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बीमारी के कारण मात्र 26 वर्ष की उम्र में निवेदिता जोशी चलने-फिरने लायक नहीं रह गई थीं। योग के जरिए उन्होंने अपने आपको इतना सक्षम बनाया है कि आज वे हजारों लोगों को योग सिखा रही हैं
अरुण कुमार सिंह
वह बहुत छोटी उम्र में बीमार हुर्इं। 10 वर्ष बीतते-बीतते बीमारी ऐसी हो गई कि उनके लिए चलना-फिरना कठिन हो गया। उन्हें व्हील चेयर पकड़नी पड़ी। लेकिन आज वे पूरी तरह स्वस्थ हैं और कमाल की बात तो यह है कि हजारों लोगों को स्वस्थ जीवन जीने का मंत्र दे रही हैं।
यह कहानी है निवेदिता जोशी की। वे जब केवल 15 वर्ष की थीं तब परिवार वालों के साथ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पूजा कर रही थीं। पूजा के बाद सभी ने आसन छोड़ दिया, लेकिन वे उठ नहीं पार्इं। घर वाले परेशान हो गए। चिकित्सक को दिखाया गया। एक चिकित्सक की दवाई से ठीक नहीं हुर्इं तो दूसरे को दिखाया गया। दूसरे के बाद तीसरे, तीसरे के बाद चौथे…। इस तरह अनेक चिकित्सकों को दिखाया गया। हर किसी ने दवाइयों की गठरी बांध दी। इसके बावजूद उनका दर्द बढ़ता गया। पहले पीठ और पैरों में ही दर्द होता था। अब गर्दन तक पहुंच गया। दर्द की दवा खा-खाकर उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। माइक्रोबाइलॉजी से स्नातकोत्तर करते-करते तो उनके दर्द की कोई सीमा ही नहीं रही।
निवेदिता के घर प्रख्यात समाजसेवी श्री नानाजी देशमुख का आना-जाना रहता था। उन्हें पता चला कि पुणे में योगाचार्य डॉ. बी.के.एस. अयंगर हैं, जो योगाभ्यास के जरिए ऐसी बीमारी को ठीक कर देते हैं। उन्होंने निवेदिता को पुणे ले जाने की सलाह दी। उसके बाद 1996 में एक दिन निवेदिता को डॉ. अयंगर के पास ले जाया गया। गुरु अयंगर ने निवेदिता के गले की चमड़ी देखकर बता दिया कि उन्हें कहां-कहां और किस तरह की परेशानी है। निवेदिता कहती हैं, ‘‘उन दिनों मेरे हाथों की स्थिति यह थी कि चाय का एक प्याला भी उठाया नहीं जा सकता था। एक भगोने में कप रखकर मेरे मुंह तक लाया जाता था तब मैं चाय पी पाती थी। जमीन पर भी ठीक से नहीं बैठ पाती थी। दर्द के मारे हाथ ऊपर नहीं उठते थे और पैर भी सीधे नहीं होते थे। लेकिन गुरु जी ने पहले ही दिन जमीन पर बैठाया और हाथ ऊपर करने को कहा। इससे पूरे शरीर में बेतहाशा दर्द हुआ।’’ वह कहती हैं, ‘‘पुणे का वह वक्त मेरे लिए सबसे डरावना था। उस डर ने मुझे एहसास कराया कि जब 26 वर्ष में यह हाल है तो आगे क्या होगा? इसके बाद मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास वापस लौटा और गुरु जी जैसा कहने लगे, वैसा करने लगी। इसका लाभ यह हुआ कि 12 दिन बाद ही मैं अधोमुख वृक्षासन करने लगी। जिन हाथों से एक कप चाय नहीं उठा सकती थी उन्हीं हाथों पर शरीर का पूरा भार उठाने लगी।’’
निवेदिता लगभग तीन वर्ष तक पुणे में रहीं और अपने आपको गुरु अयंगर के मार्गदर्शन में योग को समर्पित कर दिया। जब वे पूरी तरह स्वस्थ हो गर्इं तो उन्होंने तय किया कि अब वे योग के लिए काम करेंगी। इसलिए वे गुरु अयंगर के निधन तक लगभग 20 वर्ष उनके साथ रहीं। उन्हीं दिनों गुरु जी ने उन्हें दिल्ली में योग केंद्र चलाने का दायित्व सौंपा। गुरु जी द्वारा सौंपा गया वह दायित्व वे आज भी निभा रही हैं। दिल्ली में आई.टी.ओ. के पास दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर वह ‘अयंगर योग केंद्र’ चलाती हैं। इस केंद्र से अब तक कई हजार लोग योग सीख चुके हैं। निवेदिता नेत्रहीनों को भी योग सिखाती हैं। इसके लिए ब्रेल लिपि में योग की पुस्तकें भी छपवाई गई हैं।
निवेदिता मानती हैं कि वर्तमान केंद्र सरकार योग के लिए बहुत अच्छा काम कर रही है। इसके साथ ही वह कहती हैं कि योग शिक्षकों को योग से जुड़े हर पहलू का अध्ययन कराना चाहिए। योगशास्त्र के अध्ययन के बिना कोई भी अपने शरीर को जान नहीं सकता। जब व्यक्ति अपने शरीर को ही नहीं जान पाएगा तो वह दूसरे के शरीर का कैसे जान पाएगा?
वैसे, योग के लिए अखिल विश्व में अलख जगाने वाली
सरकार योग का पाठ्यक्रम तैयार कराए, यह आग्रह विचार के लायक है। ल्ल
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