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बोलता जनादेश

by
Mar 27, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Mar 2017 12:54:51

26 फरवरी, 2017  

आवरण कथा ‘उत्तर तलाशता प्रदेश’ से यह बात स्पष्ट है कि राज्य की जनता समाजवादी पार्टी के पांच साल के राज से ऊब चुकी है। राज्य में सपा के शासन में महिलाओं पर अत्याचार से लेकर अन्य अपराधों की बाढ़ आ गई। अखिलेश ने जिन चुनावी रैलियों में युवाओं को रोजगार देने की बात की, उन्हें उन्होंने धोखा दिया। यानी सपा सरकार हर मोर्चे पर फेल ही रही।
—आशुतोष अस्थाना, राजाजीपुरम,लखनऊ (उ.प्र.)

कुत्सित मानसिकता
‘तलाक पर राजनीति में उलझे मौलाना’ लेख से स्पष्ट होता है कि मुस्लिम समाज की महिलाओं के उत्पीड़नके लिए मुल्ला-मौलवियों की कुत्सित सोच काफी हद तक जिम्मेदार है। वैसे ये मुल्ला-मौलवी छोटी-छोटी बातों पर फतवे निकालते रहते हैं लेकिन लंबे समय से उनके ही समाज में तीन तलाक और हलाला जैसी बेहद शर्मनाक प्रथाएं चली आ रही हैं, उस पर उनका मुंह बंद रहता है। इससे यही साबित होता है कि ये महिलाओं के उत्पीड़न के विरोधी नहीं बल्कि पक्षधर हैं और मूक रहकर पूरा समर्थन करते हैं।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)

ङ्म     भारत में चल रही तीन तलाक जैसी कुप्रथा तत्काल बंद होनी चाहिए। यह भारत ही है जहां ऐसी कुप्रथाएं अभी भी शरिया नियमों का हवाला देकर ढोर्इं जा रही हैं। जबकि अन्य इस्लामी देशों ने इसे अपने यहां प्रतिबंधित कर रखा है। भारत में संविधान से बड़ा कोई नहीं है। इसलिए कोई भी मत-पंथ और उनके नियम भारत के संविधान को ठेंगा नहीं दिखा सकते। सभी समान हैं और सबके लिये एक ही कानून का पालन होना चाहिए।
—अनुराग विश्वास, पटना (बिहार)

  मुस्लिम समाज के रहनुमा जान-बूझकर महिलाओं का उत्पीड़न कर जा रहे हैं। लेकिन आज के समय इस पर लगाम लगनी चाहिए। कोई भी मत-पंथ या समाज हो, महिलाओं को उनके समान अधिकार मिलने ही चाहिए। साथ ही देश के विभिन्न वर्ग के लोग जात-पात, मत-पंथ से ऊपर उठकर कार्य कर रहे हैं। उन सबके लिए देश को सर्वोच्च स्तर पर पहुंचाना एक लक्ष्य है। इसलिए ये छोटी-मोटी चीजें जिनसे समाज में खाई चौड़ी होती है, उनको समाप्त करना चाहिए।
—जमालपुरकर गंगाधर, जियागुडा (हैदराबाद)
 
शर्मसार होती मानवता
रपट ‘केरल या कसाईखाना (5 फरवरी, 2017)’ रपट वामपंथियों के चेहरे को बेनकाब करती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए आए दिन शोर मचाने वाले ये उपद्रवी केरल में जब खुद मानवता को शर्मसार करते हैं, तब इनकी बोलती बंद हो जाती है। आए दिन इनके द्वारा भाजपा और संघ स्वयंसेवकों की नृशंस हत्याएं की जाती हैं लेकिन किसी भी सेकुलर के मुंह से आह तक नहीं निकलती। इस सबका कारण राज्य की माकपा सरकार है जो इन गुंडों को खुलेआम संरक्षण दे रही है जिससे इनके हौसले बुलंद है।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)

सार्थक अभियान
रपट ‘जन को जनार्दन से जोड़ने की यात्रा(19 फरवरी, 2017)’अच्छी लगी। नर्मदा न केवल हर हिन्दू के लिए पवित्र है बल्कि इस देश की सनातन संस्कृति व धरोहर भी है। क्योंकि इसमें समाहित है हमारी अध्यात्मिक विरासत व संस्कृति। यह वह पवित्र नदी है जिसके एक-एक कंकर को शंकर कहा जाता है। मध्य प्रदेश शासन ने ‘नमामि देवी नर्मदे’ का जो प्रकल्प चलाया, उससे न केवल जनजागृति आई बल्कि नर्मदा के शुद्धिकरण और उसके उन्नयन के लिए प्रयास हुए। आज यह साबित हो चुका है कि नर्मदा ने मध्य प्रदेश में चहुंओर खुशियां बिखेरी हैं।
—रंजना सेठाना, बड़वाह (म.प्र.)

बदलता माहौल
रपट ‘जेएनयू-टूटती जकड़न’ से जाहिर होता है कि परिसर का माहौल अब बदल रहा है। जिन वामपंथियों और देशद्रोही तत्वों ने विवि. का माहौल खराब कर रखा था, अब उनके पैरों तले की जमीन खिसक रही है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन परिसर में राष्ट्र विरोधी शक्तियों के बढ़ते कदमों को थामने वाला है। लेकिन आवश्यकता है कि खुफिया एजेंसी विश्वविद्यालय में आए दिन होती गैर कानूनी गतिविधियों पर पैनी नजर रखें, ताकि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को पुन: उभरने का मौका न मिले।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

  एक वर्ष पहले जेएनयू में जो हुआ, वह केन्द्र सरकार के विरुद्ध एक सुनियोजित षड्यंत्र था। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के नाम पर एक ऐसा तबका रहता है जो गुपचुप समाज और देशविरोधी कार्यों को अंजाम देता है। केन्द्र में राजग की सरकार आने के बाद से यह तबका परेशान था और मौके की तलाश में था। यह मौका उसे फरवरी, 2016 में मिला और उसने अपना रूप दिखा दिया। खैर, देश के लोगों ने भी उन चेहरों को पढ़ लिया जो पढ़ाई के नाम पर असामाजिक गतिविधियों में लिप्त थे।
— नयन चौधरी, हिसार(हरियाणा)

 विश्वविद्यालयों में सुनियोजित तरीके से देशविरोधी नारेबाजी कर अभिव्यक्ति की आजादी पर आवरण डालने की वो कोशिश की जा रही है, वह एक गंभीर खतरे की ओर संकेत है। किसी बात के विरोध की सीमा होती है लेकिन कुछ लोग इसे पार कर चुके हैं। सो उन पर नजर रखनी होगी
—दीपक कुमार, सालवन (हरियाणा)
 

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