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प्रवीण सिन्हा
क्रिकेट में शीर्ष पर आने के बाद पिछले एक दशक से खेलों की दुनिया में भारत की सफलता का ग्राफ तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है। हॉकी, कुश्ती, कबड्डी या फिर मुक्केबाजी में समय-समय पर भारत एक ताकत के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहा है। इस कड़ी में बैडमिंटन का नाम सबसे आगे चल रहा है। वास्तव में विश्व बैडमिंटन जगत में भारत एक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आया है, जो भारतीय खिलाड़ियों की ऊंची उड़ान भरने की इच्छाशक्ति का परिणाम है। भारतीय बैडमिंटन की चर्चा होते ही आॅल इंग्लैंड चैंपियन प्रकाश पादुकोण और पुलेला गोपीचंद का नाम ध्यान आता था। लेकिन इन दोनों की सफलता के बीच करीबन दो दशक का फासला था। यही नहीं, उस दौरान प्रकाश पादुकोण और गोपीचंद के अलावा कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं आया जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई धमाका किया हो। लेकिन, पुलेला गोपीचंद का प्रशिक्षक के तौर पर नई पारी शुरू करना भारतीय बैडमिंटन के लिए एक वरदान साबित हुआ। महज 7-8 साल के अंतराल में भारतीय बैडमिंटन ने शिखर की ओर बढ़ती एक महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान कायम कर ली। गोपीचंद की प्रशिक्षु सायना नेहवाल और पी.वी. सिंधू ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन करते हुए महिला बैडमिंटन में न केवल चीन का वर्चस्व तोड़ा, बल्कि तमाम खिताब जीतते हुए वे शीर्षस्थ खिलाड़ियों में भी शामिल हो गईं। बहरहाल, सायना और सिंधू की सफलता के बीच भारतीय पुरुष खिलाड़ी भी गाहे-बगाहे अच्छा प्रदर्शन करते रहे, लेकिन उनकी चुनौती खिताब के आसपास आने से पहले ही समाप्त हो जाती थी। लेकिन पिछले दिनों किदाम्बी श्रीकांत और साईं प्रणीत की सफलता ने अचानक भारतीय बैडमिंटन को एक नई दिशा दे दी। हमारे पुरुष खिलाड़ी अब एक सशक्त दावेदार के रूप में अंतरराष्ट्रीय टूनार्मेंट में उतरने लगे हैंै। आंध्र प्रदेश के श्रीकांत के नेतृत्व में भारतीय पुरुष खिलाड़ियों ने लगातार तीन सुपर सीरीज खिताब जीत इतिहास रच दिया। यही नहीं, पिछले 5 अंतरराष्ट्रीय टूनार्मेंट में से चार खिताब भारतीय खिलाड़ी के नाम आए। यह अविश्वसनीय उपलब्धि है, क्योंकि चीन के अलावा कोई और देश इस तरह की सफलताएं हासिल नहीं कर पाया था। भारतीय खिलाड़ी चीन, कोरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया और डेनमार्क के धुरंधर खिलाड़ियों के बीच धूमकेतु के रूप में उभरे। उन्होंने साबित किया कि उनकी सफलता महज तुक्का नहीं है। भारतीय खिलाड़ियों के बेहतरीन कोर्ट कवरेज के साथ शानदार फोरहैंड व बैकहैंड शॉट और झन्नाटेदार स्मैश के दम पर विश्व के तमाम खिलाड़ी घुटने टेकते नजर आए। आक्रामक बैडमिंटन अब चंद खिलाड़ियों की बपौती नहीं रह गई है, भारतीय खिलाड़ियों ने उन खिलाड़ियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देकर लक्ष्य हासिल किया है। यह भारतीय पुरुष खिलाड़ियों की सफलता का ही परिणाम है कि श्रीकांत, साईं प्रणीत, पी. कश्यप और अजय जयराम सहित छह भारतीय पुरुष खिलाड़ी अभी विश्व के शीर्ष 30 खिलाड़ियों में शामिल हैं।
भारतीय बैडमिंटन इतिहास में एक साथ इतने खिलाड़ी कभी शीर्ष स्तर पर नहीं पहुंचे थे। आधुनिक बैडमिंटन में जो तकनीक, आक्रामकता, फिटनेस, ताकत, ऊर्जा और मानसिक दृढ़ता चाहिए, आज ये समस्त गुण भारतीय खिलाड़ियों में दिखते हंै।
श्रीकांत को आज अगर अपनी खूबियों व ताकत का आभास है तो उन्हें इस बात की भी पूरी जानकारी है कि लिन डैन या ली चोंग वेई की कमियां क्या हैं। टीम के सारे महिला-पुरुष खिलाड़ी बराबर आकलन करते हैं कि किस रणनीति के तहत मजबूत विपक्षी को मात दी जा सकती है। यही नहीं, पुलेला गोपीचंद ने भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों में विश्वास जगाया है कि अथक परिश्रम और अनुशासन के जरिये किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। हमारी बैडमिंटन की चीड़िया किसी भी ऊंचाई को हासिल कर सकती है।
सतत प्रयास व सुधार की जरूरत : गोपीचंद
अगर हम कहें कि भारतीय बैडमिंटन स्वर्णिम दौर से गुजर रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कहें कि इसका सारा श्रेय मुख्य राष्ट्रीय प्रशिक्षक पुलेला गोपीचंद को जाता है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गोपीचंद ने हैदराबाद स्थित अपनी अकादमी से कोई दर्जन भर ऐसे खिलाड़ी तैयार कर दिए हैं जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बनाने में सक्षम हैं।
इंडोनेशिया ओपन और आस्ट्रेलिया सुपर सीरीज जीतने वाले श्रीकांत को गोपीचंद ने जब अपनी अकादमी में प्रवेश दिया तो वह एक शरारती युवा था, अपने खेल के प्रति गंभीर नहीं था। लेकिन गोपी ने श्रीकांत की गैरपारंपरिक शैली और प्रतिभा को पहचानते हुए उसे एकल मुकाबलों के लिए तैयार किया। गोपीचंद ने बताया कि विश्व बैडमिंटन की नई सनसनी श्रीकांत की शैली ऐसी है जो किसी विरले ही खिलाड़ी के पास होती है। अपने अंतरराष्ट्रीय करिअर के दौरान गोपीचंद को कई बार चोट से गुजरना पड़ा जबकि उस समय खेल में सुधार लाने की उचित व्यवस्था भी नहीं थी। अंतत: प्रशिक्षक बनने पर उन्होंने सबसे पहला कदम एक व्यवस्थित प्रशिक्षण केन्द्र बनाने की ओर बढ़ाया।
उन्होंने कहा, ह्यह्यआज मुझे खुशी है कि भारत में एक बड़ा युवा वर्ग बैडमिंटन देखना व खेलना पसंद करता है। देश में जगह-जगह अकादमियां और प्रशिक्षण केन्द्र खोले जा रहे हैं।ह्णह्ण यही नहीं, जूनियर व सीनियर स्तर पर खिलाड़ियों को अब ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मुकाबले खेलने को मिलने लगे हैं। साथ ही, सरकार इस खेल को बढ़ावा देने का हरसंभव प्रयास कर रही है। सरकार का सकारात्मक रवैया काफी मायने रखता है।
भारतीय खिलाड़ियों ने बैडमिंटन की महाशक्ति चीन को बार-बार मात दी है, इस बाबत गोपी का मानना है कि उन्हें लंबी प्रक्रिया के दौर से गुजरना पड़ा। गोपी के पास जब सायना नेहवाल जैसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी आईं तो उन्होंने सायना को ज्यादा से ज्यादा सुपर सीरीज में उतारने का फैसला किया। साथ ही, अपने खिलाड़ियों को बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने और बेहतर तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया। पुरुष खिलाड़ियों में लंबी रैलियां खेलने की क्षमता विकसित करना, नेट पर शटल को बेहतर ढंग से संभालना, ड्रॉप शॉट लगाने के लिए सटीकता लाना और बैक कोर्ट से ताकतवर स्मैश लगाना, जैसी तमाम तकनीकों पर गोपी ने घंटों-घंटों मेहनत की और इससे खिलाड़ियों में एक विश्वास जगा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलताएं हासिल करना संभव है।
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