सुरक्षा को लेकर सजग देश
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सुरक्षा को लेकर सजग देश

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Feb 27, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Feb 2017 12:26:57

29 जनवरी, 2017
आवरण कथा 'समन्वय की शक्ति' से स्पष्ट है कि भारत आज बड़ी शिद्दत से अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है। इसी चिंता के चलते उसने अपने आपको मजबूत भी किया है। वह चाहे थल, जल और नभ की बात हो, हम सभी क्षेत्रों में मजबूत हो रहे हैं। हां कुछ खतरे हैं जिनसे देश को बराबर सचेत रहने की आवश्यकता है।
—नितिन ठाकुर, देहरादून (उत्तराखंड)

 भारत अपने दुश्मन देशों से हर समय घिरा रहता है। हम अपनी बहुत सी शक्ति इनसे लड़ने में ही खर्च कर देते हैं। आए दिन इनकी ओर से होने वाले छद्म युद्ध भारत को परेशान कर रहे हैं। भारत सरकार को इसका स्थायी इलाज खोजना होगा। क्योंकि ये देश के विकास में बाधक हैं।
—मधुसूदन वर्मा, मुरादाबाद (उ.प्र.)

खिसियाहट ममता की
रपट 'ममता का फासीवाद! (29 जनवरी, 2016)' से यह बात जाहिर है कि बंगाल में कुछ ठीक नहीं चल रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम को रोकना क्या दर्शाता है? संघ आज देश ही नहीं बल्कि विश्व में जब अपनी सेवा और राष्ट्र भावना के चलते ख्याति पा रहा है, ऐसे में ममता का उसका एकतरफा विरोध करना और सरसंघचालक के कार्यक्रम में अड़चन डालना उनकी छवि को और धूमिल करता है। पश्चिम बंगाल में उनकी तुष्टीकरण नीति राज्य को गर्त में ले जा रही है।
—अनुव्रत चौधरी, लाजपत नगर (नई दिल्ली)

अगर हम ध्यान से देखें तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही है जो राष्ट्र का अकेला स्वयंसेवी संगठन है। लेकिन फिर भी इसमें कुछ तथाकथित लोग हैं जो संघ के कार्यों में रोड़ा अटकाते हैं। शायद उन्हें संघ के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है। पहले वे लोग संघ की कार्यपद्धति को जानें, उसके बाद ही कोई मंशा स्थापित करें।
—योगेन्द्र कुमार, नर्मदापुर (म.प्र.)
 
 पश्चिम बंगाल में आए दिन होते दंगे ममता सरकार के प्रशासन की पोलपट्टी खोलते हैं। कुछ दिनों से तो राज्य में हिन्दुओं पर एक समुदाय ने कहर बरपा रखा है। ऐसा सिर्फ बंगाल में ही नहीं है, भारत के अन्य राज्यों में कमोबेश यही स्थिति होती जा रही है। इसलिए देश की जनता को चाहिए कि जहां-जहां चुनाव हो रहे हैं, वहां अपने मत का सही प्रयोग करें। नहीं तो ऐसी स्थिति हर जगह होने वाली है।
—महेश गंगवाल, अजमेर (राज.)

खूनी राजनीति
रपट 'केरल या कसाईखाना' आक्रोशित करती है। आए दिन भाजपा और संघ के स्वयंसेवकों पर होते हमले और उनकी हत्याएं कम्युनिस्टों की खूनी राजनीति को देश के सामने प्रस्तुत करती हैं। ये पूरे देश में असहिष्णुता की बात करते हैं लेकिन खुद केरल और अन्य जगहों पर ये कितने असहिष्णु हैं, वह उन्हें दिखाई नहीं देता। दुख इस बात का है कि ऐसे तत्व अपने गिरेबां में नहीं झांकते। केन्द्र सरकार को राज्यों में हो रही इस तरह की घटनाओं पर ध्यान देना होगा।
    —बी.एल.सचदेवा,आएनए बाजार (नई दिल्ली)

तुच्छ स्वार्थों के लिए तोड़ते समाज
साक्षात्कार 'समाज पर फिल्मों का प्रभाव दिखता है' (29 जनवरी, 2016) अच्छा लगा। यह बिलकुल सच है कि रंगमंच का समाज पर तेजी के साथ असर पड़ता है। लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण माध्यम का कुछ लोग बड़ी चालाकी के साथ फायदा उठाते हैं। अभी कुछ समय पहले रानी पद्मावती के चरित्र को लेकर संजय लाला भंसाली की पिटाई इसका उदाहरण है। क्या भंसाली में इतनी हिम्मत है कि वे अन्य किसी मत-पंथ के मानबिंदुओं के साथ छेड़छाड़ कर सकें? शायद वे ही नहीं कोई अन्य फिल्मकार भी ऐसा सोचने की जहमत नहीं उठायेगा। क्योंकि उन्हें पता है कि हिन्दू सहिष्णु है लेकिन अन्य मत-पंथ इसके विरोध में क्या कर बैठेंगे, इसका अंदाजा तक लगाना मुश्किल है।
—कंजन वशिष्ठ, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)

 राजस्थान की करणी सेना ने पद्मावती पर बन रही फिल्म के निर्देशक को छह महीने पहले रानी के चरित्र से छेड़छाड़ के विरुद्ध चेता दिया था। लेकिन उसके बाद भी वे  अपनी हरकत से बाज नहीं आए। आखिर कला इसके लिए तो नहीं है? कला तो देश को समृद्ध करती है, आपस में जोड़ती है। लेकिन भारत में कला के पुजारी देश को बांटने पर तुले हैं।
    —दिनेश राठौर,गया (बिहार)

एक सोची-समझी साजिश के तहत भारत में कुछ लोग भारतीयता के भाव के साथ छेड़छाड़ करने और इसे विकृत करने में लगे हुए हैं। यह मानसिक दिवालियापन है। भंसाली ने सिर्फ एक क्षत्राणी का ही अपमान नहीं किया बल्कि समूची भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता का अपमान किया है। उन्हें राजस्थान की क्षत्राणियों की वीरगाथाएं पढ़नी चाहिए। क्योंकि यहीं की वीरांगनाओं में यह दम कि उन्होंने अकबर सरीखे मुगल बादशाह को सिर झुकाने पर मजबूर कर दिया।
             —सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा, काडंरवासा (म.प्र.)

 अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इतिहास को कलंकित किया जा रहा है। आने वाली पीढ़ी ऐसे विकृत इतिहास को पढ़कर क्या करेगी, कभी समाज ने सोचा है? एक तरफ तो ऐसे लोग प्रेम और भाईचारे का राग अलापते हैं, लेकिन यही लोग मौका पाते ही समाज में छुरा भोंकते हैं। अगर इन फिल्मकारों को इतिहास से इतना ही प्रेम है तो स्वामी विवेकानंद, दयानंद, और अन्य महान लोगों पर फिल्म बनाएं।
—हरिहर सिंह चौहान, इंदौर (म.प्र.)

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