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बीते कुछ वर्षों से खेलों के क्षेत्र में भारत लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है। हाल ही में भुवनेश्वर में संपन्न एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत चीन, जापान और कोरिया को पछाड़ शीर्ष पर पहुंचा
प्रवीण सिन्हा
खेलों के क्षेत्र में भारत में काफी बदलाव आए हैं। खासकर पिछले दो-तीन ओलंपिक यानी एक दशक में इसमें काफी सुधार आया है। पहले भारत का नाम हॉकी, शतरंज, क्रिकेट या क्यू स्पोटर््स (बिलियर्ड्स व स्नूकर) में ही सम्मान के साथ लिया जाता था। लेकिन अब फुटबॉल, हॉकी, बैडमिंटन, एथलेटिक्स, कुश्ती, कबड्डी और मुक्केबाजी जैसे खेलों में देश की पहचान बन रही है और इनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय दावेदारी को स्वीकार किया जाने लगा है।
पिछले दिनों युवा खिलाड़ी किदाम्बी श्रीकांत ने लगातार दो सुपर सीरीज खिताब जीतकर इतिहास रचा तो चीन सहित बैडमिंटन के तमाम सुपर पावर देश अचंभित रह गए। अभी हाल ही में भुवनेश्वर में हुई एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप की पदक तालिका में शीर्ष पर रहते हुए भारत ने न केवल इतिहास रचा, बल्कि एक बार फिर चीन, जापान और कोरिया को पीछे छोड़ दिया। हालांकि इन देशों ने एशियाई चैंपियनशिप में अपने शीर्षस्थ खिलाड़ियों को नहीं उतारा, जिसका भारतीय एथलीटों ने फायदा उठाया। लेकिन एक सच यह भी है कि नीरज चोपड़ा, मोहम्मद अनस, निर्मला शेरन, पी. चित्रा और अर्चना यादव जैसी युवा एथलीटों ने ट्रैक एवं फील्ड में शानदार प्रदर्शन कर साबित कर दिया कि अब एथलेटिक्स में भारत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनकी
जीत तुक्के में नहीं, बल्कि हाड़तोड़ परिश्रम का नतीजा है।
एथलेटिक्स में अभी तक अमेरिका, रूस, चीन, जापान, जर्मनी जैसे विकसित देशों का दबदबा रहा है, लेकिन इन्हें गरीब अफ्रीकी देशों के एथलीटों ने फर्राटा दौड़ से लेकर मैराथन में जमकर पछाड़ा है। इस आधार पर माना जा सकता है कि सिर्फ तमाम सुविधाओं और ताकत के बल पर एथलेटिक्स में बाजी नहीं मारी जाती। उसके लिए जीत की अदम्य इच्छाशक्ति, तकनीक और कड़ी मेहनत जरूरी है। केन्याई फर्राटा किंग उसैन बोल्ट और उन्हीं के देश की एलेन थॉम्पसन व शैली एन. फ्रेजर ने महिला वर्ग के हर अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में नामचीन एथलीटों को परास्त किया जो 2016 रियो ओलंपिक तक जारी रहा। इस कड़ी में भारत ने धीमे से अगर कदम रखा है तो इसके पीछे नीरज चोपड़ा और निर्मला शेरन सहित एशियाई चैंपियनशिप के दोहरे स्वर्ण पदक विजेता जी. लक्ष्मणन जैसे एथलीटों का दमदार प्रदर्शन है। 12 स्वर्ण, 5 रजत और 12 कांस्य पदकों सहित कुल 29 पदक जीतकर भारत भुवनेश्वर में पदक तालिका में शीर्ष पर रहा। इस प्रदर्शन पर गर्व किया जा सकता है, क्योंकि महज 20 साल का एक युवा खिलाड़ी मैदान पर आता है और अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप दमदार प्रदर्शन करते हुए निकलता है, ऐसा नजारा पहले ज्यादा देखने को नहीं मिलता था। पोलैंड में 2016 वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स में 86.48 मीटर भाला फेंक कर विश्व रिकॉर्ड बनाने और स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत सुर्खियों में आए नीरज चोपड़ा ने अपना दबदबा कायम रखा है। वे जब किसी भी प्रतियोगिता में उतरते हैं तो खेल प्रेमियों की नजरें उन पर टिकी रहती हैं। उन्होंने दक्षिण एशियाई एथलेटिक्स और एशियाई एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीतते हुए अपने प्रशंसकों को निराश भी नहीं किया। पोलैंड में जब उन्होंने 86.48 मीटर दूर तक भाला फेंका तो वह न केवल पिछले साल का विश्व का आठवां सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था, बल्कि लंदन ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता त्रिनिदाद व टोबैगो के के. वालकॉट (86.35 मीटर) से भी बेहतर था।
नीरज ने रियो ओलंपिक के क्वालिफाइंग मानक को जुलाई में पार किया था, तब तक ओलंपिक में शामिल होने की समय सीमा निकल चुकी थी। पटियाला में उन्हें प्रशिक्षण दे चुके आॅस्ट्रेलियी कोच कालवर्ट ने घोषणा की है कि अगर इस होनहार खिलाड़ी को पर्याप्त प्रशिक्षण मिलता रहे तो वह भविष्य का विश्व चैंपियन बनने का माद्दा रखता है। साथ ही, उन्होंने दावा किया कि भाला फेंक सिर्फ ताकत का खेल नहीं है, बल्कि काफी हद तक तकनीक पर निर्भर करता है। अपने करीब चार दशक के करियर में उन्होंने दर्जनों ओलंपिक खिलाड़ी दिए, लेकिन तेजी से दौड़ते हुए भाले को एकदम अंतिम मौके पर छोड़ने की जिस कला को सीखने में उनके प्रशिक्षु 12 साल का समय लेते थे, नीरज में वह नैसर्गिक प्रतिभा मौजूद है। बहरहाल, नीरज ने एशियाई एथलेटिक्स में 17 साल बाद भारत को स्वर्ण पदक दिलवाया। उन्होंने भुवनेश्वर में दो गलत थ्रो करने के बाद अगले तीन प्रयास में काफी सुधार किया और अंतत: 85.23 मीटर भाला फेंक स्वर्ण पदक पर कब्जा किया। नीरज का प्रदर्शन इसलिए शानदार है, क्योंकि उन्होंने स्पर्धा में एशिया के शीर्ष 10 खिलाड़ियों में से 8 को पछाड़ते हुए स्वर्ण जीता। इसी तरह महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में निर्मला शेरन ने 52.01 सेकेंड का समय निकालते हुए स्वर्ण पदक जीता। इस प्रदर्शन के दम पर वे इंचियन एशियाई खेलों या वुहान एशियाई प्रतियोगिता में रजत पदक जीत सकती हैं। भारत की सर्वश्रेष्ठ एथलीट निर्मला इन दिनों एशिया की शीर्ष एथलीटों में शुमार हैं। यही नहीं, पुरुषों की 400 मीटर दौड़ में मोहम्मद अनस ने 45.77 सेकेंड का समय निकाल कर स्वर्ण पदक जीता। यह इस साल एशियाई स्तर पर उनका प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ है। निर्मला और अनस, दोनों ने ही लंदन में होने वाली विश्व चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाई कर लिया है।
इसके अलावा महिलाओं की गोला फेंक स्पर्धा में मनप्रीत कौर (18.28 मीटर) ने अपने प्रदर्शन से काफी प्रभावित किया। पुरुषों की 5,000 और 10,000 मीटर दौड़ में सनसनी की तरह उभर कर स्वर्ण पदक जीतने वाले जी लक्ष्मणन ने भी अपने प्रदर्शन से प्रभावित किया। हालांकि एशियाई स्तर पर 27 वर्षीय लक्ष्मणन के लिए चुनौतियां काफी कठिन हैं। इसकी दो वजहें हैं—उनकी बढ़ती उम्र और लंबी दूरी में जापान व बहरीन से मिलने वाली चुनौतियां। इसी तरह महिला एवं पुरुष रिले टीम ने आशा की किरणें जगाई हैं। महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में 22 वर्षीया पी. चित्रा ने 17.92 सेकेंड का समय निकालते हुए स्वर्ण पदक जीत भविष्य की स्टार खिलाड़ी के तौर पर पहचान बनाई है। वहीं, सुधा सिंह ने बीमारी के बाद ट्रैक पर वापसी करते हुए 3,000 मीटर स्टीपल चेज में स्वर्ण पदक तो जीत लिया पर उनका यह प्रदर्शन (9 मिनट 59.47 सेकेंड) एशियाई स्तर पर आगे सफलता दिलाने के लिए नाकाफी साबित होगा।
कुल मिलाकर एशियाई एथलेटिक्स में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर गौर करें तो प्रतियोगिता के विश्वस्तरीय आयोजन सहित कई सकारात्मक पहलू उभरकर सामने आए हैं। इसके लिए जरूरी है कि बेहतर प्रदर्शन के लिए आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराने के साथ खिलाड़ियों का हौसला भी बढ़ाया जाए।
युवा प्रतिभाओं ने जगाई उम्मीदें : आदिल
भुवनेश्वर में सम्पन्न एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप की पदक तालिका में भारत शीर्ष पर रहा। खेल प्रेमियों के साथ भारतीय एमेच्योर एथलेटिक्स फेडरेशन के अध्यक्ष आदिल सुमारीवाला इस अवसर पर फूले नहीं समा रहे थे। हालांकि प्रतियोगिता में भारतीय खिलाड़ियों को अपेक्षाकृत कमजोर टक्कर मिली। लेकिन इस सफलता से क्या विश्व एथलेटिक्स में भारत अपनी पहचान बना सकेगा या यह उपलब्धि अपनी पीठ थपथपाने जैसी है। इस पर आदिल सुमारीवाला ने अपनी बेबाक राय रखी। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के मुख्य अंश :
एशियाई चैंपियनशिप में ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद भारतीय एथलेटिक्स को कहां पाते हैं?
एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कुल मिलाकर भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। पदक तालिका में एशिया में शीर्ष पर रहना स्वयं में एक उपलब्धि है। हमारे खिलाड़ियों ने पहली बार 12 स्वर्ण सहित कुल 29 पदकों पर कब्जा किया जो भारत की सफलता को दर्शाता है। सबसे बड़ी बात है कि 1985 में जकार्ता में हुई एशियाई प्रतियोगिता में भारत ने 25 पदक जीते थे। 32 साल बाद उससे भी ज्यादा पदक जीतने का मतलब है कि खिलाड़ियों के प्रदर्शन में काफी सुधार आया है।
चीन, कोरिया, जापान या बहरीन जैसे देशों ने अपने दोयम दर्जे के एथलीटों को यहां भेजा था। क्या मेजबान भारत को इसका फायदा मिला?
देखिए, खेल के मैदान पर कौन शीर्ष एथलीट है और कौन दोयम दर्जे का, यह तय करना हमारा काम नहीं है। मुकाबले के दिन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कौन बाजी मारता है, यही मायने रखता है। उस लिहाज से सच यही है कि भारतीय एथलीटों ने ट्रैक व फील्ड पर शानदार प्रदर्शन करते हुए पदक तालिका में शीर्ष स्थान पाया। 1980 मॉस्को ओलंपिक में अमेरिका ने भाग नहीं लिया तो अन्य पदक विजेताओं की महत्ता कम तो नहीं हो गई। ठीक उसी तरह हमारे युवा खिलाड़ियों ने अन्य एशियाई देशों को कड़ी चुनौती दी और वे शीर्ष पर रहे।
ल्ल क्या यह प्रदर्शन विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में सफलता दिलाने के लिए काफी है?
दो-चार युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का प्रदर्शन उनके उज्वल भविष्य का संकेत देता है। एशियाई स्तर पर अच्छे प्रदर्शन से खिलाड़ियों का मनोबल काफी बढ़ा है। आगे उन्हें कड़ी चुनौती मिलेगी तो वे प्रदर्शन में और सुधार कर सकते हैं। हमारा लक्ष्य युवा एथलीटों को खोजना, उनकी तकनीक में नयापन देखना था, जिसमें हम काफी हद तक सफल रहे। यह कोशिश जारी रहेगी।
ल्ल भुवनेश्वर के मौसम से भी भारतीय खिलाड़ियों को फायदा मिला?
भुवनेश्वर में गर्मी थी, लेकिन असहनीय नहीं थी। तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस तक था, जबकि अन्य एशियाई देशों में यह 40 डिग्री से अधिक जाता है। जैसे- दोहा में होने वाली विश्व चैंपियनशिप या टोक्यो ओलंपिक में 40 डिग्री से ज्यादा तापमान में मुकाबले होंगे तो वहां सभी एथलीटों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। मुझे उम्मीद है, हमारे एथलीट वहां और बेहतर प्रदर्शन करेंगे। ल्ल ल्ल
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