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सदियों से है अमरनाथ हमारा आस्था-केन्द्र

by
Jul 24, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Jul 2017 12:45:06

 

किंवदंती है कि अमरनाथ गुफा का पता सबसे पहले एक कश्मीरी मुसलमान बूटा मलिक ने लगाया था। लेकिन यह सरासर झूठ है। अमरनाथ गुफा के बारे में पहला प्रामाणिक लेख 12वीं का है। इसके अलावा अन्य ग्रंथों में भी इस पवित्र स्थल का वर्णन है

प्रवीन गुगनानी

हिमालय की दुर्गम एवं उत्तुंग पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित अमरनाथ गुफा पवित्रतम हिन्दू तीर्थ स्थल के रूप में सर्वमान्य होकर संपूर्ण भारतवर्ष में पूज्य है। श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में करीब 400 किलोमीटर दूूर समुद्र तल से 13,600 फुट की दुर्गम ऊंचाई पर स्थित यह पवित्र गुफा 19 फुट गहरी, 16 मीटर चौड़ी और 11 मीटर ऊंची है। इस तीर्थस्थान के ‘अमरनाथ’ नाम की पृष्ठभूमि में वह कथा है जिसमें उल्लेख है कि यहीं पर त्रिनेत्रधारी शिव ने जगत जननी मां पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। इस कथा को सुनकर ही गुफा में बैठे एक शुक शिशु को शुकदेव ऋषि का रूप और अमरत्व प्राप्त हो गया था। यहां की प्रमुख विशेषता बर्फ से हर साल बनने वाला अद्भुत शिवलिंग है।
आषाढ़ से लेकर श्रावण में रक्षाबंधन तक हिन्दू धर्मावलंबी यहां बाबा बफार्नी के नाम से प्रसिद्ध शिवलिंग के दर्शन के लिए आते हैं। यह शिवलिंग गुफा की छत से टपकने वाली बूंदों से धीरे-धीरे बनता है, जिसकी ऊंचाई 10-12 फुट तक हो हाती है। श्रावण मास के चंद्रमा  के घटने-बढ़ने के साथ इसका आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक घटकर छोटा हो जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि कश्मीर के इस क्षेत्र में चारों ओर केवल कच्ची भुरभुरी बर्फ ही पाई जाती है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कुछ दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड बनते हैं। गुफा में आज भी यदाकदा श्रद्धालुओं को अमरत्व प्राप्त कपोत का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है।
प्रचलित किंवदंती है और ग्रंथों में भी लिखा है कि जब भगवान भोले भंडारी मां पार्वती  को अमरत्व की कथा सुनाने के लिए इस निर्जन स्थान की ओर बढ़ रहे थे, तब उन्होंने अपने शरीर पर विराजमान सभी छोटे-छोटे सांपों को एक स्थान पर छोड़ दिया था। वही स्थान अनंतनाग के नाम से प्रसिद्ध है। सांपों के बाद जहां उन्होंने अपने ललाट का चंदन उतारा, वह स्थान चंदनवाड़ी कहलाता है। सदैव गले में लिपटे रहने वाले शेषनाग को जहां उतारा,
वह स्थान शेषनाग कहलाता है। ये सभी
स्थान आज भी इसी नाम से अमरनाथ यात्रा
के पड़ाव हैं।
स्वामी विवेकानंद ने 8 अगस्त, 1898 को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। इसके बाद उन्होंने उल्लेख किया कि ‘दर्शन करते समय मेरे मन में विचार आया कि बर्फ का लिंग स्वयं भगवान शिव हैं। मैंने इतना सुंदर, इतना प्रेरणादायक कोई अन्य धर्मस्थल कहीं नहीं देखा और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है।’
अति दुर्गम, अति मनमोहक और बर्फ ढके पर्वतों के मध्य स्थित इस आस्था केंद्र पर जाने के दौरान और इसके संदर्भ में बोलते-सुनते समय सभी के मन में यह विचार अवश्य आता है कि अंतत: कौन होगा जो इस निर्जन, एकांत और सुदूर दिव्य स्थान के प्रथम दर्शन कर पाया होगा? इसके प्रथम दर्शन कब हुए होंगे? प्रथम दर्शन करने वाला व्यक्ति यहां किस मकसद से आया होगा? इन प्रश्नों के उत्तर में यहां कई प्रकार की किंवदंतियां, लोककथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं।
 बीते कुछ सालों में अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं पर आतंकी हमले के खतरों के बीच एक और मान्यता प्रचलित है। वह यह है कि 1850 में एक कश्मीरी मुसलमान बूटा मलिक अपनी भेड़ें चराने के दौरान घूमते-घूमते इस जगह पहुंचा और उसने श्रीअमरनाथ के प्रथम दर्शन किए। उसी ने इस गुफा के बारे में कश्मीर के तत्कालीन महाराजा को बताया और इसके बाद लोगों ने इस गुफा में आना प्रारंभ किया। वस्तुत: यह एक मिथ्या और प्रायोजित कथा है जिसके आधार पर एक मुस्लिम परिवार स्वयं को बूटा मलिक का वंशज बताते हुए इस पवित्र गुफा की देखरेख करने वाली समिति का सदस्य बना। बूटा मलिक की यह झूठी कथा देश में शनै: शनै: फैलती गई।
अमरनाथ यात्रा पर मुस्लिम आंतकवादियों के हमले और तीर्थयात्रियों को यातनाएं एवं पीड़ा देने की घटनाओं की दीर्घ शृंखला के बाद समय-समय पर इस झूठ को मीडिया द्वारा देश में स्थापित करने का प्रयास किया जाता रहा है। वस्तुस्थिति इससे सर्वथा भिन्न है, जो कि इस देश के बहुसंख्य हिन्दू समाज की जानकारी में होनी चाहिए।
इस पवित्र गुफा और दिव्य शिवलिंग के प्रथम मानव दर्शन कब हुए, यह तथ्य तो सहस्रों वैदिक मान्यताओं की तरह सदैव रहस्य के गर्भ में ही रहेगा, किंतु इसके संदर्भ में प्रथम ऐतिहासिक प्रामाणिक लेखन 12वीं शताब्दी का मिलता है। इस लेख के अनुसार, कश्मीर के महाराजा अनंगपाल ने अपनी पत्नी महारानी सुमन देवी के साथ अमरनाथ के दर्शन किए थे। 16वीं शताब्दी के एक ग्रन्थ ‘वंश चरितावली’ में भी अमरनाथ गुफा का महात्म्य वर्णित है।
1150 में जन्मे महान इतिहासकार और विलक्षण कवि कल्हण को कौन नहीं जानता। मान्यता है कि भारतीय इतिहास को प्रथमत: यदि किसी ने वैज्ञानिक और तथ्यपरक दृष्टिकोण से लिपिबद्ध करने का कार्य किया तो वे कल्हण ही हैं। कल्हण की छाप तो कश्मीर के चप्पे-चप्पे में है। कल्हण के प्रख्यात इतिहास ग्रन्थ ‘राजतरंगिणी तरंग द्वितीय’ में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शिव भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के दिव्य शिवलिंग की पूजा करने जाते थे!
प्राचीन ग्रंथ ‘बृंगेश संहिता’ में भी अमरनाथ यात्रा का उल्लेख है। इसके अलावा और भी कई स्पष्ट एवं स्वघोषित तथ्य हैं जिनसे प्रमाणित होता है कि बूटा मलिक की वर्ष 1850 की मिथ्या कथा से हजारों वर्ष पहले से इस देश के कोने-कोने से हिंदू अमरनाथ में दिव्य शिवलिंग के दर्शन करते रहे हैं। ‘बृंगेश संहिता’ में इस यात्रा के वर्तमान पड़ाव-अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), ममलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिनी (पंचतरणी) और अमरावती आदि का स्पष्ट उल्लेख है। ग्रंथों में अंकित ये तथ्य सिद्ध करते  हैं कि हमारे पुरखे हजारों वर्षों से अमरनाथ के दर्शन करते आ रहे हैं,
लेकिन प्रथम दर्शन किस व्यक्ति ने और कब किए, इसका रहस्योद्घाटन होना अभी बाकी है।    

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