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सुजाता साहू ने लद्दाख के सुदूर गांवों में उन हजारों बच्चों के जीवन में शिक्षा का दीप जलाने का काम किया है जो किसी न किसी कारण से बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते थे
अश्वनी मिश्र
लेह-लद्दाख किसी भी सैलानी को अपनी ओर आकर्षित करता है। चारों तक बिछी बर्फ की श्वेत चादर और प्रकृति के अलग-अलग रूपों को नजदीक से निहारना किसको नहीं सुहाता! इसलिए ही तो सैलानी हर साल हजारों की तादाद में यहां आते हैं और मौज-मस्ती करके वापस चले जाते हैं। दिल्ली की रहने वाली सुजाता भी 2010 में इसी प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने वहां गई थीं। लेकिन उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। वे दिल्ली लौटीं तो जरूर लेकिन मन लद्दाख में ही रह गया। वे बताती हैं,‘‘मेरे पति संदीप साहू समय-समय पर लद्दाख जाते रहते हैं। मैं भी कई बार उनके साथ गई। लेकिन इस बार मैं अकेली गई थी। जो चीजें नहीं देखी थीं, उन्हें देख रही थी। मैं पहाड़ों पर अकेली चढ़ती जा रही थी। दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। एकाएक मेरी नजर दो स्थानीय महिलाओं की तरफ गई जो मेरी तरफ आ रही थीं। वे शिक्षिकाएं थीं और स्कूल से वापस लेह बच्चों की ‘यूनिफार्म’ और मिडडे मील का सामान लेने जा रही थीं। वे आपस में जो बात कर रही थीं, उसे सुनने के बाद मुझे आश्चर्य हुआ। वह यहां के कठिन हालातों के बारे में बता रही थीं। इसके बाद मैंने सुदूर इलाकों में ऐसे स्कूल देखे जहां बिजली तो दूर की बात, किताबें और बैठने के लिए कुर्सियां तक नहीं थीं। यहां तक कि मैंने वहां एक ऐसा स्कूल देखा, जिसमें सिर्फ दो बच्चे थे और एक अध्यापक। लेकिन जो बच्चे दिखे, वे सभी पढ़ने को लेकर बेहद उत्साहित थे। उन्हें अंग्रेजी पाठ्यक्रम के कारण काफी दिक्कत आ रही थी। फिर भी वे खुशी से पढ़ाई कर रहे थे। इसी बात ने मुझे प्रेरित किया और मैंने ठाना कि मैं इन बच्चों की शिक्षा के लिए जरूर कुछ करूंगी।’’
‘‘हमारा उद्देश्य लद्दाख के सुदूर गांवों में प्राथमिक शिक्षा के स्तर को सुधार कर बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल करना है। ’’
— सुजाता साहू
वे दिल्ली वापस आर्इं और अपने पति संदीप साहू से वहां की स्थिति के बारे में बात की और कुछ करने का इरादा जाहिर किया। सुजाता बताती हैं, इससे संदीप बेहद खुश हुए और हमने तय किया कि एक बार फिर हम लद्दाख जाएंगे और आगे क्या करना है, उसकी रणनीति बनाएंगे। समय बीता और हम लददख के लिए निकल पड़े। एक दोस्त डावा जोरा भी हमारे साथ थीं। हम सब लद्दाख में 17,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिंग्शेद गांव के एक स्कूल गए जहां पहुंचने में हमें 3 दिन लगे। इस दौरान हम घोड़ों और खच्चरों पर बच्चों के लिए किताबें, कपडेÞ, खेल का सामान और कई चीजें लेकर गये थे।
वे आगे बताती हैं,‘‘मैंने जब बच्चों को किताबें दीं और उनके साथ बैठी तो सोचने लगी कि वे किताबों में लिखी हुई उन चीजों को कैसे समझ पाएंगे, जो उन्होंने कभी देखी ही नहीं। मैं अमेरिका से आईटी क्षेत्र की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर भारत आई। और गुरुग्राम के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। इस दौरान बच्चों से मिलकर उनके पढ़ने की योग्यता और अन्य चीजों के बारे मे काफी कुछ जानने का मौका मिला। इसलिए मैं उन बच्चों को देखकर हैरान थी। लेकिन कहीं न कहीं उनकी सरलता और सादगी भरे जीवन से प्रभावित भी थी। ऐसे में अचानक मेरे दिमाग में एक बात कौंधी कि हम सभी 17,000 फुट की ऊंचाई पर हैं। क्यों न इसी नाम से एक फाउंडेशन बनाया जाए जो बच्चों की मदद करे। बस यही वह क्षण था जब ‘17000 फीट फाउंडेशन’ की स्थापना को मन में एक संकल्प की भांति लिया और 2012 में इसकी नींव पड़ी।’’
सुजाता के मुताबिक लद्दाख में काम करने के बारे में सोचना और वास्तव में काम करना- दो अलग चीजें हैं। यहां अनगिनत चुनौतियां हैं। लेकिन हमने शुरूआत की। मुश्किलें आर्इं, पर जब कुछ सामाजिक संस्थाओं ने हमारी पहल की सराहना की और बच्चों के लिए किताबें दान में दीं तो यकीन हो गया कि हम आगे बढ़ सकते हैं।
वे कहती हैं,‘‘हमारी टीम पहाड़ के छोटे-छोटे गांवों में जाकर प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए काम करती है और पुस्तकालय स्थापित करती है। साथ ही स्कूल के बुनियादी ढांचे को सुधारते हुए बच्चों के खेलने से जुड़ी चीजें और फर्नीचर वगैरह की भी व्यवस्था करती है। फाउंडेशन के सदस्य हर साल सैकड़ों शिक्षकों को पढ़ाने के नए तौर-तरीके सिखाते हैं और स्कूल में बच्चों के सीखने की क्षमता को सुधारने में उनकी मदद करते हैं। इसके लिए हम एक सप्ताह से लेकर एक महीने तक के अलग-अलग शैक्षिक कार्यक्रम चलाते हैं।’’ सुजाता की मानें तो वे लद्दाख के अलावा कारगिल के इलाकों तक पहुंचना चाहती हैं, जो न केवल बाहरी दुनिया से अलग-थलग हैं बल्कि शिक्षा के मामले में बेहद कमजोर स्थिति में हैं। इसके लिए हम और हमारी टीम बराबर लगी हुई है।
बहरहाल पिछले पांच वर्ष में 17000 फीट फाउंडेशन का कारवां काफी आगे बढ़ा है। फाउंडेशन ने लद्दाख क्षेत्र के कई गांवों के बच्चों के जीवन को शिक्षा से आलोकित किया है। सुजाता के इसी जुननू के चलते साल 2016 में उन्हें राष्टÑपति द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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