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मुंबई से गुजरात की दूरी भले ही 394 किमी. की हो लेकिन यहां दोनों राज्यों के लोगों के मन मिले हुए हैं। मुंबई में रह रहा गुजराती समाज आज समूचे महाराष्ट्र के विकास की रीढ़ बनता जा रहा है तो वहीं आपस में मिलकर ये दोनों राज्य विकास के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं
विवेक शुक्ला
मुंबई के महानगरीय चरित्र के बावजूद घाटकोपर और मुलंुड में घूमकर लगता है, मानो आप गुजरात राज्य के किसी शहर में हों। इधर अधिकतर गुजराती परिवार ही रहते हैं। पारुल शाह घाटकोपर के गुरुकुल स्कूल के पास लंबे समय से रहती हैं। वे बताती है कि अब तो हम मुंबईकर हैं पर गुजराती संस्कार और भाषा तो हमारे साथ यहां पर भी है। उससे हम दूर नहीं जा सकते। हमारे लिए महाराष्ट्र और गुजरात, दोनों ही प्रिय हैं। दरअसल पारुल की यह बात उल्लेखनीय है कि उनके लिए दोनों राज्य अपने से ही हैं। 45 साल की स्कूल टीचर पारुल शाह के जन्म से पहले न महाराष्ट्र था और न ही गुजरात। भाषायी आधार पर महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्य 1 मई, 1960 को देश के मानचित्र पर उभरे। पहले दोनों बॉम्बे स्टेट के अंग थे। पर आज दोनों राज्य बाकी राज्यों के लिए उदाहरण पेश करते हैं, जिनमें आपस में ख्ींचतान चलती रहती है। उदाहरण के रूप में भाषायी आधार पर बाद के सालों में पंजाब से हरियाणा निकला। पर उत्तर भारत के इन दोनों राज्यों में अभी भी जल के बंटवारे से लेकर, किसका है चंड़ीगढ़, के सवाल पर तीखा विवाद चल रहा है। गुजरात विद्यापीठ के कुलपति डॉ़ सुदर्शन आयंगर कहते हैं,''गुजराती और मराठी शुरू से आपसी सांमजस्य और भाईचारे के भाव से इसलिए भी रहते रहे क्योंकि दोनों एक दूसरे के पर्याय बन कर रहे। जहां गुजराती कारोबारी बनने को बेताब रहा, वहीं मराठी नौकरी करने तक अपने को सीमित रखता था। दोनों ने एक-दूसरे के दायरे में दखल नहीं दिया। मराठी समाज की रुचियों में कला, संस्कृति, संगीत वगैरह शामिल रहे। गुजराती समाज सच्चा और अच्छा कारोबारी है। दोनों में सहिष्णुता का भाव भी रहा। इसलिए दोनों साथ-साथ रहकर आगे बढ़ते गए।''
साझा गौरवशाली इतिहास
भारत की आर्थिक प्रगति का रास्ता इन दोनों राज्यों से होकर गुजरता है। अगर गुजरात की बात करें तो इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से सही है। गुजरात का क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किलोमीटर है। यहां मिले पुरातात्विक अवशेषों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस राज्य में मानव सभ्यता का विकास 5,000 वर्ष पहले हो चुका था। रही महाराष्ट्र की बात देश की आजादी के बाद मध्य भारत के सभी मराठी भाषी स्थानों का विलय करके एक राज्य बनाने को लेकर बड़ा आंदोलन चला और 1 मई, 1960 को कोंकण, मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र तथा विदर्भ, सभी संभागों को जोड़ कर महाराष्ट्र राज्य का गठन किया गया। महत्वपूर्ण है कि महाराष्ट्र राज्य आस-पास के मराठी भाषी क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया था, जो पहले चार अलग-अलग प्रशासनों के नियंत्रण में था। इनमें मूल ब्रिटिश मुंबई प्रांत में शामिल दमन तथा गोवा के बीच का जिला, हैदराबाद के निजाम की रियासत के पांच जिले, मध्यश प्रांत (मध्य प्रदेश) के दक्षिण के आठ जिले तथा आस-पास की ऐसी अनेक छोटी-छोटी रियासतें शामिल थी, जो समीपवर्ती जिलों में मिल गई थीं।
मैत्री के साथ विकास
गौर करने की बात यह है कि महाराष्ट्र और गुजरात में परस्पर मैत्री और सहयोग का वातावरण सदैव बना रहा। मुंबई के चंदा बेन मोहन भाई मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. जय पटेल मानते हैं कि गुजराती और मराठी समाज में तालमेल के मूल में बड़ी वजह यह रही कि इन दोनों में अहंकार भाव कभी नहीं रहा। वे बताते हैं,''दोनों ने एक-दूसरे के पर्वों को आत्मसात कर लिया। गुजराती गणेशोत्सव को उसी उत्साह से मनाते हैं, जैसे मराठी नवरात्र को आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं। इसलिए दो राज्यों के बनने के बाद भी इन दोनों समाजों और राज्यों में कभी दूरियां पैदा नहीं हुईं। मुंबई के गुजरातीभाषियों ने इस महानगर को अपनी कुशल आंट्रप्रेनयोर क्षमताओं से समृद्ध किया। वे 1960 से पहले की तरह से मुंबई में अपने कारोबार को आगे बढ़ाते रहे। मुंबई के अनाज, कपड़ा, पेपर, और मेटल बाजार में गुजराती छाए हुए हैं। हीरे के 90 फीसद कारोबारी गुजराती हैं। और मुंबई स्टॉक एक्सचेंज की आप गुजरातियों के बगैर कल्पना भी नहीं कर सकते।'' इसके पूर्व अध्यक्ष दीपक मेहता मानते हैं कि मुंबई में मराठियों और गुजरातियों को आप अलग करके नहीं देख सकते। दोनों मुंबई के प्राण और आत्मा हैं। मुंबई यानी देश की वित्तीय राजधानी। मुंबई में गुजराती मूल के लोगों के दर्जनों कॉलेज, स्कूल, सांस्कृतिक संस्थाएं वगैरह सक्रिय हैं। मायानगरी के भुलेश्वर में अब भी उन लोगों को याद है जब एक धीरूभाई अंबानी नाम का नौजवान इधर रहता था। क्या किसी को बताने की जरूरत है कि धीरूभाई अंबानी कौन थे? ये बातें होंगी पिछली सदी के पांचवें दशक की। तब धीरूभाई व्यवसाय की दुनिया में दस्तक दे रहे थे। मुंबई में लगभग 30 लाख गुजराती रहते हैं। इसी मुंबई में धीरूभाई के बाद गौतम अडानी, अजीम प्रेमजी, रतन टाटा, आदि गोदरेज, समीर सोमाया जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी दुनिया में जगह बनाने वाले अनेक गुजराती आए और आगे बढ़े।
गुजरात में मराठी
उधर मराठी समाज भी गुजरात में अपने लिए अलग जगह बनाता रहा। राज्य के सूरत, वडोेदरा, अमदाबाद, नवसारी वगैरह में विशेष रूप से ठीक-ठाक मराठीभाषी हैं। सी़ आर. पाटिल तो नवसारी से लोकसभा सीट से सांसद हैं। वे बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद सबसे अधिक अंतर से जीते थे। उन्होंने कांग्रेसी उम्मीदवार को साढ़े पांच लाख से भी अधिक मतों से हराया। वे इस तथ्य का बातचीत के दौरान अवश्य उल्लेख करते हैं। उनकी अभूतपूर्व विजय गुजरातियों के सहयोग के बिना संभव नहीं थी। पाटिल कहते हैं,''महाराष्ट्र और गुजरात में प्रगाढ़ संबंधों के मूल में गुजरातियों का बड़ा दिल होना रहा। गुजरातियों ने कभी किसी को बाहरी नहीं समझा। सबको अपने गले लगाया। मुझे भी गुजराती समाज ने बाहरी नहीं माना। अब मैं भी गुजराती हो चुका हूं। गुजराती ही बोलता हूं। पारसी भी भारत में सबसे पहले नवासरी में ही आए थे। यानी वे गुजराती हैं। डॉ. सुदर्शन आयंगर भी कहते हैं, ''यह बात सच है कि वाडिया, टाटा, गोदरेज जैसे अमीर पारसी मूल रूप से गुजराती ही हैं। ये घरों में गुजराती ही बोलते हैं। गुजरात में सर्वाधिक मराठी सूरत में हैं। ये अब गुजराती भाषी हो चुके हैं। हां, घरों में ये अब भी मराठी में ही संवाद करते हैं।''
साथ-साथ विकास
बेशक महाराष्ट्र और गुजरात आजादी के बाद से ही देश के प्रमुख औद्योगिक राज्य रहे हैं। समय के साथ हुई इनकी आर्थिक प्रगति ने देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूती प्रदान की है। नब्बे के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण का लाभ उठाते हुए दोनों राज्यों ने अपनी जीडीपी को मजबूत बनाया और वर्तमान में जीडीपी के हिसाब से महाराष्ट्र देश का सबसे अग्रणी राज्य है। भले ही गुजरात की जीडीपी महाराष्ट्र जितनी बड़ी ना हो पर विकास दर के मामले में यह महाराष्ट्र पर भारी है। अमदाबाद में हिन्दुस्तान टाइम्स से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार रथिन दास कहते हैं कि महाराष्ट्र और गुजरात देश की अर्थव्यवस्था के विकस इंजन की भूमिका निभाते रहे हैं। इन दोनों का परस्पर सहयोग का भाव देश के बाकी पड़ोसी राज्यों के लिए उदाहरण बन सकता है। दोनों ही राज्यों बिजनेस को गति देने में लाजवाब रहे हैं। आज पाकिस्तान से बड़ी है महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था। महाराष्ट्र की जीडीपी का आकार पकिस्तान की जीडीपी से अधिक है। वर्ष 2015 में पाकिस्तान की जीडीपी का आकार करीब 250 अरब डॉलर था, वहीं इस दौरान महाराष्ट्र की जीडीपी 295 अरब डॉलर के स्तर पर थी। ना केवल पाकिस्तान बल्कि मिस्र और दुनिया के 38 अन्य देशों की अर्थव्यवस्था से महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था बड़ी है। गुजरात की जीडीपी 150 अरब डॉलर के आसपास है, जो हंगरी और यूक्रेन के मुकाबले अधिक है। टैक्स संग्रहण के मामले में भी महाराष्ट्र सबसे अव्वल है। कुल राजस्व प्राप्ति में 70 फीसद हिस्सा कर का है। देश के कुल राजस्व का 40 फीसदी महाराष्ट्र से आता है जबकि औद्योगिक उत्पादन में उसका योगदान 15 फीसद है।
निर्यात में अगुआ
महाराष्ट्र और गुजरात का 2014-15 में कुल निर्यात में 46 प्रतिशत हिस्सा रहा है। उद्योग संगठन एसोचैम के एक अध्ययन के अनुसार देश को निर्यात से हुई आमदनी में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत से ज्यादा है। 2014-15 में निर्यात से हुई आय करीब 310 अरब डॉलर थी। इस अवधि में महाराष्ट्र का निर्यात 7,2़83 अरब डॉलर रहा और यह सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य रहा। वहीं, इस दौरान गुजरात को वस्तुओं के निर्यात से 5,9़58 अरब डॉलर की आय हुई। यह दूसरे स्थान पर रहा। गुजरात और महाराष्ट्र से निर्यात में क्रमश: 8 प्रतिशत और 7़2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। महाराष्ट्र आयकर भरने के मामले में भी पहले नंबर पर है। सरकार की ओर से जमा किए गए कुल कर में से 39़ 9 फीसदी कर महाराष्ट्र से इकट्ठा हुआ। गुजरात पिछले दो दशकों के दौरान इकॉनमिक ग्रोथ के मामले में सबसे आगे रहा है।
अनुकरणीय मित्रता
कभी एक थे महाराष्ट्र और गुजरात। पर अलग होने के लगभग छह दशकों के बाद भी इन दोनों राज्यों में कभी किसी मसले पर कोई विवाद नहीं हुआ। दोनों राज्यों ने उस चीनी कहावत को गलत साबित कर दिया है कि पड़ोसी कभी प्रेम और सद्भाव के वातावरण में नहीं रह सकते। यानी पड़ोसी तो लड़ेंगे ही। उनमें छत्तीस का आंकड़ा रहेगा ही।
बहरहाल, मुंबई से अमदाबाद के बीच भले ही सड़क मार्ग से 526 किलोमीटर और रेल मार्ग से 462 किलोमीटर दूरी हो, पर मन और दिल से दोनों कतई दूर नहीं हैं। और जो थोड़ा-बहुत फासला है, उसे रोज इन शहरों के बीच चलने वाली 64 सीधी रेलगाडि़यां खत्म कर देती हैं। दोनों अलग होकर भी कितने करीब हैं, यह देश के अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा लेने जैसी बात है।
भुलेश्वर से शिखर तक
दक्षिण मुंबई का भुलेश्वर मायानगरी के गुजरातियों का गढ़ होता था आज से 50-60 साल पहले तक। इधर पहले जितने गुजराती परिवार तो नहीं रहते। 1958 में एक नौजवान यहां आया था। वह छोटे-मोटे सपने लेकर इस शहर में नहीं आया था। वह रहने वाला था जूनागढ़ का। नाम था धीरूभाई अंबानी। धीरूभाई सोलह वर्ष के थे तो यमन चले गए थे। उन्होंने वहां पर 300 रुपये के वेतन पर काम किया। दो साल के उपरांत एक पेट्रोल पंप के प्रबंधन के लिए धीरूभाई को पदोन्नति दी गई। पर उनका मन भारत वापस जाने को बेचैन था। वे मुंबई आ गए। यहां पर वे भुलेश्वर में रहने लगे। उनकी शादी हो चुकी थी कोकिलाबेन से। यहां रहते हुए उन्होंने डेढ़ लाख रुपये की पूंजी के साथ रिलायंस वाणिज्यिक निगम की स्थापना की। इसका मूल कारोबार पोलियस्टर का आयात और मसालों का निर्यात करना था।
शुरू में उनके छोटे से दफ्तर में एक टेलीफोन, एक मेज और तीन कुर्सियां थीं। 1968 में वे दक्षिण मुंबई के अल्टमाउंट रोड पर रहने चले गए। 1960 तक अंबानी की कुल धनराशि 10 लाख रुपये आंकी गयी। कपड़ा व्यवसाय में अच्छे अवसर की समझ होने के कारण, धीरूभाई ने 1966 में अमदाबाद में कपड़ा मिल की शुरुआत की। पोलिएस्टर के रेशों का इस्तेमाल कर के वस्त्रों का निर्माण किया गया। धीरुभाई ने विमल ब्रांड की शुरुआत की जो कि उनके बड़े भाई रमणीकलाल अंबानी के बेटे, विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था। विमल के व्यापक विपणन ने इसे भारत के अंदरूनी इलाकों में घरेलू नाम बना दिया। रिलायंस टेक्सटाइल्स इकाई की खासियत यह थी की इसे उस समय विकसित देशों के मानकों से भी उत्कृष्ट माल का उत्पादन करने वाली कंपनी माना जाता था।
धीरूभाई ने ही देश के शेयर बाजार में नई जान फूंकी। भारत के विभिन्न भागों से 58,000 से ज्यादा निवेशकों ने 1977 में रिलायंस के आईपीओ की सदस्यता ग्रहण की। धीरूभाई गुजरात के ग्रामीण लोगों को इस संदर्भ में आश्वस्त कर सके कि उनकी कंपनी के शेयरधारक होने से उन्हें अपने निवेश पर केवल लाभ ही मिलेगा। अब तक रिलायंस इंडस्ट्रीज देश की प्रमुख कंपनी बन चुकी थी। यानी वे भारत के ऐसे पुत्र थे, जिसके विकास में महाराष्ट्र और गुजरात का समान
योगदान रहा।
यह धीरूभाई की सोच का ही कमाल था कि उनकी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने गुजरात के जामनगर में बुनियादी स्तर की विश्व की सबसे बड़ी पेट्रोलियम रिफाइनरी स्थापित की। जामनगर स्थित यह रिफाइनरी न सिर्फ आधुनिक सुविधाओं से लैस है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है। रिफाइनरी के अंदर शिव मंदिर, खूबसूरत पार्क, स्वीमिंग पूल, क्रिकेट मैदान तक की सुविधाएं हैं। निश्चित रूप से यह रिफाइनरी देश का गौरव है, जिसे धीरूभाई अंबानी ने आकार दिया।
''गुजराती और मराठी शुरू से एक दूसरे के पर्याय बन कर रहे। जहां गुजराती कारोबारी बनने को बेताब रहा, वहीं मराठी नौकरी करने तक अपने को सीमित रखता था। दोनों ने एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल नहीं दिया।
—डॉ़ सुदर्शन आयंगर
कुलपति, गुजरात विद्यापीठ
गुजराती और मराठी समाज में तालमेल के मूल में बड़ी वजह यह रही कि दोनों में अहंकार भाव नहीं है। दोनों ने एक-दूसरे के पर्वों को आत्मसात कर लिया। गुजराती गणेशोत्सव को उसी उत्साह से मनाते हैं, जैसे मराठी नवरात्र को।
—डॉ. जय पटेल, प्रधानाचार्य
चंदा बेन मोहन भाई मेडिकल कालेज
मुंबई में मराठियों और गुजरातियों को आप अलग करके नहीं देख सकते। दोनों मुंबई के प्राण और आत्मा हैं। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज (मुशेबा) की आप गुजरातियों के बगैर कल्पना भी नहीं कर सकते।
— दीपक मेहता
पूर्व अध्यक्ष, मुंबई स्टॉक एकसचेंज
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