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23 अप्रैल, 2017
रपट ‘भारी पड़ेगी चाल’ से जाहिर होता है कि पाकिस्तान कुलभूषण के सहारे भारत को चुनौती दे रहा है। लेकिन उसकी इस हरकत को विश्व समुदाय भी अच्छी तरह से देख रहा है और भारत ने भी इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में उसे आईना दिखाया है। पहले भारत की सरकारें भी विश्व स्तर पर पाकिस्तान के मामले को लचर ढंग से रखती आई थीं जिससे उनकी बात को अनुसना किया जाता था लेकिन राजग सरकार के अंतर्गत भारत की ताकत का लोहा अब पूरा विश्व मानने लगा है। रूस और अमेरिका जैसे देश अब भारत के साथ कदम ताल करते दिखाई देते हैं।
—जनक कुमार, खंडवा (म.प्र.)
पाकिस्तान कभी भी अपनी हरकत से बाज आने वाला नहीं है। इसके लिए वहां की सरकार और खुफिया एजेंसी जिम्मेदार हैं। सीमा पर आए दिन अशांति फैलाना उसकी मानसिकता में शुमार हो चुका है। दरअसल वे इस तरह के कार्य से पाकिस्तान की जनता को भ्रमित किए हुए हैं। लेकिन वहां की जनता को भी शायद उग्रवाद और आतंक सुहाता है क्योंकि वह मूक बनकर इस सबका समर्थन करती है। गौर करने की बात यह है कि विकास के नाम पर पाकिस्तान में कुछ नहीं है। यहां गरीबी का अंदाजा भी लगाना मुश्किल है। लेकिन इसके बाद भी जिहाद और उग्रवाद फैलाने में वह विश्व के अग्रणी देशों में गिना जाता है। ऐसी हालत में आम जनता को ही सोचना होगा, ऐसी सरकार का अपने स्तर पर विरोध करना होगा जो देश को गर्त में ले जाने के लिए काम कर रही है।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में मुंह की खानी पड़ी। लेकिन वह फिर भी कुलभूषण के मामले में अड़ियल रुख अपनाकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर रहा है। अब विश्व के अनेक देशों और खुद अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
को पाकिस्तान की हरकत दिखाई दे
रही होगी।
—श्रेया, मेल से
सुरक्षा ली जाए वापस
पिछले काफी अरसे से फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर ने भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चला रखा है। दोनों ने सुरक्षाकर्मियों को कश्मीर का शत्रु घोषित कर दिया है। फिर भी उन्हें भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। फारुख सांसद हैं। अब शायद उनकी रक्षा हेतु और अधिक जवान दिए गए होंगे। सवाल यह है कि जिन्हें वे अपनी ‘कौम का दुश्मन’ कह रहे हैं, उनसे सुरक्षा क्यों लेते हैं? उन्हें खुद इससे इनकार कर देना चाहिए। अन्यथा भारत सरकार पिता-पुत्र द्वारा चलाए गए अभियान के मद्देनजर
स्वयं विचार करके दोनों नेताओं को दी गई सुरक्षा वापस ले लें।
—ईश्वर खन्ना, द्वारका (नई दिल्ली)
कांग्रेस का किया सफाया
साक्षात्कार ‘पहाड़ सी चुनौतियां, हिमालय सा हौसला’ (23 अप्रैल, 2017) अच्छा लगा। यह बात बिल्कुल सत्य है कि उत्तराखंड में कांग्रेस के शासनकाल में लूट-खसोट, भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण की नीति अपने चरम पर थी। जिस जनता ने कांग्रेसियों को राज्य के विकास के लिए सत्ता सौंपी थी, वे विकास न करके लूटपाट में लग गए। आखिर पाप का घड़ा तो भरना ही था। राज्य की जनता काफी समय से कांग्रेस के शासन से तंग आ चुकी थी और मौके की तलाश में थी। विधानसभा चुनाव ने उसे मौका दिया और उसने भ्रष्टाचार को पोसने वाली सरकार को उखाड़ फेंका।
—अनुज सिंह, उत्तर काशी (उत्तराखंड)
कुकृत्य बंद हो
रपट ‘तलाक से निजात पाने की तड़प’ (23 अप्रैल, 2017) देश की उन मुस्लिम महिलाओं के दर्द को सामने रखती है जिनका तीन तलाक के कारण जीवन बर्बाद हो चुका है। इसके बाद भी मुल्ला-मौलवियों की दलीलें सुनकर ऐसा लगता है कि वे नहीं चाहते कि यह कुकृत्य बंद हो। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और वहां इसे मजहबी रंग देने का ताना-बाना बुना जा रहा है। अच्छी बात यह है कि अब मुस्लिम महिलाएं इसके विरोध में सड़क पर उतरने लगी हैं।
—राममोहन चंद्रवशी, हरदा (म. प्र.)
जब देश में सभी को संविधान और समान कानून का आईना दिखाया जाता है तो फिर एक कौम के लिए अलग कानून कैसे हो सकता हैं? ये तो न्याय नहीं है। देश में समान कानून का पालन किया जाना चाहिए। देश अब ऐसे किसी पैंतरे को स्वीकार नहीं करेगा जो एक वर्ग विशेष अपने को अलग दिखाने के लिए रचेगा।
—निहारिका मुकुंद, चंडीगढ़ (हरियाणा)
सनातन धर्म में पति-पत्नी के रिश्ते को जन्मों का बंधन माना जाता है। लेकिन इसी समाज में बाहर से आए इस्लामी मजहब में तीन तलाक जैसी कुप्रथा भी चली आ रही है जो महिलाओं को बंधक बनाकर उन्हें सिर्फ दासी समझता है। कुछ कट्टरपंथी तत्व इस कुप्रथा को भी सत्य साबित करने के लिए पता नहीं किन-किन चीजों का हवाला देते हैं। अब मुस्लिम महिलाएं इसे सहन करने वाली नहीं हैं क्योंकि यह उनके मूल अधिकारों का हनन है। समाज में सभी को समान जीवन जीने का हक है। इस प्रथा से समाज में विघटन की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इसलिए इसे तुरन्त समाप्त करना चाहिए।
—अमरेन्द्र ओझा, पटना (बिहार)
मुस्लिम माहिलाएं हलाला, तीन तलाक और बहु विवाह को खत्म करने की मांग कर रही हैं। इन महिलाओं के विरोध को किसी भी सूरत में गलत नहीं ठहराया जा सकता। आज दुनियाभर में मुस्लिम महिलाएं तरक्की की राह पर हैं लेकिन भारत जैसे देश में कट्टरपंथी तलाक पर पाबंदी लगाये जाने का कड़ा विरोध कर रहे हैं। किसी भी मत-पंथ में इस तरह की प्रथाओं को जायज नहीं ठहराया जा सकता। इसी को देखते हुए बहुत से मुस्लिम देशों ने इन प्रथाओं पर पाबंदी लगाई है। अब भारत को भी इस दिशा में सही कदम उठाना चाहिए।
—हरीशचन्द्र धानुक, लखनऊ (उ. प्र.)
पंथनिरपेक्षता के नाम पर दोहरा आचरण और पाखंड तो सामान्य प्रक्रिया है लेकिन अब ऐसे लोगों ने राष्ट्र की ही अलोचना शुरू कर दी है। साहित्य उत्सव में नयनतारा सहगल ने राष्ट्रवाद को ‘मूर्खता की निशानी’ बताया। यह उनकी कुंठित मानसिकता का परिचायक नहीं तो क्या है? क्या यह उन शहीदों का अपमान नहीं है जो देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं? कुछ वर्षों से देश में एक ऐसी बयार बह रही है जिसमें अराजक
तत्वों द्वारा राष्ट्रवादी संस्कृति को गौण समझा जाता है। पर समाज अब
ऐसे लोगों के चेहरे और उनके
कुकृत्य समाज जान चुका है।
—मनोहर मंजुल, प. निमाड़ (मध्य प्रदेश)
भारतीय संस्कृति है समृद्ध
रपट ‘विदेशी तन, भारतीय मन’ (16 अप्रैल, 2017) अच्छी लगी। तब बड़ा अच्छा लगता है जब विदेशी छात्र भारतीय संस्कृति को अपनाने का प्रयास करते हैं। लेकिन उतना ही बुरा लगता है जब भारतीय समाज विदेशी रंग-ढंग में रंगने की कोशिश में लगा दिखता है। वह कपड़ो से लेकर उनकी बोली-भाषा और उनका ही व्यवहार अपनाता है। जबकि हमारी संस्कृति और परंपरा इतनी समृद्ध है कि इसका विश्व में कोई मुकाबला नहीं है। भारत के लोगों, खासकर आज की युवा पीढ़ी को यह इस सचाई को समझना चाहिए और भारतीयता को अपनाना चाहिए। जिससे उसमें देशप्रेम, विश्वबंधुत्व, भाईचारा और हाशिए पर जी रहे लोगों के प्रतिप्रेम उत्पन्न हो।
—देशबंधु, उत्तम नगर (नई दिल्ली)
केरल : सेना को मिलें विशेष अधिकार
जब देश के किसी जिले, इलाके या राज्य में निरंतर शांति भंग होती है और पुलिस व्यवस्था या तो नाकाम हो जाती है अथवा शांति भंग करने वालों का साथ देने लगती है, तब उस जिले, इलाके या राज्य को अशांत घोषित कर वहां ‘आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पॉवर्स एक्ट’ (अफ्सपा) कानून लगाया जाता है। इसमें सेना या अन्य केन्द्रीय बलों को वहां तैनात कर विशेष शक्तियां दी जाती हैं। पंजाब और चंडीगढ़ में यह कानून 1983 से 1997 तक लागू रहा और वहां शांति स्थापित करने में कामयाब हुआ। पूरे जम्मू-कश्मीर तथा पूर्वोत्तर में सेना का विशेष अधिकार प्राप्त हैं और यह कानून लागू है।
केरल एक ऐसा प्रदेश है, जहां मार्क्सवादी राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ एवं अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के खिलाफ हिंसा में रत हैं। 1969 में उन्होंने पहली बार तलाशैरी (जिला कन्नूर) में संघ की एक शाखा के मुख्य शिक्षक रामकृष्णन की हत्या की थी। उस हत्या में जो प्रथम अभियुक्त थे—विजयन, वे आज केरल के मुख्यमंत्री हैं।
1969 में तत्कालीन मार्क्सवादी मुख्यमंत्री नम्बदिरीपाद ने विजयन को पुलिस जांच में बचा लिया था। उक्त कन्नूर जिला तब से आज तक हिंसा-ग्रस्त है। यूं तो पूरे केरल में ही कम्युनिस्ट हिंसाचार देखने को मिलता है, पर कन्नूर में तो वह पूरी तरह अनियंत्रित है। जब-जब केरल में वामपंथी सरकार बनती है, पुलिस को अपना घरेलू नौकर समझते हुए मार्क्सवादी गुंडे खुलेआम हत्या, लूटमार, आगजनी पर उतर आते हैं।
कन्नूर में गत 12 मई को सी. बीजू नामक एक संघ कार्यकर्ता को तलवारों-छुरों से हमला कर मौत के घाट उतार दिया गया। हैरानी की
बात यह है कि चार दिन पहले ही उन्हें मिली सरकारी सुरक्षा हटा ली गई थी। अप्रैल में एक स्वयंसेवक की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। फरवरी-मार्च में भी दो स्वयंसेवक मार्क्सवादी हमले में मारे गये। यानी इसी साल अब तक कन्नूर में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के 4 कार्यकर्ता अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। स्वयंसेवकों की संपत्ति को लूटा गया और घरों को आग के हवाले कर दिया गया। संघ के कार्यालयों पर भी बम फेंके गये हैं। संघ को एक सेवालय पर उद्घाटन के दिन ही हमला हुआ।
2008 में जब मार्क्सवादी नेता अच्युतानंदन केरल के मुख्यमंत्री थे तथा पिनरई विजयन पार्टी के सचिव थे। तब हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर केरल उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया था कि कन्नूर में केन्द्रीय बल तैनात किया जाए। न्यायमूर्ति वी. रामकुमार ने कहा था कि केरल की पुलिस भरोसे योग्य नहीं रह गयी है। अब समय आ गया है कि केन्द्र सरकार कन्नूर को अशांत जिला घोषित कर वहां ‘अफ्सपा’ लागू करे। तब सेना व अन्य केन्द्रीय बलों की तैनाती द्वारा वैसा ही हिंसा-विरोधी अभियान चलाया जा सकेगा, जैसा मणिपुर या कश्मीर में किया जा रहा है या पंजाब में हो चुका है।
संभव है कि राज्यसभा में ‘अफ्सपा’ को लेकर कुछ दिक्कत का सामना करना पड़े, क्योंकि वहां राजग को बहुमत प्राप्त नहीं है, पर राजनीतिक कौशल द्वारा वहां भी संभवत: इस परेशानी से पार पाया जा सकता है। कांग्रेस इसका समर्थन कर सकती है क्योंकि उसके नेताओं पर भी मार्क्सवादियों ने हमले किये हैं।
—अजय मित्तल, मेरठ (उ.प्र.)
हर्षित सारा देश
तीन साल पूरे हुए, हर्षित सारा देश
सभी तरफ है जा रहा, मोदी का संदेश।
मोदी का संदेश, प्रगति हर ओर हो रही
कठिन परिश्रम, नेक इरादे, दिशा है सही।
कह ‘प्रशांत’ लेकिन विपक्ष के नेता सारे
किसकी माने कौन, सभी किस्मत के मारे॥
— ‘प्रशांत’
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