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वोट बैंक की नीति और विकराल रूप लेती जिहादी मानसिकता से पश्चिम बंगाल बेहाल है और इस इस कारण अनेक सवाल उठ रहे हैं। कभी विद्वानों और बुद्धिजीवियों की भूमि रही यह धरती आएदिन रक्तरंजित हो रही है। राजनीतिक और सांप्रदायिक हिंसाओं से लोग परेशान हो रहे हैं।
आशीष कुमार ‘अंशु
पश्चिम बंगाल का हाल बेहाल होता जा रहा है। जो काम पहले वामपंथी तत्व करते थे, अब वे काम सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बिगड़े कार्यकर्ता कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि अपने वैचारिक विरोधियों को ये लोग समूल नष्ट कर देना चाहते हैं। इसलिए उन पर हमले करते हैं, उनके घर में तोड़फोड़ करते हैं और इतने से भी बात नहीं बनती तो उनकी हत्या भी कर देते हैं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि बंगाल में सत्तारूढ़ दल के नेता और कार्यकर्ता बेलगाम हो गए हैं।
नाजिर हाट में रहने वाले पबित्रा घोष के घर पर तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने तीन बार हमला किया और उनके घर को तोड़ दिया। अब वे जान बचाकर कूचबिहार के भाजपा कार्यालय में रहते हैं। लेकिन यहां भी कितने दिन रह सकते हैं? पार्टी से जुड़े निखिल रंजन डे से बात हुई। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के फैले खौफ की बात उन्होंने भी की। पहले तो निखिल का कथन राजनीतिक बयान ही लगा, लेकिन कूचबिहार से जुड़े आसपास के छह-सात जिलों में बीस दिन में लगभग 2,500 किमी. की यात्रा करने के बाद उनकी बातें सही लगने लगीं।
इस संवाददाता ने इस यात्रा के दौरान बहुत कुछ देखा और सुना। बांग्लादेश, नेपाल और भूटान की सरहद से लगे गांव और कस्बे अपने अंदर बहुत कुछ छुपाए हुए हैं। वहां कई तरह के अपराध हो रहे हैं, लेकिन वे कभी भी मुख्यधारा में विमर्श का विषय बन ही नहीं पाते। ऐसे मुद्दों पर बात करने में स्थानीय लोगों की भी रुचि नहीं है। लोग मानव तस्करी, नशे की तस्करी, गाय की तस्करी, बांग्लादेशी घुसपैठ आदि हर एक विषय को समझते हैं, लेकिन बात नहीं करना चाहते। ये लोग शायद बाहर से आए लोगों पर ठीक से यकीन भी नहीं करते। उन्हें लगता है कि आया हुआ हर नया व्यक्ति ममता बनर्जी या माकपा द्वारा भेजा हुआ व्यक्ति है। यह बात पुख्ता हुई एक अन्य पार्टी के स्थानीय कार्यालय में जाकर। वहां छह लोगों से मुलाकात हुई। ये सभी उस दल के सक्रिय कार्यकर्ता थे, लेकिन पार्टी के कार्यालय में बैठकर भी उन लोगों ने अपना परिचय पार्टी कार्यकर्ता के तौर पर नहीं दिया। इन कार्यकर्ताओं ने बताया कि किस तरह माकपा के सारे गुंडे एक-एक कर तृणमूल में शामिल हो रहे हैं।
सुरक्षा की दृष्टि से उत्तर बंगाल बेहद महत्वपूर्ण है। सिलीगुड़ी गलियारे को ‘चिकन नेक’ कहा जाता है। इसी गलियारे के जरिए पूर्वोत्तर भारत शेष भारत से जुड़ता है। इस गलियारे पर शोध कर रही छात्रा गीतांजलि शर्मा के अनुसार, ‘‘यह गलियारा बेहद महत्वपूर्ण है। यह सिक्किम से बिल्कुल लगा हुआ है। तीन पड़ोसी देशों से जुड़ा हुआ है। चीन के साथ इन दिनों भारत के जिस तरह के तल्ख रिश्ते बन रहे हैं, ऐसे में चुम्बी घाटी यहां होने की वजह से यह क्षेत्र अधिक संवेदनशील हो जाता है। चुम्बी घाटी का रास्ता बंद कर चीन पूर्वोत्तर भारत को भारत से अलग करने का षड्यंत्र भी रच सकता है। बांग्लादेशी घुसपैठ के माध्यम से भारत के सामने मुश्किलें खड़ी करने का प्रयास कई देश कर सकते हैं। कोकराझार में हम पहले ऐसा देख चुके हैं।’’ इस इलाके की स्थिति अच्छी नहीं है। कूचबिहार में दीप्तिमान सेनगुप्ता के घर पर बांग्लादेशी घुसपैठियों ने हमला किया। उन्हें चोट पहुंचाई और बांग्लादेश लौट गए। इस तरह की घटना में पुलिस एफआईआर किसके खिलाफ दर्ज करे? जब अपराधी आपके देश का नागरिक ही नहीं है और अपराध को अंजाम देकर सीमा को पार कर चुका है।
हल्दीबाड़ी में पुलिस के एक आला अधिकारी ने एफआईआर दिखाकर भारत की नागरिकता लेने का नायाब तरीका भी बताया। बांग्लादेशी घुसपैठिया आम तौर पर वह होता है, जिसके रिश्तेदार सीमा के इस पार होते हैं। हल्दीबाड़ी के आसपास ऐसी घटनाएं खूब हो रही हैं, जिनमें झूठी लड़ाई दिखाकर एफआईआर बांग्लादेश से आए रिश्तेदार के नाम पर लिखाई गई और बाद में एफआईआर को कानूनी दस्तावेज बनाकर भारत की नागरिकता ले ली गई।
एक बात और दिखी कि गोरखा लोगों के बीच चर्च की घुसपैठ बढ़ रही है। चर्च उनकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करके कन्वर्जन करा रहा है। भूटान के औद्योगिक क्षेत्र पाशाका से तीन किलोमीटर की दूरी पर भारतीय सीमा से लगे एक गोरखा गांव में लोगों ने चर्च द्वारा प्रलोभन देने की शिकायत भी की। इसी तरह का चलन दार्जिलिंग और कलिंगपोंग में भी कई जगह दिखा। हाशिमआरा में कई जनजातीय बस्तियों में चर्च पहुंच गया है। वहां चर्च ने झारखंड और ओडिशा के उन लोगों को बसाया है, जो ईसाई बन चुके हैं। कई गांवों में गाय चोरी की घटनाएं हो रही हैं। कूचबिहार में यह सब गोवंश के तस्कर करते हैं। ये लोग तस्करी के जरिए गोवंश बांग्लादेश भेजते हैं। जो गाय भारत में 1,00000 रु. की है, सीमा पार होकर वही गाय 2,00000 की हो जाती है। ये तस्कर भारतीय गांवों में गोवंश की चोरी करते हैं। गोवंश चोरी की सबसे अधिक शिकायतें कूचबिहार, जलपाईगुड़ी और जयगांव में सुनने को मिलीं। पुलिस इन मामलों में एफआईआर भी दर्ज नहीं करती। गोवंश चोर हथियार से लैस होते हैं और साथ में ट्रक लाते हैं। जहां भी गोवंश मिलता है, उसे इंजेक्शन लगाकर कर बेहोश कर दिया जाता है और ट्रक में लाद कर फरार हो जाते हैं।
धूपगुड़ी के पत्रकार रोनित चौधरी ने भारत से गायों के बांग्लादेश जाने का पूरा रास्ता समझा दिया। धूपगुड़ी से जलपाईगुड़ी, वहां से फिर फालाकाटा, फालाकाटा से सोनापुर और अंत में चेंगराबंदा के रास्ते बांग्लादेश। गौरतलब है कि धूपगुड़ी में ही मांस का एक बाजार है, जहां गायों का कारोबार होता है।
जांच-पड़ताल से यह भी पता चला कि एक गाय को बांग्लादेश पहुंचाने की कीमत है 1,000 रुपए। अब तक तस्करी में जिनकी गिरफ्तारी हुई है, वे सब बिचौलिए हैं। मुख्य तस्कर तो पकड़ से बाहर हैं। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि नक्सलबाड़ी के तोताराम जोत में गोवंश काटा जाता है। वैसे उत्तरी बंगाल में तोताराम जोतों की कमी नहीं है। उत्तर बंगाल में चेंगराबंदा, सुक्तिबाड़ी, सीतलकूची और सीताई घुसपैठ और गो- तस्करी के सबसे बड़े केंद्र हैं। बंगाल खुफिया विभाग की रपट के अनुसार केएलओ (कामतापुर लिबरेशन आॅर्गनाइजेशन) और एनडीएफबी (नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड) जैसे भूमिगत संगठन गो तस्करी के काम में सक्रियता से लगे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार उत्तरी बंगाल के रास्ते प्रतिवर्ष 17-18 लाख गोवंश बांग्लादेश ले जाए जाते हैं। 2014 में केन्द्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संप्रग सरकार आने के बाद वहां कुछ संगठन गोवंश की रक्षा के लिए सक्रिय हुए हैं। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने भी पहले से अधिक सख्ती दिखाई है। उसके बावजूद गोवंश की तस्करी रुकने का नाम नहीं ले रही है। हां, कमी जरूर आई है।
कालचीनी के दलसिंहपारा से गुजरते हुए गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे परिवारों से मिलना हुआ। उनके पास एक अजीब किस्म का आटा देखा। ऐसा लग रहा था कि आटा गेहूं का नहीं, प्लास्टिक का हो। वह खाने लायक नहीं था। परिवार के लोगों ने ही कहा, ‘‘लगता है, ममता दीदी प्लास्टिक का आटा चीन से मंगा रही हैं।’’
असम की सीमा पर बंगाल के हिस्से में आने वाले गांव है मध्य कामाख्यागुड़ी। वहां जगह-जगह माकपा के झंडे लगे हुए थे। यहां बीपीएल परिवारों का नाम एपीएल में डाल दिया गया है। वहीं दूसरी ओर संपन्न लोगों को घर बनाने के लिए सरकार की तरफ से 1,50,000 रुपए दिए गए हैं। हम यह यात्रा रमजान के दौरान कर रहे थे। सुक्ताबाड़ी में दो दर्जन मुसलमानों से बात हुई। बातचीत के क्रम में पता चला कि उनमें से एक ने भी रोजा नहीं रखा हुआ था। इस यात्रा के दौरान यह महसूस हुआ कि अब बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ में कमी आई है। लेकिन अब भी लगभग 45 किमी सीमा क्षेत्र पूरी तरह खुला है। यहां कोई बाड़ नहीं लगी है। अनुमान है कि इसमें तीन से चार साल का समय लगने वाला है। सवाल कई सारे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत में रह रहे हैं, उन्हें बाहर करने के लिए सरकार के पास क्या योजना है? अंत में यह कहना ही काफी होगा कि पश्चिम बंगाल में माहौल तेजी से बदल रहा है, जो देशहित में नहीं है।
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