंकियों की कमर तोड़ दी है। सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अब तक 135 से ज्यादा प्रमुख आतंकियों को मार गिराया है
अश्वनी मिश्र
छले दिनों शाम के समय अलग-अलग समाचार चैनलों की वेबसाइट पर अचानक एक खबर बारी-बारी से दिखाई दे रही थी, जो कश्मीर के अलगाववादी धड़े के नेता मीरवाइज उमर फारूख से जुड़ी थी। इसमें बड़े-बड़े शीर्षक के साथ उसके उस बयान को उद्धृत किया गया था, जो उन्होंने श्रीनगर के ओल्ड सिटी स्थिति जामिया मस्जिद में दिया था। मीरवाइज ने अपने बयान में कहा,‘‘आप एक को मारेंगे तो 10 खड़े हो जाएंगे। उन्हें मारना कश्मीर समस्या का कोई हल नहीं है, जैसा कि उनके जनाजे में उमड़ने वाली भीड़ से जाहिर है।’’
वे अपने बयान से न केवल घाटी में सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा चलाई जा रही आतंक निरोधी कार्रवाई(आॅपरेशन आॅल आउट) का विरोध कर रहे थे, बल्कि खुलेआम आतंकियों का समर्थन करते हुए कश्मीर की युवा पौध को आतंक की राह पर ढकेलने का काम कर रहे थे। मीरवाइज के बयान देने के तुरत बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाआें की बाढ़ आ गई। जिसमें अधिकतर लोगों की प्रतिक्रियाएं आक्रोश से भरी थीं। इनमें से अधिकतर लोगों का यही कहना था कि घाटी में जिस तरह से एक के बाद एक आतंकियों को मारा जा रहा है, उससे अलगाववादियों को लगने लगा है कि उनकी दुकानों पर जल्द ही तालें लगने वाले हैं। इसलिए वे जान-बूझकर ऐसे बयान दे रहे हैं ताकि घाटी में आतंक की आग ठंडी न पड़े।
दरअसल सैयद अली शाह गिलानी से लेकर मीरवाइज या अन्य अलगाववादी नेताओं की बौखलाहट का कारण सुरक्षा बलों द्वारा चलाया जा रहा ‘आॅपरेशन आॅल आउट’ है, जिसके तहत सुरक्षा बल घाटी में आतंकियों के सफाए के लिए अभियान छेड़े हुए हैं। सेना ने ‘आॅपरेशन आॅल आउट’ से पूर्व घाटी के 258 आतंकियों की सूची जारी की थी, जिसमें 130 स्थानीय व 128 विदेशी आतंकी शामिल थे। इन आतंकियों में 136 लश्कर-ए-तैयबा, 23 जैश-ए-मोहम्मद, 95 हिज्बुल मुजाहिद्दीन एवं 4 आतंकी अल बद्र के शामिल हैं। सुरक्षा बलों ने अभियान को अंजाम तक पहुंचाते हुए करीब 135 स्थानीय व विदेशी आतंकियों को मार गिराया है। जहां जुलाई के अंत तक 115 आतंकी मारे गए थे, वहीं 9 अगस्त तक 17 और आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराने में सफलता हासिल की। इनमें लश्कर, हिज्बुल व अलकायदा से जुड़े आतंकी हैं।
किन क्षेत्रों को आतंकियों ने बनाया ठिकाना
श्रीनगर, बड़गांव, गांधरबल, कुपवाड़ा, हंदवाड़ा, सोपोर, बारामूला, बांदीपुरा, शोपियां, कुलगांव, पुलवामा, त्राल, अवंतीपुरा और अनंतनाग। ये दक्षिण और उत्तर कश्मीर के वे इलाके हैं जो आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुके हैं। घाटी के इन स्थानों पर आतंकी सबसे ज्यादा हमलों को अंजाम देते हैं। अधिकतर आतंकी स्थानीय होने के चलते क्षेत्र के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। इसमें सबसे ज्यादा आतंकी सोपोर और कुपवाड़ा जिलों में छिपे हुए हैं। जहां कुपवाड़ा में 30 से ज्यादा विदेशी और दो स्थानीय आतंकी हैं। वहीं सोपोर में कुल 39 आतंकियों में से 24 विदेशी और 15 स्थानीय आतंकी आतंक फैलाने की फिराक में हैं। कश्मीर मामलों के जानकार सुशील पंडित मानते हैं कि दक्षिण कश्मीर में आतंकियों को जो सुरक्षित पनाहगाह मिली हुई है, उसके कारण हैं। वे कहते हैं,‘‘ पहला कारण, यहां के अधिकतर आतंकी स्थानीय युवा ही हैं, जिन्हें स्थानीय आवाम का खुला समर्थन मिला हुआ है और सुरक्षाबलों द्वारा जब कोई अभियान चलाया जाता है तब यही अवाम सड़कों पर उतर कर सुरक्षाबलों पर पत्थर बरसाती है। दूसरा, दक्षिण कश्मीर के अधिकतर इलाकों में जमाते इस्लामी की न केवल अच्छी पैठ है बल्कि एक तरीके से ये क्षेत्र जमात के गढ़ हैं। जमाते आजाद कश्मीर, इस्लाम के नाम पर स्थानीय युवाओं को भड़काता है और जब युवाओं का ब्रेनवाश हो जाता है तो उन्हें आतंक की राह पर आने के लिए हर संभव मदद भी देता है।’’
शोपियां के रहने वाले आरिफ मोहम्मद कश्मीर विश्वविद्यालय में विधि के छात्र हैं। वे यहां के हालात के बारे में कहते हैं कि दक्षिण कश्मीर में आतंकियों ने युवाओं को काफी प्रभावित किया है, जिसके चलते वे आतंकी गतिविधियों में सक्रिय हो गए हैं। वे बताते हैं,‘‘दक्षिण कश्मीर में एक बड़ी संख्या में आतंकी सक्रिय हैं। और जब कोई आतंकी मारा जाता है तब उनके आका यहां मजहबी तकरीरें देकर युवाओं को आतंक के लिए उकसाते हैं और कश्मीर को आजाद कराने के लिए जिहाद करने को कहते हैं। उनकी बातों से आकर्षित होकर युवा आतंक के रास्ते चल पड़ते हैं।’’
क्यों मारे जा रहे आतंकी !
सुरक्षा बलों की कड़ी कार्रवाई के चलते 2016 के बाद से आतंकियों को मारने में सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस को जो सफलता मिल रही है, उसके पीछे एक प्रमुख वजह अधिकतर आतंकी का नया एवं अप्रशिक्षत होना है। राज्य के एक पुलिस महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर घाटी में आतंकी गतिविधियों के बारे में बताते हैं,‘‘2013-14 में घाटी में कुछ हद तक शांति रही। उस दौरान यहां बाढ़ के हालात भी थे और फिर चुनाव हो गए। इसके बाद सुरक्षा बलों ने बुरहान वानी को मार गिराया जिसके बाद महीनों तक घाटी अशांत रही। इसके चलते आतंकियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई न तो सेना कर सकी और न ही जम्मू-कश्मीर पुलिस। फिर कुछ जगहों पर चुनाव हुए, रैलियां हुर्इं। चुनाव शांति पूर्ण ढंग से हो जाएं इसकी वजह से आतंकियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई। लेकिन इस पूरे समय के दौरान आतंकी हमले होते रहे और आतंकी संगठनों द्वारा नई भर्तियां होती रहीं। तो कहने का मतलब है कि ‘मुर्गी के अंडे’ तो जमा होते रहे।’’
वे कहते हैं,‘‘बुरहान वानी के बाद न केवल आतंकी गतिविधियों में इजाफा हुआ बल्कि नए-नए आतंकी पैदा हो गए। जिसमें युवा सबसे ज्यादा हैं। इन सभी युवाओं ने जोश में आकर हथियार तो उठा लिए लेकिन प्रशिक्षित न होने के चलते अब मारे जा रहे हैं।’’ दक्षिण कश्मीर में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कुछ बताने के लिए इस बात पर सहमत होते हैं कि नाम नहीं छापेंगे। वे बताते हैं,‘‘जम्मू-कश्मीर पुलिस दमदारी के साथ आतंकियों को मार रही है। देखिए, जब तक हमारे पास खबर है, हम आतंकियों को मार रहे हैं। क्योंकि मेरा मानना है कि अगर आपके पास उनके बारे में खबर है तो ही आप आतंकियों से लड़ पाएंगे और उनको मुंहतोड़ जवाब दे पाएंगे। देखिए, 2014,15,16 में नाम मात्र के आतंकी मारे गए। तो एक बड़ी संख्या में यह जमा होते चले गए, जिसके कारण घाटी की स्थिति बद्तर हुई। हम आए दिन जो आतंकियों की मरने की जो घटनाएं देखते हैं, उसके पीछे अहम कारण घाटी की पुलिस का इस समय जमीन पर काम करना है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो दक्षिण कश्मीर में 2013-16 तक कुल 30-32 आतंकी मारे गए। अब इसकी तादाद 48 तक पहुंच गई है।’’ वे कहते हैं,‘‘ दरअसल उत्तर कश्मीर में विदेशी आतंकी होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा समस्या दक्षिण कश्मीर में होती है, जहां स्थानीय आतंकी हैं और तेजी से अपना काम करते हैं। ऐसे में पुलिस को बड़ी रणनीति के साथ इनको घेरना होता है। और हम यह काम कर भी रहे हैं।’’
मसलन, दक्षिण कश्मीर में बढ़ता आतंक सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान विक्टर फोर्स के जनरल आॅफिसर कमांडिग (जीओसी) मेजर जनरल बी.एस.राजू ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था,‘‘दक्षिण कश्मीर में अत्यधिक पेड़-पौधे होने की वजह से कई बार अभियान को अंजाम देने में समस्या आती है। जिसका फायदा उठाकर कई बार आतंकी बच निकलते हैं। अकेले दक्षिण कश्मीर में एक बड़ी संख्या में आतंकी सक्रिय हैं, लेकिन सेना और पुलिस उन्हें निष्प्रभावी करने के लिए लगातार अभियान चला रही है।’’ गौरतलब है कि बुरहान के मारे जाने के बाद उसके साथी अबु दुजाना ने दक्षिण कश्मीर के स्थानीय युवाओं को अपने साथ लाने में एक अहम भूमिका निभाई है। उसने लगभग 104 युवाओं को आतंकी बनाया।
सोशल मीडिया पर सक्रिय अलगाववादी
सुरक्षा सूत्रों की मानें तो इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि दक्षिण और उत्तर कश्मीर में 3 हजार से ज्यादा जिहादी अलगाववादी तत्वों के साथ मिलकर आतंक को हवा देने का काम करे हैं। यह समूह अलगाव में पड़े नौजवानों को अपने साथ मिलाने का भरसक प्रयास करते हैं। इसके लिए वे सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। अभी कुछ महीने पहले 350 व्हाट्सएप समूहों की पहचान की गई थी जो घाटी के हालात को अशांत करने का काम कर रहे थे। अब इस बार जो खबरें आ रही हैं, उनकी मानें तो पाक अधिक्रांत कश्मीर से कुछ व्हाट्सएप समूहों का संचालन किया जा रहा है, जिनमें से प्रत्येक में घाटी के 250 से ज्यादा सदस्य शामिल हैं। अगर सिर्फ दक्षिण कश्मीर में ही देखें तो 5 हजार से ज्यादा नौजवान सक्रिय रूप से इन समूहों के हमेशा संपर्क में रहते हैं। साथ ही फेसबुक पर सैकड़ों तादाद में ऐसे एकाउंट मौजूद हैं जो घाटी में न केवल आतंक को जायज ठहाराते हैं बल्कि भारत विरोधी पोस्ट खुलेआम करते हैं। इन एकाउंट से स्थानीय आतंकियों की हौसलाफजाई करते हुए तस्वीरें -वीडियो पोस्ट किए जाते हैं।
स्थानीय विरोध बड़ी चुनौती
किसी भी आतंकी को पकड़ने के दौरान पहले सुरक्षा बलों को स्थानीय लोगों से भिड़ना पड़ता है। आतंकियों के खिलाफ अभियान में स्थानीय जनता एक बड़ी चुनौती के रूप में होती है। क्योंकि सुरक्षाबलों का उद्देश्य आतंकी को पकड़ना होता है और इस दौरान उन्हें आदेश होता है कि कोई भी नागरिक हताहत न होने पाए। आतंकी व स्थानीय जनता दोनों इसी का फायदा उठाते हैं। कई बार जहां आतंकी छिपे होते हैं, वहां स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरबाजी करके उन्हें भगा भी दिया जाता है और आॅपरेशन असफल हो जाता है। जिन जिलों में आतंक का ज्यादा प्रभाव है, उन स्थानों पर स्थानीय आतंकियों को न केवल पूरा संरक्षण दिया जाता है बल्कि मरने के बाद ‘शहीद’ माना जाता है। इसकी एक प्रमुख वजह अधिकतर आतंकियों का स्थानीय होना है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बताते हैं, ‘हम पूरी तरीके से आतंकी गतिविधियों को रोकने में समर्थ हैं और उस पर काबू भी पाते हैं। लेकिन जब सुरक्षा बल आतंकियों को पकड़ने के लिए घेरा डालते हैं तो लोग उनके समर्थन में उतर आते हैं तब सुरक्षाबलों को समस्या ज्यादा होती हैं। क्योंकि हम नहीं चाहते कि कोई भी बेगुनाह हमारी कार्रवाई के दौरान गोली का शिकार हो। इसलिए इनको बचाते के चक्कर में आतंकी भाग जाते हैं और पूरा अभियान असफल हो जाता है। लेकिन बकरे की मां कब तक
खैर मनाएगी?’’
बढ़ती मस्जिदें, बढ़ता कट्टरपंथ
घाटी में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का मानना है कि कश्मीर के युवाओं में कट्टरपंथ का जो उभार देखने को मिल रहा है, उसका बड़ा कारण मस्जिदों की बड़ी संख्या और वहाबी उन्माद का प्रसार है, जो 15 वर्षों के दौरान घाटी में बढ़ा है। वे नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं,‘‘वैसे तो पूरी घाटी में लेकिन खासकर दक्षिण और उत्तर कश्मीर में कुछ वर्षों के दौरान छोटी-छोटी जगहों पर विशाल मस्जिदों एवं मदरसों को देखा जा सकता है। आंकड़ों पर गौर करें तो इन क्षेत्रों में करीब 3 हजार से ज्यादा छोटी-बड़ी मस्जिदें उग आई हैं। कई जानकार मानते हैं कि इनमें से कई स्थान ऐसे हैं जहां युवाओं का बे्रनवाश करके उनको कट्Þटरपंथ की राह पर लाने का काम होता है। वे यहां उन्मादी तकरीरें सुनते हैं, जिसके बाद उनके दिमाग में एक ही फितूर बैठ जाता है कि अब ‘जिहाद’ करना है। ’’ कश्मीरी मामलों के जानकार सुशील पंडित भी इस बात से सहमत हैं कि घाटी में मस्जिदों के माध्यम से एक नए तरीके का इस्लाम फैलाया जा रहा है। कश्मीर के बाहर से सैकड़ों की तादाद में मुल्ला-मौलवी आते हैं और जितना कट्टरपंथ का जहर फैला सकते हैं, फैलाते हैं। वे सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं,‘‘घाटी में उग रही मस्जिदों का पैसा कहां से आ रहा है? कौन लोग हैं जो इसे फंड कर रहे हैं?’’
त्राल के रहने वाले निसार अहमद भट ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है ‘अंजुमन-ए-मदारिस: जम्मू एवं कश्मीर’ जिसमें राज्य में चल रहे मदरसों का पूरा विवरण दिया गया है। उसके मुताबिक घाटी में कुल 499 मदरसे हैं। अधिकतर मदरसों का संचालन दारुल उलूम देवबंद से किया जाता है। तो कुछ मदरसे नदावतुल उलेमा, लखनऊ से जुड़े हैं तो जमाते इस्लामी और जमाते अल हदीस के नियंत्रण में हैं। इसमें 50 से ज्यादा मदरसे ऐसे हैं जिन पर आरोप है कि वे वहां इस्लाम की ऐसी शिक्षा देते हैं जिससे न केवल नफरत पैदा होती है बल्कि अलग-अलग संप्रदायों के साथ रहने की गुंजाइश ही समाप्त होती है। समय-समय पर जब सरकार द्वारा सूचना मांगी जाती हैं तो वे कोई भी सूचना साझा नहीं करते। जिसके कारण इन पर न केवल सवाल ही नहीं उठते हैं बल्कि शंका और ज्यादा गहरा जाती है कि दाल में कुछ काला जरूर है। वहीं फ्रेडेरिक ग्रेरार की फें्रच रिसर्च इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया की शोध पर आधारित एक पुस्तक ‘पॉलिटिकल इस्लाम इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट-द जमाते इस्लामी’ में घाटी में जमाते इस्लामी के बारे में लिखा है कि कश्मीर के देहाती इलाकों में जमाते इस्लामी के बड़ी संख्या में मदरसे खुले हुए हैं जिनका उद्देश्य कश्मीरियों को मध्य मार्ग से हटाकर एक ऐसे स्थान पर लाना है जहां सामने वाला वर्ग दुश्मन दिखाई दे। दरअसल कश्मीर में जमाते इस्लामी की अच्छी पैठ है। वह मजहबी और राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय है। ‘अल्लाह की जमीन पर अल्लाह का निजाम’ स्थापित करने के उदद्ेश्य को लेकर जमात के मदरसों ने कश्मीर के मिजाज को बदलने में काफी भूमिका निभाई है। उसका मानना है कि कश्मीर में पूरी तरह से इस्लाम का शासन हो। इसलिए वह मदरसों के माध्यम से घाटी के युवाओं के मन में अलगाववाद के जहर को भरने का काम करता है। साथ ही संगठन को चलाने के लिए वह विश्व के अनेक देशों की जनता से पैसा एकत्र करता है। उसके संपर्क में कई विदेशी संस्थाएं हैं जो उसे हर संभव मदद पहुंचाती हैं। यह सब उसे कश्मीर में ‘गुरिल्ला युद्ध’ को चालू रखने के एवज में अरब, इंग्लैंड और यूरोपीय देशों से मिलता है।
क्या सोचते हैं स्थानीय लोग
शोपियां के रहने वाले प्रतिष्ठित समाजसेवी आरीफ वहीद का मानना है कि उत्तरी कश्मीर और दक्षिण कश्मीर में युवा आतंकियों ने पिछले एक साल में अच्छी-खासी संख्या में आतंक का दामन थामा है। इसका जो कारण सामने निकलकर आता है वह है मजहबी कट्टरता जिसने दक्षिण कश्मीर में आतंक के फैलाव में अहम भूमिका निभाई है। वे कहते हैं,‘‘यहां एक समूह ऐसा है जो नहीं चाहता कि कश्मीर में शांति स्थापित हो। क्योंकि अगर ऐसा हो जाएगा तो उनको कौन पूछेगा? इसलिए युवाओं को आतंक की भट्ठी में झोंकते रहो और अपना मतलब निकालते रहो।’’ कश्मीर विश्वविद्यालय की छात्र नेता सुजैन मेहराज कहती हैं कि घाटी का युवा आतंक की राह पर जाए यह बात कश्मीर के लिए ठीक नहीं है। मेरा मानना है कि सभी को शांति का रास्ता ढूंढना चाहिए। क्योंकि कश्मीरियत किसी का कत्लेआम करना नहीं सिखाती।’’
बहरहाल घाटी में आतंक की टूटती कमर से न केवल आतंकियों में खौफ आया है बल्कि उनके हमदर्दों पर भी कहर टूटा है। इसलिए वे कश्मीर के लोगों को भड़काने का काम कर रहे हैं। लेकिन सुरक्षा बलों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वे सिर्फ और सिर्फ आतंक के सफाये के लिए प्रतिबद्ध हैं।
आतंक वाद के उभार के बाद कश्मीर में हुई मौतों का आकड़ा
1990 1991 1992 1993 1994 1995 1996 1997 1998 1999 2000 2001 2002 2003 2004 2005 2006 2007 2008 2009 2010 2011 2012 2013 2014 2015 2016
132 185 177 216 236 297 376 355 339 555 638 590 469 338 325 218 168 121 90 78 69 30 17 61 51 41 88
183 614 873 1,328 1,651 1,338 1,194 1,177 1,045 1,184 1,808 2,850 1,714 1,546 951 1,000 599 492 382 242 270 119 84 100 110 113 165
स्थान स्थानीय आतंकी विदेशी आतंकी
श्रीनगर 3 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन) 6 (लश्कर-ए-तैयबा)
बड़गाम 4 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन) —
गंदरबल 1 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन) 2 (लश्कर-ए-तैयबा)
कुपवाड़ा — 30 (लश्कर-ए-तैयबा)
— 4 जैश-ए-मोहम्मद
हंदवाड़ा 2 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन) 4 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन)
— 24 (लश्कर-ए-तैयबा)
सोपोर 13(हिज्बुल मुजाहिद्दीन) 17 (लश्कर-ए-तैयबा)
1 (लश्कर-ए-तैयबा, 1 अल बद्र) 7 (जैश-ए-मोहम्मद)
बारामूला 3 (हिज्बुल मुजाहिदद्ीन) 1 (लश्कर-ए-तैयबा)
1 (लश्कर-ए-तैयबा) 6 (जैश-ए-मोहम्मद)
बांदीपुरा 1 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन) 15 (लश्कर-ए-तैयबा)
शोपियां 20 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन, 6 लश्कर-ए-तैयबा) —
कुलगाम 13 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन,11 लश्कर-ए-तैयबा) 1 लश्कर-ए-तैयबा
पुलवामा 11 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन, 8 लश्कर-ए-तैयबा) 6 लश्कर-ए-तैयबा
अवंतीपुरा 14 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन, 6 लश्कर-ए-तैयबा) 5 जैश-ए-मोहम्मद
अनंतनाग 4 (हिज्बुल मुजाहिद्दीन, 4 लश्कर-ए-तैयबा) 1 लश्कर-ए-तैयबा
कुल 128 स्थानीय आतंकी 130 विदेशी आतंकी
इनको लगाया सेना ने ठिकाने
बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर में पिछले एक साल के दौरान पांच शीर्ष आतंकियों को ढेर किया जा चुका है।
बुरहान वानी
हिज्बुल मुजाहिद्दीन का शीर्ष आतंकी
8 जुलाई, 2016 को सुरक्षा बलों को गुप्त सूचना मिली कि दक्षिण कश्मीर के कोकरनाग के बुमडूरा गांव में तीन उच्च-प्रशिक्षित आतंकवादी मौजूद हैं। यह जानकारी मिलते ही सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस हरकत में आई और पूरे गांव की घेराबंदी कर दी। स्थानीय लोगों ने विरोध किया लेकिन सुरक्षा बलों ने उस पर काबू पाते हुए कार्रवाई को अंजाम दिया। सुरक्षा बलों ने इस कार्रवाई में तीन आतंकियों को मार गिराने में सफलता हासिल की थी, जिसमें बुरहान वानी भी शामिल था। कश्मीर के त्राल का रहने वाला वानी कश्मीर के पढ़े-लिखे युवाओं को हिजबुल से जोड़ने का काम करता था। उस पर कई प्रमुख हमलों के अलावा अनंतनाग में बीते दिनों तीन पुलिस कर्मियों की हत्या का भी आरोप था। जिसके चलते उस पर 10 लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया गया था।
सब्जार अहमद बट
हिज्बुल मुजाहिदीन का शीर्ष कमांडर
27 मई, 2017 को त्राल में एक घंटे तक चली मुठभेड़ के दौरान सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकी सबजार अहमद बट समेत दो आतंकियों को मार गिराया। सबजार को बुरहान वानी के बाद घाटी में ‘कमांडर’ बनाया गया था। उसे दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ आतंकी हमलों को तेज करने की जिम्मेदारी दी गई थी। गौरतलब है कि सब्जार आतंकी बुरहान वानी का साथी था। सोशल मीडिया पर बुरहान के साथ सब्जार की तस्वीरें सामने आई थीं। सब्जार ने त्राल के गवर्मेंट कॉलेज से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। उसके आतंकी बनने के बाद से ही अन्य नए आतंकियों ने अपने मुंह छिपाए बिना सोशल मीडिया में वीडियो और तस्वीरें पोस्ट करना शुरू किया था, जो अब भी जारी है।
अबु दुजाना
लश्कर-ए-तैयबा का शीर्ष आतंकी
1 अगस्त, 2017 को पुलवामा के हाकरीपोरा में मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों को तब बड़ी कामयाबी हासिल हुई जब उन्होंने लश्कर आतंकी अबु दुजाना सहित स्थानीय आतंकी आरिफ ललहारी को मार गिराया। सुरक्षा बलों ने दुजाना को आत्म समर्पण करने के लिए कई बार मौका दिया लेकिन वह नहीं माना जिसके बाद सेना ने कार्रवाई को अंजाम देते हुए उस घर को आग लगा दी जिसमें वह छिपा हुआ था। दरअसल पिछले कई महीनों से सुरक्षा बलों ने दुजाना को मारने के लिए कई आॅपरेशन चलाए थे। वह हर बार किसी न किसी तरीके से बच निकलता था। लेकिन इस बार सुरक्षा बलों की रणनीति के आगे उसे ढेर होना पड़ा। उस पर 15 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
बशीर लश्करी
लश्कर-ए-तैयबा का शीर्ष आतंकी1 जुलाई, 2017 को अनंतनाग जिले में मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों ने आतंकी बशीर लश्करी को मार गिराया। इसके साथ ही सेना ने एक और आतंकी आजाद मलिक को भी ढेर कर दिया। उसका नाम एसएचओ फिरोज डार समेत छह पुलिस कर्मियों की बर्बर हत्या में शामिल था। पिछले एक साल से वह दक्षिण कश्मीर में काफी सक्रिय था और कई हमलों को उसने अंजाम दिया जिसके कारण उस पर 10 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
जुनैद मट्टू
लश्कर-ए-तैयबा का शीर्ष आतंकी
16 जून, 2017 को सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर के अरवनी गांव में आतंकी जुनैद मट्टू को एक मुठभेड़ के दौरान मार गिराया। सेना के इस आॅपरेशन में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अहम भूमिका निभाई और जुनैद सहित एक और आतंकी मुजम्मिल को भी मार गिराया। गौरतलब है कि जुनैद मट्टू जम्मू-कश्मीर में सक्रिय रूप से आतंकी वारदातों को अंजाम दे रहा था। सुरक्षा बलों को मट्टू की लंबे समय से तलाश थी।
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