|
सब जानते हैं कि जासूस जेम्स बॉन्ड नहीं, छलावा होते हैं। पहचान से दूर। लेकिन कितने कमाल की बात है कि पाकिस्तान के हत्थे न सिर्फ हरफनमौला बल्कि उससे भी बढ़कर 'पासपोर्ट वाला' भारतीय जासूस चढ़ा है!
कुलभूषण जाधव बलूचिस्तान में विद्रोह भड़काना चाहता था—यानी वह पाकिस्तान के अलावा ईरान के भूगोल को भी अस्थिर करने की क्षमता रखता था क्योंकि बलूचिस्तान तो ईरान से भी लगता है!
जाधव चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को निशाना बनाने के मिशन पर था—यानी कानूनी तौर पर जो भारत का हिस्सा है, वहां चीन-पाकिस्तान की गलबहियां और हेकड़ी इतनी ही वैध हैं कि सिर्फ एक भारतीय व्यक्ति इस हनक को पलीता लगा सकता है!
जाधव रॉ का एजेंट था—यानी वह पाकिस्तानी सेना या आईएसआई से उलट तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों को खत्म करने के मिशन पर था और इसलिए अफगान तालिबान को तो पाकिस्तान के लिए तालियां बजानी ही चाहिए!
एक छोटा-सा कारोबारी और 'यानी, ये वो है' का इतना बड़ा बोझ! यानी, अकेला जाधव वह सब कुछ कर सकता है कि चीन, ईरान, अफगानिस्तान बाकी सब काम छोड़कर पाकिस्तान के पक्ष में और भारत के विरुद्ध लामबंद हो जाएं!
गौर करने वाली बात है कि जाधव की गिरफ्तारी की घोषणा मार्च में उस वक्त की गई थी जब चाबहार करार के लिए भारतीय सक्रियता पहली बार सुगबुगाहट बनी। क्या यह सिर्फ संयोग है?
यह केवल संयोग नहीं बल्कि पाकिस्तानी राजनय की शैली है। एक ऐसी शैली जो नकारात्मकता के खांचे से परे सोच ही न पाने और मौका मिलते ही पड़ोसियों पर घात करने के लिए अभिशप्त है। जो लगातार षड्यंत्रकारी और उकसाऊ ढंग से कदम बढ़ाते हुए भी संबंधों के सामान्यीकरण में अड़चन पैदा करने का ठीकरा भारत के माथे फोड़ते हुए चलती है।
तेरह माह, तेरह आग्रह और परिणाम… शून्य। पाकिस्तानी कूटनीति के 'कुलभूषण जाधव स्टेशन' पर भारत का स्वागत है। बात यदि पाकिस्तान की हो तो गरिमापूर्ण व्यवहार भूल ही जाइए। जाधव प्रकरण इस बात का जीवित साक्ष्य है कि राजनयिक संबंधों में कोई एक पक्ष जब गरिमा की ऊंचाई से लुढ़कता है तो षड्यंत्रों के अंधकूप तक गिरता है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ऐसी हरकत अपने आप में अपराध है। लेकिन अपराधी को इस सबसे फर्क कहां पड़ता है? पलकें तो तब झुकें जब अपराध बोध हो! ईरान से उठाए, तालिबान गुगार्ें से से खरीदे गए एक भारतीय नागरिक पर तमाम गुनाहों के ठप्पे लगाकर पाकिस्तान न सिर्फ कुटिल ढंग से मुस्कुरा रहा है, बल्कि भारतीय पक्ष की बांह भी मरोड़ना चाहता है।
हर तरफ मात दिखी तो हाथ एक भारतीय को प्यादे के तौर पर इस्तेमाल करने, उसकी बलि देने को बेचैन हो गए। कुछ लोगों को कुलभूषण जाधव प्रकरण के कूटनीतिक/राजनयिक मामला होने पर भ्रम या शंका हो सकती है लेकिन जितना जल्दी हो, यह गलतफहमी दूर होनी चाहिए। ईरान से पाकिस्तान के रास्ते गैस परियोजना का लंबा इंतजार और इसका हश्र देखने वाले समझ सकते हैं कि क्षेत्रीय समीकरणों के तार कहां जुड़े हैं। 21 मई, 2016 को अमेरिका ने पाकिस्तान में ड्रोन हमले में तालिबानी सरदार मुल्ला अख्तर मंसूर को मौत की नींद सुला दिया। दो रोज बाद तक सदमे के मारे पाकिस्तान के बोल नहीं फूटे थे। ठीक यही वह समय था जब ईरान-अफगानिस्तान और भारत के नेता तेहरान में चाबहार करार को अंतिम रूप देने में जुटे थे।
पास-पड़ोस में भारत की स्वीकार्यता का दायरा बढ़ने, सुन्नी-वहाबी आतंकवाद के सिमटने और ईरान, अफगानिस्तान के साथ भारत की चाबहार संधि ने पाकिस्तान के पेट में ऐसी मरोड़ पैदा की है जो उसे किसी करवट चैन नहीं लेने दे रही।
बहरहाल, देशों के बीच संबंध कैसे भी हों, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के नियम-कायदे और संस्थागत ढांचे इनके लिए नीति-निर्देशक और ताप नियंत्रक की भूमिका निभाते हैं। जाधव के मामले में वियना संधि का खुला उल्लंघन और सैन्य अदालत की सनक भरी कार्रवाई का समर्थन विश्व मंच पर कौन करेगा?
समाज के तौर पर खोखला, हिंसक व सकारात्मक मुद्दों से खाली, पास-पड़ोस में अलग-थलग पड़ा और अंदरखाने सत्ता, सेना और सुन्नी वर्चस्व की गुत्थमगुत्था से गुजरता पाकिस्तान भारत के प्रति अपनी सदा की पाली भड़ास निकालने के मौके तलाशता रहता है। लेकिन इस बार उसकी कहानी में भावशून्यता और मनगढंत झूठों के इतने गड्डे हैं कि यह कहानी सिवा पाकिस्तान के और कहीं नहीं पच सकती। सचाई यह है कि जिसे वह मौका समझ रहा है, वही उसकी मात भी है। पाकिस्तान! इतने हल्के में मत लो, जाधव वास्तव में बहुत भारी पड़ने वाला है।
टिप्पणियाँ