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नई दल्लिी में 25 और 26 मार्च को ज्ञान संगम के नाम से दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित हुई। प्रज्ञा प्रवाह के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला में 721 शक्षिावद्ि शामिल हुए थे। इनमें 51 कुलपति भी शामिल थे। संगम में वक्ताओं ने कला, संस्कृति, थियेटर, दर्शन, सामाजिक वज्ञिान, प्रबंधन, जन संचार, वज्ञिान आदि विषयों पर गहन
चर्चा की।
प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक श्री जे. नंदकुमार ने बताया, ''इस आयोजन का उद्देश्य शक्षिा जगत की विभन्नि धाराओं में भारतीय परप्रिेक्ष्य से काम करने वाले देशभर के शक्षिाविदों को एक मंच देकर उनकी क्षमताओं का वस्तिार करना है।'' उन्होंने यह भी बताया कि यह पहला प्रयास है, लेकिन आने वाले समय में ऐसे आयोजन प्रांत और क्षेत्र स्तर पर भी होंगे। संगम को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया गया था। सबसे पहले अलग-अलग सत्रों में प्रतिभागियों ने सामग्री, समकालीन प्रवृत्तियों और चुनौतियों से संबंधित विषयों पर चर्चा की। विशेषज्ञ सत्र में विभन्नि विषयों के विशेषज्ञों ने अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र के प्रथम वक्ता थे प्रख्यात चिंतक और स्तंभकार एस. गुरुमूर्ति। उन्होंने सांस्कृतिक हमले के बारे में बताया। इस सत्र की अध्यक्षता काशी हिंदू वश्विवद्यिालय के कुलपति डॉ. गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने की। दूसरे सत्र को ब्राह्मण महाराष्ट्र कॉमर्स कॉलेज, पुणे के पूर्व प्राचार्य अनिरुद्ध देशपांडे, आचार्य वामदेव शास्त्री (डेविड फ्रॉले), लेखक मनोहर शिंदे आदि ने संबोधित किया।
इस दिन के अंतिम और विशेष सत्र का विषय था 'राष्ट्रवाद का पुनरुत्थान: पूर्व और पश्चिम'। इस सत्र की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं जनसंचार वश्विवद्यिालय, भोपाल के कुलपति प्रोफेसर बी. के. कुठियाला ने की। सत्र के मुख्य वक्ता थे डेनवर वश्विवद्यिालय, अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर वी. पी. नंदा। उन्होंने कहा कि आजकल दुनियाभर में राष्ट्रवाद का पुनरुत्थान हो रहा है।
अंतिम सत्र में राष्ट्र्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत की उपस्थिति ने संगम को गरिमा प्रदान की। सरसंघचालक से प्रतिभागियों ने शक्षिा से संबंधित प्रश्न भी पूछे और उन्हें अपने सुझाव भी दिए। इस अवसर पर सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी, आईसीएचआर के अध्यक्ष प्रो. सुदर्शन राव सहित अनेक वद्विान उपस्थित थे। संगम में सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने भी प्रतिभागियों के साथ बातचीत की।
सत्र में मुंबई वश्विवद्यिालय में सेंटर फॉर यूरेशियन स्टडीज के प्रो. अशोक मोडक भी थे। सरसंघचलक ने समापन सत्र में कहा कि यह संगम भारतीय दृष्टिकोण को विकसित करने का वास्तविक प्रयास है। उन्होंने कहा कि भारत की ज्ञान-परंपरा समृद्ध है। यह परंपरा कला, संस्कृति, दर्शन, समाजशास्त्र, वज्ञिान, प्रबंधन सहित अनेक क्षेत्रों में व्यापक दृष्टिकोण देती है। शक्षिा के क्षेत्र में हमें इस दृष्टिकोण को अपनाकर राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया को और मजबूत बनाना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान शक्षिा प्रणाली में पश्चिम का झुकाव अधिक दिखता है। ऐसे में शक्षिा प्रणाली में भारतीय दृष्टिकोण के विकास के लिए गैर-सरकारी और स्वायत्त प्रयासों को बढ़ावा देना समय की जरूरत है। उन्होंने इस दिशा में विभन्नि स्वयंसेवी संगठनों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को साझा भी किया।
संगम में शक्षिाविदों ने शक्षिा के क्षेत्र में भारतीय दृष्टिकोण जगाने का संकल्प भी लिया। – प्रतिनिधि
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