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-डॉ. योगेश कुमार पाण्डेय-
भारत में आयुर्वेद सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति है। इसका अध्ययन, शोध एवं व्यावसायिक प्रयोग पूर्णतया भारत सरकार द्वारा स्थापित विधि-नियमों द्वारा नियमित एवं नियंत्रित किया जाता है। भारत सरकार का आयुष मंत्रालय इसके प्रचार-प्रसार एवं नियमन के लिए कृतसंकल्प है।
आयुर्वेद के अध्ययन के पश्चात् स्वरोजगार, सांस्थानिक रोजगार एवं सरकारी नौकरी की भी असीम संभावनाएं हैं। एक ओर जहां सरकारी नौकरी कर रहे आयुर्वेद स्नातकों एवं परास्नातकों को आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों के समकक्ष वेतन तथा सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर स्वनियोजित चिकित्सक बंधु भी सम्मानपूर्वक जीवन-यापन करते हुए राष्ट्र के स्वास्थ्य संरक्षण एवं संवर्धन में अपना अतुलनीय योगदान दे रहे हैं। विदेशों में भी आयुर्वेद के प्रति श्रद्धा देखने को मिलती है। कई देशांे ने इस चिकित्सा को मान्यता प्राप्त कर दी है। जिन देशों में इसे मान्यता प्राप्त नहीं है वहां भी आयुर्वेद किसी न किसी रूप में प्रचलित है ही। अत: उन देशों की परिस्थिति के अनुरूप थोड़ा अतिरिक्त प्रशिक्षण प्राप्त करके आप स्वयं को उन देशों में भी स्थापित कर सकते हैं। पिछले कुछ वषार्ें में देश के विभिन्न औद्योगिक संस्थाओं का भी इस ओर झुकाव और लगाव बढ़ा है। परिणामस्वरूप आयुर्वेद स्नातकों एवं परास्नतकों के लिए रोजगार के नए अवसर भी सृजित हुए हैं। भविष्य में इनके और अधिक बढ़ने की संभावना है।
आयुर्वेद का स्नातक पाठ्यक्रम कुल साढे़ पांच वर्ष का होता है, जिसमें एक वर्ष की प्रशिक्षण अवधि सम्मिलित है। इस पाठ्यक्रम की समाप्ति के पश्चात् बी़ ए़ एम़ एस़ अथवा आयुर्वेदाचार्य की उपाधि प्रदान की जाती है। यह स्नातक कार्यक्रम केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा अनुमोदित संस्थाओं में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों के संरक्षण में संपन्न होता है। आयुर्वेद की शिक्षा-दीक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा आयुर्वेद महाविद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। बहुत बड़ी मात्रा में निजी महाविद्यालय भी विभिन्न आयुर्वेद प्रेमी लोगों द्वारा स्थापित किए गए हैं, जहां आयुर्वेद के स्नातक एवं परास्नातक पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।
बी़ ए़ एम़ एस़ करने के पश्चात् आप सीधे चिकित्सा व्यवसाय में उतर सकते हैं अथवा विशेषज्ञता प्राप्त करने की दृष्टि से परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश ले सकते हैं। परास्नातक पाठ्यक्रम तीन वर्ष के होते हैं तथा विशेषज्ञ चिकित्सक एवं अध्यापक तैयार करने की दृष्टि से संचालित किए जाते हैं। इसके लिए सामान्यता राष्ट्र स्तरीय अथवा राज्य स्तरीय परीक्षाओं द्वारा विद्यार्थियों का चयन होता है। स्नातकोत्तर (एम़ डी़) की उपाधि हासिल करने के पश्चात् यदि आप चाहें तो आयुर्वेद वाचस्पति (पीएच. डी़) के लिए अपना अध्ययन जारी रख सकते हैं। यह दो से तीन वर्ष का होता है। सरकारी संस्थाओं में स्नातकोत्तर एवं परास्नातकोत्तर अध्ययनरत प्रशिक्षुओं के लिए एक सम्मानजनक मानदेय की भी व्यवस्था होती है। लगभग 16 विषयों में स्नातकोत्तर एवं परास्नातकोत्तर का प्रशिक्षण कराया जाता है।
आयुर्वेद का अध्ययन समाप्त करने के पश्चात् आप अपनी क्षमता, रुचि एवं आर्थिक स्थिति के अनुरूप निम्न में से कोई एक व्यवसाय चुन सकते हैं-
व्यक्तिगत क्लिनिक अथवा चिकित्सालय आप स्नातक की उपाधि लेने के तुरंत बाद शुरू कर सकते हैं। इस कार्य को शुरू करने के लिए बहुत कम पूंजी की आवश्यकता होती है, परंतु इसके संचालन एवं संवर्धन के लिए अत्यधिक धैर्य की आवश्यकता होती है। अपना कार्य शुरू करने से पहले किसी वरिष्ठ वैद्य के साथ कम से कम एक वर्ष का प्रत्यक्ष चिकित्सा कर्म अभ्यास कर लें तो अच्छा रहेगा। इसकी व्यवस्था भी भारत सरकार ने राष्ट्रीय विद्यापीठ के माध्यम से कर रखी है। इस हेतु राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ एक परीक्षा का आयोजन करती है। इसमें चयनित आयुर्वेद स्नातकों को उनकी रुचि के अनुसार, देशभर में प्रतिष्ठित एवं विद्यापीठ द्वारा चिन्हित वैद्यों के पास आवासीय प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है। प्रशिक्षण की अवधि में एक अच्छा मानदेय भी प्राप्त होता है। गांव, शहर तथा महानगर सभी जगह आयुर्वेदिक चिकित्सकों की घोर कमी है। अत: यह स्वरोजगार के लिए आकर्षक क्षेत्र है।
अध्यापन कार्य
आयुर्वेद महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य की अर्हता के लिए कम से कम परास्नातक होना अनिवार्य है। सरकारी संस्थाओं में नियुक्ति सरकार द्वारा स्थापित चयन मंडलों द्वारा की जाती है तथा निजी संस्थाओं में नियोजन हेतु व्यक्तिगत प्रयास करना होता है।
शोध कार्य
प्राय: सभी आयुर्वेद औषधनिर्माण शालाओं में सतत अनुसंधान एवं गुणवत्ता नियंत्रण एक स्थापित परंपरा एवं वैधानिक आवश्यकता है। अत: आप इन केंद्रों में शोध एवं विकास अधिकारी के रूप में भी रोजगार पा सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर शोध कार्य का नियमन करने के लिए भारत सरकार ने केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान परिषद की स्थापना की है। यह संस्था अपने शोध अधिकारियों का चयन राष्ट्रव्यापी लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार द्वारा करती है।
औषध निर्माणशाला
अगर आप आर्थिक रूप से सक्षम, उद्यमी मानसिकता के धनी तथा बाजार की रीति-नीति एवं परंपरा से परिचित हैं तो अपनी औषध निर्माणशाला भी स्थापित कर सकते हैं। इसके लिए स्नातक प्रशिक्षण के पश्चात् बी. फार्मा का कोर्स एवं मार्केटिंग में प्रशिक्षण प्राप्त कर लेना अच्छा रहता है।
स्वास्थ्य प्रबंधन
आयुर्वेद स्नातक यदि चाहें तो विभिन्न मान्यता प्राप्त संस्थानों यथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण संस्थान एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से स्वास्थ्य प्रबंध के क्षेत्र में डिप्लोमा अथवा डिग्री प्राप्त करके विभिन्न अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधक के रूप मेें भी नियुक्ति पा सकते हैं।
आपके लिए आयुर्वेद एक बेहतर भविष्य की गारंटी है यदि आप स्वभाव से आस्तिक हैं, भारतीय चिंतन परंपरा पर गर्व करते हैं और इसके प्रचार-प्रसार को अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। यदि आपको संस्कृत का व्यावहारिक ज्ञान है और साथ-साथ भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति शास्त्र तथा रसायनिकी की अच्छी समझ है। यदि आप अपनी योग्यता को आवश्यकता के अनुरूप समय-समय पर बढ़ाते रहने के लिए कृतसंकल्प हैं। आप स्वप्रबंधन एवं वाक् संप्रेषण के धनी हैं। आप वर्तमान स्वास्थ्य सुविधाओं से कुछ क्षुब्ध रहते हैं और इन सेवाओं को नए तरीके से परिभाषित एवं परिमार्जित करना चाहते हैं। लेकिन इन सब हेतु आपको लगभग दस वर्ष के कठिन परिश्रम के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहना होगा।
(लेखक चौधरी ब्रह्मप्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान, नजफगढ़, नई दिल्ली में काय चिकित्सा विभाग में सह आचार्य हैं)
आयुर्वेद यानी आयु का विज्ञान
भारतीय चिंतन परंपरा में जीवन की समग्रता का पैमाना धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चार पुरुषाथार्ें की सम्यक प्राप्ति मानी गई है। इन पुरुषाथार्ें की प्राप्ति हेतु मनुष्य के लिए 100 वर्ष का समय निर्धारित किया है और इसे 'परमायु' की संज्ञा दी गई है। इन पुरुषाथार्ें की प्राप्ति में रोग सबसे बड़े विघ्न माने जाते हैं। आयुर्वेद अर्थात् आयु का विज्ञान इन रोगों से बचाव तथा रोगों के समूल विनाश का दावा करता है। अभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठित है, परंतु यह मनुष्य की आयु को हितायु (अर्थात् समस्त सृष्टि के लिए शुभंकर) तथा सुखायु (समस्त सृष्टि के लिए सुखकर) के रूप में सुनिश्चित करने का विज्ञान है। भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क में यह सदा हितकारी, सर्वदा सुखकारी निरापद चिकित्सा पद्धति के रूप में अवस्थित है। इसकी स्वीकार्यता एवं व्यावहारिकता का आलम यह है कि आप किसी बीमारी का नाम भर लो, निपट अनपढ़ व्यक्ति भी आपको उस बीमारी के दो-चार रामबाण उपाय तो बता ही देगा। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के प्रचलन में आने से पहले और आने के बाद भी आयुर्वेद किसी भी रोग की पहली चिकित्सा (घरेलू उपाय) एवं अंतिम उपाय (वैद्य जी का नुस्खा) था और रहेगा।
देश के कुछ अग्रणी
आयुर्वेद संस्थान
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (नई दिल्ली), चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान (नई दिल्ली), आयुर्वेद एवं यूनानी तिब्बिया कॉलेज (नई दिल्ली), राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (जयपुर), इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (बी़ एच़ यू़, वाराणसी), तिलक आयुर्वेद महाविद्याालय (मुंबई), राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय (लखनऊ), राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय (वाराणसी), गुरुकुल राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय (हरिद्वार), ऋषिकुल राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय (हरिद्वार), पं़ खुशीलाल शर्मा मेेमोरियल आयुर्वेद महाविद्यालय (भोपाल), पं मदनमोहन मालवीय राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय (उदयपुर), एस़ डी़ एम़ आयुर्वेद महाविद्यालय (उड़ुपी), एस़ डी़ एम़ आयुर्वेद महाविद्यालय (हासन), पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय (हरिद्वार), जे़ बी़ राय स्टेट मेडिकल कॉलेज (कोलकता), दयानंद आयुर्वेद महाविद्यालय (जालंधर), एऩ टी़ आऱ यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (विजयवाड़ा), श्री आयुर्वेद महाविद्यालय (नागपुर), राजीव गांधी पोस्ट ग्रेज्युएट इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद (पपरौला)
देश के प्रमुख आयुर्वेद विश्वविद्यालय
गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जामनगर (गुजरात), डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर (राजस्थान), उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, देहरादून (उत्तराखंड), पंजाब आयुर्वेद विश्वविद्यालय, होशियारपुर (पंजाब), भारतीय आयुर्वेद विद्यापीठ, पुणे (महाराष्ट्र)
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