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इस्रायल वह देश है जो अपने स्वाभिमान के बूते आज एक मिसाल बन गया है। दुनिया में यहूदियों पर अमानुषिक जुल्म हुए पर उन्होंने हर बार संघर्ष कर अपने को पहले से ज्यादा मजबूती के साथ खड़ा किया। इस्रायल के साथ भारत के रिश्तों की जड़ें काफी गहरी हैं, जिन्हें सींचकर और पुख्ता करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस्रायल जाने वाले हैं
प्रशांत बाजपेई
मैंंरे मित्र! आपकी ऐतिहासिक यात्रा का इस्रायल के लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।’’ इस्रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का यह बयान तब आया था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस्रायल यात्रा की तिथि घोषित हुई थी। यह मोदी की दूसरी और भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर यह पहली इस्रायल यात्रा होगी। नेतन्याहू का यह बयान सावधानी से चुना और करीने से सजाया गया कूटनीतिक शब्द जाल नहीं है। गहरा इतिहास बोध रखने वाले इस्रायलियों को बखूबी याद है कि जब दो हजार साल तक सारी दुनिया में यहूदियों को मजहब के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहा, तब केवल भारत का हिंदू समाज ही था जिसने उन्हें सीने से सटाकर रखा था। आजादी के बाद भले ही गुटनिरपेक्षता की धुंध और देसी वोट बैंक की राजनीति के चलते, दिल्ली की सरकारों ने इस रिश्ते को स्वीकारने में हिचक बनाए रखी, लेकिन इस्रायल ने दिल्ली की इस उपेक्षा के बावजूद भारत के साथ गर्मजोशी में कभी कमी नहीं रखी और इसमें आड़े वक्त में हमेशा भारत का साथ दिया।
1971 के युद्ध में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के भारत द्वेष को दरकिनार कर भारत को आवश्यक शस्त्र दिए, तो 1998 में पोकरण के बाद लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बीच भारत की तकनीकी सहायता जारी रखी। कारगिल युद्ध के समय जब क्लिंटन प्रशासन ने ठेंगा दिखाया तो इस्रायल ने अपने जासूस उपग्रहों की सहायता से भारत को दुर्गम मोर्चों पर घात लगाए बैठे पाकिस्तानियों की जानकारी मुहैया कराई। कूटनीतिक मंचों पर भी यह सहयोग चलता रहा। दरअसल यह समय की कठिन कसौटी पर कसी गई मित्रता है। अपने इस मित्र के बारे में जानने और उससे सीखने के लिए उस समाज में थोड़ा गहरे झांकने की जरूरत है।
शून्य से रचा गया संसार
इस्रायल के गठन के दो साल बाद 1950 में देश का पहला आर्थिक प्रतिनिधिमंडल दक्षिण-अमेरिका गया। नवनिर्मित संसाधन विहीन इस्रायल को तब व्यापारिक साझेदारों की गंभीर आवश्यकता थी। उनके खून के प्यासे हो रहे अरब पड़ोसियों की तरह यहूदियों के पास न तो विपुल तेल संसाधन था, न ही अमेरिका की तरह उद्योग थे। खेती की हालत भी बहुत खराब थी। दक्षिण अमेरिका में उनकी कई बैठकें हुईं। उन्होंने पाया कि वे प्राय: हंसी के पात्र थे। उनके पास बेचने के लिए खजूर, संतरे, केरोसिन स्टोव के पुर्जे और नकली दांत जैसी चंद चीजें थीं जिनका वहां कोई खरीदार न था। लेकिन अपने परिश्रम और प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध यहूदियों ने जल्दी ही दुनिया को चौंकाना शुरू कर दिया। आज 67 साल बाद वे दुनिया में धूम मचा रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में इस्रायल दुनिया के शीर्ष देशों में है। वैश्विक मानकों के अनुसार उसकी अर्थव्यवस्था तकनीकी रूप से उन्नत है। औद्योगिक निर्माण, उच्च तकनीकी विकास और आईटी क्षेत्र उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जबकि प्राकृतिक संसाधन अल्प हैं। पेट्रोलियम, कच्चा माल, गेहूं, वाहन निर्माण आदि के लिए इसे आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। उच्च शिक्षा और श्रमिकों की फौज ने इस्रायल की अर्थव्यवस्था को गति दी है। अपनी क्षमताओं के दम पर इस्रायल की कंपनियों ने दुनिया भर में आर्थिक गठजोड़ किये हैं। इसकी अपनी सिलिकॉन वैली है। बिल गेट्स, वॉरेन बफेट और डोनाल्ड ट्रंप यहां के निवेशकों में है। यूरोपीय संघ, अमेरिका समेत अनेक देशों के साथ उसका मुक्त व्यापार समझौता है। दक्षिण-अमेरिकी देशों के साथ भी अच्छा व्यापार चल रहा है। 83 लाख की आबादी वाले इस छोटे से देश में हर साल 35 लाख पर्यटक आते हैं।
सबसे बड़ा निवेश
विज्ञान और तकनीक इस्रायल का सर्वाधिक विकसित क्षेत्र है, क्योंकि यहां जीडीपी का 4.2 प्रतिशत नागरिक शोध और विकास पर खर्च होता है, जो दुनिया में सर्वाधिक है। इस्रायल की जनसंख्या दुनिया की जनसंख्या का 0.1 प्रतिशत है, लेकिन वैज्ञानिक लेखों के प्रकाशन में यह दुनिया के प्रकाशन का 0.9 प्रतिशत साझा करता है। प्रति 10,000 नौकरीपेशा व्यक्तियों में 140 वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ हैं जो कि दुनिया में सर्वाधिक है। यह अनुपात अमेरिका में 10,000 पर 85 और जापान में 10,000 में 83 है। प्रति 10 लाख नागरिकों पर 8,337 शोध करने वाले हैं, अमेरिका और जापान में यह संख्या क्रमश: 3,984 और 5,195 है। भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, रोबोटिक्स, स्वास्थ, दवा, आॅप्टिक्स, बायोटेक्नोलॉजी, कंप्यूटर हार्डवेयर, कंप्यूटर और मोबाइल सॉफ्टवेयर, रक्षा उत्पादन, परंपरागत ऊर्जा, सौर-ऊर्जा, जल-संरक्षण—सभी क्षेत्रों में इस्रायली तकनीक अपना कमाल दिखा रही है।
रेतीली जमीन पर चमत्कार
इस्रायल में कृषि अति विकसित उद्योग है। जिस देश का 50 प्रतिशत हिस्सा रेगिस्तान हो, जहां पानी एक दुर्लभ संसाधन है, थोड़ी-सी कृषियोग्य भूमि है, वह इस्रायल अपनी जरूरत का 95 प्रतिशत खाद्यान्न स्वयं उत्पन्न करता है। वह कृषि उत्पादों का बड़ा निर्यातक है और कृषि तकनीक में विश्व का नेतृत्व करता है। इस्रायल के निर्यात का 3.6 प्रतिशत कृषि उत्पाद है। यह हर साल 100 मिलियन डॉलर से की कपास निर्यात करता है। प्रति हेक्टेयर 5 टन कपास उत्पादन का विश्व रिकॉर्ड इस्रायल के नाम है। वह फलों और फूलों का बड़ा निर्यातक है। पानी की कमी को ड्रिप सिंचाई से पूरा किया गया है। प्रति गाय दुग्ध उत्पादन में यह देश विश्व में शीर्ष पर है, जो कि लगभग 10,000 लीटर प्रतिवर्ष है। विशेष बात यह है कि इस्रायल की अधिकांश कृषि सहकारी व्यवस्था के अंतर्गत आती है। इस सामुदायिक कृषि व्यवस्था में खेत सारे समुदाय का होता है और प्रत्येक व्यक्ति अपना अधिकतम योगदान देता है।
प्रतिरक्षा का तकनीकी दुर्ग
1985 से इस्रायल विश्व के सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में शामिल है। आज वह सालाना 6.5 बिलियन डॉलर के शस्त्र बेचता है। दुनिया में 60 प्रतिशत ड्रोन इस्रायल निर्मित होते हैं। इसके खरीदारों में रूस, फ्रांस, जर्मनी, आॅस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और ब्राजील शामिल हैं। इस्रायल में होने वाले शोधों में से 30 प्रतिशत रक्षा क्षेत्रों में होते हैं। पास-पड़ोस की परिस्थितियों और एक के बाद एक लड़े गए युद्धों ने इस्रायल के इस उद्योग को शीर्ष पर पहुंचा दिया। इस क्षेत्र में इस्रायल ने नित नए प्रतिमान गढ़े हैं। वह दुनिया का पहला देश है जिसने सीमाओं की रक्षा के लिए रोबोट बॉर्डर पेट्रोल का उपयोग किया है। मानव रहित यह रोबोट वाहनों में सेंसर, कैमरा और हथियार तैनात होते हैं, जिनका संचालन दूर बैठकर किया जाता है। 1988 में ही इस्रायल ने अपना पहला जासूसी उपग्रह प्रक्षेपित कर दिया था। आज उसके पास जासूसी करने वाले उपग्रहों का पूरा बेड़ा है। इस्रायल ने 250-300 किलो के उपग्रह बनाए जिनके कैमरे सैकड़ों मील दूर से 20 इंच की वस्तु को भी पहचान सकते हैं। 1969 में इस्रायल के सुरक्षा बलों ने खिलौना हवाई जहाजों पर कैमरे लगा कर स्वेज नहर की जासूसी की थी। आज उनके पास 24 घंटे लगातार उड़ने वाला और 1 टन पे-लोड ले जाने वाला ड्रोन है। 1986 में इस्रायल ने अमेरिका को पहला ड्रोन बेचा था। खाड़ी युद्ध में ईराकी सैनिकों ने इस्रायली ड्रोन को देख कर उसके कैमरे के आगे सफेद कपड़े लहराकर आत्मसमर्पण किया था।
इस्रायल के मरकावा टैंक दुनिया के सबसे घातक और सुरक्षित टैंक कहे जाते हैं। 1970 में जब ब्रिटेन और दूसरे देशों ने उसे टैंक बेचने से मना कर दिया तो उसने अपना टैंक उत्पादन शुरू करने का निश्चय किया। इन टैंकों पर मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर देने वाला तंत्र भी लगा है। इसमें लगा रडार टैंक के अन्दर बैठे सैनिकों तक दुश्मन की जानकारी भी पहुंचाता है।
इस्रायल का सबसे चर्चित प्रतिरक्षा तंत्र है आयरन डोम। यह पास से दागे गए (4 कि.मी. से 70 कि.मी. तक से) रॉकेट और गोलों को आबादी पर गिरने के पहले ही नष्ट कर देता है। 680 जहाजों के साथ इस्रायल की वायु सेना दुनिया की शीर्ष तीन-चार वायु सेनाओं में गिनी जाती है। उसके लड़ाकू विमान चालकों की कुशलता के लिए ‘अलौकिक’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसी योग्यता के बल पर इस्रायली लड़ाकू पायलटों ने सिक्स-डे वॉर में अपने से कई गुना बड़े दुश्मन के 400 से अधिक विमान नष्ट कर दिए थे।
मोसाद: किस्मत के पासे के खिलाफ
द्वितीय विश्वयुुद्ध के दौरान हिटलर की नाजी पार्टी के नेताओं और कुख्यात एस.एस. ने बड़े पैमाने पर लाखों निरपराध यहूदियों का कत्लेआम किया, हजारों को भीषण यातनाएं दी गईं। इनमें महिलाएं, बच्चे और बूढ़े भी शामिल थे। जर्मनी की पराजय के बाद युद्ध की अफरातफरी का फायदा उठाकर बहुत से नाजी हत्यारे और एस.एस. के लोग दुनिया के अलग-अलग कोनों में जा छुपे। धरती के अलग-अलग हिस्सों में जा कर उन्हें ढूंढने और मारने के लिए गठित गुप्तचर दल में से इस्रायल की विख्यात खुफिया संस्था मोसाद का जन्म हुआ। 1972 के म्युनिख ओलंपिक में फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन ब्लैक सैप्टेम्बर ने इस्रायली खिलाड़ियों के एक दल को बंधक बना लिया और बाद में 6 कोच और 5 खिलाड़ियों की हत्या कर दी। सारा देश सदमे में था। ब्लैक सैप्टेम्बर के आतंकी इस कृत्य को अंजाम देने के बाद नाम बदलकर दुनिया के अलग-अलग देशों में जा छुपे। घटना के दो दिन बाद इस्रायल ने पीएलओ के सीरिया और लेबनान स्थित दस ठिकानों पर भारी बमबारी की। इसके बाद इस्रायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने एक कमेटी बनाई जिसका नाम था एक्स। इस कमेटी ने तय किया कि दुश्मन को मुंह-तोड़ जवाब दिया जाना जरूरी है। इसके बाद मोसाद ने आॅपरेशन ‘रैथ आॅफ गॉड’ शुरू किया और आने वाले सालों में म्युनिख हत्याकांड के लिए जिम्मेदार ब्लैक सैप्टेम्बर के करीब दो दर्जन लोगों भी ढूंढकर मौत के घाट उतार दिया। इसीलिए मोसाद के लिए कहा जाता है कि वे रेगिस्तान में भी सुई ढूंढ सकते हैं। मोसाद के कामों में शामिल है इस्रायल की सीमाओं के बाहर खुफिया अभियान चलाना और विशेष कार्रवाई करना और दुनिया भर में मुसीबत में फंसे यहूदियों को घर लाना। मोसाद के एजेंटों के प्रशिक्षण के बारे में एक अधिकारी ने बताया-‘‘हम उनकी सुरक्षा के लिए सब कुछ करते हैं, हम उन्हें दुनिया की किसी भी खुफिया एजेंसी की तुलना में बेहतर प्रशिक्षण देते हैं।’’
‘अटैक अटैक अटैक’
यही है वह पहला पाठ जो इस्रायल में किसी युवा सैन्य अधिकारी को प्रशिक्षण के पहले दिन सिखाया जाता है। 2017 सिक्स डे वॉर की स्वर्ण जयंती है। जब इस्रायल ने उस पर हमला करने वाली कई गुना बड़ी बहुराष्ट्रीय अरब सेना (मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, ईराक और लेबनान) को 6 दिन में ही धूल चटा दी थी, और जब युद्ध समाप्त हुआ तो इस्रायल का क्षेत्रफल तीन गुना बढ़ चुका था। इस्रायल में सभी नागरिकों के लिए 18 वर्ष की उम्र में नेशनल मिलिट्री सर्विस में जाना अनिवार्य है, केवल अरब मूल के इस्रायली नागरिकों के लिए यह स्वैच्छिक है। साथ ही अतिरूढ़िवादी यहूदी समुदायों को भी अनिवार्यता के दायरे से बाहर रखा गया है। बाद में दूसरे व्यवसाय चुनने की आजादी है। इसीलिए आज इस्रायल के पास आवश्यकता पड़ने पर सैन्य सेवा के लिए 15.5 लाख पुरुष और लगभग 15 लाख महिलाएं उपलब्ध हैं।
रक्त-आंसू और स्वेद में डूबे दो हजार साल
यहूदियों को दुनिया के हर हिस्से में सताया गया। रोमन साम्राज्य ने उन्हें उनकी धरती इस्रायल में ही उत्पीड़ित किया। व्यापारी के रूप में यहूदी पश्चिम एशिया और यूरोप में दूर-दूर तक गए और वहां के नागरिक बन गए। अरब जगत में उन्हें इस्लाम का दुश्मन और यूरोप में ईसाइयों का दुश्मन बताकर प्रताड़ित किया जाता रहा, और 2000 साल के इतिहास में पश्चिम-एशिया और यूरोप में यहूदियों के विरुद्ध हजारों हमले और हत्याकांड हुए। यहां तक कि मध्य एशिया, रूस और उत्तरी अफ्रीका में भी उन्हें बक्शा गया। अरब जगत में उन्हें दूसरी श्रेणी का नागरिक अथवा 'धिम्मी' कहा जाता था, और जजिया वसूला जाता था। यूरोप में भी हिटलर और नाजियों से सैकड़ों साल पूर्व से यहूदियों के विरुद्ध घृणा उबलती रही। हजार साल तक ईसाई और मुस्लिम जगत के बीच में लड़े गए खूनी क्रूसेडों में भी दोनों पक्षों ने बड़े पैमाने पर यहूदियों का नरसंहार किया। यहां तक कि जब सारे यूरोप में प्लेग से लोग मर रहे थे, उस वक्त भी यहूदियों को प्लेग का जिम्मेदार बताकर उनकी सैकड़ों बस्तियों को जला दिया गया। इसी की चरम परिणिति हिटलर के ‘फाइनल सॉल्यूशन’ के रूप में हुई जिसके अंतर्गत 60 लाख यहूदियों को औद्योगिक स्तर पर मौत के घाट उतार दिया गया। इस बीच जब यहूदी नाजियों से जान बचाकर भाग रहे थे तब अरब जगत में कुछ महत्वपूर्ण जगहों पर भागते यहूदियों के रास्तों को अवरुद्ध करने की मंत्रणा हो रही थी। लेकिन वे मिटे नही। इस रक्तरंजित इतिहास ने उन्हें कतलीफों को सहन करने की क्षमता और योद्धा मन दिया है और इसीलिए, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, जिस दिन से उन्हें अपने पुरखों की जमीन, इस्रायल वापस मिली तब से उन्होंने इसे अपनी सांसों से ज्यादा मूल्यवान बनाकर रखा है।
जिंदा कौम
इन प्रतिकूलताओं ने उनके कदम कभी नहीं रोके। इसका प्रमाण है यहूदियों द्वारा जीते गए नोवल पुरस्कारों की सूची। उन्होंने रसायन शास्त्र में 35, भौतिक शास्त्र में 52, मेडिसिन में 53, अर्थशास्त्र में 28, साहित्य में 15 नोवल पुरस्कार जीते हैं। पौराणिक ग्रीक पक्षी फीनिक्स की तरह वे बार-बार राख में से उठ खड़े होते हैं। विपरीत परिस्थितियों के बीच वे फल-फूल रहे हैं। इस प्राचीन राष्ट्र की कहानी को एक शब्द में कहना हो तो वह शब्द है— जिजीविषा। यह उम्मीद जगाने वाली कहानी है। प्रधानमंत्री मोदी की इस्रायल यात्रा पुराने संबंधों की कसक और भविष्य की आशा संजोए है। यह एक पुराने मित्र को गले लगाने और नया अध्याय रचने का अवसर है।
(अगले अंक में जारी)
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