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संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखकर संविधान में जोड़ा गया 35 ए क्या समाप्त होने की ओर?
रंजन चौहान
भारत के संविधान में अनुच्छेद 368 में स्पष्ट रूप से निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार संविधान में संशोधन का अधिकार सिर्फ संसद को है। लेकिन जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में बनी 35 ए को भारत की संसद के समक्ष पेश ही नहीं किया गया था। राष्टÑपति ने भारत के संविधान में निर्धारित संशोधन प्रक्रिया को नजरअंदाज कर दिया! राष्टÑपति के पास कोई विधायी शक्ति नहीं होती, लेकिन इस मामले में उन्होंने मानो संसद का कार्य खुद कर दिया! संविधान के आदेश 1954 में कहा गया है कि इसे जम्मू और कश्मीर सरकार की सहमति के साथ संविधान के अनुच्छेद 370 की धारा (1) द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रयोग के लिए जारी किया जा रहा है।
हैरानी की बात है कि संविधान के इस संशोधन का मुख्य संविधान के संस्करणों में उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए यह सामान्य लेखा परीक्षा में नजर नहीं आता। अधिकांश संविधान विशेषज्ञ 35 ए और इसके आशय से पूरी तरह से अनजान हैं।
एक उदाहरण देखिए। कुछ साल पहले, अनुच्छेद 21 के बाद शिक्षा के अधिकार का एक नया अनुच्छेद 21ए जोड़ा गया है, जिसे संविधान में अनुच्छेद 21 और 22 के बीच में रखा गया है। अत: जब हम संविधान की नई प्रतियां देखते हैं, तो हमें अनुच्छेदों का क्रम क्रमश: 21, 21 ए और 22 मिलता है। अगर इसी तरीके से हम 35 ए को भी ढूंढने का प्रयास करें तो उसे अनुच्छेद 35 और 36 के बीच होना चाहिए? लेकिन ऐसा नहीं है। फिर यह कहां है?
स्वाभाविक तौर पर 35 ए की तलाश के लिए अगली संभावित जगह संविधान संशोधनों की सूची होगी, जिसमें भारत के संविधान में 1951 में हुए पहले संशोधन से लेकर आज तक के सारे ब्यौरे उपलब्ध होंगे। लेकिन हैरानी की बात है कि 35 ए इसमें भी मौजूद नहीं। ऐसा क्यों? क्या भारतीय संविधान में 35 ए नाम से एक नया अनुच्छेद नहीं जोड़ा गया? ऐसा हुआ है और संविधान में नया अनुच्छेद जोड़Þने का अर्थ है संशोधन। इसके बावजूद, संविधान संशोधनों की फेहरिस्त में 35 ए क्यों दिखाई नहीं देता? जानकारी के लिए बता दें कि 35ए वास्तव में मौजूद है, पर संविधान में एक परिशिष्ट के तौर पर, है ना हैरानी की बात? एक अनुच्छेद, जो संविधान के नाम पर जमीनी स्तर पर अमल में है, लिखित संविधान से कैसे गायब हो सकता है? अब सवाल उठता है कि 35 ए का संवैधानिक दर्जा क्या है? भारत के राष्टÑपति संवैधानिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से निष्पादित नहीं करते, बल्कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के साथ काम करते हैं। भारत का संविधान मंत्रिपरिषद अर्थात् केन्द्रीय मंत्रिमंडल को राष्टÑपति को संविधान में कोई प्रावधान जोड़ने के लिए संविधान प्रदत्त स्वीकृति से विपरीत सहायता और सलाह देने की अनुमति नहीं देता चाहे वह जम्मू-कश्मीर राज्य संबंधी कोई प्रावधान ही क्यों न हो।
केंद्रीय मंत्रिमंडल किसी अध्यादेश की घोषणा मात्र कर सकता है जो संसद द्वारा पारित न होने की स्थिति में 6 माह के बाद स्वत: समाप्त हो जाता है।
35 ए के मायने
35 ए हमारे संविधान में जोड़ा गया एक ऐसा संशोधन था जिसे संसद की भागीदारी के बगैर राष्टÑपति के आदेश के जरिए लागू किया गया था। 35ए 370 के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। अनुच्छेद 35 ए हमारे संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है। यह संविधान की प्रस्तावना में निहित चंद बुनियादी अधिकारों पर अंकुश लगाता है। इसके कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप लाखों भारतीय नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, स्थिति और अवसर की समानता से वंचित रहना पड़ा। इसकी वजह से पिछले छह दशकों से जम्मू-कश्मीर में रहने वाले कई समुदायों को चंद बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा गया है।
35 (ए) राज्य विधानसभा को स्थायी निवासियों को परिभाषित करने और उन्हें विशेष अधिकार और सुविधा देने के साथ-साथ भारत के उन सभी नागरिकों के अधिकारों और सुविधाओं पर रोक लगाता है जो स्थायी निवासी की परिभाषा के अनुरूप नहीं। परिणामस्वरूप, स्थायी निवासियों के अतिरिक्त किसी भी अन्य व्यक्ति को वहां संपत्ति खरीदने, राज्य सरकार में नौकरी करने, पंचायतों, नगर पालिकाओं और विधानसभा चुनावों में भागीदारी, सरकार द्वारा संचालित तकनीकी शिक्षा संस्थानों में प्रवेश, छात्रवृत्ति और अन्य सामाजिक लाभ उठाने का अधिकार नहीं है।
कुछ गंभीर प्रश्न
35ए का संवैधानिक दर्जा क्या है? संसद की अनुमति के बगैर भारत के राष्टÑपति संसद का अधिकार अपने हाथों में लेते हुए संविधान के बुनियादी ढांचे में संशोधन कैसे कर सकते हैं? या, क्या प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद के साथ-साथ संसद को नजरअंदाज करते हुए संविधान में अपनी मनमर्जी के बदलाव कर सकते हैं? क्या राष्टÑपति मंत्रिमंडल के कहने से कोई आदेश जारी कर सकते हैं ? क्या लोकतांत्रिक भारत देश के किसी भी कोने में अपनी जनता को दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में देख सकता है?
क्या भारत के जिम्मेदार नागरिकों का फर्ज नहीं कि संवैधानिक प्रक्रियाओं के साथ किए गए खिलवाड़ के खिलाफ आवाज उठाएं?
(लेखक जम्मू-कश्मीर अध्यन केन्द्र में शोधार्थी हैं)
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