कर्मशील जीवन जिएं
July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

कर्मशील जीवन जिएं

by
Apr 3, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 03 Apr 2017 15:14:40

अम्मा के नाम से विख्यात आध्यात्मिक विभूति माता अमृतानंदमयी 21 मार्च को कोयंबतूर में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में पहुंची थीं। वहां उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप जो कहा, उसे यहां संपादित रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है-

इस प्रतिनिधि सभा में भाग लेना मेरे लिए बहुत ही हर्ष का विषय है। सर्वप्रथम तो आप सब लोगों के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलने और कुछ समय बिता पाने के लिए मैं अपना आनंद एवं आभार प्रकट करती हूं। चूंकि आप सब उस भारत माता की प्रेम सहित पूजा एवं सेवा में रत हैं जिसके पालने में सनातन हिन्दू धर्म खेलता है। भारतभूमि आध्यात्मिक प्रभा की भूमि है। यह वह पावन धरा है जो आज भी हमारे ऋषि-मुनियों के कठोर तप तथा महान त्याग की नित्य एवं शुद्ध करने वाली तरंगों से स्पंदित है। यह उस जगद्गुरु की पवित्र भूमि है जिसने सबसे पहले इस विश्व को ज्ञान दिया कि मनुष्य सहित, इस जगत के सभी प्राणी आत्मारूपी सूत्र में पिरोई हुई मणियां हैं, असंख्य नाम-रूपों की मणियों के हार समान। भारत वह जगन्माता है, जिसने प्रेम के सर्वव्यापी मंत्र, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उद्घोष किया।
आध्यात्मिक संस्कृति के उत्कृष्ट मंत्र सदा इसी पावन धरा से उत्पन्न हुए हैं। यह ऐसी प्रेरणादायी और ज्ञान की स्रोत भूमि है जो समस्त विश्व की आंखें खोल दे। जब वह उज्ज्वल प्रकाश हमारे हृदय को आलोकित करेगा तब भारत जागृत होगा। और जब भारत जागृत होगा तब विश्व जागृत होगा, क्योंकि भारत एक भौगोलिक सत्ता मात्र नहीं है। इसकी आत्मा, इसकी शक्ति और इसकी प्रतिभा ऐसी अनूठी है, जिसका दावा कोई और देश नहीं कर सकता। यह भूमि उन ऋषियों के संकल्प से अनुग्रहित है, जिन्होंने ध्यान में अपने ही भीतर सर्वव्यापी परमात्मा का अपरोक्ष अनुभव किया। यदि हम भी इसी संकल्प में विश्वास रखते हुए कर्म करेंगे तो समस्त विश्व से हमें सहायता प्राप्त होगी। सनातन सत्य को दुनिया की कोई ताकत विकृत या नष्ट नहीं कर सकती। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि हम लापरवाही के साथ सोते रहें, बल्कि हमें अत्यंत सतर्कता के साथ कार्यशील रहना चाहिए।
एक समय था जब भारत धन-धान्य से भी समृद्ध था। अंग्रेजी में ‘मॉडर्न’ (आधुनिक) शब्द की खोज से भी बहुत पहले भारत और भारतीय लोग आधुनिक थे। आज माता-पिता बच्चों को उच्च शिक्षा पाने के लिए विदेश भेजते हैं, जबकि प्राचीनकाल में ग्रीस, इजिप्ट तथा चीन आदि देशों के विद्वान भी नव ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति के लिए भारत आया करते थे। भारत के साथ व्यावसायिक संबंध स्थापित करने के लिए स्पेन की महारानी ने कोलंबस को भारत भेजने की कोशिश में ढेर सारा धन खर्च किया था। अर्थशास्त्र, गणित, ज्योतिष-विज्ञान, युद्ध-विद्या, चिकित्सा, रसायन-विज्ञान, भौतिकी, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, व्याकरण ़.़.. कौन सा ज्ञान-विज्ञान है जिसका यहां जन्म न हुआ हो।
3,000 वर्ष पूर्व, भारत विश्व के ताज में एक ऐसे अमूल्य रत्न के समान सुशोभित था, जिसके मूल्य का अनुमान भी दुनिया नहीं लगा सकी। फिर हम इस स्थिति से गिर कैसे गए? इसका यही उत्तर है कि उस समय हम आत्मविद्या को प्रधानता देते थे और उसी के आधार पर दूसरे क्षेत्रों में प्रवेश करते थे।
जब तक भारत परा-विद्या में दृढ़तापूर्वक स्थित रहते हुए कर्मरत था, तब तक अपरा-विद्या में भी दिन दूगुनी-रात चौगुनी उन्नति करता रहा। जिस क्षण से हमने अपनी आध्यात्मिक संस्कृति की उपेक्षा करनी शुरू कर दी, हमारा भौतिक स्तर भी गिरने लगा।
भारत का कण-कण, सारा वातावरण ही ऋषि-मुनियों के त्यागपूर्ण जीवन एवं तपोबल की पावन तरंगों से स्पंदित है। इस सत्य से अनजान अधिकांश लोग सांसारिक सफलता और विषय-भोगों के पीछे दौड़ते-भागते रहते हैं। सूरज की गर्मी, चंद्रमा की शीतलता, नदी के प्रवाह, हवा के ठंडे झोंके की तरह, अध्यात्म भी भारत का स्वरूप, सारमात्र है। यदि हम इस देश, इस धरा की संस्कृति और स्वभाव के विरुद्ध कर्म करेंगे तो इसका कण-कण, संपूर्ण वातावरण प्रतिकार करेगा। यह हमें आगे नहीं बढ़ने देगा। आज सारी समस्याओं की जड़ यही है। ज्यों ही हम इस धरा के आध्यात्मिक सारतत्व को समझ कर, उसके अनुरूप कर्म करने लगेंगे तो भारत फिर से जाग उठेगा; खोई हुई कीर्ति, महिमा, ख्याति फिर से लौट आएगी।
परन्तु हमारे कर्म देह-मन-बुद्धि की सीमित शक्ति में विश्वास पर आधारित न हों। हर कर्म को पूर्ण बनाती है ईश्वर-कृपा। उस कृपा की प्राप्ति के लिए हमारा विश्वास अनंत आध्यात्मिक सत्ता में होना चाहिए। किसी भी छोटे-बड़े काम के सफलतापूर्वक पूरा होने के लिए ईश्वरीय कृपा का होना जरूरी है। एक जम्हाई लेने में भी, हमारे शरीर की अनेक मांसपेशियां और हड्डियां काम करती हैं। उनके सही-सही काम करने के लिए, हमें उस सत्ता की कृपा  और सहायता की आवश्यकता होती है, जो हमारे नियंत्रण से परे की बात है। यदि वह शक्ति पूरी सहायता न करे तो जम्हाई लेते हुए कदाचित् हमारा मुख खुला का खुला रह जाएगा। उस परम सत्ता की, उस कृपा की उपेक्षा करना कुछ यूं होगा मानो कोई अपनी जीभ का उपयोग करते हुए कहे कि, मेरी तो जीभ ही नहीं है! हम अपने समस्त कर्म उस सर्वशक्तिमान ईश्वर को समर्पित करें। हमारे पूर्वज, हमारे आचार्य, ऋषि-मुनि इसी भाव के साथ कर्म करते रहे और हमारे लिए आदर्श स्थापित कर गए।
इस दुनिया में भगवान कृष्ण सर्वोच्च कर्मधीर हुए। उनका जीवन, उनके कर्म, सब यूं अनासक्त थे मानो ‘पानी पर तैरता मक्खन’। नाव भले ही पानी में रहे किंतु सावधान, पानी नाव में न घुसने पाए। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कर्म करने के लिए इसी भाव को अपनाने का उपदेश दिया था।
‘धर्म’ यानी ऐसी विश्वव्यापी संचालन व्यवस्था जिसे संशोधित, परिशोधित नहीं किया जा सकता। धर्मो रक्षति रक्षित: का अर्थ है कि धर्म पर दृढ़तापूर्वक डटे रह कर मनुष्य अपनी रक्षा स्वयं करे। देश कोई भी हो, वहां की कानून-व्यवस्था को तभी सफल कहा जाएगा यदि वहां के लोग उसका पालन करते हों। और यही बात धर्म पर भी लागू होती है।
वेद, उपनिषद्, भगवद्गीता – सभी हमें हर क्षेत्र में पवित्र और उत्कृष्ट जीवन जीने का उपदेश देते हैं। धर्म का पालन करने से, आप अपने भीतर के स्वयंप्रकाश परमात्म-तत्व को जागृत कर सकते हैं। आप सब उत्साही कार्यकर्ता बनें और एकजुट होकर तेजी से आगे बढ़ें। वर्तमान समय चुनौतियों से परिपूर्ण है। किंतु, यदि आप एक उज्ज्वल भविष्य की प्रत्याशा के साथ काम करेंगे, तो सब विघ्न-बाधाएं अपने आप दूर होती चली जाएंगी। भारत फिर एक बार अपनी खोई हुई महिमा को प्राप्त कर, सूर्य समान आलोकित हो उठेगा।
सूर्य को मोमबत्ती की जरूरत नहीं होती। नदी को नाले के पानी की जरूरत नहीं होती, किंतु नाले को शुद्धि के लिए नदी के पानी की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार, परमात्मा को भी हमसे कुछ नहीं चाहिए। लेकिन दुनिया में अनेक ऐसे दु:खी और पीड़ित लोग हैं, जिन्हें हमारी सहायता की आवश्यकता है। अधिकतर दीन-दु:खी लोग गांवों से हैं। हमें उनके स्तर पर उतरकर काम करना होगा। उनके दु:ख की निवृत्ति के लिए हमसे जो बन पड़े, हमें करना चाहिए। सनातन-धर्म में सृष्टि और स्रष्टा अलग नहीं है। स्रष्टा ही सारी सृष्टि में विद्यमान है। जैसे समुद्र से उसकी लहरें अलग नहीं हैं, जैसे आभूषण और सोना अलग नहीं है, उसी प्रकार एक ही चैतन्य तत्व सकल चराचर सृष्टि में प्रकाशमान है।
वर्तमान परिस्थिति कुछ ऐसी है मानो मछली पानी में रहकर भी प्यासी हो। भारत में अनगिनत संन्यासी हैं। उनमें से बहुत कम लोग ऐसे हैं जो समाज में जन-सामान्य के बीच उतर कर सेवा करने को तैयार हों।
300 वर्ष पूर्व गांवों की जो स्थिति थी, उनमें से अधिकांश गांवों में आज भी कोई बदलाव नहीं आया, बल्कि कई गांवों की हालत तो बदतर हो गई है। यही कारण है कि हमें ज्यादा कार्यकर्ता गांव में काम करने के लिए चाहिए। अगर हम कुछ ऐसी कंपनियों और परोपकारी मानसिकता वाले कुछ धनाढ्य लोगों की सहायता प्राप्त करें, जो इन लोगों के वेतन के भुगतान का उत्तरदायित्व ले लें, तो हम कई लोगों को गांवों में काम करने के लिए भेज सकते हैं।
सब प्रकार के दानों में ज्ञानदान महादान है। हमें लोगों को अपने धर्म की समुचित जानकारी देने में सक्षम होना चाहिए। अन्य मत-पंथों की संस्थाओं और प्रार्थना स्थलों में उनके ग्रंथों की जानकारी दी जाती है। यही नहीं, उस उद्देश्य के लिए उनके द्वारा विशेष स्कूल, कॉलेज और संस्थान भी चलाए जाते हैं। वहां प्रशिक्षण देकर उन्हें मत प्रचार के लिए भेजा जाता है। लेकिन हिंदू धर्म में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। कई मंदिरों में काफी दानराशि आती रहती है, किंतु उसका एक छोटा-सा अंश भी हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार पर खर्च नहीं किया जाता। इस स्थिति में बदलाव आना चाहिए। परोपकारी मानसिकता वाले कुछ धनाढ्य लोगों की सहायता से हिन्दू धर्म के शास्त्रों एवं आत्मविद्या संबंधी विशेष कोर्सों की व्यवस्था की जानी चाहिए। योग एवं ध्यान के प्रशिक्षण के लिए स्कूल, कॉलेजों की व्यवस्था की जानी चाहिए। तब हमारे भी प्रशिक्षित लोग समाज में जाकर इनका प्रचार एवं प्रसार करने में सक्षम होंगे। भारत की संस्कृति इसके नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों में ही निहित है। ऐसे अवसरों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि इसे दूसरों को भी समझाया जा सके। भारत सरकार गांवों के लिए बहुत कुछ करती है, लेकिन जरूरतमंद लोगों तक कुछ पहुंच नहीं पाता। हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने इस दिशा में कदम उठाए हैं ताकि राशि सीधे लाभार्थी को ही मिले। हम उनके द्वारा कार्यान्वित उपायों को सफलतापूर्वक लागू करने में अपना पूरा योगदान दें।
प्रतिदिन कितने ही लोग रोगों से पीड़ित होकर या दुर्घटनाओं में मर जाते हैं। हम कर्म करें या न करें, देह का क्षय तो हो ही जाएगा। तो क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम अपनी संस्कृति के उत्थान के लिए कर्म करते हुए देह त्याग करें।     ल्ल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

डोनाल्ड ट्रंप को नसों की बीमारी, अमेरिकी राष्ट्रपति के पैरों में आने लगी सूजन

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies