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सेवा की आड़ में गड़बड़झाला

by
Mar 6, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Mar 2017 12:11:55

आवरण कथा 'सेवा या षड्यंत्र' से एक बात स्पष्ट होती है कि इन षड्यंत्रों पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि देश में कई स्वयंसेवी, संस्थाएं सेवा की आड़ लेकर राष्ट्र विरोधी गतिविधियां चलाती हैं। इससे न केवल देश में अशांति फैलती है बल्कि दुनिया में भारत की छवि खराब होती है। सरकार के अलावा लोगों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि अपने आस-पास अगर ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं मौजूद हैं और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त हैं तो उन्हें जांचे परखे और उनकी शिकायत करें।
—सूर्यप्रताप सिंह, कांडरवासा(म.प्र.)

तुष्टीकरण की राजनीति
रपट 'ममता का फासीवाद' बंगाल सरकार की हकीकत को उजागर करती है। राज्य के अनेक स्थानों पर कट्टरपंथियों के दबाव में स्कूल बंद हो रहे हैं और ममता सरकार तमाशबीन बनकर देख रही है। क्या कुछ वोटों के लालच में राज्य की मुख्यमंत्री ने ऐसे तत्वों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है। कुछ दिन पहले धूलागढ़ हिंसा में भी उनकी तुष्टीकरण नीति दिखाई दी। मुसलमानों द्वारा सैकड़ों हिन्दू परिवारों के घरों को जलाया गया, उन पर अत्याचार किए गए पर वे कुछ नहीं बोलीं। लेकिन जब मुंह खोला तो कहा कि इसे कुछ लोग दंगे का रूप दे रहे हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है। यह ममता का असली रूप था जो उन्होंने दिखाया था।
—सुकेन्द्र ठाकुर, ऋषिकेश (उत्तराखंड)

बंगाल में जो हो रहा है, उसे किसी भी निगाह से ठीक नहीं कहा जा सकता। चाहे वह स्कूल में सरस्वती वंदना न करने की बात हो या धूलागढ़ का दंगा। राजनीति की भी अपनी एक सीमा होती है। राज्य के नागरिकों के साथ भेदभाव करना शायद किसी प्रदेश के मुखिया को ठीक नहीं लगता। क्योंकि उसके लिए सभी बराबर हैं। अगर राज्य में कोई भी हिंसा या गलत कार्य करता है तो उस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, फिर वह कोई भी क्यों
न हो।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार(नई दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के मालदा में एक वर्ष पहले जो उन्माद और हिंसा हुई, उसे भी सेकुलरों ने भुलाने का किया। उसके बाद धूलागढ़। इस पर भी किसी के मंुह से आह तक नहीं निकली। पर अब कट्टरपंथी ताकतें शिक्षा के मंदिरों पर अपनी कुदृष्टि डाल रही हैं। राज्य के स्कूलों का इस्लामीकरण किया जा रहा है और हिन्दुओं की भावनाएं आहत की जा रही हैं। लेकिन देश के सारे तथाकथित सेकुलर चुप हैं। यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि शर्मनाक है कि राज्य सरकार ऐसे तत्वों को रोकने और उन पर कड़ी कार्रवाई करने के बजाए उन्हें संरक्षण देती है।
— विशाल वर्मा, मेल से

ताकत देश की
आवरण कथा 'समन्वय की शक्ति (29 जनवरी, 2017)' के सभी लेख पठनीय एवं तथ्यपरक  हैं। पत्रिका में विशिष्टजनों द्वारा देश की सुरक्षा की दृष्टि से जो बातें कहीं गई हैं, वे सरकार के लिए एक सुझाव के रूप में हैं। क्योंकि देश के सामने सुरक्षा और अपने पड़ोसी देशों की ओर से किए जा रहे आघातों का प्रतिकार करना एक अहम मुद्दा है, जिसे उसे किसी भी हालत में सुलझाना है।
—वशिष्ठ नारायण, सीतामढ़ी (बिहार)

पुस्तकों पर उमड़ा प्रेम
रपट 'बढ़ता प्यार (22 जनवरी, 2017)' यही बताती है कि विश्व पुस्तक मेला कई मायनों में सफल रहा। आज के इंटरनेट के दौर में भी पुस्तक प्रेमियों की जो तस्वीरें देखने को मिलीं, वह यह बताने के लिए काफी है कि पुस्तकों के प्रति समाज का रुझान कम होने के बजाए बढ़ रहा है। यह हालत तब थी जब देश में नोटबंदी का समय था और बाजार में पैसे की दिक्कत थी, उसके बाद भी इस पर कोई असर नहीं हुआ। यह बिल्कुल सच है कि पुस्तकें ही हमारे जीवन की साथी हैं जो हमें हर पग पर राह दिखाती हैं और हमारे साथ रहती हैं।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

पुस्तक मेले में पहुंचे लाखों लोग यह बता रहे थे कि पुस्तकें ही ज्ञान का असली भंडार हैं। तभी तो इस सप्ताह भर के मेले में देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग लाखों की संख्या में पहुंचे और अपने पढ़ने की पिपासा को शांत किया।
—कमलेश ओझा, पुष्प विहार(नई दिल्ली)

तथ्यहीन बातें
लेख 'स्वामी विवेकानंद पर विवेकहीन बातें' उन लोगों को करारा जवाब है जो स्वामी जी के बारे में भ्रामकता फैला रहे हैं। यह बात भारत का जागरूक नागरिक बखूबी जानता है कि मुगलों और अंग्रेजों ने भारत के इतिहास को नष्ट करने व तोड़-मरोड़ कर पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब भी कुछ ऐसे लोग हैं जो उनकी राह पर चलकर देश के महापुरुषों और इतिहास के बारे में गलत तथ्य पेश कर रहे हैं। पर उनकी हर कोशिश का अब खुलासा हो जाता है। लेकिन समाज को ऐसे तत्वों का प्रतिकार करने की आवश्यकता है।
—अश्वनी जागड़ा, रोहतक (हरियाणा)

कातिल सरकार
रपट 'केरल या कसाईखाना (5 फरवरी, 2017)' वामपंथी राजनीति को बेनकाब करती है। केरल में आएदिन होती संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं में वामपंथियों की संलिप्तता को उजागर होती है।
—राममोहन चन्द्रवंशी,  मेल से

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