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दो दशक तक नवीन पटनायक की पकड़ मजबूत रही और इस दौरान पार्टी में किसी ने भी उनके फैसलों पर सवाल उठाने का साहस नहीं जुटाया। लेकिन अब वह समय नहीं रहा, क्योंकि पार्टी नेता खुलेआम उनका विरोध कर रहे
समन्वय नंद
नवीन पटनायक के राजनीति में आने के बाद से बीजद पर उनका पूर्ण नियंत्रण रहा है। बीजद के गठन और सत्ता संभालने के बाद अपनी छवि को साफ-सुथरा रखने के लिए उन्होंने कई बार मंत्रियों को हटाया, जिन पर भ्रष्टाचार के मामूली आरोप भी लगे। कई बार ऐसा मौका आया कि जिन मंत्रियों को उन्होंने निकाला, उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं हो सके। लेकिन उन मंत्रियों और पार्टी के किसी भी नेता में इतना साहस नहीं था कि उनके फैसले के खिलाफ आवाज उठा सके। यानी तब पार्टी पर उनका पूरी तरह से नियंत्रण था। लेकिन दो दशक बाद विशेषकर ओडिशा में पंचायत चुनाव में भाजपा के अप्रत्याशित उभार और बीजद के पक्ष में आशा के अनुरूप परिणाम नहीं आया तो हालात बदलते दिख रहे हैं। पार्टी विधायक अब खुलकर उनके फैसलों पर सवाल उठा रहे हैं और उन्हें कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। बीते दो दशकों से राज्य की राजनीति को देखने वाले राजनीतिक पर्यवेक्षकों को यह बड़ा परिवर्तन लगता है।
पंचायत चुनाव में बीजद के खराब प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अपने मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल किया। इसके तहत उन्होंने 10 मंत्रियों को बाहर किया तथा नए विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया। अभी तक जो विधायक मुख्यमंत्री के किसी भी निर्णय पर बोलने का साहस नहीं जुटा रहे थे, उन्होंने खुलेआम इसका विरोध किया। फेरबदल के दौरान मंत्रिमंडल में सुंदरगढ़, संबलपुर, सुवर्णपुर, जाजपुर और कालाहांडी जिले से प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो इन जिलों के नेता काफी मुखर हो गए। सुंदरगढ़ जिला पदाधिकारियों ने तो सामूहिक इस्तीफे की धमकी तक दे दी। वहीं, संबलपुर के विधायक डॉ. रासेश्वरी पाणिग्रही के समर्थकों और वीर महाराजपुर के विधायक पद्मनाभ बेहेरा के समर्थकों ने अपने-अपने जिलों में प्रदर्शन किया। जाजपुर के विधायकों ने एक साथ बैठक कर सार्वजनिक रूप से कहा कि जिले से किसी को मंत्री नहीं बनाने के कारण इस इलाके में पार्टी कमजोर होगी। कलाहांडी का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक दिव्य शंकर मिश्र ने खुले तौर पर कहा कि जिले के साथ अन्याय हुआ है। विवाद गहराता देख बीजद के प्रवक्ताओं को कहना पड़ा कि मुख्यमंत्री सभी से बात कर इस मुद्दे को सुलझाएंगे।
दो दशकों के राजनीतिक करियर में पार्टी में किसी तरह की चुनौती का सामना नहीं करने वाले नवीन पटनायक के लिए यह बड़ी चुनौती है। उधर, लोकसभा चुनाव से ही बीजद संसदीय दल के नेता भर्तृहरि महताब लगातार अखबारों में स्तंभ लिखकर पार्टी में गुटबाजी का मुद्दा उठा रहे हैं। इन लेखों के जरिये महताब इस बात का उल्लेख कर रहे हैं कि किस तरह भाजपा आगे बढ़ती जा रही है और बीजद उससे निपटने में कैसे नाकाम हो रहा है। स्थानीय मीडिया में उनके लेखों पर काफी चर्चा हो रही है और लोगों में यह संदेश जा रहा है कि पार्टी पर नवीन पटनायक का नियंत्रण कमजोर हो रहा है। उधर, बीजद के एक अन्य सांसद बैजयंत जय पंडा भी सोशल मीडिया और अखबारों में लेख लिखकर पार्टी की गलतियों की बखिया उधेड़ रहे हैं। उन्होंने जब बीजद को परेशानी में डालने वाले काफी पोस्ट लिखे तो नवीन पटनायक ने सांकेतिक तौर पर उन्हें पार्टी संसदीय प्रवक्ता के पद से हटा दिया। इसके बाद भी पंडा अपने रुख पर अडिग लग रहे हैं। अन्य नेताओं ने भी मुखरता से बोलना कम नहीं किया है। ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में नवीन पटनायक की परेशानियां बढ़ने वाली हैं।
अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग में रोष
नवीन पटनायक के हाल के फैसलों के कारण उनकी छवि अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के हितों के विरोधी के रूप में बन रही है। दलित सांसद विष्णु दास को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिलवाने के बाद से खाली सीट से उन्होंने आली के राजपरिवार से प्रताप केसरी देव को राज्यसभा में भेजने का निर्णय किया है। उनके इस फैसले से अनुसूचित जाति वर्ग के लोग भी नाराज हैं। इसके अलावा, मंत्रिमंडल में फेरबदल के दौरान उन्होंने अनुसूचित जनजाति वर्ग के दो मंत्रियों से इस्तीफा दिलवाया और इस वर्ग से किसी को मंत्री नहीं बनाया। इसे लेकर भी समुदाय के लोगों में नाराजगी है।
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