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बाली में जहां हिन्दुओं की एक बड़ी आबादी है वहीं उनके धार्मिक अनुष्ठान अत्यंत कायदे से पूर्ण किए जाते हैं। वे अपने पहनावे को महत्व देते हैं और धोती- टोपी पहनकर ही मंदिर जाते हैं
श्याम परांडे
हिमालयी संस्थान, देहरादून के स्वामी वेद भारती को करीब एक दशक पहले वैदिक विज्ञान पढ़ाने के लिए बाली आमंत्रित किया गया था। वे बाली गए और वहां पढ़ाया भी। वापस लौटने पर अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने लिखा, ‘‘मुझे वेदों और वैदिक उपदेशों का सार पढ़ाने के लिए बाली बुलाया गया था। पर वहां से लौटते समय मैं एक निराभिमानी आत्मबोध से भरा था कि बाली के लोगों को ज्ञान देने के बजाय मुझे स्वयं उनसे सीखने की जरूरत है।’’ स्वामी वेद भारती का यह लेख मेरे एक मित्र ने मुझे भेजा था और बाली की यात्रा के दौरान इसे पढ़ने पर मुझे बाली में हिंदू धर्म, संस्कृति और समाज को समझने में बहुत मदद मिली। अंतरराष्टÑीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मैंने दो बार बाली का दौरा किया है और महसूस किया है कि बाली की सही तस्वीर पर्यटकों की नजरों से नहीं, स्वामी वेद भारती के शब्दों से उभरती है, जिन्होने वहां के स्थानीय हिंदू समाज और संस्कृति को गहराई से देखा है।
मैंने बाली, पूर्वी जावा, सुमात्रा, पश्चिमी जावा और जकार्ता की यात्रा की है, जो 13,500 द्वीपों वाले देश इंडोनेशिया का हिस्सा हैं। ये द्वीप भारतीय हिंदुओं के लिए एक मिसाल हैं, बशर्ते हम उदार मन से यहां की संस्कृति को समझने का प्रयास करें। हो सकता है, कुछ मुद्दों पर भारतीय हिंदुओं की भावनाएं अलग हों, कुछ मुद्दे आलोचना के पात्र हों, पर कई बातें हैं जो हम उनसे सीख सकते हैं। दो कारक ऐसे हैं जो सबसे ज्यादा गौर करने लायक हैं। इस अंतर्दृष्टि का सबसे अहम बिंदु यह है कि एक मुस्लिम देश का हिस्सा होने के बावजूद बाली की संस्कृति अक्षुण्ण है और यह विश्व का दूसरा सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थल है जो खासकर पश्चिमी देशों और आॅस्ट्रेलिया के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। देखा जाए तो ये दोनों ही कारक नुकसान भी पहुंचा सकते थे।
चुनौती दोतरफा रही है, फिर भी उन्होंने अपनी परंपरा को संरक्षित रखा है। बाली के हिंदू समाज ने एक तरफ पर्यटकों का भरपूर स्वागत किया है तो वहीं पश्चिमी जीवन के प्रभाव से नि:स्पृह रहते हुए अपनी संस्कृति के संबंध में कभी समझौता नहीं किया, इसके विपरीत पश्चिम को ही हिंदू परंपरा से प्रभावित करते रहे। बाली का इतिहास विभिन्न आक्रमणकारियों से द्वीप की रक्षा के लिए दिखाई गई बहादुरी और साहस की गाथा से भरा है।
बाली समाज का पहला आकर्षण है प्रकृति की अलौकिक शांति में नहाया बालीवासियों का सौंदर्यबोध। हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से समृद्ध इस जगह की हर विशेषता मन मोह लेती है चाहे यहां की वास्तुकला हो, कला या संगीत-नृत्य प्रदर्शन, सजावट या आकर्षक फूलदान, स्वादिष्ट भोजन या उनकी रंगबिरंगी लुभावनी पोशाक। अपनी बाली यात्रा के दौरान मैंने यहां के जीवन के हर पहलू में कलात्मकता देखी है। यही वजह है कि मैं इसका सबसे बड़ा प्रशंसक बन गया हूं।
बाली को अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व है और वे खुद को वैदिक विरासत का हिस्सा मानते हैंं। वहां सभी विद्यालयों में मार्कंडेय, भारद्वाज, अगस्त्य जैसे वैदिक काल के ऋषियों के बारे में पढ़ाया जाता है। मेरे जैसे लोगों को यह समझने में बहुत मंथन करना पड़ता है कि बाली के हिंदू छात्र पुराणों में उल्लिखित नामों और उनकी उपलब्धियों को दंतकथाओं या पौराणिक कथाओं के रूप में देखने की बजाय उसे इतिहास के तौर पर कैसे ग्रहण करते हैं। वहां का प्रत्येक नागरिक अपनी हिंदू के साथ ही बालीवासी और इंडोनेशियाई पहचान पर गर्व करता है। कैसी विडंबना है कि भारत के वेद-वेदांत की अद्भुत परंपरा का हिस्सा होने के बावजूद देश की व्यवस्था के कारण इस अमूल्य निधि से यहां के युवा वंचित हैं। भारत में मेरे जैसे कई हिंदुओं को निश्चित रूप से ऐसी कई चीजें आत्मनिरीक्षण के लिए उद्वेलित करती होंगी।
बाली में सरकारी बैठकों के अलावा जहां भी हमारी मुलाकात स्थानीय लोगों से हुई, हमने आमतौर पर उन्हें पारंपरिक धोती और खूबसूरत बाली टोपी में देखा। वहां पारंपरिक पोशाक पहने बिना मंदिर में प्रवेश निषिद्ध है और सभी लौकिक परंपराओं का पालन पूरी निष्ठा के साथ किया जाता है। बाली हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति उसी को मिलती है जिसने धोती और बाली टोपी पहनी हो जो सादी पर सुंदर होती है। मंदिरों के सभी अनुष्ठानों का विस्तार से पालन किया जाता है जिसमें काफी समय लगता है, पर लोग पूरी निष्ठा और धीरज के साथ उसमें भाग लेते हैं। पूजा विधानों को छोटा करना या उन्हें हड़बड़ी में संपन्न करना निषिद्ध है, जबकि हम अपने देश में पूजा के समय को मनमाने ढंग से निर्धारित करने लगे हैं। बाली में पूजा के दौरान कोई अधीर नहीं होता कि कितनी देर और चलेगी पूजा। आधुनिक कहलाने की होड़ में भारत का हिंदू समाज कई बहुमूल्य परंपराओं का त्याग करता जा रहा है। बाली की यात्रा करने वाले हर भारतीय को महसूस होता है कि बाली हिंदू धर्म की प्रमुख विशेषताओं को समझने की कोशिश करता है।
हमने बाली में चंद विश्वविद्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, गांवों और पुरों (मंदिरों) का दौरा किया, जो वहां के सामाजिक और सांस्कृतिक जनजीवन की उत्कृष्ट झलक पेश करते हैं। अमलापुरा के सेकोल तांगजी केगुरुअन दान इलमु का दौरा एक शानदार अनुभव था जहां हमने भारत और बाली के हिंदू समाजों के एक साथ मिलने से होने वाले फायदों पर चर्चा की। हमें इस संस्थान में लोंटार लेखन की कला दिखाई गई। वहां मां सरस्वती और श्री गणपति की भव्य प्रतिमाएं विराजमान थीं। हरी-भरी पहाड़ी पर बसे इस कॉलेज का दृश्य बेहद मनमोहक था। यह संस्थान हिंदू धर्म और संबंधित शास्त्रों की शिक्षा प्रदान करता है। छात्रों और संकाय के साथ संवाद बहुत दिलचस्प रहा। छात्र समुदाय में उच्चतर अध्ययन का उत्साह साफ नजर आ रहा था और हमें दिख रहा था कि भारतीय संस्थान किस तरह उनकी मदद कर सकते हैं। हालांकि, कुछ छात्रों ने हिंदू धर्म या दर्शन के अध्ययन के बाद रोजगार के अवसरों के बारे में चिंता व्यक्त की, जो स्वाभाविक भी है क्योंकि इन पाठ्यक्रमों को अंतत: आजीविका के अवसर तो तैयार करने ही होंगे। दुविधा की यह स्थिति छात्रों को अन्य संकायों का चयन करने के लिए बाध्य कर सकती है।
हम अमलापुरा गांव पहुंचे जहां पारंपरिक नृत्य और संगीत प्रस्तुत किया गया। हम छोटे शहरों और गांवों में परंपरा के संरक्षण के महत्व को समझ सकते थे। यह बैठक देसा बिनान (हिंदू समुदाय) के देसा दुकूह करांगासेम ने आयोजित की थी। यहां गांव या शहर पंचायत को बंजार कहते हैं जो गांव के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सिंगराजा सेकोलाह टिंगजी (हिंदू स्कूल) पहुंचने पर हम अभिभूत हो उठे। यहां समुदाय, संकाय और विद्यार्थियों ने काफी सकारात्मक रुख दिखाया और लोग हमारा व्याख्यान सुनने के लिए बड़ी संख्या में उपस्थित हुए। हमें बाली की स्थानीय पोशाक से सम्मानित किया गया और सेकोलाह के दौरे के बाद हमें मंदिर में प्रवेश करने का अवसर मिला।
1989 में सिंगराजा में एक विशाल जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ था। हमने उसी मंदिर में एक विस्तृत अनुष्ठान में भाग लिया जो भारत में झटपट होने वाली पूजा से अलग अनुभव था। उत्कृष्ट वास्तुशिल्प के प्रतीक इस विशाल मंदिर के निर्माण में शहर के सभी परिवारों ने योगदान किया है। सामर्थ्य अनुसार श्रमदान के अलावा हर परिवार ने मंदिर में एक या एक से अधिक शिलाएं भी भेंट की हैं। समुदाय के जिस महत्वपूर्ण पहलू ने सबसे ज्यादा हमारा ध्यान आकर्षित किया, वह थी महिलाओं को दी गई खास प्रमुखता जो उनकी उपस्थिति और नेतृत्व से साफ नजर आ रही थी। बाली के हिंदू समुदाय का ग्रामीण और पारिवारिक परिवेश आधुनिकता के प्रबल चुबंकीय बल के सामने अपने समाज को संरक्षित और एकजुट रखने में अपनी कुशल भूमिका निभा रहा है।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महामंत्री हैं)
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