हिन्दू विरोध में अंधे
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

हिन्दू विरोध में अंधे

by
Jul 3, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 03 Jul 2017 22:11:56

 

जुनैद की हत्या हो या अखलाक की, इन सबमें कथित सेकुलर तत्व झूठी कहानियां गढ़ कर देश को भ्रमित कर रहे हैं। गुजरात दंगों के बाद भी इन लोगों ने यही किया था। समझौता एक्सप्रेस बम कांड के बाद भी झूठ का सहारा लेकर ‘हिंदू’ आतंकवाद का जुमला रोपा गया और पाकिस्तानी आतंकवादियों को नजरअंदाज किया गया

 ज्ञानेन्द्र बरतरिया

यह आक्रमण है। ठीक वैसा ही, जैसा कभी अरबों ने, तुर्कों ने, मुगलों ने और अंग्रेजों ने किया था। अंतर सिर्फ इतना है कि इस बार वे अपने दारुल हरब, अपनी सल्तनत, अपनी कॉलोनी के लिए विलाप कर रहे हैं। या अपने खोए हुए राज के लिए। बाकी सब वही है। अरबों, तुर्कों और मुगलों ने भारत के असंख्य मंदिर ढहाए, असंख्य लोगों की हत्या की, तमाम नगरों-कस्बों के नाम बदले और बेशुमार कन्वर्जन कराया। कन्वर्जन न करने वालों को मौत की सजा तक दी जाती थी, वह भी वीभत्सतम तरीकों से। इतिहासकारों का अनुमान है कि यह प्रक्रिया विश्व इतिहास का सबसे भीषण नरसंहार थी, जिसमें कम से कम 10 करोड़ लोग मारे गए होंगे। यह सब इतिहास है। विश्व की संभवत: एकमात्र ऐसी पहचान ‘हिन्दू’ है, जिसके नाम पर एक पर्वत भी है— हिन्दूकुश। माने जहां हिन्दुओं का नरसंहार किया गया था। और आज तक किसी वामपंथी-सेकुलरवादी इतिहासकार ने इस पर टिप्पणी नहीं की है। यह सब इतिहास है।
हत्याओं पर टिकी सेकुलर कुंठा
लेकिन इसे एक शब्द में किस प्रकार कहा जा सकता है? एक शब्द में, यह सत्ता प्राप्ति से भी शांत न हो सकने वाली वह हवस थी, जो सिर्फ हिन्दू प्रताड़ना से, हिन्दुओं को अपमानित करने से ही कुछ क्षण के लिए शांत हो पाती थी। इतिहास में यह भी दर्ज है कि यहां तक कि सबसे सेकुलर कहा जाने वाला मुगल सम्राट जलालुद्दीन अकबर भी उसी मानसिकता से ग्रस्त था और सिर्फ राजनीतिक कारण से सेकुलर नजर आने की कोशिश करता था। एक प्रकरण में अकबर ने जहांगीर को सलाह दी थी कि हिन्दुओं को देखकर कुंठा उसे भी होती है, लेकिन वह हिन्दुओं का कत्लेआम इसलिए नहीं कर रहा है, क्योंकि इन्हीं पर राज करना है, इन्हीं से कर वसूलना है।
समय बदला और समय के साथ इस कुंठा निवृत्ति के तरीके बदले। अंग्रेजों ने हिन्दुओं को प्रताड़ित और अपमानित करने के लिए उन्हें नीचा दिखाना शुरू किया। उनकी यह समझ आज तक पश्चिम में बरकरार है।
और जो लोग बड़े होकर अंग्रेजों जैसा दिखना चाहते हैं— उनके लिए शर्मिंदगी की यह स्थिति किसी वरदान की तरह होती है। आम बोलचाल में इन्हें भारत का वामपंथी, भारत का सेकुलरवादी, भारत का (खास किस्म का) बौद्धिक वर्ग आदि कहा जाता है। ये शेष भारतीयों से स्वयं को भिन्न, बल्कि पृथक जताने के लिए वर्ग गढ़ लेते हैं, और इस बहाने बुद्धिजीवी कहलाए जाने लगते हैं। ये अपनी पहचान हिन्दू के तौर पर नहीं, बल्कि अपनी इस वैचारिक दुर्गति के तौर पर जताते हैं। कुछ तो साधुओं जैसे नाम रख लेते हैं, कुछ अपनी वेशभूषा वैसी कर लेते हैं। उदाहरण के लिए एक धुर भारत विरोधी, हिन्दू विरोधी ने अपना नाम स्वामी एशियानंद रखा है। जाहिर तौर पर, इस शब्द का कोई अर्थ नहीं है, जाहिर तौर पर, अपना कुछ भी नाम रख लेना उस व्यक्ति का निजी अधिकार है। लेकिन इरादा और नीयत सिर्फ हिन्दुओं को और हिन्दुत्व को अपमानित करने की है। इनके जेबी एनजीओ को मिलने वाला विदेशी चंदा बंद या कम हो जाने से इनकी कुंठा और बढ़ गई है। किसी तर्क से इनका कोई संबंध नहीं है, और इसी कारण इनकी पहली शर्त होती है कि हमसे बहस न की जाए। बाकी काम ये अपनी शोर-शक्ति से कर लेते हैं।
हिन्दुओं को और हिन्दुत्व को अपमानित करने की पुरानी पड़ चुकी इन कोशिशों का एक उदाहरण है— नेहरूवादी अर्थव्यवस्था की दुर्गति को ‘हिन्दू विकास दर’ कहा गया। हिन्दू समाज में जो भी दोष  विकृति, वास्तविक या कल्पित रही हो, उसे ही हिन्दुओं की मुख्य पहचान के तौर पर प्रस्तुत किया गया। भारत को संपेरों का देश बताया गया। भारत वर्ष के मात्र दो क्षेत्रों में आंशिक और गैर-अनिवार्य तौर पर प्रचलित रही सती प्रथा को पूरे हिन्दू समाज के माथे पर मढ़ दिया गया। इन मैकॉले पुत्रों को पाला-पोसा मार्क्स पुत्रों ने और उनके ये दोनों अभिभावक सिरे से भारत विरोधी और हिन्दू विरोधी थे। हिन्दू देवी-देवताओं का, पूजा-पद्धति का, परम्पराओं का मजाक उड़ाना या उन्हें हास्यास्पद जताने के नाम पर सामान्य ज्ञान का हिस्सा बनाने की कोशिशें की गर्इं। विशुद्ध झूठ को ‘उदारवाद’ के बहाने बहस और प्रतिवाद से मुक्त रखने की कोशिश की गई।
धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम या ईसाई बन चुके हिन्दुओं के लिए इनके सुर में सुर मिलाना, वास्तव में अपने हीनता बोध को ढांपने का एक बड़ा जरिया है। इसके अलावा इसका एक भारी भरकम अर्थशास्त्र भी है। ये दोनों ही समुदाय अपने आपको भारतीय कम और अपने मजहब के उम्माह का हिस्सा ज्यादा मानते हैं। उसमें उन्हें कैथोलिक और शिया सख्त नापसंद हैं। सुन्नियों में भी सारे गैर-वहाबी नापसंद की श्रेणी में रखे जाते हैं।
‘हिन्दू फोबिया’ और आतंकवाद
जिहादी मजहबी हिन्दुओं के प्रति हिंसा को अपने विश्वास का हिस्सा मानते हैं। शेष हिन्दू विरोधी उनके लिए मीडिया में, राजनीति में, समाज में, धन संबंधी मामलों में, वैचारिक मामलों में एक सुरक्षा कवच बनाने की कोशिश करते हैं। जैसे, आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता। माने सारे पंथ बराबर हैं, और लिहाजा आतंकवाद तो सेकुलरवाद की खातिर जायज ही है। इसी कारण कश्मीर में, केरल में, पश्चिम बंगाल में और अन्यत्र आयोजित, प्रायोजित और व्यवस्थित हिंसा के लिए सारा ‘उदारवाद’ छूमंतर हो जाता है। भीड़ पीट-पीट कर किसी की हत्या कर दे, तो उस कृत्य की कम से कम कल्पना की जा सकती है। भीड़ राह चलती लड़कियों पर बार-बार आक्रमण करे, उन्हें परेशान करे, और उनके साथ बलात्कार भी हो, तो संभवत: उसकी भी कल्पना की जा सकती है। लेकिन भीड़ किसी की चाकू से गोद कर हत्या कर दे, तो यही सवाल कौंधने लगता है कि इसे भीड़ द्वारा की गई हत्या कैसे माना जाए? क्या हम यह मानें कि एक चाकू बार-बार, क्रम से, कई लोगों ने इस्तेमाल किया होगा। हालांकि इससे भी पहले सवाल यह है कि घटना में प्रयुक्त चाकू आया कहां से? जिन्हें इस घटना के संदर्भ में गिरफ्तार किया गया है, वे दिल्ली सरकार के कर्मचारी बताए गए हैं। क्या दिल्ली सरकार के कर्मचारी ईएमयू ट्रेन में चाकू लेकर सफर करते हैं?  फिर इन लोगों की संख्या कम से कम इतनी तो रही होगी कि उसे भीड़ कहा जा सके? ध्यान दीजिए, हरियाणा के फरीदाबाद के खंदावली गांव के रहने वाले जुनैद की ईएमयू ट्रेन में हुई हत्या के मामले में, चाकू शब्द का इस्तेमाल हुआ है, न कि चाकुओं शब्द का। इतना ही नहीं, पहचाने जा चुके गिने-चुने हमलावरों को भी तुरंत ‘भीड़’ की हैसियत से परिचय कराया गया। कहानी आगे भी है। नशे में धुत हमलावरों के साथ सीट को लेकर हुए विवाद को हाथों-हाथ गोमांस को लेकर हुए विवाद में बदल दिया गया। कैसे?
इंडियन एक्सप्रेस, बीबीसी, एक दो अंग्रेजी अखबार, एक दो ऐसे संपादक, जो टिटहरी सिन्ड्रोम के पुराने मरीज हैं और जिन्हें लगता है कि अगर उन्होंने सुबह-शाम मोदी के लिए दुर्वाद नहीं किया, तो आसमान गिर पड़ेगा, सभी के पास एक कथा पूरी तरह तैयार होती है। बस कोई भी, कहीं भी, कैसी भी हत्या हो, सेकुलरवाद की कहानी में फिट कर दी जाती है। तथ्य क्या है और क्या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। और फिर उस कहानी के नाम पर भारत को, हिन्दुओं को बदनाम करने, प्रताड़ित करने की मुहिम चल पड़ती है। ‘हिन्दू’ शब्द से घृणा इतनी अधिक कि मुख्यधारा में मानी जाने वाली एक पत्रिका भारत को ‘लिंचिस्तान’ लिखती है। सारी पट्टियों, बैनरों में हिन्दुस्थान के स्थान पर ‘लिंचिस्तान’ शब्द लिखा गया है। ऐसे भारी हीनता बोध के साथ कोई व्यक्ति कैसे जी सकता है, इसे भारत के वामपंथियों से सीखा जाना चाहिए। फिर भी, अपराध तो अपराध है, उसे उचित ठहराने की कोशिश भी अपराध ही मानी जानी चाहिए। लेकिन जो गिद्ध सिर्फ इस कारण हत्याओं की प्रतीक्षा करते हैं कि उसे उनकी कहानी में चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, क्या वे अपराधी नहीं हैं?
गौर कीजिए, कहानी और उसका ढांचा हमेशा एक जैसा होता है। सिर्फ स्थान, काल और व्यक्ति का नाम बदल जाता है। और इसके बाद पेशेवर रुदाली शुरू हो जाते हैं।
रुदाली हमेशा पेशेवर होते हैं। माने, उनके काम में बेहद नफासत होती है। इस नफासत के बूते वे बिल्कुल भावुक, बिल्कुल वास्तविक जैसे नजर आते हैं, और इस पेशेवर नफासत के अपने लाभांश होते हैं। चाहे वे आर्थिक लाभांश हों, राजनीतिक लाभांश हों या किसी और तरह के हों। हालांकि कुछ रुदाली प्रगतिशील भी होते हैं। प्रगतिशील माने वे, जो अभी आर्थिक, राजनीतिक लाभांशों की मंजिल प्राप्त न कर पाएं हों, बल्कि उस दिशा में प्रगति भर कर रहे हों। ऐसे प्रगतिशील रूदाली, प्रगति कर चुके रूदालियों को सम्माननीयता का चोला ओढ़ाने में चारे का काम करते हैं।
याद कीजिए गुजरात दंगों का प्रकरण। मीडिया ने, साठगांठ वाले पुलिस अफसरों ने, स्वयं को सेकुलर कहने वाले नेताओं के वर्ग ने, लगभग एक पीढ़ी यही साबित करने की कोशिशों में गंवा दी कि इन दंगों के लिए नरेन्द्र मोदी को किसी तरह जिम्मेदार ठहरा दिया जाए। यह अलग बात है कि सफेद झूठ किसी दरबार में नहीं चढ़ सका। लेकिन इसी के दूसरे पहलू पर गौर करें। क्या मीडिया ने, पुलिस अधिकारियों ने, सेकुलर नेताओं ने कभी यह बताया कि गुजरात को दंगों की आग में झोंकने वाले गोधरा कांड का कर्ताधर्ता कौन था? कारसेवकों को जिंदा जला देने के लिए 200 लीटर पेट्रोल कौन लेकर आया था, या जो भी लाया था, वह किस पार्टी से संबंधित था? जी हां, एक का नाम था फारुख भाना, जो कांग्रेस की गोधरा जिला इकाई का महामंत्री था। दूसरा एक मुख्य आरोपी सलीम अब्दुल गफ्फार था, जो पंचमहल की यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष था। क्या तब कभी, किसी ने भी, किसी भी रूप में इसकी आलोचना की थी?
माने हत्याओं पर टिकीं सेकुलरवाद की कहानियां, हत्याओं की प्रतीक्षा नहीं करतीं, मौका मिलने पर हत्या भी कर लेती हैं। तो इन दंगों में सिर्फ कांग्रेस के लोग शामिल थे, या खुद कांग्रेस भी शामिल मानी जाए? आगे देखते हैं।  
फारुख भाना, और सलीम अब्दुल गफ्फार को छोड़िए। आपने 1984 में हजारों लोगों का नरसंहार करने वालों का तो नाम सुना ही है। या शायद इन हजारों बेकसूरों को भी जेसिका लाल की तरह किसी ने नहीं मारा था? और गहरा तथ्य देखिए। 1984 के नरसंहार से जुड़े रहे प्रत्येक व्यक्ति को, उन्हें सजा से बचाने वाले प्रत्येक ‘माननीय’ को सत्ता ने किस तरह लगातार सिर आंखों पर बैठाए रखा। विवरण की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आरोपियों से लेकर उनके वकीलों तक, पलटने वाले गवाहों से लेकर उन वकीलों के अनुरूप फैसला देने वालों तक को कांग्रेस के राज में लगातार भारत सरकार का ‘दामाद’ बनाकर रखा गया। तब कहां गया था उदारवाद, जो अब एक सड़कछाप दुर्घटना को ताड़ बनाने की कोशिश कर रहा है?
वास्तव में इन कहानियों का राजनीति से बहुत गहरा संबंध है। गोधरा में इसके पहले सात बड़े दंगे हो चुके थे। लेकिन मुद्दा बना सिर्फ 2002 का दंगा। क्योंकि वह राजनीतिक तौर पर फायदे का सौदा था। उसके पहले जो भी कुछ हुआ था, वह कांग्रेस के राज में हुआ था, इसलिए सेकुलर था।
कैसे पैदा करें निरर्थक वितंडा
सड़कछाप दुर्घटना को व्यक्तियों की पहचान से जोड़ना, वह भी चुनिंदा ढंग से, विविधता में एकता की भावना को किस तरह कलुषित करती है, इसका न एहसास है, न इसके प्रति जिम्मेदारी की कोई भावना। हंगामे का आविष्कार करने वालों ने संविधान को पुन: प्राप्त करने का दावा किया है। बहुत कुछ वैसे ही जैसे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में कहा था कि मैंने संविधान पढ़ा है, इसमें कहीं नहीं लिखा है कि दिल्ली विधानसभा लोकपाल बिल नहीं पारित कर सकती। ‘लिंचिस्तान’ कहां है? कश्मीर में एक डीएसपी को पीट-पीट कर इस कारण मार डाला गया, क्योंकि उस मोहम्मद अयूब की नामपट्टिका में एम़ ए़ पंडित लिखा था। सेकुलर मीडिया ने सबसे पहला काम ‘पंडित’ शब्द को विकृत करने का किया। उसे अंग्रेजी में ‘फंडित’, ‘पंढिथ’ लिखा गया। और इसी के साथ ‘लिंचिस्तान’ की कथा पर गहरी चुप्पी साध ली गई। सेकुलर मीडिया ने अपना हीन-बोध छिपाने के लिए दो अन्य तर्क और तथ्य गढ़ लिए। एक यह कि यह कोई नई बात नहीं है, यह तो होता ही रहता है। और दूसरे यह कि इसके लिए भी मोदी सरकार जिम्मेदार है, लोग गुस्से में जो हैं।
हम एक भी बार उन असंख्य उदाहरणों को प्रस्तुत करना नहीं चाहते, जिनमें हिन्दुओं को निशाना बनाया गया और उस पर सारी कथित उदारवादी बिरादरी मुंह ढांपे सोती रही, या चोरी-छिपे जश्न मनाती रही। कारण यह कि इन घृणा प्रेरित लोगों से न तो उसकी अपेक्षा की जाती है, न इसकी कोई आवश्यकता ही है। घृणा से आतंकवाद, आतंकवाद से घृणा हिन्दुओं के प्रति यही घृणा भाव इस बिरादरी को आतंकवाद का नैसर्गिक मित्र बना डालता है। कांग्रेस इससे भी एक कदम आगे जाकर ‘हिन्दू’ आतंकवाद का आविष्कार कर चुकी है।
हिन्दू आतंकवाद का आविष्कार
‘हिन्दू’ आतंकवाद के आविष्कार पर पेटेंट अधिकार किसका है? कांग्रेस का या आईएसआई का या दोनों का?  मुंबई हमले में शामिल रहे आतंकवादी मोहम्मद कसाब का एक फोटोग्राफ बहुत प्रचलित हुआ था, जिसमें कसाब को अपने दाहिने हाथ में कलावा बांधे हुए आसानी से देखा जा सकता है। वैसे भारत में कलावा लगभग सभी सम्प्रदायों के लोगों के हाथों में बंधा देखा जा सकता है, लेकिन यह एक हिन्दू प्रतीक चिन्ह अवश्य है। निश्चित रूप से कसाब के आकाओं का इरादा यही था कि कसाब इस कांड को अंजाम देते हुए मारा जाए और फिर उसके हाथ में बने कलावे के आधार पर उसे हिन्दू करार दे दिया जाए। इससे कई वर्ष पहले दिल्ली में राजघाट पर एक आतंकवादी को उस समय के प्रधानमंत्री और राष्टÑपति पर हमले की घात लगाई हुई स्थिति में काबू किया गया था। उसने अपने साथ हनुमान चालीसा की एक प्रति रखी हुई थी। शायद इसलिए कि उसकी मृत्यु के बाद उसे हिन्दू करार दिया जा सके।
प्रश्न यहां यह है कि इन आतंकवादियों को इतना विश्वास क्यों था कि कांग्रेस के राज में भारत की सरकार और भारत की जांच एजेंसियां हल्के से बहाने पर भी उन्हें हिन्दू साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगी? जाहिर है बिना आग के धुआं नहीं निकलता। समझौता एक्सप्रेस विस्फोट कांड में गिरफ्तार किए गए लोग न केवल मुस्लिम थे, बल्कि पाकिस्तानी थे। यूपीए की सरकार ने उन्हें चोरी-छुपे वापस पाकिस्तान भेज दिया और यहां भारत में ‘हिन्दू’ आतंकवाद की एक नई कहानी प्रस्तुत कर
दी गई। एक ऐसी कहानी, जिसका न कोई सिर था, न पैर। उसी बेसिरपैर की कहानी पर जांच एजेंसियां डटी रहीं। उसी बेसिरपैर की कहानी पर निचले दर्जे की अदालतों ने भी पूरी भागीदारी निभाई और किसी अभियोग को सबूत-हीनता की स्थिति में भी ‘एंटरटेन’ किया गया। एक कहानी को आधार देने के लिए रची गई इस मेहनत का परिणाम यह है कि भारत न केवल आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में काफी समय के लिए कमजोर हो गया, बल्कि उसके चिर शत्रु पाकिस्तान को भी बकवास करने का एक मुद्दा मिल गया।
वास्तव में हिन्दुओं के प्रति घृणा का भाव ही इस राजनीतिक जमावड़े को हर हिन्दू विरोधी के नजदीक ले जाता है और यहां तक कि उन्हें आतंकवाद से सहकार करने की भी प्रेरणा दे देता है। एक सड़कछाप दुर्घटना को ‘लिंचिंग’ (बिना मुकदमे किसी को मार डालना) कहना, हिन्दुस्थान को ‘लिंचिंस्तान’ कहना, भोले-भाले हिन्दुओं को ‘आतंकवादी’ कहना – इन सारी बातों में परिस्थितिगत, उद्देश्यगत, क्रियात्मक और भावगत कोई भेद नहीं है। जैसा कि देश के कुछ शहरों और विदेश के कुछ शहरों में फोटो खिंचवाते समय लहराई गई पट्टियों से स्पष्ट होता है, अलग-अलग उद्देश्यों वाले और अलग-अलग विचारधाराओं के तमाम लोग सिर्फ हिन्दू विरोध की एक साझी लकीर पर एकत्रित हुए हैं। यह घटना देशभर के हिन्दुओं के लिए आंखें खोल देने वाला सबक होना चाहिए। उन्हें अपने शत्रुओं की पहचान अवश्य करनी चाहिए।
जब किसी घटना का विश्लेषण किया जाता है, तो उसके समय, उसकी परिस्थिति और उसके स्थान पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होता है। क्या यह माना जाए कि ट्रेन में घटी घटना का समय अपेक्षित लक्ष्य से भर इतना चूक गया कि इसके आधार पर अमेरिका के राष्टÑपति डोनाल्ड ट्रंप को भारत को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने का मौका नहीं मिल सका? फिर भी यह घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के विश्लेषण से देश का ध्यान बांटने में काफी हद तक सफल रही है। गौर कीजिए, प्रधानमंत्री उन तीन देशों की यात्रा करके लौटे हैं जिनमें से एक वर्तमान में महाशक्ति है और दो – नीदरलैंड्स और पुर्तगाल, अतीत में महाशक्ति रह चुके हैं। जाहिर है, प्रधानमंत्री के मन में कोई दीर्घकालिक योजना रही होगी। लेकिन यह बात भारत की जनता के ध्यान में आने से इस वितंडावाद के कारण चूक गई।
काल और परिस्थिति को देखा जाए, तो इस वितंडावाद ने विपक्ष को जीएसटी संबंधी विधायी कार्य का बहिष्कार करने का बहाना मुहैया करा दिया है। इतने छोटे राजनीतिक स्वार्थों के लिए पूरे देश को और हिन्दुओं को बदनाम करना सरासर द्रोह है।     ल्ल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies