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शरीयत की आड़ में औरतों पर अत्याचार किए जाते हैं। अन्याय और शोषण के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं ने अदालत से गुहार लगाई है तो इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी या हिन्दू समाज को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? जो संविधान और अदालत को ही नहीं मानते उनके यहां रहने का क्या मतलब?
देश के मौलाना-मौलवी, हर दिन तीन तलाक पर रोक से चिल्लाते क्यों हो? शरीयत की आड़ में औरतों पर बेतहाशा जुल्म और अत्याचार! आपकी शरीयत का हर घेरा, नियम औरतों के ईद-गिर्द ही क्यों घूमते हैं? कोर्ट मुसलमान तो है नहीं, मगर तुम तो मुसल्लम ईमान वाले हो। तुमने कागज के पुर्जों पर, पोस्टकार्डों पर तलाकनामे भेजे। तुमने फोन पर तलाक दिया। अब तो व्हाट्सएप और फेसबुक पर भी तलाक देने लगे हो। क्या किन्हीं खास हालात में इस्तेमाल किया जाने वाला तीन तलाक इसीलिए बनाया गया था? अरे, दोबारा कायदे से कुरान पाक का अध्ययन तो कर लिया होता!
अगर चंद खुदगर्ज लोगों ने ऐसा किया तो तुम लोगों ने आगे बढ़कर उसकी मुखालफत क्यों नहीं की? जिम्मेदार उलेमाओं ने आवाज क्यों नहीं उठाई? सच्चे मुसलमान की तरह अगर तुमने आवाज उठाई होती होती तो आज कोर्ट में मुदाखलत का मौका क्यों मिलता? आज सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट तलाक के पक्ष में है और जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने तलाक पर रोक लगा दी, उस दिन आपकी इस मुल्क की धरती पर वो बेइज्जती होगी कि आपकी रूह तक कांप जाएगी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही देश के सभी हाई कोर्ट का फैसला भी तीन तलाक को खत्म करने के पक्ष में होगा।
अब आप दूसरे मजहबों का हवाला देकर अपनी बात सही साबित न करना। औरतें जलाई जाती हैं, मारी जाती हैं, यह कहकर तीन तलाक का बचाव न करना। शरीयत बचाने के लिए मुसलमान का ईमानदार और इन्साफ पसंद होना पहली शर्त है न? पोस्टकार्डों, मोबाइल पर तलाक देकर न आप शरीयत बचा सकते हैं और न ही इस्लाम। मुस्लिमो! याद रखिये, अपने साथ हो रहे अन्याय और शोषण के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं ने यह गुहार सरकार से नहीं, बल्कि कोर्ट में लगाई है।
अब हर चीज के लिए मोदी जी या हिन्दू समाज को जिम्मेदार कैसे ठहरा देते हैं आप? 4 बीवी और 10 बच्चे पैदा कर 56 देश इस्लामिक बन गए। वहां मुस्लिमों का सपना पूरा हुआ। वे इस्लामिक स्टेट बन गए, पर ये बताओ सीरिया, इराक, तालिबान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश…। गिनती कराऊं तो दो या चार इस्लामिक देश ही खुशहाल तरक्की करने वाले होंगे, बाकि सब मार-काट, आतंकवाद, गरीबी, बेरोजगारी इत्यादि से परेशान हैं और सबसे ज्यादा मौतें उन्हीं देशों में हो रही हैं।
शरीयत आप लागू नहीं करते। संविधान और कोर्ट को आप नहीं मानते, तो फिर इस देश में रहने का क्या मतलब? कोई नहीं मानेगा आपकी यह बात कि आप भारतीय हो। शरीयत में खून के बदले खून, आंख के बदले आंख, हाथ के बदले हाथ और हर जुमा के दिन मौत की सजा… अरे चलो… इसको ही लागू कर लो। अपने ऊपर ये सब तो सुप्रीम कोर्ट या सरकार लागू नहीं करेगी या फिर कोर्ट और सरकार को, अपनी आने वाली मुस्लिम पीढि़यों को ऐसे ही बेवकूफ बनाते रहोगे और शरीयत का पाठ पढ़ाते रहोगे? कुछ तो शर्म करो। तलाक के बहाने इस मामले को हिन्दू-मुस्लिम बनाने की कोशिश न करें तो बेहतर होगा! (रूमाना सिद्दीकी की फेसबुक वॉल से)
कितने खांचों में बंटा मुसलमान!
जब 2008-09 में फेसबुक पर प्रोफाइल बनाया था, तब मैं सिर्फ एक भारतीय था। हिन्दी में पोस्ट नहीं करता था। रोमन या टूटी-फूटी अंग्रेजी से खूब काम चलता था। फेसबुक पर बहुत सारे विदेशी, पाकिस्तानी दोस्त थे। तब जमकर हंसी, दिल्लगी किया करते थे।
उसके एक-डेढ़ साल बाद मैंने फेसबुक पर गूगल से हिन्दी टाइपिंग कर पोस्ट शेयर करना शुरू किया तो दोस्त मुझे हिन्दुस्तानी मुसलमान कहने लगे। हिन्दी में पोस्ट की वजह से विदेशी दोस्तों से संवाद कमी आने लगी। मगर देसी दोस्त बढ़ने लगे, जिसमें सभी धमोंर् के लोग थे। कोई दुराव नहीं था। कोई वैचारिक मतभेद नहीं था। कोई धार्मिक कबड्डी नहीं होती थी। वार त्योहारों पर खूब रंग जमता था, हंसी मजाक और मौज-मस्ती कर लॉगआउट हो जाया करते थे!
फिर धीरे-धीरे मेरी फ्रेंड लिस्ट में मुसलमान दोस्तों की आमद बढ़ने लगी। तब किसी मुसलमान ने एक दिन इनबॉक्स में आकर पूछा कि कौन से मुसलमान हो- शिया या सुन्नी? उस दिन मुझे अहसास हुआ कि यहां फेसबुक पर मुसलमानों को कुछ इस तरह से भी वर्गीकृत किया जाता है… पहचाना और अपनाया जाता है!
उसके बाद 2015-16 तक जब सोशल मीडिया पर मुसलमानों को देवबंदी, बरेलवी, अहले हदीस-वहाबी वगैरह जैसे खांचों में बंटते देखा तो हैरान रह गया। सिर्फ यही नहीं, इस वर्गीकरण का दुष्प्रभाव यह हुआ कि सोशल मीडिया पर मुसलमान आपस में ही गुत्थमगुत्था होते नजर आए! फिर 2017 शुरू हुआ तो मुसलमान पहले हुए वर्गीकरण (शिया-सुन्नी, देवबंदी, बरेलवी, अहले हदीस-वहाबी वगैरह) से भी दो कदम आगे जाकर कम्युनल और सेक्युलर के खांचों में बंट गया और एक-दूसरे की टांग पकड़कर खींचता नजर आया! न जाने 2018 में हम और कितने नए खांचों में बांटे जाएंगे और कमजोर किए जाएंगे, वो भी 'अपनों' के ही हाथों! (सईद आसिफ अली की फेसबुक वॉल से )
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