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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर यही साबित किया कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में हम दुनिया के किसी देश से कम नहीं हैं। दुनिया के लिए भारत एक प्रेरणा बनकर उभरा है
-शशांक द्विवेदी-
अंतरिक्ष इतिहास में पहली बार 104 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित करके भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इतिहास रच दिया। उसने गत15 फरवरी को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पीएसएलवी सी 37 की सहायता से तीन स्वदेशी और 101 विदेशी उपग्रह एक साथ छोड़े। अभी तक किसी भी देश ने एक साथ इतने उपग्रह नहीं छोड़े हैं। इस मिशन में भारत के 3, अमेरिका की एक निजी कंपनी प्लेनेट लैब्स के 96 नैनो उपग्रह हैं। इनके अलावा, 1-1 उपग्रह इस्रायल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और यूएई का है। प्रक्षेपित किए जाने वाले इन सभी उपग्रहों का कुल वजन करीब 1378 किलोग्राम है। मिशन में मुख्य उपग्रह 714 किलोग्राम वजन वाला काटार्ेसैट-2 सीरीज का उपग्रह है जो धरती की निगरानी के इस्तेमाल में काम आएगा। मिशन में भारत के दो छोटे उपग्रह आईएनएस-1ए और आईएनएस-1बी भी गए हैं जिन्हें पीएसएलवी पर बड़े उपग्रहों का साथ देने के लिए विकसित किया गया है।
एक बड़ी व्यावसायिक सफलता
छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने में महारत हासिल कर चुके इसरो ने अब तक सैटेलाइट लॉन्चिंग के जरिए 631 करोड़ रुपए की कमाई की है। पीएसएलवी से प्रक्षेपण का खर्च लगभग 100 करोड़ रुपए आता है। अंतरिक्ष विशेषज्ञों के अनुसार एंट्रिक्स ने इन सैटेलाइट्स के लिए 200 करोड़ रुपए का सौदा किया था। यानी 101 विदेशी उपग्रहों की लॉन्चिंग से उसे करीब 100 करोड़ रु. का लाभ होगा। वैश्विक उपग्रह बाजार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है। अभी यह उद्योग लगभग 200 अरब डॉलर का है। फिलहाल इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है, जबकि भारत की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत से भी कम है, पर यह अब लगातार साल दर साल बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस सफल लॉन्चिंग से दुनिया भर में छोटे उपग्रह छोड़ने के मामले में इसरो पहली पसंद बन जाएगा, जिससे देश को आर्थिक तौर पर फायदा होगा। इसरो के प्रवक्ता डॉ. डी. पी. कार्णिक के अनुसार, ''हमारा मकसद रिकार्ड बनाना नहीं है। हम सिर्फ अपनी प्रक्षेपण योग्यता जांचना चाहते थे। इसकी कामयाबी से व्यापारिक प्रक्षेपण में हमारी पहचान और मजबूत होगी।''
भारत को होंगे बड़े फायदे
कोटार्ेसैट-2 शृंखला के उपग्रह के सफल प्रक्षेपण से भारत को कई फायदे होंगे। अब भारत में किसी भी जगह को अंतरिक्ष से देखने की क्षमता हासिल होगी। काटार्ेसैट-2 शृंखला के उपग्रहों में पैनक्रोमैटिक और मल्टीस्पेक्ट्रल इमेज सेंसर लगे हैं। इनसे रिमोट सेंसिंग में भारत की काबिलियत सुधरेगी। इन उपग्रहों से मिले डाटा का इस्तेमाल सड़क निर्माण के काम पर निगरानी रखने, बेहतर भूमि उपयोगिता और जल वितरण के लिए होगा। इसके साथ ही अंतरिक्ष से हाई रिजोल्यूशन तस्वीरें मुमकिन होंगी। ये उपग्रह दुश्मनों के सैनिक ठिकानों में गाडि़यों तक की तादाद बताने में कारगर हैं। लिहाजा रक्षा क्षेत्र में भी इन उपग्रहों की खासी अहमियत है। खासकर भारत की सरहदों की निगरानी में इन उपग्रहों की भेजी तस्वीरें काफी काम आ सकती हैं। सरकार का इरादा काटार्ेसैट उपग्रहों को शहरी विकास और स्मार्ट सिटी विकास की योजनाओं में भी इस्तेमाल करने का है। इनके जरिये पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर भी नजर रखी जा सकेगी।
क्यों खास है उपग्रहों का
यह शतक
इतने सारे उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में छोड़ना आसान काम नहीं है। इन्हें कुछ वैसे ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया जैसे एक स्कूल बस बच्चों को क्रम से अलग-अलग ठिकानों पर छोड़ती जाती है। बेहद तेज गति से चलने वाले अंतरिक्ष राकेट के साथ एक-एक उपग्रह के प्रक्षेपण का तालमेल बिठाने के लिए बेहद काबिल तकनीशियनों और इंजीनियरों की जरूरत पड़ती है। हर उपग्रह तकरीबन 7़ 5 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से प्रक्षेपित होता है। अंतरिक्ष प्रक्षेपण के बेहद फायदेमंद कारोबार में इसरो को नया खिलाड़ी माना जाता है। इस कीर्तिमान के साथ सस्ती और भरोसेमंद लॉन्चिंग में इसरो की ब्रांड वेल्यू में इजाफा होगा।
हमारा मकसद रिकार्ड बनाना नहीं है। हम सिर्फ अपनी प्रक्षेपण योग्यता जांचना चाहते थे। इसकी कामयाबी से व्यापारिक प्रक्षेपण में हमारी पहचान और मजबूत होगी।
— डॉ. डी. पी. कार्णिक, प्रवक्ता, इसरो
अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती धमक
कम लागत और लगातार सफल लॉन्चिंग की वजह से दुनिया का हमारी स्पेस टेक्नोलोजी पर भरोसा बढ़ा है तभी अमेरिका सहित कई विकसित देश अपने उपग्रहों को भारत से प्रक्षेपित करा रहे हैं। फिलहाल हम अंतरिक्ष विज्ञान, संचार तकनीक, परमाणु ऊर्जा और चिकित्सा के मामलों में न सिर्फ विकसित देशों को टक्कर दे रहे हैं बल्कि कई मामलों में उनसे भी आगे निकल गए हैं। हमने इस क्षेत्र में अमेरिका सहित कई बड़े देशों के एकाधिकार को तोड़ा है।
इसरो की चुनौतियां
अब समय आ गया है जब इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी, क्योंकि जैसे-जैसे अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढे़गी, अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्वपूर्ण होता जाएगा। भारी विदेशी उपग्रहों को अधिक संख्या में प्रक्षेपित करने के लिए अब हमें पीएसएलवी के साथ-साथ जीएसएलवी राकेट का भी उपयोग करना होगा। पीएसएलवी अपनी सटीकता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन ज्यादा भारी उपग्रहों के लिए जीएसएलवी का प्रयोग करना होगा।
(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी, चित्तौड़गढ़, राजस्थान में उप निदेशक और टेक्निकल टुडे पत्रिका के संपादक हैं।)
वैज्ञानिकों को संघ की शुभकामनाएं
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों की इस सफलता पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैया जी जोशी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन्हें बधाई दी है। भैया जी ने कहा है,
''भारत न केवल आध्यात्मिक विज्ञान, बल्कि भौतिकी विज्ञान में भी अग्रणी हो गया है। आर्यभट्ट और वाराहमिहिर से लेकर अनगिनत वैज्ञानिकों के जरिए भारत ने विश्व में अपना योगदान दिया है। हाल के दशकों में भारत ने अपने दम पर अंतरिक्ष विज्ञान और अंतरिक्ष तकनीक में लंबी छलांग लगाई है। इसरो ने श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक 104 उपग्रहों को निर्दिष्ट कक्षा में स्थाापित करके नया कीर्तिमान बनाया है। इस सफलता से इसरो के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गई है। साथ ही, भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत भूमिका की घोषणा बड़ी सौम्यता के साथ कर दी है। इस अवसर पर वैज्ञानिकों, अधिकारियों और इस अभियान में शामिल सभी अन्य लोगों को हमारी शुभकामनाएं।''
इसरो के बढ़ते कदम
– इससे पहले 2014 में एक साथ 37 उपग्रह छोड़कर रूस ने 2013 में 29 उपग्रह एक साथ छोड़ने के अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रिकार्ड को तोड़ा था।
– अमेरिका, इस्रायल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड,यूएई के 101 छोटे उपग्रह भेजे गए, इनमें सबसे ज्यादा अमेरिका के 96 उपग्रह थे।
– व्यावसायिक उपग्रह प्रक्षेपण का सारा काम इसरो की व्यापारिक इकाई 'एंट्रिक्स कारपोरेशन' संचालित करती है। इस सफलता से उसे और परियोजनाएं मिलने की उम्मीद है।
– भारत में उपग्रहों की व्यापारिक लॉन्चिंंग दुनिया में सबसे सस्ती है। भारत के जरिए उपग्रह को छोड़ना अमेरिका, चीन, जापान और यूरोप से कई गुना तक सस्ता पड़ता है।
– विशेषज्ञों के अनुसार इस सफलता के बाद दुनियाभर में छोटे उपग्रह प्रक्षेपित कराने के मामले में इसरो पहली पसंद बन जाएगा, जिससे देश को आर्थिक तौर पर फायदा होगा। विदेशी उपग्रह इतनी कम कीमत में लॉन्च करने के कारण अमेरिकी निजी प्रक्षेपण उद्योग के लिए इसरो सीधा प्रतिद्वंद्वी बन गया है।
– भारत जल्द ही शुक्र और मंगल ग्रहों पर उतरने की तैयारी कर रहा है। इस मिशन को बजट-2017 में जगह दी गई है। इसरो का अनुदान भी 23% बढ़ाया गया है। 1969 में प्रसिद्घ वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के निर्देशन में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन हुआ था।
पीएसएलवी – 37काटार्ेसैट-2 सीरीज उपग्रह
– पीएसएलवी की 39वीं उड़ान-इसरो द्वारा एक मिशन में सबसे ज्यादा 104 उपग्रह भेजने का विश्व रिकार्ड।
– इसरो उपग्रह प्रक्षेपण से अब तक 660 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर चुका है। लगभग 200 अरब डालर का है वैश्विक उपग्रह बाजार। फिलहाल इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 41% की है। जबकि भारत की हिस्सेदारी 4% से भी कम है। ये अब लगातार बढ़ रही है।
– आज से लगभग 42 साल पहले उपग्रहों के साइकिल और बैलगाड़ी से शुरू हुआ सफर आज उस स्थान पर पहुंच गया है जहां दुनिया में हमसे आगे कोई नहीं।
– इसरो ने इस मिशन में सबसे भारी पीएसएलवी का इस्तेमाल किया है। पीएसएलवी सी 37का वजन 320 टन, ऊंचाई 44़4 मीटर है यानी 15 मंजिला इमारत जितना ऊंचा।
– प्रक्षेपित किए जाने वाले सभी उपग्रहों का कुल वजन करीब 1378 किलोग्राम है। मिशन में मुख्य उपग्रह 714 किलोग्राम वजन वाला भारतीय काटार्ेसैट-2 सीरीज का है जो धरती की निगरानी के इस्तेमाल में आएगा। इसके जरिए भेजी गई तस्वीरें तटीय इलाकों में रोड-ट्रैफिक, पानी के वितरण, मैप रेग्युलेशन समेत कई कामों के लिए अहम होंगी।
– पीएसएलवी से प्रक्षेपण का खर्च 100 करोड़ रुपए है। वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष कारपोरशन ने इन उपग्रहों के लिए 200 करोड़ रुपए का सौद ा किया था यानी उसे करीब 100 करोड़ रुपए की बचत होगी। उपग्रहों के व्यापारिक प्रक्षेपण से इसरो की पहचान और मजबूत हुई।
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