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श्री श्री रविशंकर : हर चेहरे पर खुशी लाने का संकल्प

by
Jul 3, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Jul 2017 10:11:56

 

 

 

 

पहचान     :    मानवीय मूल्यवादी , शांतिदूत
संस्थापक     :    आर्ट आॅफ लिविंग
मुख्यालय    :    बंगलुरू , कर्नाटक
मूलमंत्र     :    वर्तमान में जियो, जो बीत गया उसे जाने दो

श्री श्री रविशंकर की पहचान किसी एक धर्म या संप्रदाय के गुरु के रूप में नहीं बल्कि मानवतावादी, शांतिदूत की है, जो जीवन को तनावों से दूर शांति से रहने की कला लोगों को सिखाते हैं। उन्होंने अपनी संस्था का नाम भी जीने की कला यानी आॅर्ट आॅफ लिविंग रखा है। धर्म, जाति, नस्ल, देश की दीवारों से ऊपर है आर्ट आॅफ लिविंग, जिसे दुनिया का कोई भी इनसान अपनाकर जीवन को सुखी बना सकता है।
आज आॅर्ट आॅफ लिविंग की शाखाएं देश-विदेश में चल रही हैं। सौम्य, शांत श्री श्री रविशंकर वेदोंं, पुराणों, धार्मिक कर्मकांडों से कोसों दूर हैं। उनके सत्संग भी आम धर्मगुरुओं से अलग हटकर हैं। उनके बहुत से अनुयायी उन्हें इसीलिए पसंद करते हैं कि उनका सत्संग उपदेशों से बोझिल नहीं होता। उनके सत्संग में मनचाहा करने की छूट है।
जो गाना चाहता है वह गाए, जो नाचना चाहता है वह नाचे। युवा पीढ़ी इसे ‘फन’ सत्संग कहती है। फन सत्संग में हिस्सा लेने वाली उनकी एक अनुयायी ने बताया कि फन सत्संग चरम है। इसमें बहुत सकारात्मक तरंगें होती हैं। ‘रिदमिक’ सत्संग तन-मन को ताजगी और ऊर्जा से भर देता है।
श्री श्री रविशंकर 13 मई, 1956 को तमिलनाडु में जन्मे। धर्मपरायण वेंकटरत्नम और उनकी पत्नी विशालाक्षी ने अपने पुत्र का नाम आदि शंकराचार्य के नाम पर रविशंकर रखा। रविशंकर बाल्यकाल से ही धर्म के प्रति गहरी रुचि रखते थे। चार-पांच साल की छोटी-सी आयु में उन्होने श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोकों का पाठ शुरू कर दिया था। ध्यान लगाना भी सीख लिया था। भौतिकशास्त्र में डिग्री लेने के बाद उन्होंने अध्यात्म  की राह पकड़ी। वे अपने अनुभव स्वयं बताते हैं, ‘‘एक बार 1982 में उन्होने कर्नाटक की भद्रा नदी के किनारे दस दिन का मौन रखा। इसी दौरान उन्हें सांस को लयबद्ध करने की ईश्वरीय प्रेरणा हुई। उन्होंने इसका अभ्यास किया और सुखद परिणाम सामने आए। अपने  अलौकिक अनुभव को उन्होंने मानव कल्याण के लिए प्रयोग करने का निर्णय लिया और आर्ट आॅफ लिविंग की स्थापना की। उन्होंने सांसों की लयबद्धता को एक सुंदर-सा नाम दिया— सुदर्शन क्रिया। यही आज उनकी पहचान बन गयी है।
सुदर्शन क्रिया की लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती चली गई। जो लोग इस क्रिया को करते हैं, उनके अनुभव बहुत अच्छे हैं। उनका कहना है कि यह प्राणायाम, योग और ध्यान का अनूठा संगम है। इसके चमत्कारिक प्रभाव हैं। इससे अंशात मन शांत होता है, तनाव दूर होता है और नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है।
श्री श्री का मूल मंत्र है-जो जीवन में बीत रहा है, घटित हो रहा है उसे होने दो, जीवन जिस रूप में आ रहा है, उसी रूप में स्वीकार कर लोगे तो कष्ट नहीं होगा। वे कहते हैं-आप जीवन के खुद मास्टर हो जाओ। किसी दूसरे की पसंद-नापसंद पर अपना जीवन मत चलाओ। वे लोगों को भूत या भविष्य में नहीं, जो पल चल रहा है, उसी में जीना सिखाते हैं। उनकी यही बातें उन्हें देश-विदेश में लोकप्रिय बनाती हैं। इस्लामी देशों में भी उनकी स्वीकार्यता है। जहां हिसा है, नस्लीय और जातीय टकराव हैं, प्राकृतिक आपदाएं हैं, श्री श्री रविशंकर वहां जाकर शांति का प्रयास करते हैं। लोगों का तनाव और दुख दूर करके जीने की नयी राह दिखाते हैं। न्यूयॉर्क में हुए 26/ 9 के आतंकी हमले के बाद उन्होंने अपने सत्संग के जरिए लोगों के अशांत मन को शांत किया। कोसोवो में युद्ध से प्रभावित इलाकों में शिविर लगाए। इराक का दौरा किया, शिया-सुन्नी नेताओं और कुर्द समाज के नेताओं से मिले। सुनामी के बाद उन्होंने व्यापक स्तर पर राहत कार्य चलाए।
बंगलुरू में विशाल क्षेत्र में फैले उनके आश्रम में आध्यात्मिक गतिविधियों के अलावा अनेक कार्य किए जा रहे हैं। वेद विज्ञान विद्यापीठ, श्रीश्री सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज, श्रीश्री कॉलेज आॅफ आयुर्वेटिक साइंस ऐंड रिसर्च, श्रीश्री मोबाइल एग्रीकल्चर इनिशिएटिव और श्रीश्री रूरल डेवलपमेंट ट्रस्ट।
श्री श्री को उनकी सेवाओं के लिए देश-विदेश में सम्मानित किया गया है। उनके शिष्यों में समाज का उच्च और शिक्षित वर्ग ज्यादा है। जो उनसे जुड़ता है, वह समाज सेवा से भी जुड़ ही जाता है। उन्हें जानने वाले कहते हैं कि श्री श्री में दैवीय शक्ति है जो उन्हें महान् बनाती है, आध्यात्मिक बनाती है। उनके पास हर समस्या का समाधान है।
वे जीवन की जटिल से जटिल समस्या का सहज ही निराकरण कर
देते हैं ।     ल्ल

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