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भारत के कई नगरों में आज भी पीढ़ियों से चले आ रहे कल-कारखाने हैं जिनमें कुशल कारीगर परंपरागत उत्पाद तैयार करते हैं। कुछ चीजें तो ऐसी हैं जो उन नगरों की पहचान बन चुकी हैं जहां ये तैयार होती हैं। उदाहरण के लिए, कबीर की काशी सिल्क साड़ी से पहचानी जाती है तो भदोही के कालीन अपनी मिसाल आप हैं। आगरा प्रसिद्ध है जूतों और पेठे के लिए तो अलीगढ़ के तालों का कोई सानी नहीं है। इसी तरह सूरत की पहचान होती है वहां गढ़े जाने वाले हीरों और वस्त्र उद्योग से, अमदाबाद की पहचान डेनिम से होती है, मुरादाबाद पीतल उद्योग के लिए जाना जाता है, तो पानीपत के कंबल, पर्दे, पायदान और पचरंगा अचार के चटकारों को कौन भुला सकता है।
देश की औद्योगिक तरक्की में इन उद्योगों का योगदान किसी मायने में कम नहीं आंका जा सकता। लेकिन साथ ही, चूंकि ये उद्योग पीढ़ियों से चले आ रहे हैं, कुछ में वक्त के साथ बदलाव भी आया है, नई मशीनें और तकनीक शामिल हुई हैं, लेकिन अब भी ऐसे कई क्षेत्र और कारीगर हैं जो तंगहाल हैं, कुछ तो प्रतियोगिता में उतरे कम गुणवत्ता वाले सस्ते माल से तो कहीं बुनियादी सहूूलियतों का अभाव है। संसाधनों के महंगे होते जाने से कई उद्योग तो बंद हो चुके हैं। इसलिए इस बार पाञ्चजन्य का यह विशेष अंक समर्पित है भारत की कुछ चुनिंदा औद्योगिक नगरियों और वहां के दुनिया में धाक जमा चुके उत्पादों को।
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