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बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को दिल्ली ने उनके जीवन के सबसे कठिन दौर में सम्मान के साथ शरण दी थी। वह छह साल तक पति और दोनों बच्चों के साथ यहां रहीं
विवेक शुक्ला
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद जब जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रही थीं, तब दिल्ली ने सम्मान के साथ उन्हें शरण दी थी। इसलिए वे 7-10 अप्रैल को अपनी भारत यात्रा के समय उस दौर को याद करना नहीं भूलेंगी।
1975-1981 तक शेख हसीना ने दिल्ली में अपने पति डॉ. एम.ए. वाजेद मियां और दोनों बच्चों के साथ निवार्सित जीवन गुजारा। 15 अगस्त,1975 को उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान, मां और तीन भाइयों का ढाका के धनमंडी स्थित आवास पर कत्ल कर दिया गया था। उस भयावह कत्लेआम के समय शेख हसीना पति और बच्चों के साथ जर्मनी में थीं, इसलिए उन सभी की जान बच गई थी। वाजेद मियां परमाणु वैज्ञानिक थे और जर्मनी में ही कार्यरत थे।
टूट गई थीं हसीना
उस कत्लेआम ने शेख हसीना को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था। वे टूट चुकी थीं। इसलिए उस हत्याकांड के बाद उनके बांग्लादेश लौटने का सवाल ही नहीं था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में राजनीतिक शरण देने का फैसला लिया था। इंदिरा गांधी और शेख मुजीब-उर-रहमान के निजी संबंध थे। लिहाजा शेख हसीना सपरिवार भारत आ गईं। उन्हें राजधानी के पंडारा रोड के सी-ब्लॉक में सरकारी आवास मिल गया। इसमें ड्राइंग रूम के साथ-साथ तीन बेडरूम और सेवकों के लिए अलग से कमरे थे। हालांकि पंडारा रोड जाने से पहले शेख हसीना कुछ हफ्ते तक 56, लाजपत नगर-3 के घर में भी रही थीं। बाद में कई साल तक बांग्लादेश उच्चायोग वहीं से काम करता रहा। अब यह चाणक्यपुरी में है। तब शेख हसीना के दोनों बच्चे बेटा साजिद वाजेद जय और बेटी सईमा हुसैन पुतुल बहुत छोटे थे। जय को दार्जिलिंग के सेंट पॉल स्कूल में दाखिला दिला दिया गया था, लेकिन बेटी शेख हसीना के साथ ही रही।
सहेली की अंत्येष्टि में आईं
उन छह बरसों के दौरान हसीना कमोबेश गैर-राजनीतिक ही रहीं, बावजूद इसके कि वे शेख मुजीब जैसे वरिष्ठ नेता की पुत्री थीं। वे जिस समय भारत आईं, उस समय देश में आपातकाल लागू था। मुमकिन है, इस कारण उन्हें बहुत से लोगों से मुलाकात करने की इजाजत नहीं थी। वे खुद भी कम ही लोगों से मिलती-जुलती थीं। दिल्ली में श्रीमती शुभ्रा मुखर्जी से उनकी मित्रता हुई। शुभ्राजी मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पत्नी थीं। इस वजह से दोनों परिवारों का मिलना-जुलना होने लगा। 2010 में शेख हसीना जब प्रधानमंत्री के तौर पर दिल्ली आईं तो वह खासतौर से शुभ्राजी से मिली थीं। अगस्त 2015 में जब शुभ्राजी का निधन हुआ तो वे अपनी बेटी पुतुल के साथ ढाका से उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए दिल्ली आईं। उनकी अगवानी करने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंची थीं। तब शेख हसीना ने जिस भाव से शर्मिष्ठा मुखर्जी को गले लगाया था, उसे देखकर लगता है कि दोनों परिवारों में घनिष्ठ संबंध हैं।
गिने चुने लोगों से मेल-जोल
राजधानी के मशहूर हिन्दुस्तान फुटबाल क्लब के प्रमुख श्री डी.के. बोस उन गिने-चुने लोगों में शामिल थे, जो हसीना से मिलते थे। आमतौर पर वे किसी बाहरी व्यक्ति से नहीं मिलती थीं। निर्वासन के दौरान उनके पिता के एक करीबी सहयोगी ए़ एल़ खातिब भी साथ रहने लगे थे। वह पेशे से पत्रकार थे। उन्होंने मुजीब की हत्या पर 'हू किल्ड मुजीब' पुस्तक लिखी थी, जिसे विकास प्रकाशन ने प्रकाशित किया था। यह मुजीब की हत्या पर लिखी सबसे प्रामाणिक किताब मानी जाती है। उस दौरान दिल्ली में उनसे किसी भी समय उनकी पार्टी के नेता, बुद्धिजीवी, लेखक और कवि भी मिलने आते थे। शेख हसीना से जब कोई मिलने आता था तो कुछ देर के लिए उनके पति भी आ जाते थे। वे भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग से जुड़ चुके थे और यहीं पर शोध कर रहे थे। बोस बताते हैं, ''शेख हसीना के साथ बैठकों में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की किसी कृति पर चर्चा हो ही जाती थी। उनके सबसे प्रिय लेखक टैगोर ही हैं।'' शेख हसीना को करोल बाग बंग सभा और मिंटो रोड पूजा समिति ने भी अपने कुछ कार्यक्रमों में आमंत्रित किया था। पर वे इनके कार्यक्रमों में शामिल नहीं हुईं। 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में कत्लेआम हो रहा था, तब इन पूजा समितियों ने पाकिस्तान उच्चायोग के बाहर बड़ा प्रदर्शन किया था। शेख हसीना जब भी दिल्ली आती हैं तो उम्मीद बंधती है कि वे पंडारा रोड स्थित पुराने आवास को देखने अवश्य जाएंगी। लेकिन किसी कारणवश अब तक ऐसा नहीं हो पाया। क्या वे इस बार पंडारा रोड जाएंगी?
शेख हसीना के अलावा कई अन्य देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और अन्य नेताओं के भी भारत से संबंध रहे हैं। बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति हुसैन मुहम्म्द इरशाद ने 1970 के दशक के मध्य में राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज से पढ़ाई की। नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने 1964 में दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने 1979-83 तक अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं राजनीति विज्ञान में शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से परास्नातक की पढ़ाई की। इसके अलावा, नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति ओलुसेगन ओबासांजो, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई, बी.पी. कोइराला, जी.पी. कोइराला और घाना के पूर्व राष्ट्रपति लेफ्टिनेंट जनरल अकूफो ने भी यहां पढ़ाई की। इन सभी नेताओं का भारत से भावात्मक जुड़ाव रहा है।
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