सूचनाओं का जाल और सतर्कता
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सूचनाओं का जाल और सतर्कता

by
Apr 24, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Apr 2017 12:40:09

द्विटर-फेसबुक, इंस्टाग्राम पर हर पोस्ट और लाइक के साथ अबूझ जुड़ाव की चाह अक्सर बढ़ती जाती है। आज हम उस दौर में हैं जब हर व्यक्ति किसी चुटकुले पर अकेला खड़ा हंस रहा है और मोबाइल पर तैरती सूचनाओं के टुकड़े पढ़कर खुद को जानकारी के समंदर का सबसे बड़ा गोताखोर होने का भ्रम पाले बैठा है। अधूरी जानकारियों और सूचना की तेज गति का यह दौर ऐसा है जहां सही बात से जरा ध्यान हटा नहीं कि शरारत के साथ उठाई गई खबर की कोई लहûªfर आपको बहा ले जा सकती है।
’सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान की साझी मिल्कियत वाली सड़क
’कुलभूषण जाधव यानी भारत का जासूस
’अमेरिका यानी ऐसी हठीली ताकत जिसे आतंकवाद के खात्मे के लिए मदर आॅफ आल बॉम्ब्स मारने में भी हिचक नहीं है
ये सारी बातें अधूरी, अपुष्ट और धुंधली हैं। किन्तु सूचना विस्फोट में यही कुछ तो चमक रहा है! किसी भी प्रकरण पर सामने आई शुरुआती खबरें ठीक हो सकती हैं लेकिन ये सिर्फ आंशिक बात सामने रखती हैं और कोई राय बनाने लायक भरोसा इनके बूते कायम नहीं किया जा सकता। सावधानी जरूरी है।
सावधानी पहले भी जरूरी थी लेकिन तब इतनी सूचनाएं नहीं थीं। तब जानकारी न होने से आंखें मुंदी रहती थीं, अब सूचनाओं के अंधड़ से पलकें बंद हैं।
ऐसे में किया क्या जाए? जरा-सी अतिरिक्त सतर्कता और सूचना की सही छंटाई ही इस दौर में पार लगा सकती है। बदलती विश्व व्यवस्था और दक्षिण एशिया के विशेष संदर्भ में यह मुस्तैदी भारत के लिए ज्यादा जरूरी है, क्योंकि विश्व के सबसे धनी माने जाने वाले देश में एक बहस छिड़ी है कि अमेरिकी राष्टÑपति डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका की जनता के साथ जो वादे करके चुनाव जीते थे, वे उन वादों से पलट चुके हैं। समर्थक अब उनके विरोध में आ रहे हैं, और जिन्हें वह विरोधी बताते रहे थे, वे अब उनके सबसे गहरे मित्र बन गए हैं।
’सीरिया से लेकर अफगानिस्तान तक और चीन से लेकर अमेरिका तक, रूस का रवैया किस दिशा में क्या रहना है, शायद कोई रूसी भी नहीं जानता!
’अपने खुद के अलग तरह के लोकतंत्र का दावा करने वाले चीन में सूचना,अभिव्यक्ति और मताधिकार का दायरा इतना सीमित है कि शेष देश को वैसे भी लंबी थकाऊ  नींद से पस्त माना जा सकता है।
’और पाकिस्तान? उसकी तो बात ही न्यारी है! पाकिस्तान की जनता तो अपने हर राजनैतिक दल द्वारा पिलाई गई भारत विरोध की उस घुट्टी के खुमार में है कि उनकी अधखुली आंखें सच दिखने पर भी उसे पहचानने की क्षमता खो चुकी हैं।
इसलिए विश्वव्यवस्था के इस गड्डमड्ड में जरूरी है कि उस देश की आंखें मुस्तैदी से खुली रहें जो दुनिया का सबसे जवान देश है और जहां सूचना क्रांति सबसे तेजी से समाज के निचले पायदान तक पकड़ बना रही है। नींद बांधती है। सोया हुआ व्यक्ति या खोया हुआ राष्टÑ औरों के भरोसे ही होता है। एक लंबे समय तक हम खोए और सोए ही तो रहे!
एक खुमारी समाजवाद के बूते भारत के उद्धार की।
एक खुमारी हिंदी-चीनी भाई-भाई की, मोमबत्तियों की रोशनी में एक सपनीली कल्पना हिन्दुस्थान-पाकिस्तान मैत्री की। सोए तो थे! जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के पहले तक भारत का रक्षा प्रतिष्ठान भी नहीं जानता था कि हमारे पास परमाणु बम है या नहीं, और अगर है तो उसे लेकर हमारी सोच, नीति, सिद्धांत क्या हैं? जनरल के. सुंदरजी की पुस्तक- ‘द ब्लाइंड मैन आॅफ हिन्दुस्तान’ इसका एक दर्पण थी। तकनीक के दौर में अब न दर्पणों (तथ्यों) की कमी है न आईना दिखाने वालों की।
’कुलभूषण जाधव प्रकरण में विएना समझौते और निर्धारित न्याय प्रक्रिया तक का उल्लंघन हुआ।
’चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा हमारे आंगन से गुजर रहा है। दोनों पड़ोसी अवैध गुपचुप सहमति से कदम बढ़ाए जा रहे हैं लेकिन भारत पर उसी के अरुणाचल को ‘आपत्तिजनक कब्जा’ बताते हुए आंखें तरेरी जा रही हैं!
’और आतंकवाद से अमेरिका के टकराने के सवाल का तो कहना ही क्या? पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी मदद में पांच साल बाद पहली बार वृद्धि की गई है, और अमेरिका के शीर्ष नीति निर्माता जनरल सुन्नी आतंकवाद की सजा शिया ईरान को देने पर आमादा हैं। कारण सब जानते हैं। भारत सूचनाओं के जाल में उलझा है (दुनिया को शायद कहीं यह भ्रम भी है कि यह पहले के दशकों की तरह सुस्त अथवा अकर्मण्य प्रतिक्रिया का देश है। याद कीजिए, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव का वह चर्चित कथन कि कोई प्रतिक्रिया न देना भी एक प्रकार की प्रतिक्रिया है।)
भारत के बारे में भ्रामक धारणाएं पालने वालों से और सिर्फ अधूरी सूचनाओं की बमबारी से भौचक ज्ञानियों से अब यह कहना जरूरी है कि जनाब ठहरिए! चीन सिर्फ जिस अरुणाचल को देख रहा है उससे लगता तिब्बत भी है।  पाकिस्तान जिस इलाके को देते हुए चीन के आगे बिछा जा रहा है उस क्षेत्र में स्वाभिमानी बलूच भी हैं।
और आतंक से नूराकुश्ती में जिस अफगानिस्तान-ईरान को कभी पाकिस्तान तो कभी अन्य पश्चिमी शक्तियां रौंध रही हैं, जनभावनाएं वहां भी हैं! इस सबको छुपाए भी वे भावनाओं के ऐसे ज्वार से भरे बैठे हैं। जिन्हें रोकना उनके लिए संभव नहीं होगा जो सच का, सूचना का सिर्फ एक पहलू उजागर करने का खेल खेलते रहे हैं। खेल पूरा होगा लेकिन हमारी शर्तों पर, क्योंकि भारत सो नहीं रहा, जाग रहा है।
जय हो!

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