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देश के प्रतिष्ठित पत्रकार, इतिहासकार व पाञ्चजन्य के पूर्व संपादक श्री देवेन्द्र स्वरूप को गत 30 मार्च को एक गरिमामय समारोह में सम्मानित किया गया। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय ने प्रो. स्वरूप के 92वें वर्ष में प्रवेश के दिन संवाद संगोष्ठी का आयोजन किया। श्री रामबहादुर राय के अध्यक्ष बनने के बाद इस केन्द्र ने संस्कृति संवाद शृंखला शुरू की है। इस बार उसके निमित्त बने देवेन्द्र स्वरूप। संवाद के लिए वे हमेशा से निमित्त बनने को तैयार भी रहते हैं। राम बहादुर राय ने उनको एक ऋषि बताते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय कला केन्द्र का सौभाग्य है कि हमें उन्हें सम्मानित करने का अवसर मिला। इसी निमित्त हम संस्कृति के बदलते आयाम एवं राष्ट्रीयता के विषयों पर संवाद का आयोजन कर पाए। इस आयोजन में उनके युवा जीवन से साथी पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल विशेष रूप से उपस्थित रहे। श्री स्वरूप की 92 वर्षीय यात्रा में लगभग 72 वर्ष संघ की विचार यात्रा भी साथ चली। वे संघ विचार परिवार के एक वैचारिक स्तंभ माने जाते हैं। इसीलिए उनके जीवन पर बने एक वृत्त चित्र को देखने संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री मदन दास भी पहुंचे। इस अवसर पर देवेन्द्र स्वरूप के संक्षिप्त जीवन परिचय व विचार यात्रा को समेटती एक पुस्तक 'संवाद पुरुष: प्रो. देवेन्द्र स्वरूप' का लोकार्पण भी किया गया। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का संकलन व संपादन जितेन्द्र तिवारी ने किया है।
समारोह में प्रो. देवेन्द्र स्वरूप का अभिनंदन करते हुए डॉ. जोशी ने प्रयाग में अपने छात्र जीवन को याद किया। तब स्वरूप वहां विश्वविद्यालय में संघ के प्रचारक थे। डॉ. जोशी ने कहा कि देवेन्द्र जी अपने सम्पर्क व कर्तव्य के प्रति इतनी लगन से जुटे थे कि कॉलेज के लोग यही समझने लगे थे कि मैं नहीं, वहां देवेन्द्र जी ही शोध कार्य कर रहे हैं। विचार और कार्य के प्रति उनकी यह निष्ठा और लगन जीवन भर परिलक्षित होती रही। उन्होंने संघ के विचारों को प्रस्तुत करने के साथ ही हर तरह के वैचारिक विरोध के लिए शोध करके तर्कपूर्ण तथ्य जुटाए और हम सबको उपलब्ध कराए। उन्होंने अपने शोधपूर्ण लेखन से न सिर्फ भारत के संदर्भ में इतिहास में वर्णित तथ्यों को दुरुस्त कर व्याख्यायित किया बल्कि एक नई दृष्टि भी दी।
रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने इस अवसर पर प्रो. स्वरूप को एक आदर्श और वैचारिक स्वयंसेवक बताया और उनकी अध्ययनशील प्रवृत्ति और पुस्तक संग्रह को उल्लेखनीय कहा। उन्होंने कहा कि अपने विचारों की दृढ़ता के लिए आवश्यक है कि हम तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में समझें। हिन्दुत्व के विचार और भारतीय दर्शन को समझने के लिए हमें अपने शास्त्रों को खंगालना होगा। देवेन्द्र स्वरूप ने जीवन भर यही काम किया।
इस अवसर पर आयोजित 'संस्कृति के बदलते आयाम और जीवन दर्शन' संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रख्यात अर्थशास्त्री व उत्तर क्षेत्र के संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त ने की। उन्होंने कहा कि संस्कृति निरन्तर प्रवाहमान होती है। इस संगोष्ठी में हिन्दुस्थान समाचार के अध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य श्री आर.के.सिन्हा, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष श्री बल्देव भाई शर्मा और एकात्म मानव दर्शन अध्ययन एवं शोध प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश चन्द्र शर्मा, प्रख्यात पत्रकार श्री बनवारी ने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए।
'राष्ट्रीयता के स्वर' विषय पर आयोजित दूसरे सत्र का संचालन पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने किया। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ इतिहासकार श्री बी.बी. कुमार ने की तथा मुख्य वक्ता थे वरिष्ठ चिंतक श्री के. एन. गोविन्दाचार्य। जनसांख्यकी विषय के अध्येता डॉ. जितेन्द्र बजाज, इतिहासकार सुश्री मीनाक्षी जैन और पीजीडीएवी कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक डॉ. चन्द्रपाल ने इस विषय पर अपने निष्कर्ष व विचार प्रस्तुत किए।
समारोह में विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पत राय, संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, प्रसार भारती के अध्यक्ष श्री ए. सूर्यप्रकाश एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री अच्युतानंद मित्र सहित अनेक गण्यमान्य जन उपस्थित थे।
प्रतिनिधि
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