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'हालात सामान्य हैं। पुलिस कार्रवाई कर रही है। जो भी हिंसा में शामिल पाया जायेगा, पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी।' ममता की पुलिस के ये रटे-रटाये जुमले हैं। धूलागढ़ में बीते दो माह से दंगाइयों के बारे में पुलिस को सब पता है, लेकिन वह उनके खिलाफ कार्रवाई करने को राजी नहीं
-अश्वनी मिश्र-
साम्प्रदायिक दंगों की आग में पश्चिम बंगाल आए दिन झुलस रहा है। ज्यादा नहीं, दो-तीन साल के ही आंकड़े उठाकर देखें तो यह फेहरिस्त इतनी लंबी है कि देखने वाला दंग रह जाएगा। राज्य के मालदा, कलियाचक, नादिया, उत्तर 24-परगना, मुर्शिदाबाद, बर्धमान जैसे कई जिले दंगे की आग से झुलसते रहे हैं लेकिन राज्य की ममता सरकार हर बार ऐसे मामले को 'छोटी घटना' बता उसे रफा-दफा कर तुष्टीकरण की राजनीति के सहारे अपना स्वार्थ साधती आई हैं। दो महीने पहले हावड़ा के धूलागढ़ में भी इसी तरह का दंगा हुआ था। सैकड़ों हिन्दू परिवारों के घर-दुकान जला दी गईं। लेकिन मुख्यमंत्री का घटना पर बयान आया,''धूलागढ़ में कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ है।'' इसके बाद समूचे बंगाल में इस तुष्टीकरण राजनीति पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और कई जगह इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। लेकिन बावजूद इसके न तो धूलागढ़ के प्रति उनका रवैया बदला और न ही उन्होंने मजहबी उन्माद के लिए पीडि़त हिन्दू परिवारों के दुख को साझा करने की जहमत उठाई।
जरी के काम के साथ ही धूलागढ़ को छोटे-मोटे उद्योगों के लिए जाना जाता है। यहां के निवासी छोटे-मोटे कारोबार से अपनी जिंदगी गुजर-बसर करते हैं। लेकिन दंगे के बाद यहां के हालात बिल्कुल बदल गए हैं। जहां मुसलमान बदस्तूर अपने काम-धंधे में लगे हुए हैं, वहीं हिन्दू अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर हैं।
दरअसल यहां के मुस्लिम हिन्दुओं के मुकाबले संख्या में और आर्थिक रूप से काफी संपन्न हैं। यही कारण है कि वे समय-समय पर हिन्दुओं को डराते-धमकाते और धूलागढ़ छोड़ने का दबाव बनाते रहते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो यहां के कट्टरपंथी मौलाना और तृणमूल के कुछ मुस्लिम नेता हिन्दुओं पर कहीं और जा बसने का पहले से ही दबाव बनाते रहे हैं। समय-समय पर हिन्दू परिवारों को धमकियां भी दी गईं। हिंसा से पीडि़त शानू मंडल स्थानीय स्तर पर मुसलमानों के उपद्रव की पूरी दास्तान स्थानीय बोली में सुनाते हैं। वे कहते हैं,''अभी जो दो महीने पहले दंगा हुआ इससे पहले भी छोटी-मोटी घटनाएं होती रही हैं। मुसलमानों के पास पैसा और रुतबा दोनों है। विधायक और पुलिस भी उनकी है। इस कारण वे छोटी-छोटी बातों पर ही हिन्दुओं पर कहर बनकर टूट पड़ते हैं। हम तो उनके अत्याचार सिर्फ सहते हैं, क्योंकि हम कुछ भी कर नहीं सकते। शिकायत करने जाओ तो एक तरफ पुलिस धमकाती है तो दूसरी ओर, गांव में लौटने पर कट्टर पंथी तत्वों से खतरा। ऐसे में चुप रहना मजबूरी है। जीवन जीना है, बस जिए जा रहे हैं।''
सुनंदा कुमारी बताती हैं,''हम तो पहले से ही यहां दबे-डरे जी रहे थे लेकिन हिंसा के बाद तो यहां रहना मुश्किल हो गया है। मुसलमान हमारी दशा देखकर खुश होते हैं और कहते हैं कि अबकी बार कुछ किया तो इससे बुरा अंजाम भुगतोगे। परिवार और बच्चों पर डर का साया बना रहता है।'' गौरतलब है कि इलाके के जितने भी हिन्दू परिवार इस हिंसा के शिकार हुए हैं, वे अपने अस्तित्व की लड़ाई रहे हैं। यानी दंगे के बाद के बाद से उनकी जिंदगी दूभर हो गई है।
पुलिस पर उठते सवाल
पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना कोई नई बात नहीं है क्योंकि उसके काम ही कुछ ऐसे होते हैं जो उसे संदेह के घेरे में खींच लाते हैं और झूठ पकड़े जाने पर उसकी सारी निष्पक्षता धरी रह जाती है। अब जब हिंसा की परतें उघड़नी शुरू हुई हैं तो पुलिस ने दंगे में जो रिपोर्ट दर्ज की, उसमें कुछ नाम ऐसे दर्ज हैं जो या तो मर चुके हैं या हिंसा के दिन मौके पर मौजूद नहीं थे। राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य सुषमा साहू इस मुदद् पर प्रशासन पर तंज कसती हैं,''पुलिस की कार्यप्रणाली से तो ऐसा लगता है जैसे उसने मतदाता सूची देखकर एक तरफ से सभी नामों को चिन्हित किया है। अगर उसने निष्पक्षता के साथ मामले की जांच की होती तो ऐसे मामले कैसे सामने आते।'' अब यह रिपोर्ट पुलिस के गले की फांस बनी हुई है लेकिन उसके बाद भी वह इस मामले पर वही ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है और जवाब देने से बच रही है।
पश्चिम बंगाल सरकार और जिला प्रशासन का दावा है कि हिंसा में शामिल सभी आरोपियों के खिलाफ जांच की जा रही है और जो भी इसमें शामिल पाया जाएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस बारे में हावड़ा (ग्रामीण) के पुलिस अधीक्षक सुमित कुमार का कहना है,''धूलागढ़ के हालात एकदम सामान्य हैं।'' 13-14 दिसंबर को एक पीडि़ता के साथ हुए बलात्कार के मामले और अभी तक आरोपियों की गिरफ्तारी न होने पर उनका कहना हैं, ''जिस युवती ने बलात्कार का आरोप लगाया है, हम उसकी जांच कर रहे हैं। उसके बाद ही किसी की गिरफ्तारी होगी। किसी ने कोई नाम बोल दिया तो उसे हम ऐसे ही गिरफ्तार नहीं कर सकते। क्योंकि उसमें कुछ लोग ऐसे हैं जो मौके पर मौजूद ही नहीं थे। ऐसे में उन्हें कैसे गिरफ्तार कर लें?''
असल में पिछले सप्ताह सुषमा साहू के नेतृत्व में राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम ने धूलागढ़ के हिन्दू परिवारों का हाल जाना था और इस दौरान कुछ ऐसे तथ्य सामने रखे थे जिसे पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न उठना स्वाभाविक है। उन्होंने आरोप लगाया था। ''पुलिस ने पीडि़तों की ओर से तो कोई शिकायत दर्ज नहीं की लेकिन जिन्होंने हिन्दू परिवारों पर ही हमला किया था, उनकी ओर से शिकायत लेकर पीडि़तों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। लेकिन पुलिस ने हिन्दुओं की ओर से इसमें कुछ ऐसे नाम दर्ज कर लिए जो या तो अब जिंदा नहीं हैं या फिर उस वक्त अस्पताल में भर्ती थे। उसमें एक नाम धूलागढ़ निवासी हेमंत मंडल का है। इससे जाना जा सकता है कि पुलिस ने कैसे पीडि़तों की आवाज को दबाने का कुचक्र रचा है।''
वे कहती हैं, ''मुझे तो ऐसा लगता है कि पुलिस ने उलटा मामला बनाने के लिए मतदाता सूची उठाई और एक तरफ से जो नाम आते गए, उन्हें दर्ज करती गई। तभी तो ऐसे लोगों के नाम रिपोर्ट में दर्ज हैं जो मर चुके हैं। अगर जांच करके मामले में कार्रवाई की गई होती तो ऐसा नहीं होता।'' इस बात पर पुलिस अधीक्षक सफाई के लहजे में कहते हैं, ''अगर राष्ट्रीय महिला आयोग हमें लिखित में ऐसा कुछ पूछता है तो हम उसे बताएंगे, पर आपको नहीं।'' पुलिस के ऐसे रटे-रटाए जवाब आम जनता के लिए कोई नई बात नहीं हैं। इसलिए स्थानीय लोग मानते हैं कि शासन-प्रशासन सिर्फ झूठ बोलने का काम करता है। वह कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं करेगा। उधर दो महीने से पीडि़तों को सभी प्रकार की मदद की व्यवस्था कर रहे शुभेन्दु सरकार पुलिस की कार्यशैली पर कहते हैं,''धूलागढ़ पीडि़त चीख-चीख कर बता रहे हैं कि दंगा करने वाले कोई बाहरी नहीं, यहीं के लोग थे, तब भी प्रशासन उनकी बात सुनने को राजी नहीं है। खुद पुलिस अधिकतर चेहरों को पहचानती है।'' वे आगे कहते हैं, ''पुलिस तो कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर रही है। उसे सब पता है कि इस दंगे में कौन शामिल है, किसने हिन्दुओं के घरों को जलाया और किसने बलात्कार किया, लेकिन राज्य सरकार ने उसके हाथ बांध रखे हैं। इसलिए वह इस मामले में कुछ नहीं करेगी।' शुभेन्दु सरकार की बात में दम है, क्योंकि हिंसा को इतने दिन बीतने के बाद भी पुलिस ने पीडि़तों की रिपोर्ट तक लिखना गवारा नहीं किया। उलटे जिन्होंने हमला किया उनकी तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर ली।
अब क्या हैं हालात
हिंसा के बाद से अलग-अलग संगठनों के लोग पीडि़तों की सहायता में लगे हुए हैं और जो मदद हो सकती है, कर रहे हैं। इनमें से एक कार्यकर्ता रुद्र बनर्जी हिन्दुओं की पीड़ा से आहत हैं। उनका मानना है कि अगर कोई घटना घटी है तो सरकार के किसी प्रमुख व्यक्ति को यहां आना था और पीडि़तों की पीड़ा दूर करने के लिए काम करना चाहिए था। लेकिन दुख की बात है कि तृणमूल के नेताओं ने इस ओर देखना तक ठीक नहीं समझा।
रुद्र का कहना है कि हालांकि दो महीने पहले के जो हालात थे, अब वैसे नहीं हैं लेकिन धूलागढ़ व आस-पास का माहौल अभी भी तनावपूर्ण है। यानी 13-14 दिसंबर को जो हुआ, उसका डर अभी भी बरकरार है। घरों के जले दरवाजे, चंद खिड़कियों से गुमसुम झांक रही डरी महिलाओं के चेहरे बिन बताए ही उस दिन की घटना के खौफ की पूरी कहानी बयान करते हैं।
कैसे चले घर का खर्च
कोलकाता से धूलागढ़ पहुंचते ही शुरुआत से ही छोटी-छोटी दुकानें, छोटे उद्योग, मिठाई, सब्जी, साइकिल की दुकानें दिखती हैं। इनमें से अधिकतर दुकानें स्थानीय हिन्दुओं की हैं जो अरसे से इसी के सहारे जीवन गुजारते आए हैं। लेकिन उस दिन मजहबी उन्मादियों की भीड़ जब इनके रोजगार के संसाधनों पर टूटी, उसके बाद से अब तक इनमें अधिकतर दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं। रेनु कुमारी (परिवर्तित नाम) की सड़क पर एक दुकान थी जिसे उन्मादियों ने जला दिया। अब उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे फिर से दुकान खोल सकें। वे इसी के सहारे अपना गुजर-बसर करती थीं। डरी-सहमी और लाचार रेनु बताती हैं,''हम ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं हैं जो कहीं बाहर कमाने चले जाएं। एक छोटी दुकान थी उससे रोटी का इंतजाम हो जाता था। पर हमलावरों ने उसे भी आग लगा दी।'' सुदीपन गुरु कहते हैं, ''घर तो जलाया ही बल्कि जो रोजगार का जरिया था वह भी जला डाला। अब बस जीवन काट रहे हैं, क्योंकि इतना पैसा है नहीं जो फिर से कोई दुकान खोल सकें।'' रेनु और सुदीपन की मानें तो हिन्दुओं के ऐसे कई परिवार हैं जो ऐसी ही छोटी-मोटी दुकानदारी के सहारे अपना पेट पालते थे लेकिन दंगे के बाद उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। वे रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं। लेकिन उनकी तरफ देखने वाला कोई नहीं है। जैसे-जैसे समय गुजर रहा है वैसे-वैसे उपद्रव की परतें उघड़नी शुरू हो गईं हैं और सच सामने आने लगा है। लेकिन घटना पर सरकार-प्रशासन का रवैया संदिग्ध और नकारात्मक है। सामने आ रहा सच राज्य सरकार और उसके पंगु प्रशासन की पोल खोलने के लिए काफी है।
धूलागढ़ के हालात बिल्कुल शांत हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग अगर लिखित में हमसे कोई जवाब मांगेगा तो उसे दें देंगे। और किसी महिला के आरोप लगाने भर से हम किसी को गिरफ्तार नहीं करेंगे।
— सुमित कुमार, पुलिस अधीक्षक -ग्रामीण, हावड़ा
धूलागढ़ के हालात अभी भी तनावपूर्ण हैं। प्रशासन अगर यह कहता है कि हालात सामान्य हैं और हम घटना पर कार्रवाई कर रहे हैं तो वह झूठ बोलता है। वहां का प्रशासन पूरी तरह से पंगु हो चुका है।
—सुषमा साहू, सदस्य, राष्ट्रीय महिला आयोग
पुलिस कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रही है। उसे सब पता है कि इस दंगे में कौन शामिल है, किसने हिन्दुओं के घरों को जलाया और किसने बलात्कार किया, लेकिन राज्य सरकार ने उसके हाथ बांध रखे हैं।
—शुभेन्दु सरकार, कोलकाता
दंगे ने सब तहस-नहस कर दिया। हम ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं हैं जो कहीं बाहर कमाने चले जाएं। एक छोटी दुकान थी, उससे रोटी का इंतजाम हो जाता था। उसे हमलावरों ने आग लगा दी।
—रेनु कुमारी, स्थानीय निवासी
तृणमूल विधायक ने भड़काया दंगा ?
हाल ही में नयन चौधरी द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि धूलागढ़ सहित तेहट्टा हाई स्कूल में जो हिंसा हुई, उसमें पांचला के तृणमूल विधायक गुलशन मल्लिक का हाथ है। इसमें कहा गया है कि विधायक के उकसावे के बाद ही मुसलमानों ने दंगा किया। लेकिन इस सबके बाद भी प्रशासन ने उक्त विधायक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है, क्योंकि उन्हें ममता बनर्जी का खुला संरक्षण मिला हुआ है। याचिका में मांग की गई है कि मामले की सीबीआई और एनआईए से जांच कराई जाए ताकि तृणमूल और उसके नेता का सच सामने आ सके।
न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई की तारीख 17 फरवरी को तय की है। हमने जब इस मामले पर तृणमूल विधायक का पक्ष जानने के लिए उन्हें फोन किया तो कई बार घंटी जाने पर भी उनका फोन नहीं उठा। हालंकि पहले से ही स्थानीय लोग दंगे में गुलशन की संलिप्तता के बारे में बताते रहे हैं। उनकी दंबग छवि के कारण क्षेत्र के लोग उनसे डरते हैं। नाम न छापने की शर्त पर कई स्थानीय निवासी यहां तक कहते हैं,''गुलशन ही इस दंगे का 'मास्टर माइंड' हैं। उनकी शह पर ही मुसलमानों ने इतना बड़ा दंगा किया है। क्योंकि उन्होंने ही मुसलमानों को कहा था कि तुम लोग कुछ भी करो, तुम्हें कुछ नहीं होगा। जो होगा, हम देख लेंगे। बस कोई इसलिए इसके खिलाफ खुलकर नहीं बोलता क्योंकि वे कुछ भी करा सकते हैं।'' तो कुछ लोगों के अनुसार, ''दंगे के समय वे मुसलमानों के झुंड में मौजूद और उन्हें हिन्दुओं के घरों पर हमला करने के लिए उकसा रहे थे। उनकी शह पर ही बाहर से नकाबपोश मुसलमान आए थे जो उन दो दिनों में हिन्दुओं की बस्तियों पर कहर बनकर टूट पड़े थे।''
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