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माधवी (नाम परिवर्तित) पत्रकार हैं। चुस्त, सतर्क और अत्यंत संवेदनशील। उनकी यह संवेदनशीलता ऐसी है कि कई बार रात की नींद, दफ्तर में काम के घंटों और अखबार के पन्नों से भी बाहर छलक पड़ती है। अपने आस-पास, आते-जाते माधवी कई बार कुछ ऐसा देखती हैं जो भले छपे नहीं, किन्तु उन्हें अकुलाहट और चिंता से भर देता है। ऐसे में वे कलम उठाती हैं और हमें लिख भेजती हैं। इस भरोसे के साथ कि कोई तो उनकी चिंताओं को साझा करेगा।
विचारों से भरी, झकझोरती चिट्ठियों की अच्छी-खासी संख्या हो जाने पर हमने काफी सोच-विचार के बाद माधवी की इन पातियों को छापने का निर्णय किया, क्योंकि जगह चाहे अलग हो, लेकिन मुद्दे और चिंताएं तो साझी हैं। आप भी पढ़िए और बताइए, आपको कैसा लगा हमारा यह प्रयास।
छत्तीसगढ़ में शराबबंदी और सरकारी नीतियों की चर्चा हो रही है। मंत्री से लेकर संतरी और आम जन तक शराबबंदी पर अपनी राय दे रहे हैं। इन सबके बीच रमन सिंह सरकार चौतरफा विरोध झेल रही है। इस विषय पर ज्यादा तो नहीं जानती, पर प्रदेश के आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल के हालिया साक्षात्कार के कुछ चुनिंदा तर्कों पर लिखने का मन हुआ।
वैसे तो राज्य में वर्षों से अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। लेकिन सरकारी नीति पर पहली बार सवाल उठा, क्योंकि शराबबंदी की पक्षधर सरकार ने अब खुद ही शराब की दुकानें चलाने का फैसला किया है। इसी पर आबकारी मंत्री ने कुछ तर्क दिए हैं। उनका मानना है कि शराब की दुकानें पहले ठेकेदारों और बिचौलियों के हाथ में थी। इसलिए अवैध शराब का कारोबार पनपा। अब सरकार कॉर्पोरेशन के जरिये शराब की बिक्री करेगी। हालांकि शराबबंदी से सरकार को करीब 4 हजार करोड़ का घाटा होगा। इसे देखते हुए शराबबंदी की बजाय बिचौलियों पर ज्यादा जोर दिया गया है। उनका दूसरा तर्क था कि तीन महीने बाद जब बिचौलिए खत्म हो जाएंगे, तो यही मॉडल सफल कहलाएगा। केरल, दिल्ली और तमिलनाडु में यह मॉडल सफलतापूर्वक चल रहा है।
मेरे सामने इसका दूसरा पहलू भी आया। बिहार जैसे पिछड़े राज्य में शराबबंदी का सख्ती से पालन हो रहा है। शराबबंदी से पहले राज्य के मुख्य सचिव का तर्क था कि इससे करीब 4,000 करोड़ का राजस्व घाटा होगा। इसलिए यह फैसला घातक साबित होगा। साथ ही, कहा कि इस घाटे की भरपाई दूसरे माध्यमों से संभव है। शराबबंदी से राज्य के लोगों के 10 हजार करोड़ रुपये बचने का अनुमान लगाया गया। जाहिर है जब बचत होगी तो लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी, उनका जीवनस्तर सुधरेगा व सरकार को भी ज्यादा राजस्व मिलेगा। मुझे सोच में बुनियादी फर्क यहीं पर दिखा। एक ही देश में एक ही मुद्दे पर दो अलग नीतियां! एक राज्य में सरकार लोगों को बेहतर जीवन देने के बारे में सोच रही है, जबकि दूसरे राज्य में सरकार शराब की कमान अपने हाथ में ले रही है।
शराबबंदी का तीसरा पहलू भी है। छत्तीसगढ़ के गांवों में शराबबंदी और इसके प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिए गांवों में महिला कमांडो तैनात की गई हैं। लाल साड़ी, हाथ में डंडा और सिर पर पुलिस की तरह लाल टोपी पहने ये कमांडो दिन ढलते ही घर निकल जाती हैं। अगर कोई शराब बेचते और पीते दिख गया तो उसकी खैर नहीं। प्रदेश के 27 जिलों में ऐसा कोई गांव नहीं है, जहां शराबबंदी के खिलाफ ग्रामीणों ने मुहिम न छेड़ी हो।
इस विषय पर लिखने की एक वजह है। शराब के कारण हमारा परिवार कभी टूटने की कगार पर था। लेकिन परमात्मा ने सही समय पर सद्बुद्धि दी और परिवार को बिखरने से बचा लिया। नहीं तो आज मैं शायद किसी गांव में ब्याह दी गई होती और बच्चों का पेट भरने के लिए खेतों में मजदूरी कर रही होती। बाकी बहनों और मां की हालत भी शायद ऐसी ही होती। उच्च शिक्षा तो छोड़ ही दीजिए, शायद 12वीं तक भी पढ़ाई नहीं कर पाती। मेरे दो बेहद करीबी दोस्तों की जिंदगी में शराब ने ही जहर घोला। दोनों के पिता सरकारी नौकरी में हैं। इसके बावजूद उनके घर का खर्च प्राइवेट नौकरी से मिलने वाले चंद हजार रुपये से चलता है। उनके पिता काम पर जाने की बजाए नशे में धुत रहते हैं और परिवार मोहताज बना हुआ है। दोनों दोस्तों ने बहुत छोटी उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया, ताकि घर में मां और भाई-बहनों का पेट भर सके। इस शराब के सामने जहर भी मामूली सा लगता है।
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