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18 जून, 2017
आवरण कथा ‘करवट बदलती दुनिया’ से यह स्पष्ट है कि पेरिस समझौते से अमेरिका के पीछे हटने से चीन जैसे देशों को यह दिखाने का अवसर मिलेगा कि वे पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं जबकि चीन वर्तमान में सर्वाधिक प्रदूषणकारी देश है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के इस फैसले की विश्व में आलोचना हुई। अमेरिका के इस फैसले का पर्यावरण
संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध देशों पर विपरीत असर पड़ेगा।
—आशीष राजपुरोहित, जालोर (राज.)
समाज को जोड़ते संत
रपट ‘समरसता के संत (4 जून, 2016)’ से यही बात उभर कर आई कि हमारे देश के संतों ने सदैव समरसता की बात की और समाज को जोड़ने के लिए कार्य किया। इसीलिए आज भी समाज में संतों का बहुत सम्मान होता है, भले वे किसी भी मत-पंथ के क्यों न हों।
—नीलेश वर्मा, मेल से
ङ्म कुछ लोग समाज में भेद उत्पन्न करने के लिए साधु-संतों को मत-पंथ की दीवारों में बांध देते हैं। लेकिन शायद वे यह नहीं जानते कि यह कितना गलत कार्य है। वस्तुत: संत किसी एक व्यक्ति के नही, बल्कि समस्त मानव समाज के भले की बात सोचते है।
—कमलेश कुमार ओझा, पुष्प विहार(नई दिल्ली)
विकास के रास्ते को अपनाएं
रपट ‘अब समझदारी की बात करो मियां (4 जून, 2017)’ उन मुल्ला-मौलवी और बड़बोले मुस्लिम नेताओं पर सटीक बैठती है जिनका सिर्फ एक ही काम है— समाज को आपस में लड़ाना। ये लोग किसी भी छोटी-बड़ी घटना को इस्लाम से जोड़ समाज में उन्माद पैदा कर करने में माहिर है। आज जब पूरी दुनिया के लोग तरक्की की राह पर चल रहे हैं, तब जिहादी किस्म के मुस्लिम देश दुनिया में रक्तपात करके इस्लाम का राज स्थापित करवाना चाहते हैं। बेहतर होगा तो यही कि ये देश मजहब को मानवता से जोड़कर सहिष्णु बनें और समाज एवं राष्ट्र के निर्माण में योगदान दें।
—रामनरेश शर्मा, भोपाल (म.प्र.)
ङ्म जब से देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है, तब से समाज और देशविरोधी तत्व खुलकर सामने आने लगे है। पर ऐसे लोगों को, समझना होगा कि देश की जनता ने ही इस सरकार को चुना है सो जनभावना का सम्मान करते हुए बेवजह के विवादों को तूल देकर समाज के माहौल को बिगाड़ना ठीक नहीं है। जनता इन देश विरोधी तत्वों के रंगे चेहरे को भलीभांति जानती है।
—मनोज जोशी, नासिक (महाराष्ट्र)
चीन की बढ़ती हेकड़ी
रपट ‘चीन के साथ कूटनीति की कुंजी(18 जून, 2017)’ से यह तथ्य सामने आया कि कुछ दिन से चीन भारत पर आंखें तरेर रहा है और धमकी के लहजे में बात कर रहा है। उसकी उग्रता तब और बढ़ जाती है जब भारत के प्रधानमंत्री की ओर से एक भी बयान नहीं आता। शायद अब वह किसी गलफत में जी रहा है। यह सच है कि भारत से कई मामलों में चीन की शक्ति ज्यादा है लेकिन भारत को आज विश्व के कई देशों का सहयोग प्राप्त है। इसलिए बेहतर होगा कि वह आंखें तरेरना बंद करके विकास के रास्ते पर चले और एशिया में शांति स्थापित करे।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
ङ्म सबसे पहले तो चीन को यह अब समझना होना कि यह दौर 1962 का नहीं, 2017 का है। यानी परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव आया है। इसलिए चीन पहले तो भारत को बात-बात पर धमकाने के अपने लहजे से बचे। दोनों देशों की भलाई इसी बात में है कि वे विकास के रास्ते पर चलकर एक नया कीर्तिमान स्थापित करें। क्योंकि चीन की समृद्धि में भारत का अभिन्न योगदान है। भारत के लोगों ने अगर एक बार भी ठान लिया कि वे चीन के सामान का प्रयोग नहीं करेंगे तो शायद फिर लाचारी के अलावा उसके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा।
—अरुण मित्र, राम नगर (नई दिल्ली)
गले में अटकी हड्डी
कुर्सी छोड़ेंगे नहीं, लालू जी के लाल
परम्परा परिवार की, रक्खेंगे हर हाल।
रक्खेंगे हर हाल, जबरदस्ती गर होगी
पटना में सरकार, नहीं फिर बच पाएगी।
कह ‘प्रशांत’ हर रोज चिढ़ाती उनको गद्दी
संकट में नीतीश, गले में अटकी हड्डी॥
— ‘प्रशांत’
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