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चर्च दाग कब तक दबेंगे!

by
Mar 20, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Mar 2017 14:37:26

भारत के सिर्फ केरल में ही नहीं, दुनिया भर में चर्च में बच्चों और किशोर युवक/युवतियों से पादरियों के यौनाचार की अनेक घटनाएं घट चुकी हैं। कितनी तो दबा दी गर्इं। लेकिन आज लोग अपनी आपबीती सुनाने सामने आए
हैं। वक्त आ गया है कि चर्च कन्वर्जन भूलकर आत्म-शुद्धि पर ध्यान दे
  सतीश पेडणेकर
इसी महीने केरल के कन्नूर जिले में चर्च के एक पादरी द्वारा एक लड़की के साथ बलात्कार की घटना से जुड़े तथ्यों को छुपाने पर 5 नन सहित 8 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। पिछले दिनों यहां के अस्पताल में 16 साल की एक लड़की ने एक लड़के को जन्म दिया था। ‘चाइल्डलाइन’ में पीड़िता की मां की शिकायत के आधार पर 28 फरवरी को पादरी को गिरफ्तार कर लिया गया था। पीड़िता की मां ने कहा था कि फादर रोबिन उर्फ मैथ्यू वडक्कनचेरिल ने पिछले साल उसकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया था। इस मामले ने एक बार फिर ईसाइयत और चर्च को संदेह के कठघरे में खड़ा कर दिया, पर देश-विदेश का मीडिया इस पर खामोश है क्योेंकि मामला ईसाइयत से जुड़ा है।
यह ईसाई पादरियों द्वारा यौन शोषण का पहला मामला नहीं है। इससे पहले केरल के कोच्चि के एक कॉन्वेंट स्कूल के प्रिंसिपल फादर बेसिल कुरियाकोस को 10 साल के लड़के के साथ कुकर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह बच्चा किंग्स डेविड इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता था। मां-बाप की शिकायत के बाद 65 साल के इस पादरी को गिरफ्तार कर लिया गया था। आज कॉन्वेंट स्कूलों की संख्या तो बढ़ रही, पर इनका असली रूप कुछ और ही बयान करता है। 2014 में केरल के त्रिचूर जिले में सेंट पॉल चर्च के पादरी राजू कोक्कन को 9 साल की बच्ची से बलात्कार के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उसने यह घृणित काम चर्च में अपने कमरे में किया। 2014 में ही फरवरी से अप्रैल के बीच केरल में तीन कैथोलिक पादरी बच्चों से बलात्कार के मामले में गिरफ्तार हुए थे। पर ज्यादातर मामलों में ईसाई संगठनों ने शर्मिंदा होने के बजाय अपने पादरियों का बचाव किया। कुछ समय पहले ही केरल के एर्नाकुलम में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी 41 साल के पादरी एडविन फिगारेज को एक साथ दो-दो उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। उसने उक्त बच्ची को संगीत सिखाने के नाम पर उसके साथ कई महीने तक पशुता का व्यवहार किया था।
कुछ वर्ष पहले केरल की एक नन सिस्टर मैरी चांडी (67) ने अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में लिखा है कि एक पादरी ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की, इसका विरोध करने पर उसे चर्च छोड़ना पड़ा। उसने लिखा, ‘‘मैंने वायनाड चर्च में हुए अपने अनुभवों को सामने रखने की कोशिश की है। चर्च में जिंदगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी। वह घर से भागकर नन बनी थी, लेकिन बदले में उसे शोषण और अकेलापन झेलना पड़ा।’’ गाौरतलब है कि चर्च में हो रहे यौन शोषण पर लिखी गई यह पहली किताब नहीं है। इससे पहले एक नन सिस्टर जेस्मी की पुस्तक ‘आमीन:द आॅटोबायोग्राफी आॅफ ए नन’ ने तहलका मचा दिया था। इस किताब ने भी कॉन्वेंट में हो रहे यौन शोषण और व्यभिचार का बड़े पैमाने पर खुलासा किया था।
 कैथोलिक चर्च के बारे में सबसे चौंकाने वाला अध्ययन प्रोफेसर मैथ्यू शेल्म्ज का है। उन्होंने एक लेख में माना था कि भारत भर में फैले कैथोलिक चर्च में नन और बच्चों के साथ यौन शोषण के मामले बढ़ रहे हैं। हालांकि इसके बारे में ज्यादा बात नहीं होती और अधिकतर मामले पुलिस और अदालत तक कभी नहीं पहुंच पाते। दूरदराज के इलाकों में मिशनरियों के यौन शोषण के ज्यादातर मामले दबे रह जाते हैं, क्योंकि पीड़ित अक्सर गरीब तबके के लोग होते हैं और उन्हें पैसे देकर चुप करा दिया जाता है।
वैसे कैथोलिक संस्थाओं में महिलाओं और किशोरों का यौन शोषण केवल भारत की समस्या नहीं है। यह समस्या विश्वव्यापी है। हाल ही में आॅस्ट्रेलिया में एक जांच के दौरान पता चला कि देश के 7 प्रतिशत कैथोलिक पादरी बच्चों के यौन शोषण में लिप्त हैं। यह अध्ययन 1980 से 2010 के बीच किया गया है। बच्चों के यौन शोषण जुड़े मामलों पर नजर रखने वाले रॉयल कमीशन के पास 1980 से 2015 के बीच करीब 4,500 लोगों ने यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराई थी। सिडनी में कमीशन की मदद करने वाली वकील गेल फरनेस के मुताबिक यौन शोषण पीड़ितों की कहानियां काफी अवसाद भरी हैं। गेल बताती हैं, ‘‘बच्चों की उपेक्षा की गई, उन्हें सजा भी दी गई। आरोपों की जांच नहीं हुई। पादरी और चर्च के मठाधीश आसानी से बच गए।’’
 यौन शोषण के मुद्दे पर आज रोमन कैथोलिक साम्राज्य जैसे संकट में घिरा है। कई देशों में यह मांग उठ रही है कि ईसाई पादरियों और नन के आचरण नियमों में से ‘सेलीबेसी’ (यौन संयम) का नियम हटाया जाए। स्वयं इटली की 40 महिलाओं ने पोप को एक खुला पत्र लिखा था कि ‘सेलीबेसी’ का सिद्धांत हटाया जाए। ये वे महिलाएं हैं, जिनके रोमन कैथोलिक चर्च के किसी न किसी पादरी से प्रेम संबंध हैं। इनके पत्र में लिखा है कि पादरियों को भी प्रेम करने या पाने या शारीरिक सुख उठाने की इच्छा होती है। कई देशों में यह सवाल उठाया जा रहा है कि ‘सेलीबेसी’ कोई ईश्वरीय सिद्धांत नहीं है। यह मानव निर्मित नियम है, इसलिए इसे बदला जा सकता है। कुछ साल पहले जर्मनी में एक जांच में 250 लोगों ने शिकायत की कि बचपन में चर्च के पादरी ने उनके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए। पूर्व पोप बेनेडिक्ट के पास तो अनेक देशों से आए ऐसे पत्रों का अंबार लगा था। पोप बेनेडिक्ट पर तो यह आरोप भी था कि जब वे जर्मनी में कार्डिनल थे, तो उन्होंने पादरियों द्वारा बच्चों और स्त्रियों के साथ किये गये व्यभिचार को छिपाने की कोशिश की। यदि उनके पास कोई शिकायत पहुंचती, तो वे ज्यादा से ज्यादा संबंधित पादरी को उस चर्च से हटाकर किसी और चर्च में भेज      देते थे।
वास्तव में जबसे दुनिया भर में चर्च की स्थापना हुई है, तभी से वे यौन अपराधों के केंद्र बने हुए हैं, लेकिन ऐसी शिकायतों को हमेशा वहां से बाहर आने से रोका गया। ईसाइयत के मठाधीशों को कोई क्षति न पहुंचे, इसलिए किसी पादरी और बड़े पांथिक नेता को कभी कोई सजा नहीं दी गई। यहां तक कि उसकी सार्वजनिक निंदा से भी बचा गया।
लेकिन ईसा के दो हजार वर्ष बाद आज 21वीं सदी में लोग चुप रहने को तैयार नहीं हैं। कल के यौन शोषण के शिकार बच्चे अब बड़े ही नहीं, प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुके हैं। अब उन्होंने अपने सारे कटु अनुभवों को सार्वजनिक करने का बीड़ा उठाया है। कई ने तो पूरे विस्तार से सारे सूक्ष्म विवरण के साथ अपनी कहानी पेश की है और संकोच त्यागकर चर्च के काले कारनामों को उजागर करना शुरू किया है। इस नैतिक भ्रष्टाचार की कहानी कहने के लिए कई ‘पादरी’ भी सामने आ रहे हैं। एक ने लिखा है, ‘कैथोलिज्म के पास एक बड़ा शानदार फार्मूला है। इसकी शुरुआत इस बात से होती है कि मूलत: हम सब पापी (सिनर्स) हैं, इसलिए हमें पाप मुक्त होने या अच्छा बनने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए और यदि हम ऐसा नहीं कर पाते, तो हमारे पास एक और आसान रास्ता है-पश्चाताप। हम पश्चाताप करके खुद को पवित्र कर सकते हैं।’’
पर किशोर बालक-बालिकाओं के यौन शोषण का यह पापाचार एकाध देश या दो चार पादरियों तक सीमित नहीं है, पूरा रोमन कैथोलिक चर्च ही उसमें लिप्त नजर आता है। यही कारण है कि चर्च की अस्तित्व-रक्षा के हित में प्रत्येक पोप इन शिकायतों को अनसुना करते आ रहे थे। पादरियों के पापाचार के शिकार लोगों की संख्या कितनी बड़ी है इसका अनुमान इससे लग सकता है कि अमेरिका और यूरोपीय देश में इसके विरुद्ध मंच बन गये हैं और उनकी सार्वजनिक अपील पर हजारों भुक्तभोगी अब खुलकर सामने आ रहे हैं जो पहले अपने को अकेला समझ कर चुप रहते थे। नीदरलैंड्स में पहले मुश्किल से 10 भुक्तभोगी सामने आये, बाद में उनकी संख्या 1300 के पार हो गई। इस बढ़ते चलन के विरुद्ध वेटिकन का आरोप है कि ‘‘चर्च के खिलाफ अपप्रचार की यह आंधी अमेरिका की यहूदी लॉबी और विश्व इस्लामवाद ने खड़ी की है।’’ किंतु यदि चर्च सचमुच यौनाचार के विरुद्ध है तो अनेक पादरियों के बारे में अनेक वर्ष से आ रही शिकायतों की उसने जांच क्यों नहीं होने दी? ऐसे पादरियों की सार्वजनिक भर्त्सना क्यों नहीं की?
गरीबों और पिछड़ों का कन्वर्जन करने के पूर्व ‘अपने घर का शुद्धिकरण’ करना आवश्यक क्यों नहीं समझा? इसके बजाय वेटिकन अपने हितों की रक्षा के लिए इन पापाचारियों को संरक्षण दे रहा है और नये-नये क्षेत्रों में कन्वर्जन की फसल काटने में जुटा हुआ है। यदि वेटिकन में थोड़ी भी आध्यात्मिक भावना है तो उसे कन्वर्जन करना बंद करके पहले आत्म-शुद्धि का प्रयास करना चाहिए।   ल्ल

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