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इन लोगों ने देश को इतना ना लूटा होता तो हम आज भी पूरे देश को साक्षर बनाने, गांवों में बिजली और पक्की सड़कें पहुंचाने की ईमानदार कोशिशों में न लगे होते
-तरुण विजय-
भारत को सदियों से लगातार कितना लूटा गया, इसका अंदाजा लगाना कठिन अवश्य है परंतु असंभव नहीं। सिंध लूटा, मुलतान, पंजाब लूटा, तक्षशिला और नालन्दा लूटे और जलाये, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण लूटा। दिल्ली में 18 बार नरसंहार हुआ और उसे लूटा गया। पूरा ब्रिटिश साम्राज्य ही भारत की लूट पर पला। मुस्लिम और ईसाई आक्रमणकारियों ने भारत के धन और संपदा को तो लूटा ही, तलवार के बल पर मतांतरण किया और हिन्दुओं की ही नस्ल और रक्त वाला परंतु आस्था का अनुसरन करने वाला ऐसा वर्ग तैयार कर दिया जो बाहरी शत्रुओं से भी ज्यादा अपने ही रक्त बंधु हिन्दुओं से शत्रुता करने लगा।लेकिन जब हम उन विदेशी हमलावर लुटेरों की तुलना शशिकला जैसे उन लोगों से करें जो भारत में जन्मे, पले-बढ़े, भारत की सेवा के लिए राजनीति में आए लेकिन पूरी जिंदगी भारत के तंत्र और जन को लूटते रहे तो इसे कैसे समझाया जाए?
जो विदेशी थे, उन्होंने भारत को लूटा क्योंकि यह देश उनके लिए विदेश था, यहां से वे नफरत करते थे, यहां के लोगों को उन्होंने दास बनाया और इराक, ईरान, यूरोप के बाजारों में बेचा। यहां की हर श्रेष्ठ वस्तु को देखकर वे ईर्ष्या से दग्ध हो उठते थे और उसे नष्ट कर देते थे। यहां की लूट वे अपने देश ले जाते और वहां के लोगों को भारत की लूट से समृद्ध करते। पर उन्होंने अपने देश को लुटने नहीं दिया, उसे बर्बाद नहीं होने दिया, उसकी समृद्धि को बाहर नहीं जाने दिया। वे अपने लिए देशभक्त थे और भारत के लिए लुटेरे तथा आक्रमणकारी। भारत का स्वतंत्रता संग्राम उनके विरुद्ध था।
उन्हें निकालने के बाद भारत ने क्या पाया? ऐसे स्वदेशी लुटेरे जिन्होंने भ्रष्टाचार के द्वारा भारत को लूटने में विदेशी आक्रमणकारियों को भी लज्जित कर दिया। ऐसी कौन-सी सरकारी योजना है जिसके क्रियान्वयन का एक बड़ा हिस्सा अफसरों और नेताओं की जेब में न जाता हो। शहर में सड़कें नहीं, पर्यटन स्थल कूड़ाघर बने हुए हैं, तीर्थ स्थान गंदे और ढांचागत सुविधाएं लड़खड़ाती हुईं। लेकिन अफसरों और नेताओं के घर देखिये—चमचमाते हुए इतने विराट और भव्य हैं मानो फिल्मी स्टूडियो बनाया हो। पांच-सात गाडि़यां तो रहती ही हैं। एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव का खर्च निकाल लिया जाता है। जो पैसा विदेशों में जमा है सो अलग। प्रदेश के श्रेष्ठतम पॉश इलाकों में इनकी कोठियां और फार्म हाउस। अपने बड़े नेताओं के शहर आगमन पर स्वागत के बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर लगाने का एक बार का खर्च गरीब से गरीब नेता की जेब से पचास हजार से एक लाख रुपए तो निकाल ही लेता है। अपने इलाके की जरूरतें, निर्वाचन क्षेत्र में प्रतिद्वंद्वी को दबाने के लिए रणनीति के खर्चे, बड़े लोगों को खुश करने के लिए भांति-भांति के व्यायाम और भविष्य के पूंजी निवेश का कोष। क्षेत्र में अच्छा काम करने या ना करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। प्रचार करो और दिल्ली के बड़े साहबों के पास हाजिरी लगाते रहो। बिन मांगे टिकट या टिकट देने की हैसियत मिलती रहेगी।
अगर इन लोगों ने देश को इतना ना लूटा होता तो हम आज भी पूरे देश को साक्षर बनाने, गांवों में बिजली पहुंचाने, स्कूलों में फर्नीचर, कम्प्यूटर और खेल का अच्छा सामान पहुंचाने की ईमानदार कोशिशों में खुद को ना झोंक रहे होते। भारत का कोई शहर ऐसा नहीं है जहां बेतरतीब विकास तथा अतिक्रमण के कारण रोजमर्रा जिंदगी मुहाल ना हो। 23 प्रतिशत लोग तो बेहद गरीब हैं और 53 प्रतिशत काफी गरीब। फल, दूध, दालें इस 53 प्रतिशत के हिस्से में नहीं आतीं। यात्रा करना, तीर्थों का पुण्य, मनोरंजन, त्यौहारों पर नये कपड़े, अच्छे स्कूल, अच्छा स्वास्थ्य, बीमारी में अच्छे अस्पताल या डॉक्टर इनके सपने में भी नहीं आते। जब आप अपने दफ्तर या दुकान जाते हैं तो रास्ते में कचरा बटोरते बच्चों को देखते हैं? वे यही भारतीय हैं। जब आप मंदिर जाते हैं या मूड बन जाये तो परिवार के साथ खाऊ गली में स्ट्रीट फूड का मजा लेने निकलते हें तो चाट, टिक्की, दही भल्ले या छोले-भठूरे लेते ही ईद-गिर्द जो भिखारी हाथ फैलाये, एक वक्त का भोजन आपसे मांग कर आपको चिड़चिड़ाहट से भर देते हैं और आप नफरत से हाथ हिला कर कहते हैं जाओ-जाओ आगे जाओ, वे वही भारतीय नागरिक हैं जो पहले अंग्रेजों द्वारा लूटे गये और आज अफसरों और नेताओं की लूट की वजह से इस हालत में पहंुच गए हैं।
कभी किसी बहुत अमीर अफसर या नेता को देखें तो उनकी वोट राजनीति के अलावा यह बात समझ लें कि शशिकला अकेली नहीं हैं, उसे बनाने, बढ़ाने और सफल बनाने वालों में ये तमाम लोग भी शामिल हैं जिनकी वजह से हिन्दुस्थान के ईमानदार शासकों को 70 साल के बाद भी चुनाव जीतने के लिए पानी, बिजली, सड़क और अच्छे अस्पताल देने के वादे करने पड़ते हैं। जो वादे 50 के दशक के चुनावों में किये गये थे, 2017 के चुनावों तक आते-आते उन वादों के इतिहास और भूगोल में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है।
(लेखक राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं)
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