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भाजपा की स्थापना को 37 वर्ष हो गए हैं। पार्टी ने नए जोश के साथ विस्तार का संकल्प दोहराया है। चुनावी गणित की दृष्टि से पार्टी का ग्राफ बढ़ता दिखता है। संसद में भी संख्याबल में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। लेकिन दक्षिण और पूर्वोत्तर के साथ ही अभी गांव-गरीब-किसान के लिए काफी काम बाकी है
आलोक गोस्वामी
ऊगर भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों की बात करें तो एक दल है जो अपनी अनूठी पहचान और विशिष्ट सांस्कृतिक भाव-भूमि के कारण सबसे अलग तेजपुंज-सा चमकता दिखता है—भारतीय जनता पार्टी या भाजपा। आज भारत के 16 राज्यों में भाजपा या इसके सहयोगी दलों के साथ राजग की सरकारें हैं, 13 मुख्यमंत्री हैं, 1,398 विधायक हैं, 77 विधान परिषद सदस्य, 281 लोकसभा सांसद और 56 राज्यसभा सांसद हैं। अपनी स्थापना की 37वीं सालगिरह मना रही भाजपा 1984 में महज 2 सांसदों की पार्टी से आज केन्द्र में पूर्ण बहुमत वाली दुनिया की सबसे लोकप्रिय सरकार बनाने तक पहुंची है तो निश्चित ही इसके संगठन में ऐसे संस्कार होंगे जो इसे उत्तरोत्तर आगे बढ़ा रहे हैं। पार्टी के इस सांगठनिक कौशल और विकास के पायदान को समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे लौटना होगा।
6 अप्रैल, 1980 को मुंबई (तब बम्बई) में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में अस्तित्व में आई भाजपा के ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ का उद्घोष करके एक अलग पहचान के साथ उभरने के पीछे दो खास वजहें ध्यान में आती हैं। एक, इसका वैचारिक अधिष्ठान सांस्कृतिक राष्टÑवाद, और दो, इसे उस अधिष्ठान पर सतत् चलते रहने की प्रेरणा देने वाला आरम्भिक मार्गदर्शक नेतृत्व यानी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय। लियाकत अली-नेहरू के बीच दिल्ली समझौते के विरोध में तत्कालीन नेहरू सरकार में मंत्री पद से 1950 में त्यागपत्र देने के बाद पूज्य गुरुजी के मार्गदर्शन और पं. दीनदयाल उपाध्याय के साथ जनसंघ की नींव डालने वाले डॉ. मुखर्जी उत्कट देशभक्त थे। याद कीजिए, उनके नेतृत्व में चला कश्मीर आंदोलन, जिसकी परिणति श्रीनगर में नजरबंदी के दौरान उनकी रहस्यमय मौत में हुई, जिसकी गुत्थी आज भी अनसुलझी है। जनसंघ के दूसरे प्रेरणा-पुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय और एकात्म मानवदर्शन जैसे सूत्रों के सहारे पार्टी को आगे बढ़ाया, उसे वैचारिक बल दिया।
1975 में देश में श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातकाल लगाया, जिससे जनसंघ सहित तमाम राष्ट्रवादी पार्टियों और सांस्कृतिक-सामाजिक संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर लोहा लिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ऐसा प्रचंड जनांदोलन खड़ा किया कि तत्कालीन सत्ता हिल गई। आपातकाल हटा। लोकसभा चुनाव हुए। इंदिरा शासन के खिलाफ लामबंद हुए दलों ने मिलकर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी के नाम से नया दल बनाया जिसमें जनसंघ भी शामिल हुआ। लेकिन आंतरिक मतभेदों ने अंतत: 1979 में जनता पार्टी को खंड-खंड कर दिया, अटल जी के नेतृत्व में दीनदयाल पथ के राही अलग हुए और अंतत: काफी विचार-विमर्श के बाद 6 अप्रैल, 1980 को मुंबई में उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भाजपा का उदय हुआ जो कश्मीर आंदोलन में डॉ. मुखर्जी के साथ सत्याग्रह के लिए निकले थे। उस दौरान ही अटल जी ने अपनी वह सुप्रसिद्ध कविता लिखी थी-आओ, फिर से दीया जलाएं…
1984 में लोकसभा के लिए भाजपा के सिर्फ दो सांसद चुनकर आए थे, लेकिन वहां से विचारधारा से समझौता न करते हुए जो संघर्ष शुरू हुआ, उसने फिर एक के बाद एक जनांदोलनों की राह से गुजरते हुए अपना संख्याबल बढ़ाया, अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई। इसमें श्री रामजन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण का आह्वान करने वाली श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा (सितम्बर-अक्तूबर 1990), जनादेश यात्रा (सितम्बर,1993), स्वर्ण जयंती रथयात्रा (मई-जुलाई 1997), भारत उदय यात्रा (2004), भारत सुरक्षा यात्रा (अप्रैल-मई 2006) और जनचेतना यात्रा (अक्तूबर 2011) का अप्रतिम योगदान रहा है। पार्टी की भारत के एक से दूसरे कोने तक स्वीकार्यता बढ़ती गई और राष्टÑहित से समझौता न करने का इसका मूलमंत्र लोगों को दिलों में उतरता गया। पार्टी की इस राजनीतिक यात्रा में पूर्वोत्तर और दक्षिण में भाजपा सरकारें बनना एक बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। बंगलूरू में येद्दियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने (मई 2008) के साथ जहां दक्षिण में भाजपा का द्वार खुला तो वहीं असम में सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में पार्टी का सत्ता में आना (मई 2016) उसके लिए पूर्वोत्तर में द्वार खोलने जैसा ही रहा है। वैसे असम के अलावा अभी मार्च 2017 में भी मणिपुर में भाजपा नीति सरकार बनी है।
राष्टÑहित को सर्वोपरि रखते हुए आगे बढ़ती भाजपा ने मई 2014 में केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाकर जिस तरह देश को ‘सबका साथ-सबका विकास’ के रास्ते पर बढ़ाया है, उसने दुनिया में एक मिसाल कायम की है। इरादे ईमानदार हों तो उपलब्ध संसाधनों में भी देश को खुशहाली के रास्ते पर कैसे बढ़ाया जा सकता है, यह दिखाया है मोदी सरकार ने। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर सत्ता में आई भाजपा के विकास कार्यक्रमों और कालेधन पर लगाम लगाने वाले नोटबंदी के फैसले पर विरोधी भले कैसी भी टिप्पणी करें, देश की जनता ने खुले दिन से मोदी को समर्थन दिया। फिर चाहे वे लोकसभा चुनाव हों, पंचायत, नगर निकाय, विधान परिषद या हाल में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव, भाजपा का राजनीतिक ग्राफ आगे बढ़ता गया है।
आज पार्टी की सदस्य संख्या 11,20,52,540 पहुंची है तो इसके पीछे कार्यकर्ताओं का अथक परिश्रम है। पार्टी ने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की एक मजबूत टीम लगाई है जिनमें 42 प्रचारक योगदान दे रहे हैं तो 105 पूर्णकालिक कार्यकर्ता भी हैं। 10 राज्यों के 535 जिलों में 6879 मंडलों में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण वर्ग लगे हैं। सोशल मीडिया पर भी पार्टी की प्रभावी उपस्थिति है। अकेले प्रधानमंत्री मोदी के दुनिया भर में फेसबुक पर 4.03 करोड़ तो ट्विटर पर 2.79 करोड़ ‘फोलोअर्स’ हैं। जनता से सीधे संवाद की व्यवस्था है। यहां तक कि जनता प्रधानमंत्री तक से सीधे अपनी समस्याएं बता सकती है। भारत के सत्ता इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। पार्टी के राष्टÑीय उपाध्यक्ष श्री श्याम जाजू ने पाञ्चजन्य से बातचीत में कहा कि स्थापना दिवस के अवसर पर हर कार्यकर्ता की यह जिम्मेदारी बनती है कि पार्टी जिन सिद्धांतों को लेकर चल रही है, वह उन्हें आगे बढ़ाते हुए भारत को और बेहतर बनाने का संकल्प ले। उन्होंने कहा कि जहां पार्टी की उपस्थिति उतनी मजबूत नहीं है वहां हम शब्दों के सहारे आगे नहीं बढ़ रहे, बल्कि श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह के नेतृत्व में उन स्थानों पर कार्य आगे बढ़ा रहे हैं।
सही है कि संगठन का काम भाषणों और बौद्धिकों के सहारे नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर आम जनता के साथ संबंध बनाने से बढ़ता है। और जब संबंध आमजन के दुख-दर्द दूर करने और देश को विकास की राह पर ले जाने के कार्यक्रमों के सहारे बढेंÞगे तो ऐसे सबंध सभी के लिए सुखकर ही होेंगे। ल्ल
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