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सांस्कृतिक जड़ों की तलाश

by
Jul 24, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Jul 2017 14:50:43

 


मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में अनेक हिन्दू जनजातियां हैं जिनमें लोगों के नाम भले मुस्लिम हों, पर व्यवहार में वे हिन्दू ही हैं। भारत के प्रति उनमें अनूठी आस्था है

श्याम परांडे
इंडोनेशिया का अध्ययन करने वाले शिक्षाविद् आज वहां एक बदलाव देख रहे हैं जो शायद इस देश की संस्कृति और परंपरा में निहित है। इंडोनेशिया अपनी सर्वाधिक मुस्लिम आबादी के साथ दुनिया में एक अलग स्थान रखता है, साथ ही उसने सदियों से स्थानीय हिंदू धर्म और परंपरा के कई पहलुओं को भी अपनाया है। ऐतिहासिक तौर पर, यहां की आबादी को हिंदू धर्म में कन्वर्ट नहीं किया गया है, बल्कि उन्होंने भारत से आने वाले यात्रियों, व्यापारियों और यहां तक कि राजाओं की संस्कृति को अपनाया था, हिंसा और रक्तपात के बिना। इस्लाम ने सदियों बाद इस द्वीपीय देश में स्थानीय जनसंख्या को कन्वर्ट करने के उद्देश्य के साथ प्रवेश किया था। इंडोनेशिया के हर हिस्से में हिंदू धर्म का पुनरुत्थान हो रहा है। 70 के दशक के प्रारंभ में, सुलावेसी के राजा हिंदू धर्मावलंबियों के रूप में पहचाने गए सबसे पहले लोग थे। इसके बाद 1977 में सुमात्रा के कारो बताक और 1990 में कालीमंतन के नगाजू दायक का नाम आता है।
हिंदू धर्म के विस्तार में सबदापलोन और जयबाय द्वारा जावा में की गई प्रसिद्ध भविष्यवाणी से भी मदद मिली। मजाफित की परंपरा में यह वापसी राष्टÑीय गौरव का विषय है। जावा में हिंदू समुदाय की प्रवृत्ति नवनिर्मित पुरों (मंदिर) या वैसे पुरातात्विक मंदिर स्थलों के आसपास बसने की रही जिन्हें हिंदू पूजास्थल के रूप में पुन: निर्मित किया जा रहा है। पूर्वी जावा में एक महत्वपूर्ण नया हिंदू मंदिर पुरा मंदारगिरि सुमेरू अगुंग है, जो जावा के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट सुमेरू की ढलान पर स्थित है। जावा में अंतिम हिंदू शासन ब्लामबैंगन राज्य से जुड़े एक पुरातात्विक भग्नावशेष पर निर्मित एक अन्य नए मंदिर पुरा अगुंग ब्लामबैंगन और पुरा लोक मोक्ष जयबाया (केदरी के पास मेणंग गांव में)-जहां हिंदू राजा और नबी जयबाय ने कथित तौर पर मोक्ष प्राप्त किया था- के आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन हुआ। पूर्वी जावा में एक और नया स्थल है पुरा पकाक रायंग, जिसे बाली साहित्य में ऐसे स्थान के तौर पर दिखाया गया है जहां से महर्षि मार्कण्डेय पांचवीं शताब्दी में हिंदू धर्म लेकर बाली आए थे।
प्राचीन हिंदू मंदिर स्थलों के प्रमुख पुरातात्विक अवशेषों के आसपास पुनरुत्थान का एक उदाहरण पौराणिक हिंदू साम्राज्य मजपहित की राजधानी, मोजोकर्टो के निकट ट्रौलन में पाया गया। खुदाई में निकले एक अन्य मंदिर भवन पर नियंत्रण के लिए एक स्थानीय हिंदू आंदोलन चल रहा है। आंदोलनकारी इस स्थल को एक जाग्रत हिंदू उपासना स्थल के रूप में पुनरस्थापित करना चाहते हैं। यह मंदिर गजह मडा को समर्पित किया जाना है, जिन्हें छोटे से हिंदू राज मजपहित को एक साम्राज्य में बदलने का श्रेय प्राप्त है। हालांकि, पूर्वी जावा में इस्लामीकरण के प्रतिरोध का एक सुस्पष्ट इतिहास रहा है, लेकिन हिंदू समुदाय भी मध्य जावा में प्रमबनन के प्राचीन हिंदू स्मारकों के निकट विस्तार कर रहे हैं। जावा में हिंदू के तौर पर अपना अस्तित्व संरक्षित रखने वाला समुदाय है-पर्वतीय ब्रोमो  टेंगर मासिफ, जिन्होंने किसी भी हालत में इस्लाम को नहीं अपनाया। पिछली आधी सदी के दौरान उन पर बाली के हिंदू धर्मावलंबियों को हिंदू बनने के लिए भारी दबाव बना रहा है, लेकिन 19वीं सदी में वहां        भारतीय और बाली, दोनों ही जगहों के हिंदू धर्म के समन्वित स्वरूप की स्पष्ट छाप दिखाई देने लगी थी।
अपने जीवन के तौर-तरीकों को बरकरार रखने वाला एक अन्य समुदाय है सुलावेसी द्वीप के टोराजा जिले में रहने वाली जनजाति। यह द्वीप हरे जंगलों और प्राकृतिक गैस सहित समृद्ध खनिजों से परिपूर्ण है। आ-लोक-टू-डोलन नाम की जनजाति अपनी परंपराओं से जुड़ी रही है और इसने कभी भी इस्लाम को नहीं अपनाया। लेकिन पिछली शताब्दी के बाद से इन पर कन्वर्जन का जबरदस्त दबाव बना हुआ है। इनके कन्वर्जन में शामिल चर्च के दावों को मानें तो चर्च ने 800,000 टोराजाओं को ईसाई बना लिया है और कथित तौर पर अब जिले में केवल 11000 लोग ही बचे हैं। इस सुदूर इलाके की यह दुख भरी कहानी है जहां शायद ही बाहरी दुनिया के लोग कभी पहुंचते हैं। हिंदू जनजाति की खोज में पिछले माह मैं मालेकू गया था।
भारत से पहुंचे हम हिंदुओं का उन्होंने दिल खोलकर स्वागत किया जबकि वे हमसे पहली बार मिल रहे थे। दूर एक ऊंची पहाड़ी पर बसी इस जनजाति के लोग एक नवनिर्मित इमारत में इकट्ठे हुए और नृत्य और भोजन के साथ अपने रीति-रिवाजों का प्रदर्शन किया। वे गोल घेरा बनाकर वैसे ही नाच रहे थे जैसे बस्तर या झारखंड का लोकनृत्य हो। खोखले बांस में खास व्यंजन पकाया गया और लाल चावल के साथ सबने खाया। आम आदमी के लिए इंडोनेशिया द्वीपों का देश है। यह चारों ओर से समुद्र से घिरा है। यहां के लोगों के मुख्य भोजन में समुद्री मछलियां आदि शामिल हैं, साथ ही कुछ अन्य मांसाहारी व्यंजन भी उनके स्वाद का हिस्सा हैं।
जनजाति आ-लोक-टू-डोलन अगले एक-दो दशक में विलुप्त हो जाएगी, अगर उसे बचाने के सार्थक उपाय नहीं किए गए। इस जनजाति के लोगों का अस्तित्व मोटे तौर पर वन उत्पादों पर निर्भर है और शिक्षा उनके लिए एक तरह की विलासिता है। हमने वहां के शिक्षकों से बात की जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। उन्होंने बताया कि अगर लोग शिक्षा पूरी कर भी लें तो यहां रोजगार की कोई संभावना नहीं। चर्च ने इस पर काफी संसाधन खर्च किए हैं। वे छात्रों को चुनकर आगे की पढ़ाई के लिए पश्चिमी देशों में भेजते हैं। जब वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर वापस आते हैं तो उन्हें जीवकोपार्जन के कामों में न भेजकर ईसाई मत के प्रसार में लगा दिया जाता है। सच कहूं तो यहां कृषि सबसे लाभदायक कार्य हो सकता है क्योंकि वर्षा काफी अच्छी होती है और जमीन भी बेहद उपजाऊ है, पर विडंबना यह है कि कोई नहीं जानता कि खेती कब, कैसे करे।
मनोरम टोराजा जाते समय रास्ते में हम दक्षिणी सुलावेसी द्वीप की राजधानी मकासार में थोड़ी देर के लिए रुके और फिर 8 घंटे का सफर तय करके मालेकू पहुंचे। वहां हमें प्रसिद्ध गिरी पुरानाथ मंदिर में सुलावेसी हिंदुओं को इकट्ठे देखने का अवसर मिला। हम उनकी पूजा-अर्चना में शामिल हुए, जो स्थानीय हिंदुओं की अपेक्षा हमारे लिए ज्यादा उत्साह का अवसर था। हमने 500 लोगों के समूह को संबोधित किया और उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया। जब हमने अपने साथ लाया गंगाजल मुख्य पुजारी को भेंट किया तो उनकी खुशी का पारावार न रहा। मकासार में हिंदुओं का एक छोटा सा समुदाय है, जिनमें से कुछ तो बाली से आकर बसे हैं, जबकि कुछ स्थानीय पारंपरिक हिंदू हैं।
टोरोजा से वापस लौटते हुए हमने बुगिस नाम के एक अन्य स्थानीय हिंदू जनजातीय समूह के साथ एक संक्षिप्त मुलाकात की योजना बनाई। बुगिस हिंदू शिक्षित हैं और उनमें से ज्यादातर वहीं कार्यरत हैं जबकि बाकी खेती करते हैं। बुगिस 4,00,000 लोगों का एक सशक्त समुदाय है जिसने अपनी परंपराओं को जिंदा रखा है और अपने अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौतियों से जूझ रहा है। बैठक में मौजूद युवाओं ने हमसे मानवाधिकारों और हाशिए पर डाल दिए गए अपने उपेक्षित अस्तित्व से संबंधित  सवाल किए। उन्होंने उस माहौल पर बड़ा सही सवाल उठाया था जिसमें बहुसंख्यकों को शिक्षा और रोजगार पाने के लिए हरसंभव मदद मिलती है और अल्पसंख्यक जनजातियों की कोई सुध नहीं लेता। इस बात पर गौर करें कि अधिकतर बुगिस लोगों के नाम तो इस्लामी हैं लेकिन व्यवहार में वे हिंदू हैं। उन्हें उनके नाम से पहचानना गलत होगा।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के   महामंत्री हैं)

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