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पाञ्चजन्य ने 1968 में क्रांतिकारियों पर केंद्रित चार विशेषांकों की शंृखला प्रकाशित की थी। दिवंगत श्री वचनेश त्रिपाठी के संपादन में निकले इन अंकों में देशभर के क्रांतिकारियों की शौर्य गाथाएं थीं। पाञ्चजन्य पाठकों के लिए इन क्रांतिकारियों की शौर्य गाथाओं को नियमित रूप से प्रकाशित कर रहा है। प्रस्तुत है 22 जनवरी ,1968 के अंक में प्रकाशित शम्भूनाथ आजाद का आलेख की दूसरी कड़ी:-
लोहे की अलमारियां खोलकर लगभग 70 हजार के करेंसी नोट टैक्सी में पहुंचा दिए गए। इस पांच मिनट के अल्प समय में ही चौराहे पर खड़ा ट्रैफिक पुलिस का सिपाही और अन्य दो सिपाही बैंक के मुख्य दरवाजे पर आकर बच्चूलाल से पूछताछ करने लगे। बच्चूलाल ने एक सिपाही का बंदूक का कुंदा मारकर मोड़ दिया। इससे वहां उपस्थित हजारों लोगों में भय और आश्चर्य फैल गया। कारण कोई समझ नहीं सका। बच्चूलाल ने अलार्म की सीटी दी। हम सभी ने परिस्थिति की गंभीरता को देखा और बैंक के तहखाने में जमा भारी धनराशि नहीं उठा पाए एवं टैक्सी में आकर भीड़ को चीरते हुए साफ निकल गए। इसी बीच, मूसलाधार बारिश होने लगी। हम लोग इसका अवसर नहीं पा सके कि टैक्सी के ड्राइवर तक पहुंचकर उसे खोल सकते। हमारे लिए टाइगर हिल के अतिरिक्त अन्य कोई छिपने का सुरक्षित स्थान नहीं था। जब टैक्सी ऊटी से 15-16 मील दूर कुनूर शहर पहुंची, तो ऊटी शहर के एसपी, पुलिस, कमिश्नर, कलक्टर आदि ने पीछा करना प्रारंभ कर दिया।
पुलिस को धोखा
कुनूर शहर से गुजरते ही तत्काल सभी ने मार्ग में अपनी पेशाकें बदल डालीं। सभी मुस्लिम पोशाक में हो गए और अपनी टैक्सी को जनानी टैक्सी बना ली। पर्दा डाल लिया। इसी बीच मेट्रोपालियम से एक पुलिस अधिकारी अपनी मोटरकार से ऊटी शहर को जा रहा था। पीछा करने वाले अधिकारियों ने उससे हमारी कार के बारे में पूछताछ की। उसने बताया कि ऐसी कोई कार रास्ते में नहीं मिली। एक मुस्लिम जनानी कार अवश्य गई है। उसकी इस रिपोर्ट से पीछा करने वाले अधिकारी ढीले हो गए और उन्होंने अनुमान लगाया कि हम सभी लोग ऊटी के जंगल में छिप गए हैं। हमारी कार मेट्रोपालियम के करीब मद्रास के लिए जा रही थी। इसी बीच ऊटी से राज्य के अधिकारियों ने तमाम शहरों और पुलिस स्टेशनों के अधिकारियों को सूचना दे दी। मेट्रोपालियम शहर के निकट पुलिस ने बच्चों को पानी में खेलने को छोड़ दिया और पुलिस सादे वेश में अपनी राइफलों को छिपा-छिपा कर दोनों ओर कतारें बनाकर खड़ी हो गई।
हमारी टैक्सी को बंसी चला रहे थे। वह पहाड़ों में गाड़ी चलाने के अच्छे अभ्यासी थे। वे तेज गति में टैक्सी ले जा रहे थे। यह निश्चित था कि पुलिस की कतार में किसी का भी हाथ उठा हुआ दिखाई दे तो दोनों ओर से पिस्तौलों और दस्ती बम से हमला कर दिया जाए। मगर हथियारबंद सादे कपड़ों की पुलिस कुछ नहीं कर पाई। ट्रैफिक का खड़ा सिपाही डर कर भाग गया। हमलोग जब एक मील से अधिक दूर निकल गए, तब फायर प्रारंभ हुए। हमने कोयंबटूर शहर से दस मील पहले मुख्य सड़क को छोड़ दिया और कच्चे रास्तों पर आ गए और ज्वार के खेतों एवं सुपारी के बगीचों में टैक्सी को छोड़कर अपने सभी कपड़े बदल कर मद्रासी वेश में दो टुकडि़यों में बंट गए। रत्नम और मैं प्राय: सभी धन और मिलिट्री का वेश लेकर आधी रात्रि की गाड़ी से कोयंबटूर के लिए रवाना हो गए। शेष ने कहा कि हम 1 मई, 1933 की दोपहर तक अपने स्थान पर न पहुंचे तो सावधान हो जाना और मद्रास के अपने स्थान को बदलकर परिस्थिति का निरीक्षण कर कार्य करना। हम दोनों दूसरे दिन मद्रास में साथी गोविंदराम वर्मा के पास पहुंच गए।
शम्भू निश्चित स्थान पर मद्रास में नहीं मिले और वह मार्ग में ही मलाबार के लिए अपने साथियों को लाने चला गया। साथी गोविंदराम ने अखबारों में प्रथम पृष्ठ की खबर दिखाई जिसमें हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस का मुख्य शीर्षक 'ऊटी बैंक की नाटकीय डकैती' था। उसमें पढ़ा कि साथी गोविंदराम वर्मा 4 मई को पुलिस से छह घंटे तक संघर्ष करते हुए शहीद हो गए। यह क्रांतिकारी योद्धा साथी 21 वर्ष की आयु में मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो गए। वहीं, हम तीन साथी— मैं, इन्द्रसिंह मुनि और हीरालाल कपूर (जो बाद में मुखबिर हो गया) गिरफ्तार हो गए।
यह लो रिवाल्वर हमें मार दो
ऊटी बैंक कांड के चार अन्य साथी सर्वश्री हजारासिंह, खुशीराम मेहता, बच्चूलाल और नित्यानंद वात्स्यायन ई रोड सेंट्रल स्टेशन पर पुलिस के द्वारा घेर लिए गए। हजारासिंह और बच्चूलाल पुलिस से लड़ते हुए बच निकले, पर नित्यानंद और खुशीराम मेहता गिरफ्तार कर लिए गए। पुलिस की हिरासत में नित्यानंद पुलिस का मुखबिर बन गया और उसने 30 अप्रैल को सारा रहस्य खोल दिया। 2 मई 1933 को एक जंगल में सोते हुए सरदार हजारासिंह को पुलिस ने पकड़ लिया और बच्चूलाल को एक अन्य जंगल में पर्वत-शिखर पर घेर लिया, मगर अपने सामने भारतीय पुलिस को आता हुआ देखकर बच्चूलाल ने भावुकता में आकर सिपाहियों से कहा—''तुम्हें शर्म नहीं आती है। भारतीय होकर हम देशभक्तों को पकड़ने आ रहे हो। यह लो रिवाल्वर, हमें मार दो''— कहते हुए उन्होंने अपना भरा हुआ रिवाल्वर पुलिस के सम्मुख फेंक दिया। मद्रास में अपने निवास पर हम चार साथी भी जिनका उल्लेख ऊपर आया है, 4 मई को दिन में बारह बजे घेर लिए गए। वहां छह घंटे तक लड़ाई हुई।
इस कांड में गिरफ्तार हम सभी साथियों पर मद्रास में मुकदमा चला और सजा सुनाई गई। मुझे ऊटी बैंक कांड में 15 वर्ष और मद्रास नगर बम कांड में 20 वर्ष की सजा हुई—दोनों अलग-अलग। कुल 13 वर्ष बाद 1946 में रिहा हुए। अंडमान में रहे। अन्य साथियों को इस प्रकार सजा हुई—
हजारा सिंह—40 वर्ष,
नित्यानंद—80 वर्ष
खुशीराम मेहता—40 वर्ष,
बच्चूलाल—35 वर्ष एवं श्रीरत्नम को मुखबिर होने पर छोड़ दिया गया। ल्ल
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