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उज्जैन में आयोजित ग्राम संगम में किसानों ने बताया कि जैविक खेती ने कैसे उनकी दुनिया को बदल दिया और जो खेती पहले घाटा दे रही थी, अब वही मुनाफा देने लगी है
-महेश शर्मा-
मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले की तराना तहसील के ग्राम कढ़ही के रहने वाले किसान राम सिंह क्षेत्र के अन्य किसानों की तरह ही खेती करते थे, लेकिन जी-तोड़ मेहनत के बाद भी बमुश्किल जीवन-यापन कर पाते थे। वे सालभर में एक लाख रुपए तक की। रासायनिक खाद उपयोग में लाते थे, लेकिन पैदावार से संतुष्ट नहीं थे, जमीन की उर्वरा क्षमता कम होने की आशंका भी सताती रहती थी। जैविक खेती के लिए प्रेरित किए जाने पर उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहने और शाखा में नियमित जाने का सुफल मिला। प्रेरित किया गया। वर्ष 2003 से उन्होंने जैविक खेती आरंभ की तो जैसे उनकी दुनिया ही बदल गई। संघ के माध्यम से उन्होंने भीलवाड़ा में जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया और नतीजा यह कि अब रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते जिससे हर साल डेढ़ से दो लाख रु. बचते हैं। जमीन बढ़ती हुई 170 बीघा और गोवंश की संख्या 40 हो गई।
ऐसा ही बदलाव धार जिले के सुमरेल गांव में आया जहां जल संवर्धन और जैविक खेती के माध्यम से 8,000 की आबादी वाले गांव की किस्मत बदल गई। सुमरेल में 80 फीसदी सिंचाई ड्रिप द्वारा होती है और 40 से अधिक कृषि स्नातक और स्नातकोत्तर स्वयंसेवक न सिर्फ खुद जैविक खेती करते हैं, बल्कि ग्रामवासियों का मार्गदर्शन भी करते हैं। क्षेत्र के 436 गांवों के 1,392 किसानों ने अपने ऐसे ही अनुभव उज्जैन स्थित माधव सेवा न्यास में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मालवा प्रांत के ग्राम संगम में साझा किए।
गांवों के समग्र विकास का एजेंडा लेकर संघ गोपालन और जैविक खेती के साथ-साथ समरसता, स्वच्छता, संस्कार तथा व्यसनमुक्ति पर जोर दे रहा है। इसी क्रम में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत की प्रेरणादायी उपस्थिति में 13 और 14 फरवरी को ग्राम संगम संपन्न हुआ। इस अवसर पर मध्य क्षेत्र के संघचालक श्री अशोक सोहनी और मालवा प्रांत के संघचालक डॉ़ प्रकाश शास्त्री भी उपस्थित थे। यह संगम मालवा प्रांत कार्यवाह शंभु प्रसाद गिरि के संयोजन में आयोजित हुआ।
संगम के समापन सत्र को संबोधित करते हुए श्री भागवत ने कहा कि भारत गांवों में बसता है इसलिए वैभवशाली भारत का निर्माण गांवों के विकास के माध्यम से ही संभव है। आज विज्ञान का विकास हुआ, मानव जीवन में सुविधाएं आ गईं लेकिन सुख नहीं आया। तकनीकी प्रगति से विकास बहुत हुआ लेकिन हवा, पानी, जमीन, पर्यावरण खराब हुए। जंगल कट गए और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। आज विकास पर्यावरण के विनाश के माध्यम से हो रहा है। ऐसी स्थिति में भारत ही विश्व को रास्ता दिखा सकता है क्योंकि हमारी सोच है संपत्ति के साथ नीति, सुविधा के साथ सुख और पर्यावरण की चिंता के साथ विकास। हमारी प्राचीन परंपरा में कुछ ऐसे मूल्य हैं जो बाकी दुनिया के पास नहीं हैं, हमारी संस्कृति खेतों, गांवों और जंगलों से निकली है। इसलिए नया ज्ञान, नई तकनीक को हमें लेना है लेकिन उसे देशानुकूल बनाकर। उन्होंने आगे कहा कि ग्राम विकास के लिए जैविक खेती और गो-पालन आवश्यक है। हम गाय को केवल दूध के लिए नहीं पालते, हम गाय को गोमूत्र और गोबर के लिए पालते हैं। गोमूत्र और गोबर खाद तथा कीटनाशक का काम करते हैं जिससे रासायनिक खाद एवं कीटनाशक का खर्च बच जाता है। रासायनिक खाद ने जमीन को बंजर तो बनाया ही है लेकिन अनेक आधुनिक बीमारियों का विस्तार भी किया है। इसका उदाहरण हमें पंजाब में देखने को मिलता है जहां इसका अंधाधुंध प्रयोग किया गया और आज यह स्थिति है कि पंजाब से जयपुर जाने वाली रेलगाड़ी को कैंसर एक्सप्रेस कहा जाने लगा, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में पंजाब से कैंसर के मरीज इलाज के लिए बाहर जाते हैं।
इस अवसर पर जैविक खेती, गोपालन, सामाजिक समरसता, स्वच्छता, स्वावलंबन, पर्यावरण संरक्षण, संस्कार तथा व्यसनमुक्ति विषयों पर गांवों में हो रहे कायार्ें का विवरण दिया गया। जिला बड़वानी का पीपरी गांव स्वयंसेवकों के प्रयत्नों से व्यसनमुक्त हो गया, तो बुरहानपुर जिले का ग्राम हरदा जल संरक्षण के कार्य से क्षेत्र में मिसाल बन गया, जहां 80 खेत तालाबों के माध्यम से पूर्व में मात्र 80 एकड़ सिंचित जमीन आज 900 एकड़ सिंचित भूमि में बदल गई है। अखिल भारतीय ग्राम विकास प्रमुख डॉ़ दिनेश ने स्वयंसेवकों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि विकास की पश्चिमी अवधारणा ने गांवों के साथ ही देश को विपन्न और रोगग्रस्त बना दिया है। गांवों के वास्तविक विकास के लिए युवा शक्ति, नारी शक्ति और सज्जन शक्ति को जाग्रत करना होगा। आयोजन में उपस्थित स्वयंसेवकों के लिए पूरी तरह जैविक पद्धति से उपजाई गई सामग्री द्वारा तैयार भोजन की व्यवस्था की गई थी। चाय के लिए गाय के दूध का ही उपयोग किया गया।
हमारी संस्कृति खेतों, गांवों और जंगलों से निकली है। इसलिए हमें नया ज्ञान, नई तकनीक को लेना है
लेकिन उसे देशानुकूल बनाकर
— मोहनराव भागवत, सरसंघचावक, रा.स्व.संघ
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