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हाल में ही केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरन रिजीजू के बयान, कि 'हिंदुओं की आबादी इसलिए घट रही है क्योंकि वे कंवर्जन नहीं करते', पर दिल्ली के राष्ट्रीय मीडिया के विवाद खड़ा करने से उनके गृह राज्य अरुणाचल प्रदेश की जनसंख्या के बदलते पांथिक स्वरूप की बात अनजाने ही जगजाहिर हो गई। वैसे रिजीजू ने यह बात कांग्रेस की प्रदेश इकाई के उस आरोप के जवाब में कही थी कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अरुणाचल प्रदेश को हिंदू राज्य में तब्दील कर रही है।'
अगर इस आरोप की गहराई से पड़ताल की जाए तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की स्थिति नजर आती है, क्योंकि आजादी के बाद से आज तक अरुणाचल प्रदेश में हिन्दू जनसंख्या में सिकुड़न ही देखने में आयी है।
देश के इस धुर पूवार्ेत्तर पर्वतीय प्रदेश को अरुणाचल कहना ठीक ही है। भारत में पहली रवि रश्मि यहां उजाला करती है, तभी इसे अरुणाचल कहा जाता है। प्राचीन काल से ही यहां भगवान शिव, जिन्हें यहां डांगरिया बाबा कहते हैं, की काफी मान्यता रही है और यही कारण है पूरे प्रदेश में शिवालय दिखाई देते हैं। जबकि तिब्बत से लगे तवांग, बोमडिला क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों में बौद्ध मत की महायानी शाखा, म्यांमार से लगे लोहित क्षेत्र में हीनयानी शाखा की बहुलता है। ऐसे ही तिरप जिले में रहने वाली नौटके जनजाति वैष्णव धर्म को मानती है। अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम में स्थित तवांग और वेस्ट कामेंग जिलों में महायानी बौद्ध मतावलंबी जनजातियां मोम्पा और शेर दुक्पेन रहती हैं।
अरुणाचल प्रदेश में कन्वर्जन की 'सुनामी' की गति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां गत 50 वर्ष में ईसाई जनसंख्या 244 गुना बढ़ी है। केवल ईसाई ही नहीं, इसी समयावधि में प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या भी लगभग 27 गुना बढ़ी है जबकि हिंदुओं की जनसंख्या केवल 15 गुना बढ़ी है। ईसाई मिशनरियों का मूल उद्देश्य व्यापक कन्वर्जन करना ही था। ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा एवं हिन्दू समाज की अन्य विशेषताओं के विरुद्ध अपने अभियान को कन्वर्जन का माध्यम बना लिया था।
अंग्रेजी उपन्यासकार चार्ल्स डिकेन्स ने इसी तथ्य को रेखांकित करते हुए लिखा है कि ईसाई पंथ के प्रसारक अत्यंत कुत्सित प्राणी हैं। वे जहां भी जाते हैं उस स्थान को पहले की तुलना में कहीं अधिक निकृष्ट बना देते हैं।
अब कड़वा सच यह है कि अरुणाचल में ईसाई मत के खुले प्रचार-प्रसार से आबादी के एक बड़े हिस्से का कन्वर्जन हुआ है। पूवार्ेत्तर राज्यों में अरुणाचल प्रदेश हाल तक ऐसा राज्य था जहां कन्वर्जन का प्रभाव अधिक नहीं था परंतु अब यह बीमारी यहां भी लग चुकी है। पश्चिम की भौतिकवादी सभ्यता की ओर नवयुवकों का रुझान दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। विदेशी ईसाई मिशनरियों ने प्रदेश के पिछड़े इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिखाने को काम तो किया पर दाम कन्वर्जन के रूप में वसूला। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो़ अमर्त्य सेन द्वारा सम्पादित पुस्तक 'भारत में राज्यों का विकास' में लिखा है कि मिशनरियों के दो वगोंर्, कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट में आधुनिक शिक्षा के सूत्रधार में से रोमन कैथोलिक ने मजहबी स्कूलों की स्थापना की। उन्होंने कहीं-कहीं मछुआरों के लिए भी स्कूल खोले। इतिहासकार एच. वाल्टर का मत रहा है कि ये स्कूल वास्तव में कन्वर्जन के लिए लोगों को फंसाने के केंद्र थे। इसके कारण उस काल में साक्षरता स्तर में शायद ही कुछ सुधार हुआ हो।
यही कारण है कि आज आधुनिकता के नाम पर अरुणाचल के निवासियों की हिन्दू संस्कृति, आदशोंर्, मूल्यों और आचार-विचार पर हो रहे प्रहार को अगर रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं है जब हिन्दू अपनी पहचान ही खो देंगे। अब अगर जनसंख्या के आंकड़ों की बात करें तो अरुणाचल में 1961 में हिन्दू जनसंख्या ईसाई जनसंख्या से लगभग 15 गुना ज्यादा थी किन्तु हालात इस तेजी से बदले या बिगड़े हैं कि केवल 5 दशकों में ही ईसाई जनसंख्या, हिन्दू जनसंख्या से अधिक हो गई। महात्मा गांधी ने सामाजिक सेवा की आड़ में कन्वर्जन करने पर कहा था कि यह वास्तविक सेवा नहीं है। कन्वर्जन भी अन्य व्यवसायों की भांति एक व्यवसाय हो गया है।
इतना ही नहीं, राज्य में 1961 से 2011 के मध्य ईसाई समुदाय के कुल जनसंख्या में अनुपात में परिवर्तन भी आश्चर्य में डालने वाला है। 1961 में ईसाई जनसंख्या का कुल जनसंख्या में अनुपात 0़ 5 प्रतिशत था जो 2011 में बढ़कर 30़ 3 प्रतिशत हो गया। जबकि हिंदू जनसंख्या का कुल जनसंख्या में प्रतिशत 1991 के बाद लगातार गिरा है। 1991 से 2011 के बीच के दो दशकों में यह 8 बिंदु गिरा जबकि इसी समय में ईसाई जनसंख्या का अनुपात 20 बिंदु बढ़ा। 2001 से 2011 में हिंदू जनसंख्या की वृद्धि दर जहां 5़ 8 प्रतिशत थी वहीं ईसाई जनसंख्या की वृद्धि दर असामान्य रूप से 103़ 7 प्रतिशत रही। 1971 से 1981 के दशक में ईसाई समुदाय की वृद्धि दर 641़ 2 प्रतिशत थी। अन्य सभी दशकों में भी ईसाई समुदाय की वृद्धि दर 100 प्रतिशत से अधिक रही।
इससे पहले अंग्रेजों की साम्राज्यवादी सरकार ने 1882 में सीमान्त प्रशासन बनाया, जबकि 1912 में पूरे अंचल को दो भागों 'सदिया सीमान्त' और 'बालिपारा सीमान्त' में बांटा। देश छोड़ने के डेढ़ साल पहले ही अंग्रेजों ने इसे 'उत्तर-पूर्व सीमान्त' नाम से कामेंग, सुबानशिरी, सियांग, लोहित और तिरप नामक पांच भागों में बांट दिया। स्वत्रंत भारत सरकार ने 1972 में इस पर्वतीय अंचल का नामकरण अरुणाचल कर इसे अलग से केंद्र शासित राज्य बनाया। मध्य प्रदेश में ईसाई मतांतरण पर रिपोर्ट बनाने वाले न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. एस.पी. नियोगी के चेतावनी भरे वे शब्द सही रूप में अरुणाचल प्रदेश में देखने को मिलते हैं कि 'कंवर्टिड व्यक्ति की कन्वर्जन के कारण अपने समाज के साथ एकता और भावात्मक घनिष्ठता धूमिल हो जाती है अत: उसमें अपने देश और राज्य के प्रति निष्ठा में गिरावट आने का संकट पैदा हो जाता है।' अरुणाचल के साथ ही उत्तरपूर्व के अन्य राज्यों में भी मिशनरियों के बढ़ते दुष्चक्रों पर पैनी नजर रखनी होगी, यही वक्त की मांग है। -राजेन्द्र चड्ढा
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