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आवरण कथा – जनता की सरकार

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May 22, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 May 2017 12:16:20

प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में केंद्र की राजग सरकार ने बीते तीन साल में कुछ कठोर और व्यावहारिक फैसलों के साथ राष्ट्र के नव निर्माण और विकास के लिहाज से नई पटकथा लिखने का काम किया है। सवा सौ करोड़ देशवासियों की बदलाव की चाह और इस ओर सरकार के प्रयास ने नये भारत की मजबूत नींव रख दी है। उसने विकास के आह्वान के साथ न केवल सर्व समावेशी विकास का मॉडल दिया बल्कि मोदी सरकार ने राष्ट्र निर्माण में लोगों की भागीदारी को नई दिशा देने का अहम काम भी किया है। 

-मनोज वर्मा –

भारतीय राजनीति में 16 मई, 2014 वह तारीख थी जिसने इतिहास में जोरदार तरीके से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। इसका सबसे पहला कारण तो यही था कि भारत के राजनीतिक इतिहास में भारतीय जनता पार्टी पहली ऐसी गैर कांग्रेसी पार्टी थी जिसने अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल कर केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार बनाई। यह तारीख इसलिए भी अहम हो गई क्योंकि करीब 30 साल बाद देश की जनता ने केंद्र में किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का मौका दिया और वह इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उसे एक ऐसे भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण की उम्मीद थी जिसमें सबका साथ और सबका विकास हो।
आजादी के बाद देश ने अलग-अलग समय पर गांधी-नेहरू और समाजवादी विकास का मॉडल अपनाया तो, पर उसके बावजूद देश के गांव, गरीब और किसान का उस तेजी के साथ विकास नहीं हो पा रहा था जिसकी जरूरत 21 वीं सदी के भारत को है। जाहिर है, ऐसे में मोदी सरकार ने निर्माण और विकास का जो एजेंडा तय किया है, उसने नए भारत के उदय की पटकथा लिखने का काम कर दिया है। लिहाजा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कहते हैं कि  विकास के लिए नए भारत का उदय हो रहा है जो 125 करोड़ भारतीयों के कौशल और शक्ति से संपन्न होगा। 2022 में जब हम अपनी स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह मनाएंगे तब हमारे सामने एक ऐसा भारत हो, जिस पर महात्मा गांधी, सरदार पटेल और बाबासाहेब आंबेडकर गर्व कर सकें। जाहिर है, गांधी जी ने गांव, किसान के विकास पर जोर दिया, सरदार पटेल ने एक सुरक्षित, संगठित भारत की नींव रखने का काम किया तो बाबासाहेब आंबेडकर ने सामाजिक न्याय की उस अवधारणा को स्वीकार किया जिसमें सभी वगार्ें को आगे बढ़ने के सामान अवसर मिलें। मोदी सरकार ने विकास के आह्वान के साथ न केवल समावेशी विकास का मॉडल दिया बल्कि राष्ट्र निर्माण में लोगों की भागीदारी को नई दिशा देने का काम भी किया।
असल में तीन साल के शासन के बाद मोदी सरकार के सुशासन का एजेंडा जहां सामाजिक सरोकार पर केंद्रित रहा, वहीं गांव, गरीब, किसान कल्याण प्राथमिकता में पहली पायदान पर रहे। भ्रष्टाचार मुक्त शासन और सीमा पार के आतंकवाद पर चोट करती मोदी सरकार की नीतियों ने अपनी कूटनीति से भारत की प्रतिष्ठा को दुनिया में स्थापित करने का जो काम किया, उसकी विरोधियों ने भी प्रशंसा करने में संकोच नहीं किया। तीन साल पहले देश की जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर केंद्र की सत्ता पर बैठाया तो उसके पीछे कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के कार्यकाल में व्याप्त भ्रष्टाचार और नीतिगत मामलों में पंगुता जैसी स्थिति से बना निराशाजनक माहौल था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा भी कि ''आज 21वीं सदी में कौन हिंदुस्थानी ऐसा होगा जो भारत को बदलना नहीं चाह रहा होगा? कौन हिंदुस्थानी होगा जो देश में बदलाव का हिस्सेदार बनना नहीं चाहता होगा? सवा सौ करोड़ देशवासियों की यह बदलाव की चाह, यह बदलाव का प्रयास ही तो नये भारत की मजबूत नींव डालेगा।''
मोदी सरकार के तीन साल के शासन की बात करते हुए इस सवाल का उठना लाजिमी है कि वह कितना पूरा हुआ और कितना अधूरा रहा है। यह एक ऐसा पहलू है जिस पर हर किसी का अपना-अपना दृष्टिकोण हो सकता है। सरकार के सामने कुछ काम ऐसे थे जो छोटे थे, जिसमें लोगों की भागीदारी के जरिए एक बड़ा बदलाव लाया सकता था और इसी दिशा में स्वच्छता मोदी सरकार के सुशासन का प्रमुख एजेंडा रहा। स्वच्छता को जिस प्रकार से मोदी सरकार ने अपना एजेंडा बनाया, शायद ही किसी सरकार ने इसे इस तरह की प्रमुखता दी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद झाड़ू लेकर सड़क पर उतरे और लोगों को स्वच्छता के प्रति प्रेरित करने का महत्वपूर्ण काम किया। यह स्वाभाविक तौर पर किसी भी व्यक्ति, समाज और देश का पहला काम होना ही चाहिए।
स्वच्छ भारत कार्यक्रम कितना सफल रहा और कितना नहीं, इस बारे में मिली-जुली राय हो सकती है, पर स्वच्छता के प्रति देश में जागरूकता आ जाना इसकी सफलता का एक पैमाना जरूर हो सकता है। शौचालय को लेकर सोच बदलने का काम भी मोदी सरकार के एजेंडे में प्राथमिकता पर रहा। नीतिगत बदलाव की बात की, तो बेहतर कार्य के लिए मोदी सरकार ने योजना आयोग को बदलने में भी देर नहीं लगाई। योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय के लिए उठाया गया एक ठोस कदम था। नीति आयोग के गठन का महत्व को गत 23 अप्रैल को नई दिल्ली में नीति आयोग संचालन परिषद की तीसरी बैठक के आयोजन से समझा जा सकता है। इस बैठक में भी प्रधानमंत्री ने बड़े बदलाव की बात कही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'न्यू इंडिया' का विचार सबके सामने रखा। जाहिर है, योजना आयोग के दौर में मुख्यमंत्री केवल योजनाओं के लिए पैसा जुटाने के लोभ में दिल्ली आते थे। नीति आयोग अब केन्द्र व राज्यों के बीच बेहतर तालमेल, संवाद और समन्वय का काम कर रहा है। इसके चलते उसका महत्व बढ़ गया है।
असल में इस बैठक में एक बात और स्पष्ट तौर पर उभरी। वह यह कि नेहरू युग के विकास का मॉडल अब आगे नहीं चलेगा। नेहरू युग में विकास के लिहाज से पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई थी। इसी साल 31 मार्च को 12वीं पंचवर्षीय योजना का समापन हुआ। मोदी सरकार ने अगली पंचवर्षीय योजना की बजाय '15 वर्षीय विजन' का खाका मुख्यमंत्रियों के सामने रखा। सरकार इसका विस्तृत दस्तावेज तैयार कर रही है। यह 'न्यू इंडिया' का दस्तावेज होगा। वह नया भारत कैसा होगा, उसकी एक बड़ी तस्वीर प्रधानमंत्री के सामने है। उनके अनुसार, ''न्यू इंडिया मतलब सपनों से हकीकत की ओर बढ़ता भारत। ऐसा भारत जहां उपकार नहीं, अवसर होंगे। एक ऐसा भारत जहां सभी को अवसर मिलेंगे, सभी को प्रोत्साहन मिलेगा। जहां नई संभावनाएं होंगी। जहां लहलहाते खेत होंगे, मुस्कराते किसान होंगे। ऐसा भारत मेरे और आपके स्वाभिमान का भारत होगा।'' सरकार के प्रति यह विश्वसनीयता ही उसकी पूंजी है।
सरकार ने 'न्यू इंडिया' के सपने को साकार करने के लिए केन्द्र-राज्य संबंधों को सुगम और सुदृढ़ बनाने के लिए और अनेक उपाय किए हैं। अनेक सुझाव उसके सामने हैं। इनमें से ही एक है कि लोकसभा के साथ ही देश में सभी विधानसभाओं के चुनाव कराना। अलग-अलग और बार-बार चुनावों के चलते देश राजनीतिक व आर्थिक कुप्रबंधन का शिकार हो रहा  है। इसके साथ ही नीति आयोग के माध्यम से राज्यों को बेहतर तरीके से अपनी बात रखने और अपनी योजनाओं को जरूरत के अनुरूप बनवाने का मार्ग खोल दिया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच ब्याज निर्धारित करने से लेकर मौद्रिक नीति पर क्रियान्वयन को लेकर होने वाले टकराव को खत्म कर रिजर्व बैंक का पुनर्गठन कर दिया गया है। देश भर में एक कर और एक कर व्यवस्था लागू करवाने के लिए अप्रत्यक्ष कर ढांचे को पूरी तरह बदलकर जीएसटी लागू करने का काम अंतिम दौर में है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक ऐसा आयाम है जिसके लिए सभी राज्यों ने राजनीतिक और वैचारिक मतभेद भुलाकर एक मत प्रकट किया। प्रधानमंत्री मोदी इसे 'एक राष्ट्र, एक आकांक्षा, एक निश्चय' के तौर पर देखते हैं।
आजादी के पहले अंग्रेजों ने भारत के लिए कई कानून बनाए थे। आजादी के बाद भी हजारों की संख्या में इस प्रकार के कानून भारत में चलते रहे। कई ऐसे कानून भी, जिनकी अब आवश्यकता नहीं रही, उनमें से बहुत से मोदी सरकार ने रद्द कर दिए हैं। जब से केन्द्र में मोदी सरकार बनी है, तब से लेकर अब तक एक हजार से अधिक कानून रद्द किए गए हैं या उनमें संशोधन कर आज और भावी भारत के हिसाब से बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है। क्योंकि कई गैर जरूरी कानून विकास और सुशासन में अवरोधक बने हुए हैं। मसलन, करीब तीन दशकों से पंगु पड़े बेनामी संपत्ति कानून को संसद से संशोधित कराकर लागू करवाया। यह कानून कालेधन के खिलाफ सरकार के पास बहुत बड़ा हथियार है। मोदी सरकार द्वारा सेवानिवृत्त सैनिकों के हित में कदम उठाया गया। चार दशकों से लंबित 'वन रैंक, वन पेंशन' की मांग पूरी की गई। बांग्लादेश के साथ लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को मोदी सरकार ने सुलझाया, जो एक ऐतिहासिक कार्य था। आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब बजट 28 फरवरी को पेश न होकर 1 फरवरी को पेश किया गया। सरकार के कामकाज को बेहतर करने के हिसाब से यह बहुत ही सराहनीय कदम है। लंबे समय से अटके पड़े जीएसटी बिल को संसद से पारित करवाया और आधी से ज्यादा राज्य सरकारों को भी अपनी-अपनी विधानसभाओं से पास कराने के लिए प्रेरित कर देश के विकास का रास्ता खोल दिया। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरियों में साक्षात्कार खत्म करने का कार्य प्रशासनिक दिशा में लिया गया एक बड़ा कदम था।
भ्रष्टाचार की रोकथाम मोदी सरकार के एजेंडे में पहले नंबर पर रही। पूर्व की कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार पर जहां तमाम घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोप लगे, वहीं तीन साल के शासन में विरोधी भी मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर कोई भी ठोस आरोप नहीं लगा पाए। देश-विदेश में कालेधन पर चोट कर मोदी सरकार ने अपने इरादे पहले ही साफ कर दिए हैं। केंद्र में सरकार बनने के बाद 27 मई, 2014 को पहली कैबिनेट बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल का गठन किया जबकि संप्रग सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद इसे चार साल से लटका रखा था। मोदी सरकार और मनमोहन सरकार में यह एक बड़ा फर्क साबित हुआ। बैंकों से जुड़ी जानकारी साझा करने के लिए मोदी सरकार ने साइप्रस, मारिशस और सिंगापुर जैसे देशों के साथ समझौते किए। कलंक को कलगी की तरह सजाने वाली राजनीति के अंत की दिशा में एक ठोस कदम कोयला आंवटन की ऑनलाइन नीलामी शुरू करने की दिशा में उठाया गया। मोदी सरकार ने कोल ब्लॉक और स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए एक बहुत ही सफल और पारदर्शी तरीका इस्तेमाल किया। यह भविष्य में भी एक उदाहरण साबित होगा। साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिया गया नोटबंदी का फैसला देश के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हुआ। नोटबंदी ने भ्रष्टाचार, कालेधन, नक्सलवाद और आतंकवाद पर सीधी चोट करने का काम किया। नोटबंदी के बाद आयकर रिटर्न की ई फाइलिंग में 22 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। एक लाख संदिग्ध कर चोरी के मामलों का पता लगा है तो 91 लाख नए लोग कर के दायरे में आए हैं। नोटबंदी के बाद 16,398 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला है। इस दौरान 400 से अधिक मामले सीबीआई और ईडी को सौंपे गए। ईडी ने 18 और सीबीआई ने 38 लोगों को गिरफ्तार किया। गौरतलब है कि पिछले साल 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने के बाद नकद-रहित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिला है। आयकरदाताओं की संख्या में इजाफा हुआ है और कर राजस्व में बढ़ोतरी हुई है। अब हर रोज तीन लाख पैन कार्ड जारी किए जा रहे हैं। बेनामी लेनदेन को रोकने के लिए 2016 में कड़े कानून बनाए गए थे। इसे कालेधन का एक बहुत बड़ा स्रोत माना जाता है। सरकार कठोर जुर्माने के साथ कालेधन की घोषणा करने की योजना भी लेकर आई। सरकार को 2015 में स्पेक्ट्रम्स की नीलामी से 1़10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा राजस्व प्राप्त हुआ। जबकि 2016 में स्पेक्ट्रम नीलामी से 66,000 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ। स्पेक्ट्रम को लेकर पिछली कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार पर बडे़ घोटाले का आरोप लगा था। इसी प्रकार कोयला घोटाला भी जहां संप्रग सरकार में भ्रष्टाचार का बड़ा मुद्दा बना और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा, वहीं मोदी सरकार ने कोयला खनन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के एकाधिकार को खत्म कर कोल ब्लॉक आंवटन को पारदर्शी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया।
रक्षा क्षेत्र की बात की जाए तो इस दिशा में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में 'मेक इन इंडिया' को मिली कामयाबी एक नई उपलब्धि रही। रक्षा हथियार उत्पादन के लिए मेक इन इंडिया के तहत 116 औद्योगिक लाइसेंस जारी किये जा चुके हैं। ऑटोमेटिक मार्ग से 49 प्रतिशत तक एफडीआइ की स्वीकृति इस क्षेत्र को दी गई है। मोदी शासन में सेना ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी संगठनों पर वार किया और सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए भारत ने दुनिया को यह संदेश दे दिया कि आतंकवाद के खिलाफ यह सरकार कोई भी कड़ा कदम उठाने से नहीं चूकेगी। इसी प्रकार म्यांमार में घुसकर आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन करना भी इसी रणनीति का हिस्सा था। आजादी के बाद पहली बार बैंकिंग सेवा घर-घर तक पहुंचाई गई, जनधन योजना के तहत 28 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए। 13 करोड़ से अधिक लोग मामूली दरों पर सरकार के पैसे लेकर सशक्त हो रहे हैं और लाभ उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 7़ 45 करोड़ से अधिक छोटे उद्यमियों को 3़17 लाख करोड़ रुपये ऋण के तौर पर दिये जा चुके हैं। अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति वर्ग को रोजगार के लिए 10 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का ऋण बैंकों द्वारा दिया जा रहा है।
'आधार योजना' के तहत केन्द्र सरकार ने ग्रामीण व शहरी क्षेत्र के सभी नागरिकों को आधार से जोड़कर भ्रष्टाचार व बिचौलियों को खत्म करने का प्रयास किया है, ताकि सरकार की योजनाओं का सभी को सीधा लाभ मिल सके। सरकार के इसी प्रयास से करीब 49,560 करोड़ रु. की राशि, खाताधारकों तक सीधे पहुंच चुकी है। डिजिटल इंडिया अभियान के तहत 'भीम एप' को  दो करोड़ से भी अधिक लोगों ने अपनाया है। इस एप से जुड़ कर लोग डिजिटल लेन-देन कर रहे हैं। सरकार का उद्देश्य इस योजना से अधिक से अधिक लोगों को 'डिजिटल इंडिया' अभियान से जोड़ना है।
इसी प्रकार के नीतिगत फैसलों का ही परिणाम है कि भारत में व्यापार करने की स्थिति को विश्व बैंक ने 2015 में 142 वें स्थान के मुकाबले 2017 में 130वें स्थान पर रखा है। भारत सरकार की सफल व्यापार नीति से रक्षा, रेलवे, फार्मा और खाद्य जैसे क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बढ़ोतरी हुई है। केंद्र सरकार के कदमों ने रियल एस्टेट पर भी अंकुश लगाया है। नियमों में बदलाव करके मोदी सरकार ने 2016 में विनियम और विकास एक्ट में बड़े परिवर्तन किये हैं। इस एक्ट के तहत गलत दस्तावेज देकर जमीन खरीदना अपराध की श्रेणी में माना जाएगा और उस पर कड़े दंड का प्रावधान भी शामिल है। सरकार के ऐसे कड़े कदमों से भू-माफियाओं और बिल्डरों पर लगाम लग सकेगी। नकद रहित लेन-देन को बढ़ावा देने के पीछे मकसद है कि देश की अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता आए। दरअसल यह देश को स्वयं के सामर्थ्य पर खड़ा करने की एक कवायद है। इस अभियान के जरिये भ्रष्टाचार और कालेधन में गुणात्मक कमी लाने की कोशिश की जा रही है। दरअसल मोदी चाहते हैं कि देश में एक ऐसी अर्थव्यस्था लागू हो जाए जहां कुछ भी छिपा न हो। ईमानदारी से टैक्स दिए जाएं और सर्व समावेशी विकास को नई गति दी जा सके।
 असल में देश में इस वक्त 65 प्रतिशत युवा 35 साल से कम उम्र के हैं, इसलिए आज के भारत को नया भारत कहा जा सकता है। इसलिए मोदी सरकार का जोर युवाओं को 'जॉब सीकर्स' से अधिक 'जॉब क्रिएटर' बनाने पर रहा है। लिहाजा  स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए, जो देश के युवाओं के लिए अपनी उद्यमशीलता साबित करने का एक बड़ा प्लेटफार्म है।
मोदी सरकार की सोच और दृष्टि का अंदाजा इसी बात से लागया जा सकता है कि 2 अक्तूबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी इसके तहत देश को 2019 तक कचरा मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया। जन भागीदारी और जन जागरूकता के आधार पर चलाए जा रहे इस अभियान को प्रधानमंत्री मोदी ने एक नया नाम दे दिया है 'स्वच्छाग्रह'। दरअसल जैसे गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह लोगों की स्वयं में उपजी अनुभूति के आधार पर चलाया था, वैसे ही मोदी चाहते हैं कि स्वच्छता के प्रति लोगों की स्वयं की सोच विकसित हो। उनके भीतर से स्वच्छता के लिए आवाज आए और वे इस काम में जुट जाएं। उन्होंने कहा भी कि एक स्वच्छ भारत के द्वारा ही देश 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उन्हें अपनी सवार्ेत्तम श्रद्धांजलि दे सकता है। घर-घर शौचालय अभियान स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा है तो उज्ज्वला योजना के जरिये गरीब परिवारों के घरों से अंगीठी का धंुआ गायब हो गया है। मोदी सरकार की इन योजनाओं ने सकारात्मक समाज के निर्माण का एक नया दौर शुरू किया है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) सामाजिक कल्याण की योजनाएं हैं जो गरीबों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं।
वीआइपी संस्कृति को खत्म करने की दिशा में लाल बत्ती हटाना मोदी सरकार की कथनी और करनी में तालमल को प्रकट करता है। दरअसल कुछ साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने भी लाल बत्ती मामले पर टिप्पणी की थी, लेकिन सरकार के स्तर पर इस संदर्भ में कोई फैसला नहीं हो पाया था। फैसला मुश्किल भरा था, क्योंकि इसका सीधा असर शासन करने वाले समूह पर पड़ता। लेकिन हर आम और खास के नजरिये में बदलाव लाने वाला यह फैसला आखिरकार पूरे देश में एक मई 2017 से लागू हो गया। वैसे शब्दों का अपना महत्व होता है, लिहाजा देश में विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द का प्रयोग एक अहम फैसला रहा। जाहिर है, जब हम किसी चीज को सकारात्मक नजरिये से देखते हैं तो उसकी अलग तस्वीर सामने आती है।
जहां तक देश की अर्थव्यस्था की बात है तो देश के ज्यादातर आर्थिक आंकड़े दिखा रहे हैं कि सरकार के तीन साल में आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। इन आंकड़ों का सीधा असर अगले दो  साल तक अर्थव्यवस्था पर दिखाई देगा। आर्थिक जानकारों के मुताबिक इन आंकड़ों से ही मार्च 2019 के आंकड़े भी प्रभावित होंगे। मसलन, जहां मार्च 2014 में देश की जीडीपी विकास दर 6़ 60 फीसदी थी वहीं मार्च 2017 में ये 7़10 के स्तर पर आई है। वित्त वर्ष 2018 के लिए विश्व बैंक और आईएमएफ का दावा है कि जीडीपी विकास दर 7़ 6 फीसदी से अधिक रहेगी। लिहाजा 2019 में चुनावों के पहले देश की जीडीपी में 1-2 फीसदी की बढ़त देखने को मिल सकती है जिससे भारत दुनिया में सबसे तेज अर्थव्यवस्था के तमगे को बरकरार रखेगा। वहीं वैश्विक व्यापार के अन्य क्षेत्रों में अच्छे प्रदर्शन के चलते 2019 में दो अंकों में विकास दर के लक्ष्य को भी पूरा किया जा सकता है। यानी 2019 में चुनावों से ठीक पहले देश की जीडीपी 8-0 फीसदी के दायरे में रह सकती है।
मौजूदा समय में भारतीय शेयर बाजार लगातार बुलंदियों को छू रहा है। मार्च 2014 के 22 हजार के स्तर से चढ़ते हुए गत तीन साल में सेंसेक्स 8 हजार अंकों की उछाल के साथ तीस हजारी हो चुका है। जहां देश में जीएसटी लागू होने और अच्छे मानसून की संभावनाओं से खेती से जुड़ी कंपनियां भी अगले एक-दो साल तक मजबूती के साथ बाजार में कारोबार करती देखी जाएंगी, वहीं आने वाले दिनों में विदेशी निवेश आकर्षित करने में सफल रहने पर भारतीय शेयर बाजार मार्च 2019 तक और बुलंदियों को छू सकता है। हालांकि शेयर बाजार के अपने जोखिम होते हैं, लेकिन राजनीतिक-आर्थिक स्थिति का सकारात्मक असर बाजार को मजबूत रखेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को जब शपथ ली थी तब मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज का प्रमुख संवेदी सूचकांक 15 महीनों में सबसे निचले स्तर 25,000 पर बंद हुआ था, लेकिन इसके बाद भारतीय शेयर बाजार के इस इंडेक्स को पर लग गए। पहली बार जब मार्च 2015 में सेंसेक्स ने 30,000 का आंकड़ा पार किया तो उसे मोदी सरकार की तब तक घोषित की जा चुकीं नीतियों का समर्थन माना गया। माना जा रहा है कि यह मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल की नीतियों पर देशी-विदेशी निवेशकों द्वारा मिल रहे समर्थन का नतीजा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के एक कार्यक्रम में 'न्यू इंडिया' का खाका पेश किया था। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि अब पूरा विश्व बदल रहा है, अगर हम इसके साथ नहीं चलेंगे तो हमें पूछने वाला कोई नहीं होगा। उन्होंने कहा कि आज के समय में टेक्नोलॉजी का काफी महत्व है। प्रधानमंत्री मोदी ने न्यू इंडिया के लिए आईटी यानी इंडियन टेक्नोलॉजी+इंडियन टैलेंट = इंडियन टुमारो का विजन रखा है। जाहिर है, प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में केंद्र की राजग सरकार ने बीते तीन साल में कुछ कठोर और व्यावहारिक फैसलों के साथ राष्ट्र के नव निर्माण और विकास के लिहाज से भारत के नवोदय की पटकथा लिखने का काम किया है।    

 

'न्यू इंडिया मतलब सपनों से हकीकत की ओर बढ़ता भारत। ऐसा भारत जहां उपकार नहीं, अवसर होंगे। एक ऐसा भारत जहां सभी को अवसर मिलेंगे, सभी को प्रोत्साहन मिलेगा। जहां नई संभावनाएं होंगी। जहां लहलहाते खेत होंगे, मुस्कराते किसान होंगे। ऐसा भारत मेरे और आपके स्वाभिमान का भारत होगा।'
—प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति

इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया : उपराष्ट्रपति धनखड़

Uttarakhand Illegal Madarsa

बिना पंजीकरण के नहीं चलेंगे मदरसे : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

देहरादून : भारतीय सेना की अग्निवीर ऑनलाइन भर्ती परीक्षा सम्पन्न

इस्लाम ने हिन्दू छात्रा को बेरहमी से पीटा : गला दबाया और जमीन पर कई बार पटका, फिर वीडियो बनवाकर किया वायरल

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