हिन्द की चादर और हिन्द के दुश्मन
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हिन्द की चादर और हिन्द के दुश्मन

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Mar 6, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Mar 2017 14:56:56

भारत में रहेंगे, भारत के लोकतंत्र, संविधान और उदार जीवन मूल्यों का लाभ लेंगे। लेकिन उन्हीं का उपयोग, उन्हीं को नष्ट करने के लिए करेंगे

तरुण विजय

भारत में सिर्फ एक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्हें सैकड़ों वर्ष पूर्व 'हिन्द की चादर' कहाने का सौभाग्य मिला। वे थे गुरु तेग बहादुर साहब, दशम गुरु श्री गुरुगोविंद सिंह जी के पिता। वे पंजाब की चादर नहीं थे, सिखों की चादर नहीं कहाए- बल्कि समूचे हिन्दुस्थान के रक्षक के नाते उन्हें हिन्द की चादर कहा गया।
आज जब केरल में इस देश की माटी, यहां के संविधान और धर्म के प्रति निष्ठा रखने वाले युवा स्वयंसेवकों को कम्युनिस्ट हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है, तब गुरु तेग बहादुर जी की बलिदानी परंपरा और उनके 'हिन्द की चादर' वाले स्वरूप का स्मरण आना स्वाभाविक है। कम्युनिस्ट हिंसा राष्ट्र पर युद्ध थोपने के समान है- राष्ट्रीयता पर आघात का सामना करने, हिन्द की रक्षा करने, कौन आएगा? यह समय हमें खैबर दर्रे से आने वाले हमलों की मानसिकता भी याद दिलाता है।
खैबर सिर्फ दर्रा नहीं है जहां से अरब, तुर्क, मुगल, अफगान— भारत पर आक्रमण के लिए आते रहे और यहां की लूट इसी मार्ग से अपने मुल्क ले जाते रहे। पर खैबर दर्रे के अलावा भी बहुत कुछ है। खैबर एक मानसिकता है। यह वह मानसिकता है जो दमन, शोषण, लूट में ही विश्वास नहीं करती, बल्कि विजित प्रजा को अपने मत में जबरन कन्वर्ट करती है, उसमें अपनी मातृभूमि, अपने पूर्वजों, अपने माता-पिता, अपने भाई-बहनों के प्रति घृणा भरती है।
जो लोग कश्मीर भ्रमण के लिए गए होंगे, उन्हें शायद ध्यान हो कि वहां चारों ओर, प्राय: हर नगर की दीवारों पर खैबर सीमेंट के बड़े-बड़े विज्ञापन दिखते हैं। मुझे आश्चर्य हुआ कि यहां के किसी व्यक्ति को अपने उत्पादन के लिए सुदूर क्षेत्र का यह नाम इतना प्रिय क्यों लगा? वह अपने आसपास के किसी क्षेत्र, महान विरासत पर भी अपने सीमेंट का ब्रांड रख सकता था- जैसे चिनाब, झेलम, चरारे शरीफ या हरि पर्वत। पर उसे कश्मीर का कोई नाम पसंद नहीं आया। पसंद आया तो दूर इलाके का खैबर नाम, जहां से विदेशी हमलावर हिन्दुस्तान को लूटने, बर्बाद करने आते रहे।
यह है खैबर मानस
कश्मीर के पत्थरबाज भी कोल, भट्ट, रैना हैं। कुछ ही पीढ़ी पहले वे हिछू ब्राह्मण से मुसलमान बने। मोहम्मद इकबाल के दादा भी कश्मीरी हिन्दू ब्राह्मण थे। एक लंबी कथा है। पर जब वे मुसलमान बन गए तो उन्हीं मोहम्मद इकबाल ने पाकिस्तान निर्माण में, उसका विचार मजबूत करने में मदद की। क्यों? जो कन्वर्ट मुस्लिम कश्मीर में बहाबी प्रभाव में देश से अलग होने की बात करते हैं, उनमें अपने ही उन रक्त बंधु हिन्दुओं के प्रति लेश मात्र भी अपनापन क्यों नहीं दिखता?
यह न दिखना ही खैबर मानसिकता है
रामजस कॉलेज में यही खैबर मानसिकता दिखी। भारत में रहेंगे, भारत के लोकतंत्र, संविधान और उदार जीवन मूल्यों का लाभ लेंगे। लेकिन उन्हीं का उपयोग, उन्हीं को नष्ट करने के लिए करेंगे।
'भारत तेरे टुकड़े होंगे' जैसे नारे क्यों लगे, इस पर मीडिया खामोश है। भारत के टुकड़े करने वाली मानसिकता के टुकड़े करने वाले देशभक्तों पर आरोप लगाए जा रहे हैं। जो हिंसक मानस और देशविभाजक नारों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनके समर्थन में जुटना और देशभक्तों पर आघात करना, यही उलटी गंगा खैबर मानसिकता है। जेएनयू के कम्युनिस्ट छात्रों का वास्तविक विचार वहाबी-वामपंथ कहा जा सकता है। उसके एक नेता के पिता प्रतिबंधित देशद्रोही संगठन सिमी के अध्यक्ष थे। उनके समय सिमी की पत्रिका में ओसामा बिन लादेन की प्रशस्ति में एक लंबी कविता छपी थी जिसकी प्रारंभिक पंक्तियां मुझे अभी तक याद हैं- 'इस्लाम का गाजी कुफ्र शिकन, मेरा शेर ओसामा बिन लादेन।' उस क्रूर कर्मा जिहादी के अनुयायी जेएनयू और रामजस में भारत पर शब्द हिंसा के आघात करें तो देशभक्त छात्र कैसे चुप और निष्क्रिय रह सकते हैं? जो लोग अभाविप पर अनर्गल, बेतुके और झूठे आरोप लगा रहे हैं, वे इस बात का उत्तर क्यों नहीं देते कि वहाबी कम्युनिस्ट छात्रों द्वारा देश के खिलाफ नारे क्यों लगाए गए? प्रसिद्ध पत्रकार आदित्यराज कौल ने रामजस में इन छात्रों के देशविरोधी नारे लगाने का वीडियो ट्वीट किया। क्या यह आवश्यक नहीं था कि उस वीडियो का संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस तुरंत कदम उठाती और दोषी छात्रों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करती? क्यों यह स्थिति आयी कि अभाविप को दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन करने पर विवश होना पड़ा, क्यों एक साल बीतने पर भी दिल्ली पुलिस ने जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की? क्यों नहीं दिल्ली पुलिस ने गुरमेहर के बयानों पर स्वत: कार्रवाई करते हुए उसके विरुद्ध अभद्र टिप्पणियां देने वालों को पकड़ा? केरल से लेकर जेएनयू और रामजस तक के कम्युनिस्ट हिंसक कार्य देश के लोकतंत्र पर आघात ही नहीं, बल्कि देश के विरुद्ध युद्ध हैं। यही वे कम्युनिस्ट आतंकवादी हैं जो छत्तीसगढ़ में नागरिकों, सैनिकों पर हमले करते हैं। इन्हीं आतंकवादियों के कारण अनाथ हुए सैकड़ों बच्चे आज रायपुर के आरम विद्यालयों में निराश्रित के नाते रहने पर मजबूर हैं। उनके लिए किसी मीडिया ने आज तक संवेदना नहीं दिखाई। केरल के राक्षसी मानस वाले कम्युनिस्ट लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। इन खैबर मानसिकता के तत्वों की विचारधारा का अंत किए बिना देश में संविधान की सुरक्षा संभव नहीं।    (लेखक राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं)

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