|
फिलहाल अतिरिक्त बिजली ग्रिड को लौटाने पर पैसे तो नहीं मिलते, लेकिन बिल में रियायत मिलती है
गर्मी के दिनों में आमतौर पर उपभोक्ताओं को दोहरी मार झेलनी पड़ती है। एक तो बिजली की खपत बढ़ जाती है, जिसके कारण जब-तब बिजली गुल रहती हैं। दूसरे, बिजली बिल भी अधिक आता है। इससे निपटने का एक आसान तरीका है, छत पर सोलर प्लांट लगा लीजिए। इससे न केवल आप अपना बिजली बिल कम कर सकेंगे, बल्कि ग्रिड को बिजली बेच भी सकेंगे। जहां पावर कट अधिक लगते हैं, टैरिफ और बिजली की खपत भी ज्यादा है, वहां सोलर प्लांट बेहद फायदेमंद है। खासकर दूर-दराज के गांवों और छोटे शहरों में यह ज्यादा असरदार है। अगर आपके घर में बिजली की खपत 5 किलोवाट है तब सोलर पैनल लगाना अच्छा रहेगा, लेकिन खपत बहुत कम है तो महंगा पड़ेगा।
बिजली ऐसे बचाएं
पुराने उपकरण खपत नए उपकरण खपत बचत प्रतिशत में
बल्ब 100 वाट एलईडी बल्ब 10 वाट 90
ट्यूबलाइट 40 वाट एलईडी ट्यूबलाइट 18 वाट 70
पंखा 80 से 120 वाट पंखा 40-50 वाट 50
रेफ्रीजेरेटर 2 से 4 यूनिट रोज स्टार रेटिडे रोजाना एक यूनिट 70
सोलर पैनल का गणित
अगर आप दिल्ली में रहते हैं और 5 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाना चाहते हैं तो इस पर लागत करीब 5 लाख रुपये आएगी। साथ ही, सोलर पैनल लगाने के लिए छत पर 50 वर्ग मीटर जगह चाहिए। अगर आप किसी बहुमंजिला इमारत में रहते हैं तो इसे पूर्वी या पश्चिमी दीवार पर भी लगाया जा सकता है, बशर्ते वहां पांच-छह घंटे सूरज की किरणें सीधी पड़ती हों। 5 किलोवाट के लिए 20 पैनल की जरूरत पड़ेगी। यानी 5,000 वाट को 250 से भाग देने पर जो भागफल आएगा, आपको उतने पैनल की जरूरत पड़ेगी। सामान्यतया सोलर पैनल लगाने पर प्रति वाट 55 रुपये का खर्च आता है। इस हिसाब से एक पैनल की कीमत 13,750 रुपये बैठती है। मतलब 20 पैनल पर 2.75 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे। पावर के हिसाब से पावर कंडीशनिंग बैटरी पर 15,000 से 60,000 रुपये और पावर बैंक पर 20,000 से एक लाख रुपये तक खर्च आएगा। इसके अलावा, इन्हें लगाने पर करीब 25,000 रुपये का खर्च।
बिजली बिल का गणित
सोलर प्लांट को बिजली आपूर्ति वाले ग्रिड से जोड़ा जाता है ताकि सौर ऊर्जा से बनने वाली सरप्लस बिजली को वापस आपूर्ति वाले ग्रिड में डाला जा सके। यानी अपने इस्तेमाल के लिए बिजली पैदा करने के साथ सरप्लस बिजली आपने कंपनी को दे दी। हालांकि इसके बदले में आपको पैसे तो नहीं मिलेंगे, क्योंकि अभी तक बिजली उत्पादन कर बेचने की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन ग्रिड में जितनी बिजली भेजी है, उसके बदले में आपके बिल से बिजली कंपनी उतने यूनिट घटा देगी। इसे ऐसे समझा जा सकता है। मान लिया कि एक महीने में आपने 1,000 यूनिट बिजली की खपत की और ग्रिड में 220 यूनिट डाली तो आपको 780 यूनिट का ही बिल चुकाना होगा। आपके द्वारा ग्रिड को भेजी जाने वाली बिजली साल के आखिर में आपके खाते में जमा होती रहेगी। वैसे 5 किलोवाट के सोलर प्लांट से प्रत्येक महीने लगभग 750 यूनिट बिजली का उत्पादन होता है। इस हिसाब से सोलर प्लांट लगाने का खर्च 4-5 साल में वसूल हो सकता है। हालांकि सोलर प्लांट लगाने के लिए व्यक्ति को संबंधित राज्य के बिजली नियामक से इजाजत लेनी पड़ेगी। जैसे- दिल्लीवासी को 1,000 रुपये शुल्क के साथ डिस्कॉम में सोलर प्लांट लगाने के लिए आवेदन देना होगा। इसके बाद डिस्कॉम आवेदक के घर एक सर्वेक्षण टीम भेजेगी। सर्वेक्षण टीम की रिपोर्ट के आधार पर सोलर प्लांट लगाने और सोलर पावर यूनिट को ग्रिड से जोड़ने मिलेगी। इसके साथ ही, सामान्य बिजली मीटर की जगह नेट मीटरिंग यूनिट लगाया जाएगा जिससे पता चलेगा कि आपने ग्रिड को कितनी बिजली लौटाई। दिल्ली सरकार की अधिसूचना के मुताबिक, नेट मीटरिंग प्रणाली के तहत नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली को चक्रण, बैंकिंग, क्रॉस सब्सिडी और अन्य प्रभारों से पांच साल के लिए छूट मिलेगी।
दिल्ली सबसे आगे
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में सौर ऊर्जा नीति तो बनी है, पर नेट मीटरिंग के लिए रूफटॉप सोलर मीटरिंग पॉलिसी की घोषणा केवल दिल्ली ने की है। केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग ने कुछ साल पहले सभी राज्यों के विद्युत नियामक आयोगों से लोगों सोलर प्लांट से उत्पादित सरप्लस बिजली खरीदने के लिए एक नीति बनाने को कहा था। दिल्ली ने सबसे पहले 2014 में इस बाबत अधिसूचना जारी की थी। इस नीति के तहत जिन घरों या इमारतों पर सोलर प्लांट लगे हैं, वहां ऐसे मीटर लगाए जाएंगे जो कुल बिजली खपत और सोलर प्लांट से पैदा होने वाली बिजली में अंतर बताएंगे। अगर किसी घर में प्रति माह 1,000 यूनिट बिजली की खपत होती है और सौर ऊर्जा से 400 यूनिट बिजली का उत्पादन होता है तो उस उपभोक्ता को बिजली कंपनी शून्य से 600 यूनिट की श्रेणी में रखकर बिजली बिल भेजेगी। साथ ही, उसके द्वारा उत्पादित 400 यूनिट बिजली जो ग्रिड में भेजी जा रही है, उसका भुगतान तय दर पर करेगी। ल्ल नागार्जुन
टिप्पणियाँ